शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

देश के हालात पर वक्त का फ़रमान

लगता है दुनिया भर में बुरी खबरों का दौर चल पडा है । अमेरिकी मंदी के ज़लज़ले ने विश्व के तमाम छोटे - बडे देशों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है । कल तक सुनहरे भविष्य के ख्वाब संजोने वाले युवाओं के सामने रोज़ी - रोटी का संकट खडा हो गया है । स्टाक मार्केट की धोबी पछाड ने अच्छे - अच्छे धुरंधरों की चूलें हिला कर रख दी हैं । इस अफ़रा - तफ़री के माहौल में फ़ंडामेंटल और टेक्निकल एक्सपर्टस की सुनने वाला कोई नहीं बचा । बाज़ार की दुर्दशा से बेज़ार लोगों को हाल में आया एक सर्वे बेहाल करने पर आमादा है ।
खबरों पर यकीन करें तो भारत भीषण खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है । इसमें भी सबसे चिंताजनक हालात मध्य प्रदेश में बताए जा रहे हैं । अंतर्राष्ट्रीय खाद्यान्न नीति अनुसंधान संस्थान की ओर से पहली मर्तबा जारी रिपोर्ट में बारह राज्यों को अति गंभीर श्रेणी में शामिल किया है । संस्थान ने हाल के विश्व व्यापी खाद्यान्न सर्वे की ८८ विकासशील देशों की सूची में भारत को ६६ ववें पायदान पर रखा है ।
महानगरों की चकाचौंध के पीछे के भारत की स्याह हकीकत तरक्की और विकास के तमाम दावों की पोल खोलते नज़र आते हैं । विका़स के बावजूद भारत पच्चीस अफ़्रीकी देशों और बांगलादेश को छोड तमाम साउथ एशियाई देशों से नीचे है । शिशु म्रत्यु दर और कुपोषण के मामले में देश के हालात बांगलादेश से भी बदतर बताए गए हैं ।व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए मायूसी की बात ये है कि मध्य प्रदेश का हाल बेहाल है । लेकिन सरकार इस सबसे बेखबर बनी हुई है । समस्या का निदान तो तब हो ना जब ह्म उसे मानें या समझें । मगर की मद मस्ती का आलम ये है कि उसे सूबे में दूर - दूर तक कोई समस्या दिखाई ही नहीं देती । पूरे राज्य में सुख -शांति और अमन चैन की बयार बह रही है ,क्या हुआ जो चार -पांच सौ नौनिहालों की असमय ही मौत हो गई ।
कुदरत अपने साथ हुई नाइंसाफ़ी का बदला अपने ही अंदाज़ में ले रही है । कहीं बूंद -बूंद पानी को तरसते लोग , तो कहीं सैलाब से तबाही । खेती को घाटे का सौदा मान कर शहरों का रुख करने वाले ग्रामीणों की तादाद दिनोदिन रफ़्तार पकड रही है । आबादी के बढते दबाव ने शहरॊं का विस्तार किया है और इस फ़ैलाव की कीमत चुकाई है उपजाऊ ज़मीन ने । शहरों के आसपास की ज़मीनें अब अनाज नहीं कांक्रीट के जंगल पैदा कर रही हैं ।
खाद्यान्न और पानी के बढते संकट की भयावह्ता को समझ कर अभी से कोई ठोस कदम नहीं उठाए , तो ज़मीनें और भोग विलासिता के ज़रिए तिजोरियां भरने वालों को सोना - चांदी चबाकर ही पेट भरना होगा । वक्त तो अपना फ़रमान सुना चुका है ,और अब बारी हमारी ............
इक कहानी वक्त
लिखेगा नए मज़मून की
जिसकी सुर्खी को ज़रुरत है
तुम्हारे खून की
वक्त का फ़रमान
अपना रुख बदल सकता नहीं
मौत टल सकती है ,
अब फ़रमान टल सकता नहीं ।

6 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

sareetha jee,
khushee hotee hai aapko padh kar aap hameshaa saamayik muddon ko hee uthaatee hain aur un par achhee roshnee daaltee hain. leek se hatkar hain aap, likhtee rahein.

Richa Joshi ने कहा…

इन हालातों के लिए हम खुद जिम्‍मेदार हैं और फिर नीतियां। हम पहले इ‍सलिए जिम्‍मेदार हैं क्‍योंकि हम नीति निर्धारण के लिए अपने मत के जरिए अपने आका खुद चुनते हैं।

Udan Tashtari ने कहा…

अभी भी दिशानिर्धारण होना बाकी है.

गजब की पंक्तियां हैं:

इक कहानी वक्त
लिखेगा नए मज़मून की
जिसकी सुर्खी को ज़रुरत है
तुम्हारे खून की
वक्त का फ़रमान
अपना रुख बदल सकता नहीं
मौत टल सकती है ,
अब फ़रमान टल सकता नहीं ।

Sunil Deepak ने कहा…

सरिता जी, आप की प्रशंसा और आदर के लिए बहुत धन्यवाद. लेखक को पढ़ने वाले मिले, यही चाह होती है. मेरी यही दुआ होगी कि आप को भी ऐसे ही प्रशंसक और आदर मिले.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

पहली बार देखा आपका ब्लॉग, शुभकामनाएं।

चलते चलते ने कहा…

इन हालातों के लिए हरेक जिम्‍मेदार है। किसी को दोष नहीं दिया जाना चाहिए।