भक्ति का ये गणित भी बडा निराला है । पहले एक पोस्टकार्ड डाक से आता था ,जिसमें लिखा होता था कि पढने वाले ने ऎसे ११ कार्ड नहीं डाले ,तो उस पर भगवान का कोप होगा । फ़िर आया ज़माना प्रीटिंग का ,सो आस्थावानों को डराकर भक्ति के मार्ग पर ठेलने के लिए पर्चों का सहारा लिया गया । सुबह -सुबह आने वाले अखबार के साथ चुपके से घर में आकर लोगों को धमकाने लगे पेमफ़लेट । जो बताते थे कि फ़लां ने इतने छपवाए , तो बंगला , गाडी , धन संपत्ति से लेकर इहलोक के सभी सुख पाए और अलां ने पर्चा फ़ाड कर फ़ेंक दिया तो अला ,बला बीमारी ,दुख ,पीडा ने उसे चुटकियों में घेर लिया । यानी पर्चा ना हुआ साक्षात शिवशंकर हो गए जो प्रसन्न हुए तो स्वर्ग का राजपाट यानी इंद्रलोक भी पल भर में आपका , वर्ना रुद्रदेव की तीसरी आंख खुलते ही सब कुछ स्वाहा ।
कौन कहता है कि ब्रहमा ही सृष्टि के रचयिता हैं । सृजन के मामले में भारतीय दिमाग किसी चतुरानन से कमतर नहीं । इसी उर्वरक दिमाग की उपज है - माता संतोषी । खट्टॆ से परहेज़ करने वाली इन देवीजी की एक दौर में बडी धूम थी । शोले की नामी गिरामी फ़िल्मी हस्तियों से बाज़ी मार कर संतोषी मां ने भक्तों को ये बता दिया कि भगवत सत्ता को चुनौती देना ठीक नहीं ,फ़िर चाहे वो देवी काल्पनिक ही क्यों ना हो ।
वक्त बदला ,भक्त बदले ,ज़रुरत बदली , तो भगवत सत्ता में तब्दीली आना भी लाज़मी हो गया । अब सत्ता की बागडोर संभाली वैभव लक्षमी ने । लोग मालामाल हुए या नही , मगर पुस्तक छापने वाले की समद्धि को लेकर मन में कोई शको शुबह नहीं है । हे देवी मां जैसे उस प्रकाशक के दिन फ़िरे ऎसे सबके फ़िरें ।
समय ने एक बार फ़िर करवट ली है और इलेक्ट्रानिक युग में सांई बाबा के चमत्कार योजनाबद्ध रुप से समाचार बुलेटिन की सुर्खियों में जगह पाने लगे हैं । ऎसे में निस्वार्थ भाव से मानव सेवा में
लगे लोग जीवन के कष्टों से निजात पाने का सीधा ,सस्ता और सरल उपाय ढूंढ लाते हैं ,तो इसमें हर्ज़ ही क्या है ..? मन करता है कि शनि महाराज को पटखनी देने के लिए मैं भी कोई नए देवता को भारत की पावन भूमि पर अवतरित कर ही दूं ।
{ टीका - इस पोस्ट को पढने के बाद कम से कम १०१ लोगों को पढाएं ,तो शेयर बाज़ार वारेन बफ़ेट की तरह आप पर भी मेहरबान होगा , इसे पढकर नज़रंदाज़ करने वालों ....... सावधान ...। }
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5 टिप्पणियां:
bahut sunder lekh
i am agree the thoughts u described
if have a time kindly visit my blog
makrand-bhagwat.blogspot.com
regards
१०१ लोगों को पढ़्वाता हूँ अब!! डर गया भई मैं तो!!
क्या कहा जाय, ये ऐसे गोरखधंधे हैं कि इनके फंदे मे पढे लिखे भी फंसने मे गर्व मानते हैं।
achcha likha hai aapney.
अन्तिम दो बोल्ड लेने पढने में भी लिखने में भी और करने में भी के ""मन करता है कि " ये करना ही पड़ेगा फिर सोचते है फिर उसके ऊपर कोई और देव आजायेगा =हमारे यहाँ भी भी एक ब्रत होता है बैभव लक्ष्मी एक दिन मैंने पत्नी से पूछा हर ब्रत में हर सप्ताह किताबें बाँटीं जाती है और अपने यहांं इनका ढेर लगा है तो इन्ही को क्यों नहीं बाँटीं -बोली नहीं उन्हें नदी में सिराना है और नदी में बहाना है ,नई खरीद कर बनता है यही विधान है और एसा ही पुस्तक पर भी छापा है पढ़ कर देखो /मैंने पढ़ कर देखा कुछ कुछ समझा सर झुका कर प्रणाम किया =दूध पिलाया ,पानी पिलाया /चमत्कार हुआ लाखों की भीड़ लगी मेला लगा दुकाने सजी पैसा इकट्ठा हुआ चमत्कार बंद हो गया /एक महात्मा ने रेल के चेकर से कहा मुझसे टिकट मांगता है ,नाराज़ हुए रेल से उतर गए अब चलाले गाडी , अब गार्ड हरी झंडी दिखा दिखा कर परेशान ड्रावर चला चला के परेशान गाडी चलेहीचनही /सबने माफी माँगी /महत्मा के ड्राईवर ने पैर पकड़े तब गाडी चली जय घोष हुआ बहुत बड़ा आश्रम बना यज्ञ हुआ /मालूम चला गार्ड ,चेकर और ड्राईवर को २५-२५ हजार रूपये दिए गए था /ठीक है भइया कहाँ तक हथेली लगाओगे =डूवने वाले को जब मैंने दिया साहिल पे हाथ -वो मुझे भी डूबने का मशविरा देने लगा
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