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सोमवार, 6 अप्रैल 2009

काँग्रेस ने दिया सुषमा स्वराज को वॉक ओवर

मध्यप्रदेश में बैतूल और रायसेन के ज़िला निर्वाचन अधिकारियों के फ़ैसलों ने कहीं खुशी - कहीं ग़म की स्थिति बना दी है । भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज की उम्मीदवारी के कारण हाई प्रोफाइल बनी मध्यप्रदेश की विदिशा संसदीय सीट से काँग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल का पर्चा खारिज हो गया है । वहीं बैतूल में भाजपा उम्मीदवार ज्योति धुर्वे के हक में निर्णय आया है । काँग्रेस ने श्रीमती धुर्वे का जाति प्रमाणपत्र फ़र्ज़ी होने का आरोप लगाया था । जाँच और दोनों पक्षों की दलील के बाद उनका पर्चा सही पाया गया ।

काँग्रेस उम्मीदवार राजकुमार पटेल ने अपने नामजदगी के पर्चे के साथ फार्म ए की मूल प्रति के स्थान पर छाया प्रति जमा की जिसे निर्वाचन अधिकारी ने अमान्य कर दिया है। इस मामले पर पार्टी में ही कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। लेकिन सारे मामले में पटेल की "भूमिका" की जांच चुनाव के बाद ही होगी । बैकफुट पर नजर आ रही पार्टी अब अन्य विकल्प तलाशने के साथ ही प्रतिष्ठा बचाने के प्रयास में जुटी है।

पार्टी के नेता हैरान हैं कि भाजपा की राष्ट्रीय नेता के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी और पूर्व मंत्री श्री पटेल से ए फार्म समय पर दाखिल करने के मामले में चूक कैसे हो गयी ? साथ ही इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी श्रीमती स्वराज को वॉकओवर देने का मुद्दा गर्माने को लेकर भी पार्टी में खलबली मची हुई है । इस घटनाक्रम से कार्यकर्ता हताश और नेता हतप्रभ हैं ।

दुविधा में फ़ँसी पार्टी अब नाक बचाने के लिये दूसरे विकल्प तलाश रही है । निर्दलीय के तौर पर पर्चा भरने वाले श्री पटेल के भाई देव कुमार पटेल को समर्थन देने के मुद्दे पर भी पानी फ़िर गया है । देवकुमार पटॆल का नामांकन भी रद्द हो जाने से कांग्रेस को एक बार फ़िर निराशा ही हाथ लगी है । दोनों ही नामांकन खारिज होने के बाद अब यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या सुषमा स्वराज को काँग्रेस वॉकओवर देने जा रही है । हालांकि काँग्रेस पटेल प्रकरण पर सकते में है । पार्टी उनके खिलाफ़ निष्कासन जैसी कड़ी कार्रवाई का मन बना रही है ।

वैसे पटेल ने नामांकन फ़ॉर्म जमा करते समय जिस तरह की मासूमियत दिखाई ,वह चौंकाने वाली है । काँग्रेस को इससे भारी फ़जीहत का सामना करना पड़ रहा है । विदिशा से सुषमा स्वराज का नाम सामने आने के बाद पार्टी ने किसी नए चेहरे पर दाँव लगाने की बजाय तज़ुर्बे को तरजीह देते हुए पटेल की दावेदारी को बेहतर समझा । काँग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि उम्मीदवारों को नामांकन फ़ॉर्म भरने से जुड़ी सभी ज़रुरी बातें अच्छी तरह समझाई जाती हैं । पटेल के मामले में जानकारों को साज़िश की बू आ रही है क्योंकि पटेल को खुद कई चुनाव लड़ने का अनुभव है ।

अब उनका इतिहास भी खंगाला जा रहा है । वे बुधनी से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ़ भी चुनाव लड़ चुके हैं । इसे दिलचस्प संयोग ही कहा जाए कि उस वक्त भी उन्होंने नामांकन पत्र में अपनी पार्टी का नाम ही ग़लत भर दिया था । वहाँ मौजूद कुछ वरिष्ठ लोगों ने तत्काल भूल सुधरवा दी थी । हारने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी ,लेकिन वे एक बार भी गवाही के लिये अदालत नहीं पहुँचे । लिहाज़ा मामले में एकतरफ़ा फ़ैसला सुना दिया गया ।

