शुक्रवार, 20 मार्च 2009

उमा के बदले रुख से खिला कमल

चुनाव की तारीख की ओर बढ़ते हुए सियासत भी रफ़्तार पकड़ रही है । नाराज़ प्रहलाद पटेल ’ घर ’ लौटने के लिए बेताब हैं । मित्तल मामले में कोप भवन में जा बैठे जेटली भी ज़िद छोड़ने को तैयार हो गये हैं । कल तक आडवाणी को पानी पी-पी कर कोस रही साध्वी भी गिले - शिकवे भुलाकर ’हम साथ-साथ हैं’ का एलान कर रही हैं । कुल मिलाकर भाजपा में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से घूम रहा है कि सारा परिदृश्य बदला हुआ नज़र आ रहा है ।

मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी उमा भारती ने सुलह की पाती भेजकर आडवाणी के नेतृत्व में आस्था जताने का दाँव खेलकर कइयों के होश उड़ा दिये हैं । उमा ने आडवाणी से मुलाकात के बाद यह कह कर सबको चौंका दिया कि पीएम इन वेटिंग का समर्थन राष्ट्र धर्म है । वे कहती हैं कि आडवाणी का समर्थन कर उन्होंने भाजपा पर कोई एहसान नहीं किया है , केवल राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है । साथ ही बीजेपी में वापसी के कयास को उन्होंने सिरे से खारिज भी कर दिया है ।

"साफ़ छिपते भी नहीं सामने आते भी नहीं " की तर्ज़ पर उमा भाजपा में आने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं लेकिन पूछने पर साफ़ मुकर जाती हैं । लुका छिपी के इस खेल में उमा की राजनीतिक हैसियत कम से कमतर होती चली जा रही है । लेकिन उनकी ठसक कम नहीं होती । अड़ियल रवैये और ’पल में तोला- पल में माशा’ वाले तेवरों के कारण भाजपा में उनके दोस्त कम और दुश्मन ज़्यादा हैं ।

उधर, उमा की खाली जगह भरने के लिए सुषमा स्वराज ने डेरा डालने की ग़रज से भोपाल में होली पर दीवाली मनाकर बँगले में प्रवेश क्या किया , अटकलों का बाज़ार गर्माने लगा । प्रदेश की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वालों का कहना है कि सिविल लाइन का बँगला , जो अब सुषमा स्वराज का निवास है , हमेशा ही सत्ता का केन्द्र रहा है । कयास लगाये जा रहे हैं कि चुनाव बाद प्रदेश में मुखिया बदलने की भूमिका तैयार हो रही है । फ़िलहाल सुषमा विदिशा से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं । मिथक है कि विदिशा से जीतने वाले नेता की सियासी गाड़ी तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगती है ।

यहाँ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मीडिया हस्ती रामनाथ गोयनका तक अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। वर्ष 1991 में हुए 10 वीं लोकसभा के चुनाव में वाजपेयी विदिशा और लखनऊ सीट पर एक साथ लडे थे । दोनों ही सीटों से जीतने के कारण वाजपेयी को लखनऊ भाया और उन्होंने विदिशा सीट छोड दी थी। इसके बाद उपचुनाव में शिवराजसिंह चौहान पहली बार सांसद बने थे। विदिशा का कुछ हिस्सा विजयाराजे सिंघिया के संसदीय क्षेत्र में आने के कारण वे भी इस क्षेत्र का प्रतिनिघित्व कर चुकी हैं। अब एक बार फिर भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को प्रत्याशी बनाकर विदिशा को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।

प्रदेश स्तर पर विदिशा का दबदबा पहले से ही कायम है। लगातार 5 बार क्षेत्र का प्रतिनिघित्व करने वाले शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री की कमान संभाले हैं । वहीं विदिशा से सांसद रह चुके राघवजी के पास प्रदेश की वित्त व्यवस्था का ज़िम्मा हैं। भाजपा का गढ कहलाने वाले विदिशा संसदीय क्षेत्र में सुषमा स्वराज को मैदान में उतारे जाने से एक बार फिर काँग्रेस की मुश्किलें बढ गई हैं ।

