मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

............प्यार के लिए मगर पैसा चाहिए !

दुनिया में आज तक सच्ची प्रेम कहानियों का दारुण अंत देखा गया है । लेकिन हाल ही में नये दौर के हीर -रांझा , शीरीं - फ़रहाद , लैला - मजनूं के तौर पर प्रचारित मोहब्बत की दास्तां के नए पहलू से रुबरु हुए । चांद के बादलों की ओट में जाते ही फ़िज़ा का रुख बदल गया । साथ जीने [ मरने नहीं...] की कसमें खाने वाली बला की खूबसूरत हसीना ने चार दिन भी प्रेमी के लौटने का इंतज़ार मुनासिब नहीं समझा और धर लिया चोट खाई नागिन सा रौद्र रुप ....।

फ़िज़ा के रवैये में एकाएक आये इस बदलाव को क्या समझा जाए ....? क्या प्रेम इतना छिछला होता है ...? या किसी खास मकसद के लिए इस शादी को अंजाम दिया गया था ? आखिर वो क्या
वजह रही होगी ,जिसके चलते शादी से लेकर खुदकुशी तक के घटनाक्रम का मीडिया गवाह बनाया गया ? कहीं ऎसा तो नहीं कि एक बार फ़िर टीआरपी का लालची "इलेक्ट्रानिक मीडिया" बेहद शातिराना तरीके से इस्तेमाल कर लिया गया । ऎसा मालूम होता है , मानो टाफ़ी -गोली का ईनाम पाने की चाहत में कोई अबोध बच्चा प्रेमी - प्रेमिका के बीच कासिद का किरदार निभा रहा हो ।

किसी ने गहराई से सोचा कि मुट्ठी भर नींद की गोलियां चबाने वाली महिला चौबीस घंटे भी नहीं गुज़रे और इतनी स्वस्थ कैसे हो गई ? दरअसल इस प्रेम कहानी में भरपूर मसाला है । मज़े की बात है कि इसमें भावनाएं कहां खत्म होती हैं ,राजनीति के पेंच कब उलझते हैं और पैसे की चमक कितना रंग दिखाती है, सब कुछ गड्ड्मड्ड है । सच पूछा जाए तो ये मेलोड्रामा पूरी तरह सोच समझ कर अंजाम तक पहुंचाया गया सा लगता है । मेरी इस आशंका की पुष्टि जाने माने पत्रकार आलोक तोमर की 30 जनवरी की पोस्ट करती है । इस आलेख के कुछ अंश यहां दिये गये हैं , जो बताते हैं कि " यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए ,प्यार चाहिए या पैसा चाहिए ।" की तर्ज़ पर फ़िज़ा को वास्तव में चांद से क्या चाहिए था........

चंडीगढ़/मोहाली, 30 जनवरी- अनुराधा बाली उर्फ फिजा वास्तव में क्या विष कन्या हैं? चंद्र मोहन को चांद मोहम्मद बना कर उनसे शादी करने वाली अनुराधा के बहुत सारे प्रेमी और दोस्त सामने आए हैं जिन्होंने औपचारिक रूप से तो कुछ नहीं कहा लेकिन यह शिकायत जरूर की है कि अनुराधा ने उनके रिश्तों का फायदा उठा कर काफी आर्थिक लाभ उठाया और जब लाभ मिलना बंद हो गया तो उन्हें छोड़ दिया।
जो लोग अनुराधा बाली को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते थे वे जाहिर है कि काफी बड़े आदमी रहे होंगे। इनमें हरियाणा के एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री का भाई, एक मुख्य सचिव का बेटा और कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी बताए जाते हैं। बहुत खूबसूरत अनुराधा बाली के पति ने भी तलाक की अर्जी देते वक्त अनुराधा पर यही आरोप लगाया था कि वे चारित्रिक रूप से गड़बड़ है।

अनुराधा बाली उर्फ़ फ़िज़ा किसी भी लिहाज़ से हमदर्दी के काबिल नहीं हैं । किसी महिला का घर संसार उजाड कर अपने सपनों का महल खडा करना क्या महिला अधिकारों के नाम पर जायज़ ठहराया जा सकता है । चंद्रमोहन जैसे कमज़ोर मानसिकता वाले लोग भारतीय राजनीति के लिए चिंता के सबब हैं । उप मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठा व्यक्ति चारित्रिक पतन की गिरफ़्त में आकर कल ना जाने क्या गुल खिला बैठे । ऎसे नेता देश के लिए खतरनाक हैं ।

