राज ठाकरे ने एक बार फ़िर आग उगलाना शुरु कर दिया है । लेकिन उसके इस रवैए के लिए जितने राज ज़िम्मेदार हैं उससे कहीं ज़्यादा मीडिया की भूमिका है । राज के तमाशे को मीडिया हवा देता है । टीआर पी के जंजाल में उलझा मीडिया हर रोज़ चटपटी खबरों की तलाश में रहता है और राज मीडिया की इस कमज़ोरी का जमकर फ़ायदा लेना बखूबी जानता है । झटपटिया कामयाबी का नुस्खा कब तक काम आयेगा ये तो वक्त ही बताएगा , लेकिन इतना तय है कि नफ़रत की चिन्गारी लोगों के दिलों को छलनी ज़रुर कर देंगी ।
गौर से देखें तो राज जो बात कहना चाह रहे हैं , वो गलत नहीं है । अंदाज़े बयां पर सवाल उठाए जा सकते हैं ,लेकिन मुद्दे पर नहीं । किसी ने कहा था ” मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं पर तुम्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार हो । इसके लिए जी जान से लड़ूँगा ।” हम सब को अपनी बात कहने का अधिकार है । शर्त केवल इतनी है कि आप अपनी बातों से हिंसा को न भड़काइये । अलग सोच रखने और अपनी बात कहने का हक मानव अधिकारों का अभिन्न अंग है । इसी अधिकार का हिस्सा है कि आप अपनी बात किसी भी भाषा या माध्यम से कहिये । चाहे वह गीत हो या कला या फ़िर लेखन ।
सत्ता संघर्ष में जुटे नेता कभी धर्म - कभी जाति तो कभी रंग के आधार पर लोगों के बीच फ़ासले पैदा करते हैं । ऎसे में वे आम जनता को सोचने- समझने या बोलने का कोई मौका नहीं देना चाहते । अलगाव की आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कट्टरपंथियों को लोगों को खुलकर बोलने का मौका देना रास नहीं आता । अभिव्यक्ति के इस अधिकार पर उनकी सहमति नहीं होती । तुमने यह कैसे लिखा या बनाया या सोचा वे पूछते हैं ? वे अपनी बात को तलवार और डंडे के साथ कहते हैं क्योंकि खुल कर बोलने वाले को चुप कराने के लिए सजा देना भी वे अपना जन्मजात हक समझते हैं । उनके हिसाब से उनका धर्म इसकी आज्ञा नहीं देता । मानव अधिकार उनकी नज़र में धर्म से नीचे है । यदि आप किसी मुद्दॆ पर असहमत हैं तो उस पर बहस कर सकते हैं । पर किसी का मुँह बंद करने की और उसे डराने धमकाने की कोशिश करना बेगुनाह लोगों को बेरहमी से मारना पीटना कारें और दुकानें जलाना तोड़ फोड़ करना मेरे विचार में केवल आत्मविश्वास की कमी से जन्मी गुँडागर्दी है । धर्म के नाम पर शुरु हुई राजनीति आज इतने निचले स्तर तक आ चुकी है कि अब भारत में प्रांत और भाषा की दीवारें खडी होने लगी हैं ।
सरकार के लचर रवैये ने एक खत्म होते नेता को न सिर्फ़ उडने के लिए खुला आसमान दिया बल्कि उसे ऊंची उडान भरने के लिए परवाज़ के पंख भी तोहफ़े में दे दिए । इस पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद तो यही लगता है कि सत्तासीन कांग्रेस ने अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए मामले को इस हद तक बढ जाने दिया । राजनीतिक लाभ के लिए फ़ेंकी गई चिंगारी ने पूरे महाराष्ट्र में आग लगा दी है । वर्चस्व की इस लडाई में एक बार फ़िर पिस रहा है आम आदमी --------- ? मराठी मानुष के नारे के ज़रिए अलगाव की जो आग लगाई गई है यदि राजनीतिक दल इस पर इसी तरह रोटियां सेंकते रहे तो कहीं ऎसा न हो कि जिस तरह कश्मीरी पंडितों को अपनी सरज़मीं से दूर होकर अपने ही वतन में बेगाना हो जाने पर मज़बूर होना पडा उसी तरह पीढ़ियों से महाराष्ट्र में जा बसे हिंदी भाषियों को शिवाजी की इस धरती से बलपूर्वक बाहर खदेड दिया जाए । चिंता इस बात की है कि कहीं मूल प्रांतियों का ये शोशा महाराष्ट्र को एक और कश्मीर में तब्दील न कर दे .............?
निज़ामे मयकदा इस कदर बिगडा है साकी .
