रविवार, 30 नवंबर 2008

हमलों पर उर्दू अखबारों का नज़रिया

मुम्बई के आतंकी हमले पर एक नज़रिया ये भी ........। देश को सावधान और एकजुट रहने की सख्त ज़रुरत है ।



हमलों पर क्या कहते हैं उर्दू अख़बार?

अविनाश दत्त बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
उर्दू अख़बारों ने हमलों से उठ रहे कुछ अनसुलझे सवालों पर टिप्पणियाँ की हैं
भारत के हिंदी और अंग्रेज़ी अख़बारों की तरह उर्दू के तमाम दैनिक अख़बार भी केवल मुंबई में हुए हमलों की ख़बर से भरे हैं.
दिल्ली से छपने वाले राष्ट्रीय सहारा उर्दू में पहले पन्ने पर दिल्ली चुनावों के विज्ञापनों के अतिरिक्त केवल एक ही ख़बर है.. " मुंबई पर आग और खून की बारिश"
हैदराबाद से छपने वाले दैनिक अखबार 'मुंसिफ़' की पहली सुर्खी रही," मुंबई में दहशतगर्दों के साथ कमांडो की खूनी जंग जारी. "
इसी शहर से निकलने वाले उर्दू के दूसरे अख़बार 'सियासत' की पहली हेड लाइन है मुंबई के दो होटलों पर आतंकवादियों का कब्जा बरक़रार.'
इस ख़बर के साथ एक कथित चरमपंथी की तस्वीर छपी है जिस पर उसके एक हाथ पर बंधे लाल धागों पर गोला लगाया गया है, ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली से छपने वाले अंग्रेज़ी के अख़बार मेल टुडे ने एक दिन पहले लगाया था.
'मुल्क़ भर में हाहाकार'
मुंबई से प्रकाशित अख़बार 'इंकलाब' की हेडलाइन है, 'ताज होटल के हमलावर ढेर ऑबराय होटल में ऑपरेशन जारी , मुल्क भर में हाहाकार."
अगर संपादकीयों पर नज़र डालें तो मुंसिफ़ ने इस घटना से सख्ती से निपटने की ज़रूरत पर बल दिया है.
इस तरह की घटना के पीछे जिस डेकन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है वो शंका पैदा करने वाला है. अगर इस तरह की घटना मोसाद, सीआईए या आईएसआई द्वारा अंज़ाम दी गई होती तो सोचा जा सकता था. पर जिस संस्था का नाम किसी ने सुना नहीं वो कैसे इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में सफल हुई

इस अख़बार के संपादकीय की हेडलाइन है " मुंबई में दहशतगर्दी का नज़ारा". नीचे विस्तार से पूरी घटना के बारे में बताने के साथ ही बीते दिनों में "हिंदू दहशतगर्दों" के पकड़े जाने की बात पर पलट कर देखा है.
अख़बार ने ध्यान दिलाया है की मारे गए सभी अफसर ऐटीएस के थे.
अख़बार कहता है कि मालेगाँव बम धमाकों के सिलसिले में यह भी पता चला था की लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के अलावा कुछ और पूर्व फौजी अफसरों ने 'हिंदू चरमपंथियों' को ख़ास ट्रेनिंग दी थी.
फ़िर आरएसएस, शिव सेना और अन्य हिंदूवादी संगठनों द्वारा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बचने के लिए एकजुट होने की बात है.
अख़बार का कहना है की ऐसे कुछ तत्व मुंबई के हमलों के पीछे हो सकते हैं और अख़बार इस पक्ष पर गौर करने को भी कहता है.
ख़ुफ़िया विफलता
अख़बार ये भी कहता है की इंटेलिजेंस एजेंसियों की विफलता पर ध्यान दिया जाना चाहिए और अगर इन हमलों के पीछे अगर बाहरी हाथ है तो उससे सख्ती से निपटना चाहिए.
दिल्ली से छपने वाले उर्दू के बड़े अखबार राष्ट्रीय सहारा उर्दू के संपादक अज़ीज़ बरनी ने लिखा है, "इस तरह की घटना के पीछे जिस डेकन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है वो शंका पैदा करने वाला है. अगर इस तरह की घटना मोसाद, सीआईए या आईएसआई द्वारा अंज़ाम दी गई होती तो सोचा जा सकता था. पर जिस संस्था का नाम किसी ने सुना नहीं वो कैसे इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में सफल हुई".
संपादक इस आलेख में ये भी कह रहे हैं की कोई मुसलमान ऐटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे को क्यों मारेगा.
वो कहते हैं, "सोचना होगा की इस आतंकवादी घटना से किसको लाभ होगा और अगर ऐटीएस की जाँच में कोई रुकावट पैदा होती है, जिसकी संभावनाए पैदा हो गई हैं तो किसको क्षति होगी".
हैदराबाद के एक और बड़े अख़बार सियासत ने अपने संपादकीय ने एक संघीय गुप्तचर एजेंसी कायम करने की ज़रूरत पर बल दिया है.
बीबीसी डाट्काम से साभार

