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शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

सारी दुनिया छह हज़ार लोगों की मुट्ठी में...........

यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन हक़ीक़त यही है कि पूरी दुनिया महज़ 6000 लोगों की मर्ज़ी की ग़ुलाम है । दूसरे शब्दों में सारी दुनिया इनकी मुट्ठी में है । ये ही वो लोग हैं जो तय करते हैं दुनिया की तकदीर । आजकल एक नई किताब ’सुपर क्लास’ चर्चा में है । डेविड रॉथ कॉफ़ की इस किताब में कहा गया है कि विश्व भर में अतिविशिष्ट व्यक्तियों का ऎसा वर्ग है जो तय करता है कि दुनिया कैसे चलेगी ।

श्री कॉफ़ का मानना है कि हर दस लाख लोगों में से एक में वो काबीलियत होती है जो उसे इस अतिविशिष्ट वर्ग का सदस्य बनने में मदद देती है । लगातार बदलते ’ पॉवर सर्किल ’ में कुछ साल रहने के बाद लोग खुद ही इससे दूर हो जाते हैं । हालाँकि अपवाद स्वरुप कुछ लोग ऎसे भी हैं जो कई दशकों तक उतने ही ताकतवर बने रहते हैं ।

इस पुस्तक के मुताबिक राजनीति , उद्योग जगत , वित्तीय संस्थाएँ , सैन्य उपक्रम , लेखन और सिनेमा से जुड़े लोगों का सुपर क्लास में दबदबा देखा गया है । दुनिया की रीति- नीति तय करने में पैसा और सेना का ’ हार्ड पॉवर ’ काम करता है । नई संस्कृति गढ़ने और नई जीवन शैली तैयार करने में नामीगिरामी लेखकों और चमत्कारिक व्यक्तित्व के मालिक लोकप्रिय सिनेमाई कलाकारों का प्रभाव काम करता है ।

कुछ धार्मिक नेता भी इसी श्रेणी में आते हैं , जिनकी बात करोड़ों लोगों का दिलो दिमाग बदल डालने की ताकत रखती है । ये भी आम लोगों की सोच - समझ पर खासा असर डालते हैं । लोग अपने निजी फ़ैसलों से लेकर सामूहिक मामलों से जुड़े फ़ैसले भी इन्हीं से प्रभावित होकर लेते हैं । ऎसे लोगों की फ़ेहरिस्त में रोमन कैथोलिक पोप और ईरान के धार्मिक नेता मरहूम अयातुल्लाह खुमैनी और उनके बेटे अयातुल्लाह अली खुमैनी का नाम शामिल है ।

इन मुट्ठी भर लोगों में पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लेने की शक्ति है । बल्कि इसे यूँ कहें कि दुनिया जंग के ज़रिये तबाही के रास्ते पर आगे बढेगी या अमन के फ़ूल खिलाकर धरती पर चमन सजाएगी , इसका फ़ैसला लेने का अख्तियार इन छह हज़ार लोगों को ही है । अतिविशिष्ट वर्ग के हाथ में इतना कुछ है कि इनकी मर्ज़ी के बग़ैर पत्ता भी नहीं खड़कता । अगर ये ना चाहें , तो बड़े से बड़ा युद्ध टाला जा सकता है । लेकिन इन्होंने ठान ली तो जंग होने से कोई रोक भी नहीं सकता । कुछ मामलों में इन्हीं के हितों की रक्षा के लिए लड़ाइयाँ लड़ी गईं ।

देशों के कानून भी वास्तव में इन्हीं प्रभावी लोगों के फ़ायदे को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं । ये और बात है कि आम लोगों का भरोसा वोट के रुप में पाकर ही ये लोग संसदों में पहुँचते हैं । लेखक का दावा है कि देश की व्यवस्था पर ही नहीं इस वर्ग का दबदबा विदेशी सरकारों पर भी रहता है ।

कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी सरकारी मामलों में ना सिर्फ़ दिलचस्पी लेते हैं , बल्कि सरकारी फ़ैसलों पर भी अप्रत्यक्ष्र रुप से असर डालते हैं । यूरोपीय और अमरीकी लोगों का दबदबा समूचे विश्व में कायम है । बहरहाल मुकेश अंबानी और रतन टाटा भी सुपर क्लास का हिस्सा हैं । ये भी यूरोप और अमरीका के शक्तिशाली लोगों के बीच उठते - बैठते हैं । यानी लाख दावे किये जाएँ लेकिन हकीकतन देश कोई हो , सरकार किसी की भी बने, होंगी महज़ कठपुतलियाँ ही..........। दुनिया को चलाने वाले छह हज़ार बाज़ीगरों के हाथ का खिलौना .....!!!!!!!! इन सर्वशक्ति संपन्न बाज़ीगरों का एक ही नारा है - कर लो दुनिया मुट्ठी में !

