कैलेंडर की मानें , तो आज नर्मदा जयंती है । दरअसल हम लोगों की ज़िन्दगियां कैलेंडर के पन्नों पर दर्ज़ तारीखों में उलझकर रह गई हैं । हम किसी भी काम को मन से स्वीकर नहीं करते । दिखावे की संस्कृति इस कदर हावी है कि दूसरे को दिखाने की गरज़ से काम करने का निर्णय किया जाता है । इसीलिए पर्व- त्योहार भी महज़ दिखावा बन कर रह गये हैं ।
आज रेवा तटों पर मेले लगेंगे । बडी गहमा गहमी रहेगी । लोग पापनाशिनी सलिला में डुबकी लगाकर अपने तमाम पापों से पल भर में निजात पा लेने की जुगत लगायेंगे । मोक्ष की कामना में भजन - पूजन और नदी मे दीप प्रवाहित होंगे । नर्मदे हर , नर्मदे हर......का जयघोष कर अपनी आस्था को सार्वजनिक करेंगे । सतत प्रवाहमान नर्मदा के किनारे गोठ करेंगे ,पिकनिक मनाएंगे और लौट जाएंगे । लेकिन नदी को छोड जाएंगे प्रदूषित.....।
पुराने अखबार पलटते हुए एकाएक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से जुडी खबर पर निगाह पडी । बोर्ड की जांच रिपोर्ट कहती है कि नर्मदा अपने उद्गम के पास ही प्रदूषण की चपेट में आ गई है । प्रदूषण की गंभीरता का अंदाज़ा पानी में मौजूद जीव - जंतुओं की प्रजातियों से लगाया जा सकता है । इसके लिए बायो मानिटरिंग तकनीक की मदद ली गई है । जिससे नर्मदा के पानी में पाए जाने वाले अलग - अलग प्रजातियों के कीडों का पता लगाया जा रहा है ।
जांच दल ने हाल ही में अमरकंटक ,मंडला ,जबलपुर ,डिंडौरी से नर्मदा जल के नमूने इकट्ठा किए हैं । अमरकंटक के पास रामघाट से जुटाए सैंपल में ऎसी प्रजाति के कीडे मिले हैं ,जो प्रदूषित पानी में ही पनप सकते हैं । आशंका है कि अवशिष्ट पदार्थों और कारखानों की गंदगी नदी में छोडने के दुष्परिणाम जल्दी ही विकराल रुप में सामने आने लगेंगे ।
बहरहाल तसल्ली की बात सिर्फ़ इतनी है कि बाकी जगह के नमूनों में चट्टानों के टुकडों से विशेष किस्म का कीडा मिला है । ट्राइकोप्टेरा प्रजाति का यह जीव केवल शुद्ध पानी में ही रहता है ।जांच दल का दावा है कि यह कीडा चट्टानों के बीच जाले की महीन चादर बना देता है ,जिससे छन कर पानी बिल्कुल निर्मल हो जाता है ।
" राम तेरी गंगा मैली हो गई ,पापियों के पाप धोते - धोते" राजकपूर की फ़िल्म के मशहूर गीत को सच मानें या लोक मान्यताओं की बात करें , दोनों ही इस बात पर एक राय मालूम देते हैं कि पापियों का उद्धार करते - करते गंगा भी मैली हो ही जाती है । वही पापनाशिनी गंगा साल में एक बार आज के दिन मोक्षदायिनी रेवा में इन पापों को धोने आती है । आज के संदर्भ में यह बात एकदम ठीक लगती है । लेकिन क्या होगा जब नर्मदा प्रदूषण की चपेट में अपना अस्तित्व ही खो बैठेगी ...? पौराणिक आख्यानों की मान्यताओं के अनुरुप गंगा के पाप अपने जल में समाहित करने के लिए कहां तलाशा जाएगा नर्मदा को .....?
