लोकसभा चुनाव की दस्तक ने सियासी दाँव- पेंच तेज़ कर दिये हैं । मध्यप्रदेश में ज़बरदस्त बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में लौटी भाजपा पर " सिर मुँडाते ही ओले पड़े" कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है । साम - दाम - दंड - भेद की नीति पर चल कर सत्ता सुख हासिल करने में भले ही भाजपा कामयाब रही हो ,लेकिन प्रकृति के कड़े तेवरों ने पार्टी के हाथ - पाँव फ़ुला दिये हैं ।
पूरे प्रदेश में पानी के लिए हाहाकार मचा है । हालाँकि सूरज ने तो अभी अपनी भृकुटी तानना तो छोड़िए , निगाहें तिरछी भी नहीं की हैं । पानी नहीं , तो बिजली नहीं । इधर चुनावी मौसम की गर्मी बढेगी , उधर बिजली -पानी की कमी से दो चार होती जनता का पारा चढेगा । राज्य सरकार ने हालात पर काबू पाने के सभी दरवाज़े बँद होते देख सारी मुसीबतों का ठीकरा केन्द्र सरकार के सिर फ़ोड़ने का मन बना लिया है ।
’पाँव- पाँव वाले भैया’ के नाम से मशहूर शिवराज सिंह ने अब गेंद केन्द्र के पाले में डालने के लिए ’सत्याग्रह’ का रास्ता चुना है । एक सत्याग्रह गाँधीजी कर गये और अब दूसरा शिवराज कर रहे हैं । वे नमक के लिए लड़े , ये कोयले के लिए । लेकिन भारत में "नमक" का नाता आन- बान - शान से है । मगर कोयले की शोहरत कुछ अच्छी नहीं.........! कोयले की दलाली में हाथ काले करने वालों को कभी भी अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता ।
शिवराज का कहना है कि आँख पर पट्टी बाँधे बैठी केन्द्र सरकार पर आग्रह , धरना , उपवास , प्रदर्शनों का तो कोई असर हो नहीं रहा । प्रधानमंत्री को राज्य के हालात से रुबरु कराने का हर नुस्खा नाकाम हो जाने के बाद अब वे ’न्याय यात्रा’ के माध्यम से बात पहुँचाएँगे । कल भोपाल से शुरु हुई उनकी यह न्याय यात्रा मंडीदीप , औबेदुल्लागंज , बुधनी , होशंगाबाद होते हुए इटारसी और सारणी (बैतूल) पहुँची । उन्होंने सारणी से पाथाखेड़ा तक का सफ़र पैदल तय किया । इस पाँच किलोमीटर की ऎतिहासिक यात्रा को नाम दिया गया - कोयला सत्याग्रह ।
वैसे कोयले और बिजली के कोटे में कटौती के अलावा भी कई ऎसे मसले हैं , जिन पर केन्द्र और राज्य सरकार में ठनी है । मुख्यमंत्री की शिकायत है कि सूखा राहत , समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की खरीद के लिए अनुदान , सर्व शिक्षा अभियान के लिए धन राशि समेत कई मदों में प्रदेश को केन्द्र की ओर से दी जाने वाली आर्थिक मदद समय पर नहीं मिल रही है । केन्द्र से पैसा मिलने की आस में ब्याज पर उठाया गया कर्ज़ भी दिन ब दिन बढता ही जा रहा है । इससे प्रदेश का बजट ही गड़बड़ा गया है । जिससे केन्द्र- राज्य के बीच की खाई गहरी होती जा रही है ।