इस्तीफ़ों से नाकाम सरकार बचाने की कोशिश

मुम्बई में हुए युद्ध ने देश के लोगों को हिला कर रख दिया है । बरसों से दबे कुचले लोगों का खून एकाएक उबाल मारने लगा । ऎसा मोबाइल एसएमएस और समाचार चैनलों का कहना है । श्मशान वैराग्य की तरह जागे इस सतही जोश की सूचना ने सरकार चला रहे कांग्रेसी खॆमे में खलबली मचा दी है ।

सता से उखाड फ़ेंकने की निरीह जनता की गीदड भभकी ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को परेशान कर दिया है । सो सरकार ने आनन फ़ानन में अंगुली कटा कर शहीद होने का फ़ार्मूला तलाश ही लिया । साढे चार साल से ज़्यादा वक्त तक देश को आतंक की भट्टी में झोंकने का दुष्कर्म करने के बाद शिवराज पाटिल से इस्तीफ़ा लिखवा लिया गया । चोरी और सीनाज़ोरी का आलम ये कि अपनी कारगुज़ारियों पर शर्मिंदा होने की बजाय नेता बेहूदा बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे ।

आर आर पाटिल की मानें तो बडे-बडे शहरों में ऎसे छॊटॆ- छोटे हादसे तो होते ही रहते हैं । राजीव शुक्ला साहब अपनी गिरेबान में झांकने की बजाय संकट के इस दौर में भी बीजेपी की गल्तियां ढूंढने में वक्त ज़ाया कर रहे हैं । असलियत तो ये है कि इस्तीफ़ा देकर ये कोई मिसाल कायम नहीं कर रहे बल्कि इस्तीफ़े की राजनीति का घिनौना खेल खेलकर देश की जनता को मूर्ख बनाना चाहते हैं ।

जब केन्द्र सरकार की कुल जमा उम्र ही गिनती की बची हो ,तब इस्तीफ़े के इस नाटक का औचित्य क्या है ...? वैसे भी सरकार का ये गुनाह काबिले माफ़ी कतई नहीं । राजनेताओं की आपसी खींचतान और ढुलमुल रवैए से जनता आज़िज़ आ चुकी है ।

लोगों के सडकों पर आने की सुगबुगाह्ट से नेताओं के हाथ पांव फ़ूल रहे हैं और वे अपनी मक्कारी भरी चालों से जनता को बरगलाने ,बहलाने फ़ुसलाने की कोशिश में लग गये हैं । लेकिन अब देश की अवाम किसी झांसे में ना आने पाए , इसके पुख्ता इंतज़ाम की ज़रुरत है ।