उन्हीं को जाम मिलता है , जिन्हें पीना नहीं आता ।
गौर से देखें तो राज जो बात कहना चाह रहे हैं , वो गलत नहीं है । अंदाज़े बयां पर सवाल उठाए जा सकते हैं ,लेकिन मुद्दे पर नहीं । किसी ने कहा था ” मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं पर तुम्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार हो । इसके लिए जी जान से लड़ूँगा ।” हम सब को अपनी बात कहने का अधिकार है । शर्त केवल इतनी है कि आप अपनी बातों से हिंसा को न भड़काइये । अलग सोच रखने और अपनी बात कहने का हक मानव अधिकारों का अभिन्न अंग है । इसी अधिकार का हिस्सा है कि आप अपनी बात किसी भी भाषा या माध्यम से कहिये । चाहे वह गीत हो या कला या फ़िर लेखन ।
सत्ता संघर्ष में जुटे नेता कभी धर्म - कभी जाति तो कभी रंग के आधार पर लोगों के बीच फ़ासले पैदा करते हैं । ऎसे में वे आम जनता को सोचने- समझने या बोलने का कोई मौका नहीं देना चाहते । अलगाव की आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कट्टरपंथियों को लोगों को खुलकर बोलने का मौका देना रास नहीं आता । अभिव्यक्ति के इस अधिकार पर उनकी सहमति नहीं होती । तुमने यह कैसे लिखा या बनाया या सोचा वे पूछते हैं ? वे अपनी बात को तलवार और डंडे के साथ कहते हैं क्योंकि खुल कर बोलने वाले को चुप कराने के लिए सजा देना भी वे अपना जन्मजात हक समझते हैं । उनके हिसाब से उनका धर्म इसकी आज्ञा नहीं देता । मानव अधिकार उनकी नज़र में धर्म से नीचे है । यदि आप किसी मुद्दॆ पर असहमत हैं तो उस पर बहस कर सकते हैं । पर किसी का मुँह बंद करने की और उसे डराने धमकाने की कोशिश करना बेगुनाह लोगों को बेरहमी से मारना पीटना कारें और दुकानें जलाना तोड़ फोड़ करना मेरे विचार में केवल आत्मविश्वास की कमी से जन्मी गुँडागर्दी है । धर्म के नाम पर शुरु हुई राजनीति आज इतने निचले स्तर तक आ चुकी है कि अब भारत में प्रांत और भाषा की दीवारें खडी होने लगी हैं ।
सरकार के लचर रवैये ने एक खत्म होते नेता को न सिर्फ़ उडने के लिए खुला आसमान दिया बल्कि उसे ऊंची उडान भरने के लिए परवाज़ के पंख भी तोहफ़े में दे दिए । इस पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद तो यही लगता है कि सत्तासीन कांग्रेस ने अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए मामले को इस हद तक बढ जाने दिया । राजनीतिक लाभ के लिए फ़ेंकी गई चिंगारी ने पूरे महाराष्ट्र में आग लगा दी है । वर्चस्व की इस लडाई में एक बार फ़िर पिस रहा है आम आदमी --------- ? मराठी मानुष के नारे के ज़रिए अलगाव की जो आग लगाई गई है यदि राजनीतिक दल इस पर इसी तरह रोटियां सेंकते रहे तो कहीं ऎसा न हो कि जिस तरह कश्मीरी पंडितों को अपनी सरज़मीं से दूर होकर अपने ही वतन में बेगाना हो जाने पर मज़बूर होना पडा उसी तरह पीढ़ियों से महाराष्ट्र में जा बसे हिंदी भाषियों को शिवाजी की इस धरती से बलपूर्वक बाहर खदेड दिया जाए । चिंता इस बात की है कि कहीं मूल प्रांतियों का ये शोशा महाराष्ट्र को एक और कश्मीर में तब्दील न कर दे .............?
निज़ामे मयकदा इस कदर बिगडा है साकी .
उन्हीं को जाम मिलता है , जिन्हें पीना नहीं आता ।
9 टिप्पणियां:
निज़ामे मयकदा इस कदर बिगडा है साकी .
उन्हीं को जाम मिलता है , जिन्हें पीना नहीं आता ।
bahut accha
राजनीति के चूल्हे पर कौन रोटियां नहीं सेंक रहा।
सफलता अपने आप में एक नशा है। जिसको पचाना सबके बस की बात नहीं होती।
kabhi thakre se kahe koi mumbai ke baher bhi ek dunia hai .
कानून का डंडा अगर सही चले तो इन सबकी नेतागिरी दो दिन में धुल जायेगी.
सब पालिटिकल न्यूसेन्स वेल्यू है इनकी. अफसोस होता है.
राज ठाकरे का जवाब क्या है? क्या उत्तर भारतीयो का मराठीयो के विरुद्ध आन्दोलन, राज ठाकरे का जवाब हो सकता है? नही........ वस्तुतः बृहत राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन हीं राज ठाकरे का जवाब हो सकता है। हमे यह समझना होगा। जो देश विरोधी साम्राज्यवादी शक्तिया राज ठाकरे को उकसा रही है वह चाहती है की भारतीय जनता की एकात्मकता नष्ट हो। अगर हम खुद को सिर्फ उत्तर भारतीय मानेगे तो राज ठाकरे जैसे देशद्रोही सफल हो जाएंगें। हम खुद को भारतीय मानते है। हम क्षत्रपति शिवाजी के पुजारी है जो सारे भारतवर्ष को अपनी पुण्यभुमि मानते थे। हम भारत की एकात्मकता को हर कीमत पर बचाएंगें।
उमेशजी की बात में दम है. भारत की एकात्मकता पर यह आघात है. इसे रोकना ही होगा.
http://mallar.wordpress.com
ऐसे लोगों के कारण राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ती है इनका कोई भी कदम सही नही ठहराया जा सकता
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