बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

प्रेम के गुलाब और गुलाबी चड्डी का विवाद

लीजिये साहब , देश में सबसे गंभीर मुद्दे पर जमकर बहस शुरु हो चुकी है । लोग आमने -सामने हैं । भारत - पाक मसले पर चुप्पी लगाने वाले भी अब खुलकर सामने आ गये हैं । देश इस वक्त सबसे ज़रुरी मसले पर बहस - मुबाहिसे में मसरुफ़ है । मैंने तो अब तक चूहे और हाथी की चड्डी का किस्सा ही सुना था । एक ज़माना वो भी था जब सरेआम चड्डियां तार पर सुखाने पर भी पाबंदी थी । लेकिन अब दौर आज़ादी का हैं । लोग खाकी चड्डी से गुलाबी चड्डी तक पर विचार - विमर्श करने से नहीं चूक रहे ।

" जंगल - जंगल पता चला है चड्डी पहन कर फ़ूल खिला है ।” इस गीत ने चड्डी को एक नई पहचान दी । जिस शब्द को उच्चारते लोगों की ज़ुबान लटपटा जाती थी , उससे बचने के लिए ही पट्टेदार चड्डी को अंडरवियर पुकार कर हम गर्व महसूस करना सीखे । ये चड्डी शब्द के प्रति हमारी हिकारत ही थी , जो "खाकी चड्डी" अपशब्द की तरह इस्तेमाल होने लगा । आज वही चड्डी फ़िर से नए विचार के साथ हमारे बीच है । कहने वाले कह सकते हैं "गुलाबी चड्डी विरोध अभियान नहीं एक विचार है ।"

वास्तव में ये भारत बनाम इंडिया का मसला है । वहां चड्डियां छिपाई जाती हैं यहां चड्डियां दिखाई जाती हैं। गनीमत समझो श्रीराम सेना वालों , जो इन आंदोलनकारियों की बुद्धि भगवान ने फ़ेर दी और आप सबकी इज़्ज़त धूल में मिलने से बच गई । हो सकता था ये लोग गुलाबी चड्डियां गिफ़्ट करने की बजाय खुद धारण कर विरोध जुलूस निकालने पर आमादा हो जाती और विभिन्न सेनाओं के बांकुरों के सामने आ धमकतीं ....। तब क्या होता ....??????

भई वेलेंटाइन डे मनाने दो, इन बेचारियों को ....। आखिर बुराई ही क्या है.......? देश में दो तरह के नागरिक हैं । हिन्दुस्तानी और इंडियन ,अब इंडियन कुछ करना चाहते हैं , तो हिंदुस्तानियों को क्या परेशानी । वो चड्डी गिफ़्ट करें, हवा में उछालें , जला डालें , पहनें या .......। आपकी बला से ।

पूरा देश गुलाबी चड्डियों में उलझ कर रह गया है । जो गिफ़्ट के बक्से सजा रहे हैं ,वो तमतमा रहे हैं । खबरिया चैनल आने वाले कई दिनों का रसद पानी पाकर गुलाबी हुए जा रहे हैं । हम जैसे बुद्धू "चड्डी पुराण" सुन - सुन कर ही मारे शर्म के लाल नहीं "गुलाबी" हुए जा रहे हैं । भई क्या करें , लाल होने की इजाज़त इस वक्त किसी को नहीं है । इस वक्त देश का एकमात्र रंग - गुलाबी.....। इसलिए दुनिया की हर शह गुलाबी ..... , गाल गुलाबी , नैन गुलाबी .......।

हाल ही में पब कल्चर पर एक आलेख हाथ लगा । उसकी मानें तो पब और झुग्गी - बस्ती की कलारी में ज़्यादा फ़र्क नहीं है । कलारी पर दिन भर मेहनत मशक्कत के बाद थक कर चूर हुए मज़दूर देशी ठर्रा हलक से नीचे उतार कर सारी दुनिया को भूल जाना चाहते हैं । सस्ती शराब बेचने वाली कलारियों को मालिक वर्ग जान बूझकर प्रोत्साहित करता रहा है , ताकि कारखानों और निर्माण कार्यों में हाडतोड परिश्रम के बाद मज़दूर अपनी ज़िंदगी को नशे में गर्क कर सके । काम के दौरान उपजे मनोविकारों और अपनी ज़िन्दगी के अभावों को भुला सके । होश में आने के बाद एक बार फ़िर जोश के साथ काम में जुट जाए । पब में जाने वाले भी बौद्धिक कामगार होते हैं ।

औद्योगिक विकास का "पब कल्चर और शराब खानों" से सीधा संबंध है और इसका सीधा असर उत्पादकता पर पडता है । नई अर्थव्यवस्था के हिमायती पब कल्चर को बदलते भारत की तस्वीर के तौर पर देखते हैं । उनकी निगाह में सार्वजनिक रुप से महिलाओं का शराब पीना या स्त्री - पुरुषों का देर रात तक साथ साथ मौज - मस्ती करना समाज में आ रहे खुलेपन की निशानी है ।