शनिवार, 29 नवंबर 2008

अमीरी - गरीबी के खांचे में बंटा आतंकवाद


समझ नहीं आ रहा कि इस वक्त ये कहना ठीक है या नहीं , लेकिन चुप रहकर अकेले घुटने से तो यही बेहतर है कि कह कर अपना मन हल्का कर लिया जाए । फ़िर भले ही लोग चाहे जितना गरिया लें । वैसे भी देश में सभी लोग सिर्फ़ अपने लिए ही तो जी रहे हैं । उनमें एक मैं भी शामिल हो जाऊं तो हर्ज़ ही क्या है ?
देश की सडकों पर बहने वाले खून की कीमत टेंकर के पानी से भी सस्ती है । लेकिन पहली मर्तबा अमीरों को भी एहसास हुआ है कि लहू का रंग सिर्फ़ लाल ही होता है फ़िर चाहे वो गरीबों का ही क्यों ना हो ।
इसमें कोई शक नहीं कि पांच सितारा होटलों में हुए आतंकी हमले बेहद वीभत्स थे । लेकिन क्या ऎसे धमाके देश में पहले कभी नहीं हुए । २६ नवंबर को ही ठीक उसी वक्त सीएसटी में भी लोगों ने अपने परिजनों को खोया ,लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था । मारे गये लोगों की लाश लेने के लिए भटकते परिजनों को सांत्वना देना तो दूर की बात मदद करने वाला तक कोई नहीं था ।
अमीरों की मौत पर स्यापा करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया के अंग्रेजीदां पत्रकार भी छातियां पीटने लगते हैं । मगर गरीब की मौत का कैसा मातम ......? वह तो पैदा ही मरने के लिए होता है । चाहे फ़िर वह मौत तिल तिल कर आए या धमाके की शक्ल में ।
हमें उम्मीद करना चाहिए कि जल्दी ही सरकार आतंकियों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएगी ,क्योंकि अब की बार अमेरिका ,ब्रिटेन सरीखे आकाओं के नागरिकों का जीवन भारत में खतरे में पडा है । सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की रातों की नींद में खलल पडने लगा है । रुपहले पर्दे पर गरीबों के मसीहा का किरदार निबाहने वाले इस महानायक ने बरसों लोगों की जेबें खाली कर अपनी तिजोरियां भरीं हैं । लेकिन इनकी आंखें आम आदमी के आतंक के शिकार होने पर कभी भी नम नहीं हुईं ।
दिल्ली के धमाकों में अपने बेटे के बच जाने {हालांकि वो घटना स्थल से मीलों दूर थे] पर खुशी का इज़हार करने वाले बिग बी को हादसे के शिकार लोगों की याद तक नहीं आई । धिक्कार है ऎसे स्वार्थी लोगों पर , जो देश के आम लोगों के जज़्बात से खेलते हैं और विदेशों में साम्राज्य खडा करते हैं ।
अमीरों की फ़िक्रमंद सरकारों को अपनी अहमियत का एहसास कराना कब सीखेगा भारत का आम आदमी ? वह सडकों पर रौंदा जाता है । अस्पतालों में कीडे - मकौडों सी ज़िल्लत झेलता है । धमाकों में कागज़ के पुर्ज़ों की मानिंद चीथडों में तब्दील हो जाता है । लेकिन कब वह जानेगा कि उसमें भी जान है , वह भी एक इंसान है ,खास ना सही आम ही सही ....।
बिठा रखे हैं पहरे बेकसी ने
खज़ानों के फ़टे जाते हैं सीने
ज़मीं दहली , उभर आये दफ़ीने
दफ़ीनों को हवा ठुकरा रही है
उठो , देखो वो आंधी आ रही है ।