मध्यप्रदेश सरकार ने एक बार फ़िर उदारता का मुज़ाहिरा किया है । दक्षिणपंथी विचारधारा के लेखकों और कलाकारों को दरकिनार कर वामपंथियों को सिर माथे बिठाने वाली भाजपा सरकार ने प्रदेश के दरवाज़े बाहरी छात्रों के लिए खोल दिए हैं । अब मप्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में प्रदेश से बाहर के उम्मीदवार भी हिस्सा ले सकेंगे । केबिनेट के इस फ़ैसले से राज्य के युवाओं के लिए प्रतिस्पर्धा कडी हो जाएगी ।
वर्ष 1996 से प्रदेश में नियम था कि पीएससी परीक्षा में वे ही प्रत्याशी शामिल हो सकेंगे जो मप्र के मूल निवासी होंगे । इसके लिए उम्मीदवार का मध्यप्रदेश से हायर सेकंडरी या डिग्री लेना ज़रुरी था । शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में भी ये मामला केबिनेट में आया था , लेकिन कुछ मंत्रियों ने इस प्रस्ताव की जमकर मुखालफ़त की थी । उस वक्त मंत्रिमंडल सदस्य अखंडप्रताप सिंह ने इस मुद्दे पर अपनी ही सरकार को जमकर लताडा था ।
सुनने में आया है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने इस बारे में अपने स्तर पर ही आदेश जारी कर दिए थे । मामला सामने आने पर उसे कानूनी जामा पहनाने के लिए केबिनेट में भेज दिया गया । इस मामले से दो बातें तो एकदम साफ़ हैं । पहली तो ये कि करोडों रुपए फ़ूँक कर कार्पोरेट कल्चर में रंग जाने को बेताब सरकार निहायत ही निकम्मी और काठ की उल्लू है । बजरबट्टू नेता पूरी तरह नौकरशाहों के शिकंजे में फ़ँसे हुए हैं । साथ ही इनके पास राज्य के विकास के लिए कोई समग्र सोच नहीं है । एक ही काम है इन नेताओं का ...। भज कलदारम , भज कलदारम हो गया प्रदेश का बंटाढारम .....।
प्रदेश में शिक्षा की स्थिति शर्मनाक हो चुकी है । बच्चों का भविष्य राम भरोसे है । मेरे घर के नज़दीक ,बल्कि उसे ऎसे कहें कि शिक्षा मंत्री के बंगले से महज़ दो - ढाई किलोमीटर की दूरी पर एक ऎसा स्कूल है , जहाँ एक कमरे में पाँच कक्षाएँ लगती हैं । यह स्कूल कम और रेलवे स्टेशन का क्लॉक रुम ज़्यादा नज़र आता है । पढाई की तो बात ही मत कीजिए । शिक्षिका के पसीने छूट जाते हैं ,बच्चों को चुप बैठाए रखने में । इतना ही नहीं प्रदेश का हर चौथा स्कूल एक शिक्षक के भरोसे है । डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि प्रदेश के 84 हज़ार से ज़्यादा प्राइमरी स्कूलों में से 27 हज़ार में महज़ एक टीचर तैनात है ।
स्कूली शिक्षा के हाल बताते हैं प्रदेश की शिक्षा का स्तर , जबकि दूसरे राज्यों में पढाई का स्तर काफ़ी ऊँचा है । ज़ाहिर तौर पर ऎसे में प्रतियोगी परीक्षाओं में दूसरे राज्यों के छात्र बाज़ी मार ले जाएँगे । बढते क्षेत्रवाद के चलते दूसरे प्रदेशों में मप्र के युवाओं के लिए वैसे भी अवसर ना के बराबर ही हैं । अपने ही मतदाताओं के हक पर कुठाराघात करने वाली सरकार की अकल पर पडे पाले ने लोगों को सन्न कर दिया है ।
इस मसले पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर युवाओं के हितों को तिलांजलि देने का आरोप लगाते हुए शिवराज सिंह को पत्र लिखा है । मुख्यमंत्री ने दलील दी है कि हाईकोर्ट का आदेश मानना सरकार की मजबूरी थी । इस सफ़ाई ने सरकार की निर्णय क्षमता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है । सरकार युवाओं के हित में कानूनी लडाई लडने के लिए इच्छा शक्ति प्रदर्शित कर सकती थी । मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती थी ।