बहरहाल प्रदेश में भाजपा की राजनीति उबाल पर है । लम्बे इंतज़ार के बाद आखिरकार पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भारतीय जनशक्ति के नेता प्रहलाद पटेल की भाजपा में वापसी का रास्ता लगभग साफ़ हो गया है । उम्मीद है कि कल 21 मार्च को ग्यारह बजे प्रहलाद पटेल पूरे लाव-लश्कर के साथ चार हज़ार कार्यकर्ताओं की फ़ौज लेकर विधिवत तौर पर घर वापसी करेंगे । मुख्यमंत्री ने भी इसकी पुष्टि कर दी है । भाजपा में आने के बाद उन्हें खजुराहो या छिंदवाड़ा से चुनावी जंग में उतारने के आसार है , मगर प्रहलाद फ़िलहाल चुनाव लड़ने की अटकलों को नकार रहे हैं ।

भाजश के दो दिग्गज नेताओं की वापसी की संभावनाओं ने प्रदेश की उन्तीस में से छब्बीस संसदीय सीटों पर जीत का दावा कर रही भाजपा नेताओं के चेहरे कमल की मानिंद खिला दिये हैं । हालाँकि विधानसभा चुनाव में भाजश कुछ खास नहीं कर पाई , लेकिन कई जगह भाजपा के वोटों में सेंधमारी में कामयाब रही थी । इसका खमियाज़ा जीत के अंतर में कमी और कई जगह काँग्रेस को बढ़त के तौर पर भाजपा को उठाना पड़ा था ।

रुठों के मान जाने से भाजपा में जोश का माहौल है , वहीं गुटबाज़ी से परेशान काँग्रेस अब तक दमदार उम्मीदवारों की तलाश भी पूरी नहीं कर पाई है । विधानसभा चुनाव में नाकामी से भी पार्टी के क्षत्रपों ने कोई सबक नहीं सीखा । कमलनाथ , ज्योतिरादित्य सिंधिया ,कांतिलाल भूरिया सरीखे नेता अब अपनी सीट बचाने की जुगत में लग गये हैं । मैदाने जंग में उतरने से पहले ही हार की मुद्रा में आ चुके काँग्रेस के दिग्गज नेता अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश में हैं । आज हालत ये है कि प्रदेश में काँग्रेस की स्थिति दयनीय है । हाल- फ़िलहाल मध्यप्रदेश में मुकाबला पूरी तरह से एकतरफ़ा दिखाई देता है ।

8 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

sareetha jee,
saadar abhivaadan. raajnitik vishay aur haalaaton par aapko padhnaa dilchasp rahegaa, ye baat mujhe aapkee ye post padh kar lag gayee hai.

Udan Tashtari ने कहा…

सही विश्लेषण!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

उमा जी का क्या ठिकाना। अब तो वे भज गोविंद भज गोविंद कर रही हैं- दो नाविक किनारे की तलाज में मझदार से जूझ रहे हैं:)

बेनामी ने कहा…

अच्छा और सही विश्लेषण

संगीता पुरी ने कहा…

विस्‍तृत विश्‍लेषण ... अच्‍छी जानकारी मिली।

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपका आकलन बिलकुल सही अनुभव होता है। स्थितियां वही सब कह रही हैं जो आपने लिखा है।
उमा जैसे समस्‍त लोगों को पूरी तरह अस्‍वीकार और निरस्‍त किया जाना चाहिए। व्‍यक्तिगत महत्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कोई व्‍यक्ति कितना निर्लज्‍ज, ढोंगी, पाखण्‍डी हो सकता है, उमा इसका श्रेष्‍ठ उदाहरण है।
खेदजनक बात तो यह होती नजर आ रही है कि भाजपा भी उमा की 'सेवाएं' प्राप्‍त करेगी।

Yogendramani ने कहा…

अच्छा वि्श्लेषण्है उमा भारती जैसे अनेक कथित राजनीतिज्ञो की निजि महत्वक्षा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि उन्हें कुर्सी के आगे कोई नजर ही नहीं आता है।

MAYUR ने कहा…

प्रिया मित्र,
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मयूर