प्रदेश सरकार के मुताबिक सर्व शिक्षा अभियान में इस साल 980 करोड़ रुपए खर्च किए गये । इसमें से 650 करोड़ रुपए केन्द्र से मिलना थे , मगर अब तक केवल 300 करोड़ रुपए ही मिले । इसी तरह समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीदी के लिए अक्टूबर 2008 से इस वर्ष मार्च तक मिलने वाले अनुदान की राशि 741 करोड़ रुपए भी अब तक नहीं मिल पाए हैं । राज्य सरकार ने अनाज खरीदी के लिए रिज़र्व बैंक से 13 फ़ीसदी पर कर्ज़ लिया है , जिस पर कर्ज़ की अदायगी समय से नहीं होने के कारण एक प्रतिशत का दांडिक ब्याज भी लग रहा है ।
मुख्यमंत्री के ’ कोयला सत्याग्रह’ को लेकर भाजपा उत्साहित है , ऎसे में काँग्रेस भी कब पीछे रहने वाली है । काँग्रेस ने पलटवार करते हुए शिवराज को पाँच सवालों पर खुली बहस की चुनौती दे डाली है । यानी तू डाल - डाल मैं पात- पात का खेल लगातार जारी है ।
बेचारी जनता कभी उस ओर आस भरी निगाहों से ताकती है , तो कभी इधर टकटकी लगाए निहारती है । नेता भी बेचारे क्या करें चुनाव होने तक टाइम पास भी करना है और जनता को भरमाए भी रखना है । हम तो दर्शक हैं । कभी मज़ा लेते हैं । कभी ताली पीटते हैं । मन आये तो वाहवाही करने लगते हैं या फ़िर पाला बदल - बदल कर अपना अनुभव बढाते रहते हैं । पब्लिक जो ठहरे .......! सो नौटंकी , खेल - तमाशा ,बाज़ीगरी जो चाहे कहिए , सभी कुछ जारी है ।
( चुनाव पूर्व चेतावनी - चोर- लुटेरों की फ़ौज से किसी को भी चुनने की बजाय " वोट" बेकार करने का हुनर सीखिए और इन तत्वों से छुटकारा पाइए )
5 टिप्पणियां:
मध्य प्रदेश में तो कोयला खूब होता है. अपने ही बिजली घरों के लिए कोयला न मिले तो गर्मी कैसे कटेगी. आपका आलेख संतुलित और यथार्थ को बयां कर रहा है. आभार.
चुनावी नौटंकी है.
आपने 'सत्याग्रह के असत्य' को पकड भी लिया और उजागर भी कर दिया।
अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए राजनेता दूसरों का निकम्मापन उजागर करने का सत्याग्रह शुरु कर देते हैं।
पोस्ट के अन्त मे दी गई चेतावनी पर्याप्त नहीं है। कृपया इस पर अलग से पोस्ट दीजिए और पूरी प्रक्रिया समझाइए। आप सबका भला करेंगे। मैं भी अपने ब्लाग पर इस बारे में लिखूंगा।
सरिता जी,
जनता सब कुछ जानती है। कांग्रेसी पचास वर्षों से भ्रष्टाचार कर-करके पूरे प्रदेश को गर्त में डाल दिये थे। भाजपा ने इन्दर् सहित पूरे प्रदेश के शहरों का नक्शा ही बदल दिया। इस शहर में पन्द्रह वर्ष पहले तक कांग्रेसियों ने पैसे ले-लेकर सारे फुटपाथ अवैध दुकानों से भर दिये थे। पूरे शहर को स्लम बना दिया था। भाजपा ने धीरे-धीरे सब कुछ साफ कर दिया है। शिवराज और उनके सहयोगिगियों के पास प्रकृति के प्रकोप को कम करने की कारगर योजना भी है। उन्होने एक माह पहले से उस पर कदम उठाना आरम्भ भी कर दिया है।
उधर कांग्रेस वाले बिजली की चोरी के लिये लोगों को उकसाने पर लगे है, भाजपा वाले विकास के नये-नये रास्ते ढ़ूंढ़ रहे है।
केन्द्र और राज्य में यदि अलग अलग पार्टियों की सरकारें हों तो केन्द्र और राज्य के बीच तनातनी चलती रहती है. भले ही शिवराज सिंह चुनावी लटके झटकों का प्रयोग कर रहे हों, लेकिन जनता के बीच उनकी छवि ख़राब नहीं.
एक टिप्पणी भेजें