बहरहाल काँग्रेस प्रत्याशी श्री पटेल का कहना है कि वे कानूनी परामर्श के बाद कदम उठाएंगे । उन्होंने कहा कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने अन्य प्रत्याशियों से तीन बजे के बाद भी दस्तावेज लिए लेकिन सिर्फ उन्हीं से फार्म ए नहीं लिया। फार्म ए कलेक्टर को तीन बजकर सात मिनट पर दिया गया था जबकि नामांकन पत्र 2 बजकर 14 मिनट पर जमा किया गया।

उधर सूत्रों का कहना है कि काँग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल ने शनिवार को दोपहर 4.10 बजे जिला निर्वाचन अधिकारी को एक आवेदन दिया था । जिसमें उन्होंने कहा था कि वे निर्धारित समय से विलंब से अपना "ए" फार्म जमा कर रहे हैं। इसे स्वीकार करने के बारे में जिला निर्वाचन अधिकारी का जो भी निर्णय होगा वह उन्हें मंजूर होगा । मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के सूत्रों के अनुसार प्रत्याशी को नामांकन पत्र दाखिल करने के साथ निर्धारित समयसीमा में फार्म ए भी निर्वाचन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। अन्यथा प्रत्याशी संबंधित राजनीतिक दल का नहीं माना जाएगा।

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

उमा के बदले रुख से खिला कमल

चुनाव की तारीख की ओर बढ़ते हुए सियासत भी रफ़्तार पकड़ रही है । नाराज़ प्रहलाद पटेल ’ घर ’ लौटने के लिए बेताब हैं । मित्तल मामले में कोप भवन में जा बैठे जेटली भी ज़िद छोड़ने को तैयार हो गये हैं । कल तक आडवाणी को पानी पी-पी कर कोस रही साध्वी भी गिले - शिकवे भुलाकर ’हम साथ-साथ हैं’ का एलान कर रही हैं । कुल मिलाकर भाजपा में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से घूम रहा है कि सारा परिदृश्य बदला हुआ नज़र आ रहा है ।

मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी उमा भारती ने सुलह की पाती भेजकर आडवाणी के नेतृत्व में आस्था जताने का दाँव खेलकर कइयों के होश उड़ा दिये हैं । उमा ने आडवाणी से मुलाकात के बाद यह कह कर सबको चौंका दिया कि पीएम इन वेटिंग का समर्थन राष्ट्र धर्म है । वे कहती हैं कि आडवाणी का समर्थन कर उन्होंने भाजपा पर कोई एहसान नहीं किया है , केवल राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है । साथ ही बीजेपी में वापसी के कयास को उन्होंने सिरे से खारिज भी कर दिया है ।

"साफ़ छिपते भी नहीं सामने आते भी नहीं " की तर्ज़ पर उमा भाजपा में आने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं लेकिन पूछने पर साफ़ मुकर जाती हैं । लुका छिपी के इस खेल में उमा की राजनीतिक हैसियत कम से कमतर होती चली जा रही है । लेकिन उनकी ठसक कम नहीं होती । अड़ियल रवैये और ’पल में तोला- पल में माशा’ वाले तेवरों के कारण भाजपा में उनके दोस्त कम और दुश्मन ज़्यादा हैं ।

उधर, उमा की खाली जगह भरने के लिए सुषमा स्वराज ने डेरा डालने की ग़रज से भोपाल में होली पर दीवाली मनाकर बँगले में प्रवेश क्या किया , अटकलों का बाज़ार गर्माने लगा । प्रदेश की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वालों का कहना है कि सिविल लाइन का बँगला , जो अब सुषमा स्वराज का निवास है , हमेशा ही सत्ता का केन्द्र रहा है । कयास लगाये जा रहे हैं कि चुनाव बाद प्रदेश में मुखिया बदलने की भूमिका तैयार हो रही है । फ़िलहाल सुषमा विदिशा से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं । मिथक है कि विदिशा से जीतने वाले नेता की सियासी गाड़ी तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगती है ।

