देश में आजकल मुद्दों पर राजनीति नहीं गर्माती । अब तो सियासत होती है खेलों , पुरस्कारों और बयानों पर । मालूम होता है भारत में चारों तरफ़ खुशहाली है । मुद्दे कोई शेष नहीं इसलिए लोग शगल के लिए बहस मुबाहिसे करते हैं । आई पी एल देश में हो या सात समुंदर पार इससे आम जनता को क्या ? लेकिन धनपशुओं का खेल दुनिया भर में भारत की नाक का सवाल बन गया है ।
खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाकामी हाथ आने पर नेता एक ही बात कहते सुनाई देते हैं कि खेलों को राजनीति से दूर रखा जाये , लेकिन खेल के मैदान राजनीति के अखाड़ों में तब्दील हो गये हैं । आईपीएल को लेकर चल रही उठापटक में अब तक राज्यों के पाले में गेंद डाल रहे गृहमंत्री पी. चिदाम्बरम नरेन्द्र मोदी के बयान के बाद आज अचानक मीडिया से मुखातिब हुए । गुजरात के मुख्यमंत्री ने अपने चिरपरिचित अँदाज़ में आईपीएल को देश की प्रतिष्ठा के प्रश्न से जोड़्कर केन्द्र को आड़े हाथों क्या लिया , यूपीए सरकार को मामले में सियासत की गँध आने लगी ।
दरअसल इस मुद्दे पर पहली चाल तो काँग्रेस ने ही चली थी । शरद पवार से महाराष्ट्र में सीटों के बँटवारे को लेकर चल रही खींचतान में दबाव की राजनीति के चलते आईपीएल को मोहरे की तरह इस्तेमाल करने का दाँव खुद काँग्रेस पर उलट गया । ना तो शरद पवार झुके और ना ही दबाव काम आया । बाज़ी पलटते देख केन्द्र सरकार को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है ।
लगता है काँग्रेस के ग्रह नक्षत्र आज कल ठीक नहीं चल रहे । ’ उल्टी हो गई सब तदबीरें कुछ ना दवा ने काम किया ’ की तर्ज़ पर जहाँ हाथ डाला , वहीं बाज़ी उलट गई ।वरुण गाँधी को पीलीभीत में भड़काऊ भाषण देने के मामले में ऊपरी तौर पर यह चुनाव आयोग से जुड़ा मामला नज़र आता है लेकिन इसके सूत्र कहीं और से संचालित होते दिखाई दे रहे हैं । देश में पहली मर्तबा ऎसा हुआ है जब चुनाव आयोग ने सीधे किसी पार्टी को यह सलाह दे डाली है कि वह अमुक उम्मीदवार को टिकट ना दे ।
संविधान के जानकारों की राय में आयोग का दायित्व चुनाव प्रक्रिया के संचालन तक सीमित है ।गौर करने वाली बात यह भी है कि देश में इससे पहले क्या किसे ने तीखे भाषण नहीं दिये ? कहा तो यह भी जाता है कि इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी का एक बयान दिल्ली में सिखों के कत्ले आम का सबब बना । ऎसा लगता है कि वरुण की बढ़ती लोकप्रियता ने किसी "माँ" की चिंताएँ बढ़ा दी हैं । दलितों के घर भोजन करके और सिर पर मिट्टी ढ़ोकर भी राहुल बाबा का राजनीतिक कद बढ़ना मुमकिन नहीं हो पाया है । एक आम भारतीय माँ की तरह सोनिया मैडम भी अपनी आँखों के सामने बेटे को सफ़लता से सत्तासूत्र सम्हाले देखना चाहती हैं , तो इसमें किसी को क्या दिक्कत है ?