नदियों का पानी मैला करने का दोष केवल उद्योगों के सिर मढने से काम नहीं चलने वाला । विडंबना ही है कि नर्मदा को मां के रुप में पूजने वाले भक्तों ने भी कोई कसर नहीं छोड रखी । भक्त पूजा सामग्री , फ़ूल - पत्ती के साथ पालिथिन की पन्नियों को भी नदी को भेंट चढा देते हैं । डुबकी लगाने तक तो ठीक है लेकिन साबुन से नहाने और कपडे धोने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती । सवाल है कि जिस नदी की पवित्रता की हम बात - बात पर दुहाई देते नहीं थकते , उसे अशुद्धियों से भरने में हमारी आत्मा क्यों नहीं कचोटती ..?
हमें समझना होगा कि आबादी बढने के साथ ही नदी पर भी दबाव बढ गया है । रही सही कसर भक्ति के अतिरेक ने पूरी कर दी है । लोग आस्था के वशीभूत होकर नहीं , एक दूसरे की देखा देखी में नर्मदा स्नान की होड लगाने लगे हैं । आस्था होती है ,तो लगाव होता है , चिंता होती है सहेजने की ...। लेकिन जब भाव नहीं ,तो भावना कैसी ....?
पहले जनसंख्या कम होने से गंदगी भी थोडी होती थी और नदी अपने तरीके से उपचार भी कर लेती थी । लेकिन बेतहाशा बढ रही गंदगी के आगे नदियों ने भी हथियार डाल दिये हैं । हमें नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति का हर रुप सजीव है । नदी भी सजीव होती है । उसके साथ जैसा बर्ताव हम करेंगे , बदले में वैसा ही पायेंगे ।
कभी पूरी आस्था से एकाग्रचित्त होकर प्रार्थना करके देखें , पाएंगे कि खुले हाथ से वर देने वाली नर्मदा हमसे कुछ मांग रही है , हमारे ही भले के लिए । कल्पना करें , बात अनसुनी करने पर कल यदि मां नर्मदा भी हमसे अबोला ठान बैठी , तो क्या होगा.......? नर्मदा का प्रवाह थमने पर गंगा तो आने से रही यहां । ऎसे में कैसे मनेगी नर्मदा जयंती ....????? सोचिएगा ज़रुर..........।
8 टिप्पणियां:
bahut samayaik lekh
मनुष्यों के पाप धोने से न तो गंगा मैली हुई है और न नर्मदा ही. ये दोनों उद्योगों का पाप धोते-धोते मैली हुई हैं. अगर औद्योगिक कचरे का निस्तारण नदियों में शोधन पूर्व करने पर पूरी तरह प्रभावी पाबन्दी लगा दी जाए तो काफ़ी हद तक यह समस्या हल हो सकती है.
विचारणीय आलेख के लिए बधाई।
सामयिक लेख के लिए आभार. अमरकंटक कि हालत ठीक नहीं है. नर्मदा का प्रदूषित होना तो वहीं से प्रारम्भ हो जाता है.
बहुत सामयिक आलेख है.....अच्छे ढंग से भी लिखा गया है ।
मैं भी नर्मदा किनारे जबलपुर का निवासी होने के नाते आपकी प्रदूषण की पीड़ा का एहसास कर सकता हूँ सरिता जी ,हमारा लचर प्रशासन कभी कुछ नहीं कर पायेगा. नेताओं के पास मात्र एक ही संवेदन शील मुद्दा होता है और वो ये है की ५ साल तक हम सुरक्षित रहें. बाकी राम भरोसे तो चल ही रहा है
- विजय
आज नर्मदा मैया को लेकर छत्तीसगढ मे राजनिती शुर हो गई है। अमरकंटक को छत्तीसगढ मे शामिल करने की मांग भी उठने लगी है।
आपकी बात भी सही, आपकी पीडा भी सही और आपके निष्कर्ष भी सही।
प्रकृति ने मनुष्य को वह सब दिया है जिससे मनुष्य की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। किन्तु लालच और स्वार्थ में अन्धे मनुष्य ने प्रकृति के साथ जो आत्मघाती छेडछाड की है, उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। प्रकृति तो आज भी जस की तस है, बदला है केवल मनुष्य।
सरकारों के भरोसे रहना एक और आत्मघाती मूर्खता होगी। जो भी करना है, वह नदियों पर आश्रितों को या नदियों के प्रेमियों को ही करना होगा। सरकारों को कुछ करना होता या वे कुछ कर सकती होती तो आपको यह वेदनामयी पोस्ट नहीं लिखनी पडती।
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