एक कहावत है - ’पीसन वाली पीस गई ,सकेलन वाली जस ले गई ।’ सेना , आरएएफ़ और एनएसजी के संयुक्त प्रयासों की बदौलत मिली कामयाबी का सेहरा महाराष्ट्र सरकार खुद अपने सिर बांध लेना चाहती है । बात होती है आतंकवाद से लडने की और नवाज़े जाते हैं बेइमान ,भ्रष्टाचारी और देश के गद्दार । और तो और आमने सामने की लडाई में शहीद हुए जांबाज़ों की बजाय हादसे के शिकार अफ़सरान को मीडिया की मदद से अभियान का हीरो बना कर पेश किया जा रहा है । ऎसा लगता है बचे खुचे देशभक्तों के मनोबल को तोडकर देश को खोखला करने की कोई गहरी साज़िश रची जा रही है । देश मे ऎसे ही हालात रहे , तो कौन लडेगा भारत मां की हिफ़ाज़त की लडाई ।

इक बात और , हाल के दिनों के घटनाक्रम ने मेरा सामान्य ज्ञान गडबडा दिया है । सब कुछ गड्डमड्ड सा लगता है । आप सभी महानुभाव मेरी मदद करें । मैं शहादत की परिभाषा जानना चाहती हूं । भारत में शहीदों की पहचान का मापदंड क्या है और क्या होना चाहिए ?

क्यों हिंन्द का ज़िन्दा कांप रहा है , गूंज रही हैं तकबीरें
उकताए हैं शायद कुछ कैदी , और तोड रहे हैं जंज़ीरें

शनिवार, 29 नवंबर 2008

अमीरी - गरीबी के खांचे में बंटा आतंकवाद


समझ नहीं आ रहा कि इस वक्त ये कहना ठीक है या नहीं , लेकिन चुप रहकर अकेले घुटने से तो यही बेहतर है कि कह कर अपना मन हल्का कर लिया जाए । फ़िर भले ही लोग चाहे जितना गरिया लें । वैसे भी देश में सभी लोग सिर्फ़ अपने लिए ही तो जी रहे हैं । उनमें एक मैं भी शामिल हो जाऊं तो हर्ज़ ही क्या है ?
देश की सडकों पर बहने वाले खून की कीमत टेंकर के पानी से भी सस्ती है । लेकिन पहली मर्तबा अमीरों को भी एहसास हुआ है कि लहू का रंग सिर्फ़ लाल ही होता है फ़िर चाहे वो गरीबों का ही क्यों ना हो ।
इसमें कोई शक नहीं कि पांच सितारा होटलों में हुए आतंकी हमले बेहद वीभत्स थे । लेकिन क्या ऎसे धमाके देश में पहले कभी नहीं हुए । २६ नवंबर को ही ठीक उसी वक्त सीएसटी में भी लोगों ने अपने परिजनों को खोया ,लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था । मारे गये लोगों की लाश लेने के लिए भटकते परिजनों को सांत्वना देना तो दूर की बात मदद करने वाला तक कोई नहीं था ।
अमीरों की मौत पर स्यापा करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया के अंग्रेजीदां पत्रकार भी छातियां पीटने लगते हैं । मगर गरीब की मौत का कैसा मातम ......? वह तो पैदा ही मरने के लिए होता है । चाहे फ़िर वह मौत तिल तिल कर आए या धमाके की शक्ल में ।
हमें उम्मीद करना चाहिए कि जल्दी ही सरकार आतंकियों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएगी ,क्योंकि अब की बार अमेरिका ,ब्रिटेन सरीखे आकाओं के नागरिकों का जीवन भारत में खतरे में पडा है । सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की रातों की नींद में खलल पडने लगा है । रुपहले पर्दे पर गरीबों के मसीहा का किरदार निबाहने वाले इस महानायक ने बरसों लोगों की जेबें खाली कर अपनी तिजोरियां भरीं हैं । लेकिन इनकी आंखें आम आदमी के आतंक के शिकार होने पर कभी भी नम नहीं हुईं ।
दिल्ली के धमाकों में अपने बेटे के बच जाने {हालांकि वो घटना स्थल से मीलों दूर थे] पर खुशी का इज़हार करने वाले बिग बी को हादसे के शिकार लोगों की याद तक नहीं आई । धिक्कार है ऎसे स्वार्थी लोगों पर , जो देश के आम लोगों के जज़्बात से खेलते हैं और विदेशों में साम्राज्य खडा करते हैं ।
अमीरों की फ़िक्रमंद सरकारों को अपनी अहमियत का एहसास कराना कब सीखेगा भारत का आम आदमी ? वह सडकों पर रौंदा जाता है । अस्पतालों में कीडे - मकौडों सी ज़िल्लत झेलता है । धमाकों में कागज़ के पुर्ज़ों की मानिंद चीथडों में तब्दील हो जाता है । लेकिन कब वह जानेगा कि उसमें भी जान है , वह भी एक इंसान है ,खास ना सही आम ही सही ....।
बिठा रखे हैं पहरे बेकसी ने
खज़ानों के फ़टे जाते हैं सीने
ज़मीं दहली , उभर आये दफ़ीने
दफ़ीनों को हवा ठुकरा रही है
उठो , देखो वो आंधी आ रही है ।