युवा हैरान हैं सरकार के फ़ैसले से । वे जानना चाहते हैं कि यदि उन्हें अपने ही प्रदेश में ठौर नहीं मिलेगा तो कहाँ जाएँगे......? जो सरकार जनता की पालनहार होने का ,उसके दुख दर्द समझने का दावा करती हो ,यदि वही दर्द देने पर आमादा हो जाए , तो आम जनता अपनी फ़रियाद लेकर किसके पास जाए........????? गरीबों की सुनवाई नहीं । बिजली नहीं ,पानी के लिए पूरे प्रदेश में हाहाकार । किसान बेज़ार । कर्मचारी सरकार की वायदा खिलाफ़ी से खफ़ा । और अब युवाओं के खिलाफ़ जाता ये सरकारी फ़रमान .....। क्या करना चाहती है ये सरकार ....????? दो महीनों में ये हाल .....। " इब्तदाए इश्क है रोता है क्या , आगे - आगे देखिए होता है क्या ? "
8 टिप्पणियां:
प्रदेश के शासकीय सेवाओ में स्थानीय युवाओं के लिए ही १००% आरक्षण होनी चाहिए.उन विद्यालयों का जहाँ एक कमरे में अनेक कक्षाएं लगती हैं, स्थानीय अख़बारों में समाचार छपवाने का प्रबंध किया जाना चाहिए जिससे कहीं कोई हलचल हो. आपकी सजगता कारगर रहेगी. आभार.
जहाँ तक सवाल प्रदीश में नौकरियों के लिए दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को मौका देने का सवाल है, इस मामले में नज़रिया थोडा व्यापक बनाएं. क्या मध्य प्रदेश के युवा दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए नहीं जाते? इससे प्रतिस्पर्धा ही बढेगी, कब्जा नहीं हो जाएगा. दूसरी बात यह कि हमारी लडाई रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने के लिए होनी चाहिए, न कि आरक्षण जैसे झुनझुनों की. यह लडाई पूरे भारत में व्यापी होनी चाहिए,किसी एक राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं यह सब तभी सम्भव हो सकेगा जब हम जाति-धर्म-क्षेत्र और प्रांत जैसी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर व्यापक स्तर पर सोच सकेंगे.
यह सचमुच में उलझन वाला मामला लगता है। दोनों हाथ साथ धुलते हैं। सांस्कृत्यायनजी की इस बात में दम है कि यदि मध्य प्रदेश की नौकरियां मध्य प्रदेश के लोगों के लिए सुरक्षित की जानी हैं तो अन्य प्रदेशों में उनका नौकरी करना प्रतिबन्धित होना चाहिए।
वास्तविकता मुझे पता नहीं किन्तु अनुमान लगाता हूं कि यह समस्या प्रत्येक राज्य सरकार के सामने होगी।
रोजगार का अधिकार और रोजगार की सुनिश्चित उपलब्धता ही इसका एकमात्र हल लगता है।
इस विषय विशेष पर क्षेत्रवाद की बाद उचित नहीं प्रतीत होती.
सरिता जी इस मुद्दे पर पहली बार आपसे असहमत हूं क्योंकि अगर बाहर वालों को मध्यप्रदेश में नौकरी नहीं मिलेगी तो फिर मध्यप्रदेश वाले बाहर कहां से नौकरी पायेंगे। आज क्षेत्रवाद से ज्यादा जरुरी राष्ट्रवाद है।
प्रदेश सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह प्रदेशवासियों को रोजगार उपलब्ध कराये. प्रत्येक प्रदेश में शासकीय नौकरियों में प्रदेशवासियों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.