वे नैतिक मूल्यों और पुरानी मर्यादा को गैरज़रुरी बताते हुए दलील देते हैं कि अगर काल सेंटर [बीपीओ]सेक्टर के उछाल को कायम रखना है , अगर श्रम शक्ति में महिलाओं को बराबर का भागीदार बनाना है , यदि उत्पादकता बढाने के लिए दफ़्तरों और शोरुम्स में महिलाओं का रात में काम करना ज़रुरी है , तो समाज को महिलाओं के लिए ’नाइट लाइफ़’ की गुंजाइश निकालना ही होगी । जो लोग पूरे हफ़्ते जम कर काम करेंगे , उनके लिए अगर वीक एंड पर विशेष आमोद - प्रमोद का इंतज़ाम नहीं होगा तो वे उसी गति और ऊर्जा के साथ काम नहीं कर पाएंगे ।
अपने को संभालो मित्र !
अभी ये कराहें और तीखी
ये धुआं और कडुवा
ये गडगडाहट और तेज़ होंगी ,
मगर इनसे भयभीत होने की ज़रुरत नहीं,
दिन निकलने से पहले ऎसा ही हुआ करता है ।

चलते - चलते एक और जानकारी -

वैसे ये खबर काबिले गौर है संत वेलेंटाइन के शहादत दिवस को प्रेम दिवस के रुप में मनाने वालों के लिए । पिछले साल सऊदी अरब की धार्मिक पुलिस ने प्रेमियों के त्यौहार वैलेंटाइन्स डे से पहले देश में लाल गुलाबों समेत सभी अन्य तरह के वैलेंटाइन्स उपहारों की ख़रीद और बिक्री पर रोक लगा दी थी । स्थानीय अख़बार ने दुकानदारों के हवाले से लिखा कि अधिकारियों ने उन्हें प्रेम के प्रतीक लाल गुलाब और उपहारों को लपेटने के कागज़ समेत लाल रंग के सभी सामान को हटाने को कहा । सऊदी अधिकारी के मुताबिक दूसरे सालाना जलसों की ही तरह वैलेंटाइन्स डे भी इस्लाम विरोधी है । अधिकारियों का यह भी मानना है कि वैलेंटाइन्स डे पुरुष और महिलाओं के विवाहेतर संबंधों को बढ़ावा देता है जो इस संकीर्ण समाज में माफ़ी के काबिल नहीं है ।

11 टिप्‍पणियां:

अक्षत विचार ने कहा…

बहुत सधा हुआ लेख लिखा है आपने। क्यों न इसी तरह अपने विचारों से लोगों को बदलने की कोशिश करें बजाय जोर–जबरदस्ती और प्रचार पाने के लिये गलत माध्यमों का इस्तेमाल करने के। और फिर जो बदलाव आयेगा वह इफैक्टिव होगा। साधुवाद

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

छिछोरापन तो निन्दनीय है ही। लेकिन यह भी सही है कि सच्चे प्रेम के लिए जितनी बाधाएं दुनिया में अभी भी हैं। वैलेन्टाइन डे मनाने की वजह भी बनी रहेगी।

Dr. Praveen Kumar Sharma ने कहा…

badhiya lekh.

बेनामी ने कहा…

कमाल की लिखती हैं आप भी. कहीं कोई विसंगति नहीं. "समझने वाले समझ गए हैं जो न समझे वो अनाडी है" इस बोल के साथ साधुवाद.

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत काबिले तारीफ़ लेख लिखा है ...बेबाकी के साथ

बेनामी ने कहा…

बेहद सधा हुआ, संतुलित, बेबाक लेख।
अपनी उड़ान जारी रखिए, आसमाँ और भी हैं

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन विचारणीय आलेख.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बसंत पंचमी मनाइये - वेलेन्टाइन डे क्यों? वैसे भी हमारे पास हर रोज़ एक त्योहार का प्रोविज़न है ना, तो और इम्पोर्ट क्यों करें:)

Unknown ने कहा…

बहुत उम्दा लेख, वैसे एक बात बताना उचित होगा कि गुलाबी चड्डी के विरोध की असली वजह भी यही है कि "इंडिया" अभी भी "भारत" की खिल्ली उड़ाने पर उतारू है, इंडिया को भारत के मुद्दों, समस्याओं की पहचान भी नहीं है, बल्कि भारत की कई समस्याओं को पैदा करने के लिये इंडिया ही जिम्मेदार है… और रही-सही कसर गुलाबी चड्डी को "खाकी चड्डी" से जोड़ने पर पूरी हो गई…

डॉ .अनुराग ने कहा…

नही चाहता की सिर्फ़ सरसरी-निष्पक्ष टिपण्णी करके आपके लेख से गुजर जायूं

विरोध के तरीके से असहमति हो सकती है ....विरोध से नही...वैसे भी मुतालिक का यहाँ उद्देश्य सिर्फ़ सिर्फ़ राजनैतिक फूटेज हासिल करना है .इस इश्तेहारी समय में होली -दीवाली रक्षा बंधन सब गिफ्ट के बक्से में सज गए है ...मंदिरों में करोडो के चडावे से नैतिक मूल्य कायम नही होगे .जब तक स्त्री को शैक्षिक ओर आर्थिक तौर पे आत्मनिर्भर नही बनाया जायेगा ...ओर निर्णयों में उनकी भागीदारी नही होगी ... हम यूँ ही संस्क्रति को मन मर्जी परिभाषित करते रहेगे

निर्मला कपिला ने कहा…

saritaji ham to pehle hi aapke kayal hain is lekh me to aapne kamaal kar dya bahut badiyaa bdhai