लोकसभा चुनावों को लेकर मध्यप्रदेश में बीजेपी हर मोर्चे पर बढ़त लेकर बुलंद हौंसलों के साथ आगे बढ़ रही है ,जबकि काँग्रेस टिकट बँटवारे को लेकर मचे घमासान में ही पस्त हो गई है । रणछोड़दास की भूमिका में आई काँग्रेस ने पूरे प्रदेश में थके-हारे नेताओं को टिकट देकर बीजेपी की राह आसान कर दी है । एकतरफ़ा मुकाबले से मतदाताओं की दिलचस्पी भी खत्म होती जा रही है । काँग्रेस की गुटबाज़ी को लेकर उपजे चटखारे ही अब इन चुनावों की रोचकता बचाये हुए हैं । बहरहाल जगह-जगह पुतले जलाने का सिलसिला और हाईकमान के खिलाफ़ नारेबाज़ी ही इस बात की तस्दीक कर पा रहे हैं कि प्रदेश में काँग्रेस का अस्तित्व अब भी शेष है ।
मध्यप्रदेश में अब तक लगभग सभी सीटों पर बीजेपी और काँग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा से स्थिति स्पष्ट हो चली है । चुनाव की तारीखों से एक महीने पहले उम्मीदवारों का चयन पूरा कर लेने का दम भरने वाली काँग्रेस अधिसूचना जारी होने के बावजूद होशंगाबाद और सतना सीट के लिये अभी तक किसी नाम पर एकराय नहीं हुई है । गुटबाज़ी का आलम ये है कि काँग्रेस के दिग्गजों को बीजेपी से कम और अपनों से ज़्यादा खतरा है , लिहाज़ा वे अपने क्षेत्रों में ही सिमट कर रह गये हैं ।
भाजपा ने 29 लोकसभा सीटों में से 28 और कांग्रेस ने 27 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। अपनी घोषणा के अनुसार बीजेपी ने एक भी मंत्री को चुनाव मैदान में नहीं उतारा , अलबत्ता पूर्व मंत्री और दतिया के विधायक डा. नरोत्तम मिश्रा को गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ़ मैदान में उतारा है , जबकि कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए पांच विधायक , सज्जन सिंह वर्मा (देवास), सत्यनारायण पटेल (इंदौर), विश्वेश्वर भगत (बालाघाट), रामनिवास रावत (मुरैना) और बाला बच्चन (खरगोन) को चुनावी समर में भेजा है । मगर काँग्रेस दो मजबूत दावेदारों को भूल गई । प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अजय सिंह सीधी से मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे थे। चुनाव लड़ने के इच्छुक श्री सिंह पिछले तीन महीने से सीधी लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय थे । इसी तरह विधानसभा में प्रतिपक्ष की नेता जमुना देवी के विधायक भतीजे उमंग सिंघार को भी लोकसभा का टिकिट नहीं मिला।
प्रदेश में काँग्रेस की दयनीय हालत का अँदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल सीट के लिए स्थानीय पार्षद स्तर के नेता भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे । आखिरी वक्त पर टिकट कटने से खफ़ा पूर्व विधायक पीसी शर्मा तो बगावत पर उतारु हैं । विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाने पर श्री शर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऎलान कर दिया था । लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी के वायदे पर मामला शांत हो गया था , लेकिन हाईकमान की वायदाखिलाफ़ी से शर्मा समर्थक बेहद खफ़ा हैं और ना सिर्फ़ सड़कों पर आ गये हैं , बल्कि इस्तीफ़ों का दौर भी शुरु हो चुका है ।
काँग्रेस की कार्यशैली को देखकर लगता है कि तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने के बावजूद मिली करारी शिकस्त से प्रदेश काँग्रेस और आलाकमान ने कोई सबक नहीं लिया । अब भी पार्टी के क्षत्रप शक्ति प्रदर्शन में मसरुफ़ हैं । हकीकत यह है कि प्रदेश में काँग्रेस की हालत खस्ता है । लोकसभा प्रत्याशियों की सूची पर निगाह दौड़ाने से यह बात पुख्ता हो जाती है । उम्मीदवारों के चयन में चुनाव जीतने की चिंता से ज़्यादा गुटीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है । इस बात को तरजीह दी गई है कि सभी गुट और खासकर उनके सरदार खुश रहें । विधानसभा चुनाव में भी टिकट बँटवारे की सिर-फ़ुटौव्वल को थामने के लिये ऎसा ही मध्यमार्ग चुना गया था और उसका हश्र सबके सामने है ।
इस पूरी प्रक्रिया से क्षुब्ध वरिष्ठ नेता जमुना देवी ने जिला अध्यक्षों की बैठक में साफ़ कह दिया था कि प्रदेश में पार्टी को चार-पाँच सीटों से ज़्यादा की उम्मीद नहीं करना चाहिए । हो सकता है ,उनके इस बयान को अनुशासनहीनता माना जाये लेकिन उनकी कही बातें सौ फ़ीसदी सही हैं । सफ़लता का मीठा फ़ल चखने के लिए कड़वी बातों को सुनना - समझना भी ज़रुरी है , मगर काँग्रेस फ़िलहाल इस मूड में नहीं है ।
5 टिप्पणियां:
abhi abhi maine aapke blog par aapki tippani padhi hai. achhi hai. sab ke apne vichar hain. aapke bhi hai. waise aapka talluk bjp se jhai to bura bhi nahin laga.
अपनी और दूसरों की गलतियों से आदमी सीखता है. यहाँ तो न सीखने की कसम खा रखी है.
सरिता जी, आपको तो भाजपाई होने का तमगा मिल गया. जरा इन सलीम साहब से भी पूछ लीजिये, इनका ताल्लुक किस जमात या तंजीम से है???
सही लिखा आपने।यंहा छत्तीसगढ मे तो हालत और पतली है।शुक्ल बंधुओ की कर्मभूमी राजधानी रायपुर से तो उन्हे दूसरे ज़िले के नेता को प्रत्यशी बनाना पड़ा।तरस आता है हिन्दीभाषी क्षेत्रों मे कांग्रेस की दुर्गति देख कर्।
बिलकुल सही आकलन है आपका।
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