यहाँ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मीडिया हस्ती रामनाथ गोयनका तक अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। वर्ष 1991 में हुए 10 वीं लोकसभा के चुनाव में वाजपेयी विदिशा और लखनऊ सीट पर एक साथ लडे थे । दोनों ही सीटों से जीतने के कारण वाजपेयी को लखनऊ भाया और उन्होंने विदिशा सीट छोड दी थी। इसके बाद उपचुनाव में शिवराजसिंह चौहान पहली बार सांसद बने थे। विदिशा का कुछ हिस्सा विजयाराजे सिंघिया के संसदीय क्षेत्र में आने के कारण वे भी इस क्षेत्र का प्रतिनिघित्व कर चुकी हैं। अब एक बार फिर भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को प्रत्याशी बनाकर विदिशा को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।

प्रदेश स्तर पर विदिशा का दबदबा पहले से ही कायम है। लगातार 5 बार क्षेत्र का प्रतिनिघित्व करने वाले शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री की कमान संभाले हैं । वहीं विदिशा से सांसद रह चुके राघवजी के पास प्रदेश की वित्त व्यवस्था का ज़िम्मा हैं। भाजपा का गढ कहलाने वाले विदिशा संसदीय क्षेत्र में सुषमा स्वराज को मैदान में उतारे जाने से एक बार फिर काँग्रेस की मुश्किलें बढ गई हैं ।

बहरहाल प्रदेश में भाजपा की राजनीति उबाल पर है । लम्बे इंतज़ार के बाद आखिरकार पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भारतीय जनशक्ति के नेता प्रहलाद पटेल की भाजपा में वापसी का रास्ता लगभग साफ़ हो गया है । उम्मीद है कि कल 21 मार्च को ग्यारह बजे प्रहलाद पटेल पूरे लाव-लश्कर के साथ चार हज़ार कार्यकर्ताओं की फ़ौज लेकर विधिवत तौर पर घर वापसी करेंगे । मुख्यमंत्री ने भी इसकी पुष्टि कर दी है । भाजपा में आने के बाद उन्हें खजुराहो या छिंदवाड़ा से चुनावी जंग में उतारने के आसार है , मगर प्रहलाद फ़िलहाल चुनाव लड़ने की अटकलों को नकार रहे हैं ।

भाजश के दो दिग्गज नेताओं की वापसी की संभावनाओं ने प्रदेश की उन्तीस में से छब्बीस संसदीय सीटों पर जीत का दावा कर रही भाजपा नेताओं के चेहरे कमल की मानिंद खिला दिये हैं । हालाँकि विधानसभा चुनाव में भाजश कुछ खास नहीं कर पाई , लेकिन कई जगह भाजपा के वोटों में सेंधमारी में कामयाब रही थी । इसका खमियाज़ा जीत के अंतर में कमी और कई जगह काँग्रेस को बढ़त के तौर पर भाजपा को उठाना पड़ा था ।

रुठों के मान जाने से भाजपा में जोश का माहौल है , वहीं गुटबाज़ी से परेशान काँग्रेस अब तक दमदार उम्मीदवारों की तलाश भी पूरी नहीं कर पाई है । विधानसभा चुनाव में नाकामी से भी पार्टी के क्षत्रपों ने कोई सबक नहीं सीखा । कमलनाथ , ज्योतिरादित्य सिंधिया ,कांतिलाल भूरिया सरीखे नेता अब अपनी सीट बचाने की जुगत में लग गये हैं । मैदाने जंग में उतरने से पहले ही हार की मुद्रा में आ चुके काँग्रेस के दिग्गज नेता अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश में हैं । आज हालत ये है कि प्रदेश में काँग्रेस की स्थिति दयनीय है । हाल- फ़िलहाल मध्यप्रदेश में मुकाबला पूरी तरह से एकतरफ़ा दिखाई देता है ।