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

दक्केन मुजाहिद्दीन की हकीकत

आतंकी ग्रुप रिवेंज ही दक्केन मुजाहिद्दीन के नए नाम के साथ दुनिया के सामने है । जाने इसकी हकीकत -


नाकारा रहनुमाओं ने देश को किया शर्मसार

कभी ना थमने वाली मुम्बई की रफ़्तार पर २६ नवंबर की रात से लगा ब्रेक राष्ट्रीय शर्म का प्रतीक है । मुम्बई के आतंकी हमलों ने देश के सुरक्षा इंतज़ामात और खुफ़िया तंत्र के कामकाज की पोल खोलकर रख दी है । हर आतंकी हमले के बाद अगली मर्तबा कडा रुख अपनाने का रटा रटाया जुमला फ़ेंकने के बाद केंन्द्र भी फ़ारिग हो गया ।

आतंक से लडने की बजाय नेता फ़िर एक दूसरे पर कीचड उछालने में मसरुफ़ हो गये हैं । प्रधानमंत्री देश को मुश्किल घडी में एकजुट करने और जोश - जज़्बे से भरने की बजाय भविष्य की योजनाओं का पुलिंदा खोल कर क्या साबित करना चाहते थे । पोची बातों को सुनते - सुनते देश ने पिछले आठ महीनों में पैंसठ से ज़्यादा हमले अपने सीने पर झेले हैं ।

गृह मंत्री का तो कहना ही क्या । अपनी पोषाकों के प्रति सजग रहने वाले पाटिल साहब देश की सुरक्षा को लेकर भी इतने ही संजीदा होते ,तो शायद आज हालात कुछ और ही होते । गृह राज्य मंत्रियों को संकट की घडी में भी राजनीति करने की सूझ रही है । बयानबाज़ी के तीर एक दूसरे पर छोडने वाले नेताओं के लिए ये हमला वोटों के खज़ाने से ज़्यादा कुछ नहीं ।

सेना के तीनों अंगों ने नेशनल सिक्योरिटी गार्ड और रैपिड एक्शन फ़ोर्स की मदद से पूरे आपरेशन को अंजाम दिया और बयानबाज़ी करके वाहवाही लूट रहे हैं आर आर पाटिल । महाराष्ट्र पुलिस के मुखिया ए. एन राय तो इस मीडिया को ब्रीफ़ करते रहे , मानो सारा अभियान पुलिस ने ही सफ़लता से अंजाम दिया हो ।

