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शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

छलिया चांद और छलनी का राज़ .........!

शेयर बाज़ार की गिरावट का असर इतना तगडा है कि सरकार को हर रोज़ आकर सफ़ाई देना पड रही है । बाज़ार को सम्हालने के लिए तरह - तरह के टेके लगाने पड रहे हैं । इस बीच खबर आ रही है कि वित्त मंत्री ने भी अपनी नाकामी को मान लिया है । २३ हज़ार के करिश्माई आंकडे को देश की मज़बूत अर्थ व्यवस्था का प्रतीक बताने वाले अब बगलें झांक रहे हैं । मंदी की मार से चारों तरफ़ हाहाकार मच गया है , लेकिन सब एक दूसरे पर आरोप लगा कर खुद पाक - साफ़ बच निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं ।
ना था कुछ तो खुदा था ,कुछ ना होता तो खुदा होता ।
डुबोया मुझको होने ने ,जो फ़िर ना होता तो क्या होता ।
लाचारगी के इस दौर में मेरा भी मन किया क्यों छलनी में दूध लेकर किस्मत को दोष देकर देखॆं , आखिर अपनी खामियों की तोहमत किसी और के सिर मढने का मज़ा ही कुछ और है । उदारीकरण के दौर में हर चीज़ रेडिमेड लाने की आदत कुछ ऎसी बन गई कि पीढियों से चले आ रहे रसोई के कुघ ज़रुरी उपकरण गैर ज़रुरी लगने लगे और ना जाने कब कबाडी के ठेले पर लद कर रवाना हो गये । खैर तय कर ही लिया था ,सो चल पडे नई छलनी की तलाश में । लेकिन ये क्या जहां कन्ज़्यूमर प्राडक्ट के शोरुम्स पर सन्नाटा पसरा था , वहीं छलनी बेचने वाले को बात करने तक की फ़ुर्सत नहीं थी । मुंहमांगे दामों पर छलनी की पूछ परख ने हमें हैरानी में डाल दिया । तभी ब्यूटी पार्लर से सज संवर कर आई एक सुहागन ने छलनी के भाव एकाएक आसमान छूने का राज़ फ़ाश किया ।बातचीत में पता चला कर्क चतुर्थी का चांद छलनी की ओट से देखने का खास महत्व है।
ज़ेहन ने सवाल उठाया कि छलनी की गवाही के बगैर पति परमेश्वर का पूरा प्यार में कोई संदेह रहता है । घर आकर कई ग्रंथ खंगालें , लोगों से पडताल की ,लेकिन इस बात का खुलासा अब तक नहीं हो सका । लोकोक्तियों में बेचारी चलनी को तरह - तरह से कोसा गया फ़िर ऎसा क्या गुज़रा की वो सुहागिनों की नज़दीकी हमजोली बन बैठी । लोकाचार में सूपे को जो दर्ज़ा हासिल है , वो बहत्तर छेदों वाली इस चलनी को कभी नहीं मिल सका । सूपे को अपनी राय रखने का हक मिला लेकिन चलनी ......., उसकी बात का कोई मोल नहीं ? कहावत है -सूपा बोले तो बोले चलनी भी बोले ,जिसमें खुद ही बहत्तर छेद ।
बहरहाल इस बात को लेकर मेरी उत्सुकता काफ़ी बढ गई है । आखिर वो कौन सी वजह रही होगी , जो रसोई का ये गुमनाम हो चुका उपकरण बज़रिए बाज़ार महिलाओं के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय त्योहार का सबसे ज़रुरी तत्व ब न गया ।
क्या है छलिया चांद और छलनी का राज़ .........!

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

करवा चौथ के बहाने


कर्क चतुर्थी यानी करवा चौथ का व्रत को पूरे ग्लैमर के साथ मनाने के लिए हर तरफ़ ज़ोर -शोर से तैयारियां चल रही हैं । कहीं महिलाएं खुद को खूबसूरत दिखाने के लिए नए - नए नुस्खे आज़मा रही हैं , तो कहीं ब्यूटी पार्लर की ओर से मिलने वाले आकर्षक पैकेज का फ़ायदा लेकर रुप लावण्य को निखारा जा रहा है।
पति की लंबी उम्र की याचना हर रोज़ रुप बदलते चांद से करना भी बडा अजीब इत्तेफ़ाक है । कभी फ़िल्मों के ज़रिए प्रसिद्धि पाने वाले करवा चौथ की पापुलरिटी दिनोदिन तेज़ी से बढ रही है । एक तरफ़ तो देश में अलगाव और तलाक के मामलों का ग्राफ़ तेज़ी से ऊपर चढ रहा है । दूसरी ओर कर्क चतुर्थी पर अन्न जल त्याग कर चांद से पति परमेश्वर के दीर्घायु होने की कामना करने वाली पतिव्रता नारियों की तादाद भी कम नहीं । यह सामाजिक विरोधाभास कई सवालात को जन्म देता है।
वैसे इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि व्रत - त्योहारों का सामाजिक महत्व होता है । तीज - त्योहारों की गहमा गहमी जीवन की एकरसता को भंग कर उत्साह - उमंग का नया संचार करती है । बहरहाल समय के तेज़ी से घूमते चक्र के साथ परिस्थितियां भी बदली हैं । सामाजिक और घरेलू मोर्चे पर महिलाओं की भूमिका और दायित्वों में भी बदलाव आया है । रीति रिवाजों की डॊर से बंधी महिलाएं अजीब सी कशमकश में नज़र आती हैं । बकौल गालिब - इमां मुझे रोके है ,जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है , कलीसा मेरे आगे ।
दरअसल बदलते वक्त के साथ परंपराओं के स्वरुप में बदलाव लाना बेहद ज़रुरी है । आज के दौर में त्योहारों के मर्म को जानने समझने की बजाय हम परंपराओं के नाम पर पीढियों से चली आ रहे रीति रिवाजों को जस का तस निबाहे जा रहे हैं । संस्क्रति को ज़िन्दा रखने के लिए ज़रुरी है कि समय समय पर उसका पुनरावलोकन हो , गैर ज़रुरी मान्यताओं को छोडकर समय की मांग को समझ कर रद्दो बदल किए जाएं ।
इस बीच एक दिलचस्प खबर उन पति -पत्नियों के लिए जो जन्म -जन्म के साथ या फ़िर पुनर्जन्म की अवधारणा को सिरे से खारिज करते हैं । ऎसी महिलाएं जिन्हें घरेलू काम काज के लिए पतिनुमा नौकर की तलाश है ,उन्हें अब शादी के बंधन में बंधने की हरगिज़ ज़रुरत नहीं । अब आप काम काज के लिए घंटों के हिसाब से किराए पर पति ले सकते हैं । जी हैं ,अब पति की सेवाएं भी किराए पर उपलब्ध हैं । अर्जेंटीना की हसबैंड फ़ार सेल नाम की कंपनी साढे पंद्रह डालर प्रति घंटे के हिसाब से पति उपलब्ध करा रही है ।कंपनी का दावा है कि उसने अब तक दो हज़ार से ज़्यादा ग्राहक जोड लिए हैं और महिलाओं को ये सुविधा खूब पसंद आ रही है।

करवा चौथ पर खुद को वीआईपी ट्रीटमेंट का हकदार समझने वालों ,होशियार ..........