इन लोगों का अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए मुस्लिम धर्म कबूल करना भी बेहद गंभीर मसला है । नीयत के खोट को धार्मिक आस्था से जोडकर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के गुनहगार हैं ये दोनों । इस्लाम के मानने वालों को भी इस घटना की जमकर मज़म्मत करना चाहिए ,ताकि आगे कोई मज़हब का मखौल ना बना सके ।

इस मसले पर एक टिप्पणी काबिले गौर है -
शादी-शुदा मर्द से ही नहीं औरत की गत हमेशा ही प्यार में बुरी होती है। रही बात फिजां की तो जब वे अपने चांद को ले कर दिल्ली पहुंची तो प्रेस क्लब में मैं भी मौजूद थी। मैंने सिर्फ एक सवाल पूछा, क्या आप हमारे लिए सुरह यासीन पढ़ देंगे। सुरह यासीन कुरान की पहली आयत है जो किसी नास्तिक हिंदू को गायत्री मंत्र याद रह जाने की तरह आसान है। सवाल चंद्रमोहन से पूछा गया था, लेकिन इस सामान्य सवाल पर वह ऐसे असामान्य तरीके से भड़की कि अगले दिन हर अखबार की सुर्खियों में यह खबर थी। उनका चलने का तरीका और बात करने का अंदाज ही बता रहा था कि उनके चेहरे पर उप मुख्यमंत्री पर फतह हासिल करने की चमक थी। अब यह चमक फीकी पड़ गई क्योंकि उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो सके। नींद की दवाई खाने और फिर प्रेस कॉन्फेंस में एसएमएस पढ़ कर सुनाना ही बताता है कि वह अपने प्यार के मामले में कितनी गंभीर हैं। जिस व्यक्ति को प्यार किया जाता है, उसे सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत को नहीं किया जाता। अनुराधा बाली ने अपने प्रेम को सार्वजनिक कर, चंद लम्हों की लोकप्रियता के लिए राष्ट्रीय मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं किया है।

वैसे चांद अपनी दुनिया में लौट भी गया ,तो इससे क्या ...? फ़िज़ा के पास खुश होने के लिए अब भी बहुत कुछ है । प्रेम की यादें तो अब भी उनके पास हैं । कहते हैं मरा हाथी भी सवा लाख का होता है । दिल टूटा तो क्या हुआ पर 24 करोड की ज़बरदस्त लॉटरी भी तो लग गई । कनाडा की कंपनी इंडिया पैसिफ़िक मीडिया एंड मूवीज़ ने उन्हें फ़िल्म बनाने के अधिकार बेचने के एवज़ में करीब 24 करोड रुपए देने की पेशकश की है । कंपनी के प्रवक्ता ने खुलासा किया है कि बेवफ़ाई की मारी फ़िज़ा को फ़िल्म में हिरोइन का किरदार भी ऑफ़र किया गया है । मस्त रहिए , खुश रहिए , दिल का क्या है ..? शीशा हो या दिल हो , आखिर टूट जाता है ........।

9 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

अथॅ बदल गए प्यार के। जैसे ये देश बदला। इस बदलाव के कारणभूत कौन....
चांद -फिजा नहीं वरन हमारा समाज।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

यथार्थपरक और वर्तमान समाज की नब्ज़ को ध्यान में रख कर लिखा गया आलेख प्रेरणास्पद है, सरिता जी
- विजय

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा विश्‍लेषण किया आपने पूरे घटनाक्रम को लेकर....सचमुच दाल में कुछ काला है।

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपने तो फिजा को 'धमेड' कर रख दिया। जो थोडी बहुत सहानुभूति मिल सकने की 'आशंका' थी, वह भी आपने नष्‍ट कर दी।

आपने जोरदार वाक्‍य लिखा-'उप मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठा व्यक्ति चारित्रिक पतन की गिरफ़्त में आकर कल ना जाने क्या गुल खिला बैठे । ऎसे नेता देश के लिए खतरनाक हैं ।' चारित्रिक पतन की गिरफ्त में आना तो आजकल योग्‍यता बन गया है राजनीति में आने और पद पाने क लिए।

दिलीप कवठेकर ने कहा…

Fiza ke fool pe aatee kabhee bahaar nahee. Khiza ko dooshit kar diyaa .

hem pandey ने कहा…

इस प्रकरण में प्रेम का एक घिनोना रूप झलकता है.

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

सरिता जी,

अपने उन्हीं तीखे तेवरों से भरा आलेख जिनके लिये आप जानी जाती हैं / बखिया उधेड़ देती हैं. तथ्यों के आधार सच को सामने लाती बयानी.

बधाईयाँ.
आपकी दुआओं से अब स्वस्थ हो अपने काम पर लौट आया हूँ.

मुकेश कुमार तिवारी

Harshvardhan ने कहा…

achchi post lagi aapke vichar sateek hai