भोपाल शायद देश का ऎसा इकलौता शहर होगा , जिसकी ढेरो लेकिन परस्पर विरोधी छवियां एक साथ उभरती हैं । पटिएबाज़ों का ये शहर अपनी लतीफ़ेबाज़ी और बतोलेबाज़ी के लिए भी हमेशा चर्चा में रहा है । आज भी ठेठ भोपाली अपने बातूनीपन के लिए ही जाना जाता है । अरे खां मियां -हमारा नाम सूरमा भोपाली ऎसे ही थोडे ही है ।
भोपाल फ़िरकापरस्तों की नहीं , फ़िकरापरस्तों की नगरी है । फ़िकरापरस्ती यानी बेवजह की बातों पर बतियाना ,वाणी विलासिता । फ़िकराकशी में भोपालियों का कोई सानी नहीं । बेलौस तरीके से अपनी बात कहने का भोपा्ली अंदाज़ निराला है । लोगों के बातूनी मिजाज़ के पीछे फ़ुर्सत और बेफ़िक्री की वो संस्क्रति है , जो मुस्लिम शासनकाल में उपजी, पली और परवान चढी । पर्दा ,गर्दा , ज़र्दा और नामर्दा के लिए मशहूर इस शहर को आज भले ही गैस त्रासदी के लिए पहचाना जाने लगा हो ,लेकिन अपने हर अनूठे अंदाज़ की भोपाली पहचान यहां की झीलों की तरह कभी सूख नहीं सकती । झील धीरे - धीरे सिमट रही है , भोपाल की तस्वीर बदल रही है , लोगों के मिजाज़ बदल रहे हैं , लेकिन उम्मीद करना चाहिए कि शहर का पाक - साफ़ मिजाज़ सदियों तक यूं ही बरकरार रहेगा ....।
आमीन ........... ।