उमा भारती ने चुनावी समर में हुंकार भर कर बीजेपी की नींद उडा दी है । साध्वी प्रज्ञा सिंह को भारतीय जन शक्ति पार्टी से चुनाव लडने का न्यौता देकर उन्होंने बीजेपी की जान सांसत में डाल दी है । उमा ने साध्वी के ज़रिए भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है और उसे उसी के हिन्दू कार्ड से मात देने की पूरी बिसात बिछा दी है । प्रज्ञा सिंह के मामले से कुछ दिन पहले तक पल्ला झाडती नज़र आ रही बीजेपी को मजबूरी में ही सही इस मसले पर सामने आना पडा है ।
उमा भारती के राजनीतिक भविष्य पर विराम की संभावनाएं तलाशते भाजपाई नेता दोबारा गद्दीनशीं होने का रास्ता सीधा - सपाट मान बैठे थे । मध्य प्रदेश कांग्रेस की आपसी सर फ़ुटौव्वल के कारण उनका ये खवाब हकीकत में बदलने की गुंजाइश भी साफ़ - साफ़ नज़र आ रही थी ,लेकिन हाशिए पर जा चुकी उमा ने प्रहलाद पटेल के साथ सुलह करके बीजेपी की राह में कांटे बिछा दिए हैं । बिखराव की राजनीति के सहारे आगे बढना नामुमकिन है , इस हकीकत से वाकिफ़ होने के बाद दोनों नेताओं ने समय रहते गिले - शिकवे भुलाकर ऎक साथ आने में ही भलाई समझी । दोनों का मकसद एक है और मंज़िल भी एक ही ।
भाजपा को कांग्रेस से कडी चुनौती तो मिलना तय है ,लेकिन चुनाव में उमा फ़ेक्टर को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता । उमा भी बीजेपी को हर हाल में सत्ता से बाहर रखने की जुगत भिडाने में लगी हैं । छोटे - छोटे दल भी सत्तारुढ पार्टी का सिरदर्द बन गये हैं । इस मर्तबा प्रदेश के चुनावी जंग में प्रमुख दलों के अलावा छोटी पार्टियां भी निर्णायक भूमिका निबाहेंगी ।
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश में अपने पैर मज़बूती से जमा लिए हैं । इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल , गोंडवाना गणतंत्र पार्टी , लोक जनशक्ति पार्टी और वामपंथी दलों ने भी अपने स्तर पर बीजेपी और कांग्रेस को घेरने की तैयारी कर ली है । मुखतलिफ़ राजनीतिक विचारधारा के बावजूद सीटों के तालमेल पर उमा की प्रांतीय दलों से पटरी बैठ सकती है । ऎसे में मायावती का साथ यदि उमा को मिल गया , तो प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण बनेंगे । सत्ता की आस लगाए बैठी कांग्रेस तथा बीजेपी को नाकों चने चबाना होंगे ।
लगता है उमा का चुनावी मोटो है - हम तो डूबेंगे सनम ,तुम को भी ले डूबेंगे .......।
उमा भारती के राजनीतिक भविष्य पर विराम की संभावनाएं तलाशते भाजपाई नेता दोबारा गद्दीनशीं होने का रास्ता सीधा - सपाट मान बैठे थे । मध्य प्रदेश कांग्रेस की आपसी सर फ़ुटौव्वल के कारण उनका ये खवाब हकीकत में बदलने की गुंजाइश भी साफ़ - साफ़ नज़र आ रही थी ,लेकिन हाशिए पर जा चुकी उमा ने प्रहलाद पटेल के साथ सुलह करके बीजेपी की राह में कांटे बिछा दिए हैं । बिखराव की राजनीति के सहारे आगे बढना नामुमकिन है , इस हकीकत से वाकिफ़ होने के बाद दोनों नेताओं ने समय रहते गिले - शिकवे भुलाकर ऎक साथ आने में ही भलाई समझी । दोनों का मकसद एक है और मंज़िल भी एक ही ।
भाजपा को कांग्रेस से कडी चुनौती तो मिलना तय है ,लेकिन चुनाव में उमा फ़ेक्टर को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता । उमा भी बीजेपी को हर हाल में सत्ता से बाहर रखने की जुगत भिडाने में लगी हैं । छोटे - छोटे दल भी सत्तारुढ पार्टी का सिरदर्द बन गये हैं । इस मर्तबा प्रदेश के चुनावी जंग में प्रमुख दलों के अलावा छोटी पार्टियां भी निर्णायक भूमिका निबाहेंगी ।
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश में अपने पैर मज़बूती से जमा लिए हैं । इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल , गोंडवाना गणतंत्र पार्टी , लोक जनशक्ति पार्टी और वामपंथी दलों ने भी अपने स्तर पर बीजेपी और कांग्रेस को घेरने की तैयारी कर ली है । मुखतलिफ़ राजनीतिक विचारधारा के बावजूद सीटों के तालमेल पर उमा की प्रांतीय दलों से पटरी बैठ सकती है । ऎसे में मायावती का साथ यदि उमा को मिल गया , तो प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण बनेंगे । सत्ता की आस लगाए बैठी कांग्रेस तथा बीजेपी को नाकों चने चबाना होंगे ।
लगता है उमा का चुनावी मोटो है - हम तो डूबेंगे सनम ,तुम को भी ले डूबेंगे .......।