" हारेगा जब कोई बाज़ी तभी तो होगी किसी की जीत " इसलिये राहुल को सत्ताशीर्ष तक पहुँचाने में एकाएक आ खड़ी हुई बाधा को किसी भी तरह से दूर तो करना ही होगा । असली - नकली गाँधी की लड़ाई में राजमोहन गाँधी की बजाय जनता ने भले ही दत्तक पुत्र के वंशजों को चुन लिया हो लेकिन अब जबकि इन्हीं वंशजों में से किसी एक को चुनने की बारी आएगी , तो जनता योग्यता के आधार चुनाव करेगी । सियासत में योग्यता का पैमाना लटके- झटके नहीं जनता के बीच पैठ होता है ।
मीडिया की मदद और सरकारी लवाजमे की पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद राहुल गाँधी उस मुकाम पर अब तक नहीं पहुँच पाये हैं , जहाँ बरसो से निर्वासित जीवन जी रही मेनका गाँधी का बेटा एक झटके में पहुँच गया । यहाँ एक सवाल और भी है कि हिन्दू शब्द क्या वाकई भड़काऊ है ? अबू आज़मी , अमरसिंह , सैयद शहाबुद्दीन , बनातवाला , आज़म खाँ ऎसे नाम हैं जो जनसभाओं में तो आग उगलते ही रहे , संसद के भीतर भी ज़हर उगलने से बाज़ नहीं आये ।
अब तक ह्त्या,लूट, डकैती ,फ़िरौती ,धोखाधड़ी के मामलों में सज़ायाफ़्ता या अनुभवी जेल यात्री ही चुनाव लड़ते रहे हैं । लम्बे समय बाद कोई नेता सियासी दाँवपेंचों के चलते जेल की हवा खा ही आये , तो भी क्या ...? इससे लोकतंत्र का सीना गर्व से चौड़ा ही होगा । इन सभी बातों पर गौर करने के बाद हिन्दूवादियों से आग्रह है कि वे इसे "कहानी घर-घर की" समझ कर ही प्रतिक्रिया दें ।
हर मोर्चे पर लगातार पिट रही काँग्रेस को वरुण मामले में भी मुँह की खाना पड़ेगी । चाहे-अनचाहे मीडिया की नेगेटिव पब्लिसिटी धीरे-धीरे गाँधी खानदान के नवोदित सितारे को स्थापित कर देगी । ऎसे में जेल यात्रा का सौभाग्य मिल गया तो भाजपा की बल्ले-बल्ले और वरुण की चाँदी ही चाँदी .....????? लगता है काल का चक्र घूम रहा है । सियासी कुरुक्षेत्र में वक्त रुपी कृष्ण वरुण के पक्ष में खड़ा है ।
मामला ऎसे दिलचस्प मोड़ पर आ गया है कि हर हाल में फ़ायदा वरुण को ही मिलता दिखाई देता है । कहते हैं बुरे वक्त में साया भी साथ छोड़ देता है । पाँच साल सरकार में रहकर गलबहियाँ करने वाले क्षेत्रीय दलों ने चुनाव से पहले ठेंगा दिखा दिया है । जो कल तक हमसफ़र थे वे अब रक़ीब हैं ।
8 टिप्पणियां:
निश्चय ही बहुत करुण
स्थिति हो जाएगी कांग्रेस की
वरुण बढ़ जाएगा शिखर की ओर
कांग्रेस पलटेगी रसातल की ओर।
"धनपशुओं का खेल" क्या ही बढ़िया संबोधन?! बड़ी बेबाक बातें कहीं हैं. आभार.
uchit likha hai aapne.. EC ka achchha durupyog karne wali hai congress in aam chunao main..
dhikkar hai aisi kapat neeti ko..
mohan
http://mojowrites.wordpress.com
जब वरुण अपने बारे में गर्व से कहता है कि मैं गांधी हूं, तो मैं पूछता हूं इसमें गर्व की बात ही क्या है? क्या संजय जैसे किसी पिता पर गर्व करना चाहेगा कोई? या इंदिरा जैसी दादी पर जिसने इस देश से लोकतंत्र को ही समाप्त करने का असफल प्रयास कर डाला था? कहीं वरुण महात्मा गांधी की विरासत पर तो हाथ साफ नहीं करना चाहते? यदि ऐसा हो, हमें उन्हें समझाना चाहिए, कि बेटे, तेरे और गांधीजी के रास्ते अलग-अलग हैं, उन्हें अपनी सियासत से दूर रख।
जब वरुण अपने बारे में गर्व से कहता है कि मैं गांधी हूं, तो मैं पूछता हूं इसमें गर्व की बात ही क्या है? क्या संजय जैसे किसी पिता पर गर्व करना चाहेगा कोई? या इंदिरा जैसी दादी पर जिसने इस देश से लोकतंत्र को ही समाप्त करने का असफल प्रयास कर डाला था? कहीं वरुण महात्मा गांधी की विरासत पर तो हाथ साफ नहीं करना चाहते? यदि ऐसा हो, हमें उन्हें समझाना चाहिए, कि बेटे, तेरे और गांधीजी के रास्ते अलग-अलग हैं, उन्हें अपनी सियासत से दूर रख।
ऐसा लगता है कि मीडिया वरुण और भाजपा की चाल में फ़ँस गया है… अब राहुल बाबा को तारने के लिये उनकी "मम्मी" और "दीदी" को भी मैदान में उतरना पड़ रहा है, जबकि वरुण ने एक "सच्ची" बात कहकर अपनी TRP बढ़ा ली है, NDTV और CNN-IBN जैसे मुस्लिम चैनल जितना अधिक भाजपा-संघ को गरियायेंगे उतना अधिक वोटों का ध्रुवीकरण तेज होगा…
वरुण की बढ़ती लोकप्रियता ने किसी "माँ" की चिंताएँ बढ़ा दी हैं=
बहुत सही !
सच कहते हैं सभी इस 'बदनामी 'में नाम हुआ वरुण का
अच्छा विश्लेषण किया है आपने वर्तमान राजनीति और गांधी परिवार का।
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