लेख में मध्य प्रदेश में शिक्षा के स्तर की भी चर्चा है. निश्चित रूप से मध्य प्रदेश में स्कूली शिक्षा ही नहीं महाविद्यालयीन शिक्षा का स्तर भी अच्छा नहीं है. शिक्षा का स्तर सुधारने की चिंता भी किसी को नहीं है. यहाँ के एक विश्व विद्यालय के कुलपति पर फर्जी थीसिस के आधार पर पी. एच. डी. करने का आरोप है.सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को अपने विषय का ज्ञान नहीं है.
akshat vichaar ki tippani se me sahmat hu..
vese apne rajya me hone vali is tarah ki ghuspeth kise bardasht hogi...kintu yanha yadi apne rajya ki jagah apne rashtra soch le to kya buraai he..????????
maharashtra me yadi shetrvaad ka keeda kulbula raha he to iska ye matlab katai nahi hona chahiye ki har rajya kuchh isi tarah ke ho jaaye..rajy ka vikaas tab bhee sambhav he ...meri kuchh alag raay he is baare me..
kintu haa, aapne likha bahut achcha he..
आप के विचारों में और राज ठाकरे के विचारों में फर्क ही क्या है? भारत जैसी कोई चीज भी है या नहीं? क्या हर कोई मध्य प्रदेश, केरल, कर्णाटक, तमिलनाड का ही राग अलापता रहे, देश की न सोचे?
मध्य प्रदेश के सरकारी पदों पर मध्य प्रदेश के बाहर के लोग नौकरी करें, तो नुकसान ही क्या है? ये कहीं चीन, पाकिस्तान, जापान के लोग तो नहीं ही होंग, अपने ही देश के लोग हेंगे। मध्य प्रदेश वाले भी खूब जाएं दूसरे राज्यों में नौकरी करने। यदि उन्हें कोई रोके, तो इसका जबर्दस्त प्रतिरोध किया जाए।
मध्य प्रदेश को मुंबई बनाना कोई समाधान नहीं है।
मैं चाहूंगा कि आप इस संबंध में डा. रामविलास शर्मा के विचारों पर भी गौर करें। वे भारत के सर्वोच्च विचारकों में से एक हैं और यह हमारा सौभाग्य हैं कि उन्होंने हिंदी में अपनी सारी रचनाएं कीं।
उन्होंने हिंदी जाति की बात कही है। वे कहते हैं, गांधी आदि ने देश के अन्य भागों में तो भाषाई राज्य बना दिए, जैसे तमिलनाड, कर्णाटक, केरल, बंगाल आदि, लेकिन हिंदी प्रदेश में आकर रुक गए। इससे हिंदी जाति का विकास कुंठित हो गया।
डा शर्मा का कहना है कि समस्त हिंदी भाषि प्रदेश को एक राजनीतिक नियंत्रण में लाना चाहिए। इससे हिंदी प्रदेश ही नहीं समस्त देश की अनेक समस्याएं सुलझ जाएंगी। अभी हिंदी प्रदेश उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि में बंटा हुआ है। इनके और भी टुकड़े होते जा रहे हैं, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि बन गए हैं। मायावती तो यहां तक कह रही हैं कि वर्तमान उप्र के चार और टुकड़े कर दिए जाएंगे।
इससे क्षेत्रीयतावाद बढ़ता है जैसा कि स्वयं आपके इस लेख में व्यक्त विचारों से स्पष्ट है। लोग समग्र हिंदी जाति की दृष्टि से नहीं सोच पाते, आपस में ही लड़ते हुए अपनी शक्ति क्षीण करते जाते हैं। इससे अंग्रेजी का फायदा होता है, जो सभी भारतीय भाषाओं का हक मारे बैठी है।
जब भी देश प्रभावशाली रहा है, हिंदी भाषी क्षेत्र में एक ही शासन का बोलबाला रहा है, चाहे वह चंद्रगुप्त मौर्य का समय हो या अकबर का।
अब भी यदि देश को विघटनकारी ताकतों से बचाना हो, धार्मिक कट्टरता के एजेंडों से बचाना हो, गरीबी, निरक्षरता, भूख, बेरोजगारी आदि से देशवासियों को उभारना हो, तो देश का केंद्रीय क्षेत्र जो हिंदी भाषी क्षेत्र है, उसे एक करना होगा।
आपके इस लेख में जिस तरह के विचार व्यक्त किए हैं, वे इसमें बाधा ही पहुंचाएंगे।
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