सुना था कि मुसीबत के वक्त ही अपने पराए की पहचान होती है । लेकिन भारत मां को तो निश्चित ही अपने लाडले सपूतों [ नेताओं ] की करतूत पर शर्मिंदा ही होना पडा होगा । आतंकियों के गोला बारुद ने जितने ज़ख्म नहीं दिए उससे ज़्यादा तो इन कमज़र्फ़ों की कारगुज़ारियों ने सीना छलनी कर दिया ।

रही सही कसर कुछ छद्म देशप्रेमी पत्रकार और उनके भोंपू [चैनल] पूरी कर रहे हैं । सरकार से मिले सम्मानों का कर्ज़ उतारने के लिए खबरची किसी का कद और स्तर नापने की कोशिश में खुद किस हद तक गिर जाते हैं , उन्हें शायद खुद भी पता नहीं होता । दूसरे को बेनकाब कर वाहवाही लूटने की फ़िराक में ये खबरची अपने घिनौने चेहरे से लोगों को रुबरु करा बैठते हैं । इन्हें भी नेताओं की ही तरह देश की कोई फ़िक्र नहीं है । इन्हें बस चिंता है अपने रुतबे और रसूख की ।

प्रजातंत्र के नाम पर देश को खोखला कर रहे इन ढोंगियों को अब लोग बखुबी पहचान चुके हैं । इस हमले ने रहे सहे मुगालते भी दूर कर दिए हैं । नेताओं की असलियत भी खुलकर सामने आ चुकी है और सेना की मुस्तैदी को भी सारी दुनिया ने देखा है ।

ऎसा लगता है देश के सड गल चुके सिस्टम को बदलने के लिए अब लोगों को सडकों पर आना ही होगा । रक्त पिपासु नेताओं के चंगुल से भारत मां को आज़ाद कराने के लिए अब ठोस कार्रवाई का वक्त आ चुका है । इनके हाथ से सत्ता छीन कर नया रहनुमा तलाशना होगा , नई राह चुनना होगी , नई व्यवस्था लाना होगी । इस संकल्प के साथ हम सभी को एक साथ आगे बढना होगा ।

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है
आज की रात ना फ़ुटपाथ पे नींद आएगी
सब उठो , मैं भी उठूं , तुम भी उठो ,तुम भी उठो
कोई खिडकी इसी दीवार में खुल जाएगी ।

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

हिंदू आतंकवाद के दांव पर सियासत जीती देश हारा

मालेगांव धमाके की गूंज थमने का नाम ही नहीं ले रही । मामला जितना खुलता है , उतना ही उलझता जा रहा है । हर उगते सूरज के साथ नई कहानी । कभी आरोपी खेमे का पलडा भारी होता है ,तो कभी एटीएस के बहाने कांग्रेस ,लालू और मुलायम खेमे की बांछें खिल जाती हैं ।
जितने मुंह उतनी बातें । खोजी पत्रकार बंधुओं ने अब साध्वी के गांव की खाक छानना शुरु कर दी है । सुनने में आया है कि तेज़तर्रार साध्वी के छात्र जीवन को खंगालकर मालेगांव धमाके के सूत्र तलाशे जा रहे हैं ।
एटीएस तो अच्छी स्क्रिप्ट बनाने में फ़िलहाल नाकाम रही ,लेकिन अपने खबरिया चैनलों ने ज़रुर टेक्निशियन की हडताल के चलते बेरोज़गार घूम रहे स्क्रिप्ट राइटरों को काम पर लगा दिया है । डमी साध्वी बेहतरीन संवाद अदायगी से लोगों तक ’ आधी हकीकत आधा फ़साना ’ पहुंचा रही है ।
खैर खबरें हैं , तो चैनल हैं ,चैनल हैं तो दर्शक हैं , और दर्शक फ़ुरस्तिया हैं , तो चैनलों पर बकवास भी है । यानी सब एक दूसरे के पूरक , पोषक और ग्राहक । बहरहाल मेरे लिए ये कोई मुद्दा नहीं है । मुझे तो चिंता है इस पूरे मसले में सिर्फ़ दो ही बातों की ........। पहली तो ये कि मालेगांव मामले में एटीएस के बयानों ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने का मौका पाकिस्तान को बैठे बिठाए दे दिया है । दूसरी - ज़मींदोज़ हो चुके पीयूसीएल और तीस्ता सीतलवाड सरीखे मानव अधिकारवादियों की ।
सुनने में आया है कि एटीएस के धमाकेदार खुलासों ने भारत सरकार की बेचैनी बढा दी है । विदेश और ग्रह मंत्रालय भी एटीएस द्वारा जुटाए गए तथाकथित बयानों और सबूतों को लेकर पसोपेश में है । उनकी चिंता ये है कि अब एटीएस के इन्हीं सबूतों की बिना पर पाकिस्तान सरकार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ़ माहौल तैयार करेगी ।
सेना और आईबी में भी एटीएस की जांच को लेकर चिंता है । विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्शा सलाहकार तक अपनी चिंता पहुंचा दी है । साथ ही हिंदू आतंकवाद के जुमले से परहेज़ बरतते हुए इसे एक नए रुप में देखने का मशविरा भी दिया है । विदेश मंत्रालय और खुफ़िया एजेंसियां भी मान रही हैं कि भले ही घरेलू राजनीति में इस मामले ने बीजेपी के आतंकवाद के मुद्दे की हवा निकाल दी हो , लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंन्दू आतंकवाद के इस नए चेहरे से देश की छबि को बट्टा लगा है ।
आतंकवाद से निपटने के साझा प्रयास की सहमति बनने के बाद भारत और पाकिस्तान ने अक्टूबर २००६ में एंटी टेरेरिज़्म मैकेनिज़्म [एटीएम] तैयार किया था । हाल ही में इस्लामाबाद में हुई एटीएम की बैठक मे पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की जांच की मांग उठाकर न केवल दबाव बढाया , बल्कि अपने इरादों का संकेत भी दे दिया ।
हिंदू आतंकवाद के तार जिस तरह समझौता एक्सप्रेस मामले से जुडते बताए जा रहे हैं , उनसे पाकिस्तान बेहद उत्साहित है । गौर तलब है कि ब्लास्ट में मरने वाले ज़्यादातर लोग पाकिस्तानी थे । अब तक भारत में होने वाली आतंकवादी वारदातों के लिए पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई को ही ज़िम्मेदार ठहराकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को घेरा जाता रहा है । ये पहला मौका है जब भारत को उसी के देश की एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से घेरने का सुनहरा मौका पाकिस्तान को चलते फ़िरते मिल गया ।
दुनिया छोड चुकी महिलाओं के हितों की लडाई लडने वाला राष्ट्रीय महिला आयोग ज़िंदा औरत की ओर अपने फ़र्ज़ शायद भूल चुका है । मानव अधिकार भी लगता है कुछ खास किस्म के लोगों के ही होते हैं । उन खास लोगों की फ़िक्रमंदी में ही सारे एनजीओ अपनी ऊर्जा ज़ाया करके ही परमार्थ सेवा का पुण्य लाभ अर्जित करते हैं ।
सामान्य से नज़र आने वाले मामले ने बातों ही बातों में देश को मुश्किल मोड पर ला खडा किया है । अब भी देर नहीं हुई है , ओछी राजनीति के लिए देश की साख को दांव पर लगाने की कोशिशों को नाकाम किया जा सकता है संजीदगी और मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते ।
इक तरफ़ ज़ोर है ,हुकूमत है माल है, मुल्क है , सियासत है ।
इक तरफ़ वलवले हैं मेहनत है शोर है , जोश है , बगावत है ।

शनिवार, 22 नवंबर 2008

शास्त्रार्थ करते जेहादी ,मगर हम चुप रहेंगे.......!



इंसान और इंसानियत की मौत पर मुझे बहुत कुछ कहना है , मगर मैं चुप रहूंगी ........।