महाराष्ट्र सरकार के लचर रवैए ने पूरी मुंबई और कई बडे शहरों को आग में झोंक दिया । एक खत्म हो चुके नेता को इतना बडा हो जाने दिया कि अब हालात बेकाबू हो चले हैं । महाराष्ट्र में राज समर्थक और बिहार में राज विरोधियों का उत्पात लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है । कहते हैं समझदार बागबान वही होता है जो बगीचे की खूबसूरती में खलल डालने वाले जंगली पौधों को शुरुआत में ही जड से उखाड फ़ेंके । लेकिन राज के मामले में तो बीज को खाद - पानी देकर दरख्त बनने का मौका दिया गया । पेड के तने को काटने की ज़हमत अब उठाई है ,जब उस पर फ़लों की आमद हो चुकी है ।
इस बीच बिहार के कई शहरों में राज के खिलाफ़ नफ़रत की आग ज़ोर पकडने लगी है । लेकिन बुनियादी सवाल अब भी वहीं का वहीं है । आखिर क्यों बिहार से दूसरे राज्यों को जाने वाली ट्रेनें खचाखच भरी रहती हैं ? गंगा किनारे की उपजाऊ ज़मीन जो पूरे देश का पेट भर सकती है , वहां लोगों को भूखे पेट सोना पडता है । बहुमूल्य खनिज संपदा से जिस इलाके को कुदरत ने नवाज़ा हो , वहां का आम आदमी अपनी पहचान और दो जून की रोटी की तलाश में भटकता है ।
नेपाल की सडकें हों या मुम्बई या फ़िर चैन्नई हर जगह मायूसी और बेचारगी से भरे कुछ चेहरे आपको दिख जाएंगे । उबले चनों की चाट या सब्ज़ी का ठेला चलाते ये लोग किसी बडॆ हसीन खवाब की तलाश में घर से दूर नहीं आते । वो क्या कारण हैं कि ये लोग इतने छोटे - छोटे कामों की तलाश में हज़ारों किलोमीटर का सफ़र तय करने को मजबूर हैं ।
मौर्य और नंद वंश के वैभवशाली इतिहास के गवाह बने इस इलाके के मौजूदा हालात के लिए यहां के नेता सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं । धाकड नेताओं की लंबी फ़ेहरिस्त देने वाला बिहार इन्हीं नेताओं की बेरुखी की सज़ा भुगत रहा है । नैसर्गिक संपदा के अथाह भंडार का प्रदेश की जनता के हित में यदि सदुपयोग नहीं हो सका ,तो इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है ?
लालू यादव जब तक प्रदेश में राज करते रहे उन्हें कभी बिहारियों की सुध नहीं आई । रेल मंत्री बनते ही बिहार के बेरोज़गार युवाओं के उद्धार के इस जनसेवी कदम की हकीकत कुछ और ही है । छन - छनकर आने वाली खबरें बताती हैं कि रेलवे में अपना भविष्य तलाशने वाले युवाओं को खेत , ज़मीन और मकान के रुप में कीमत चुकाना पडी है । बिहार में नेताओं और अफ़सरों के गठजोड ने आम आदमी को पलायन के लिए मजबूर किया है । बिहार ने देश को कई प्रतिभावान पत्रकार दिए हैं लेकिन बेहद अफ़सोसनाक पहलू ये भी है कि यहां के हालात में रद्दो बदल पर ईमानदारी से अब तक किसी ने कलम नहीं चलाई ।
और अब कुछ तथ्य आंकडों की ज़ुबानी -
१ . २००१ की जनगणना के मुताबिक़ दिल्ली की आबादी १ करोड़ ३७ लाख के क़रीब , इसमें २७ लाख से अधिक बिहारी ।
२ २००१ में बिहार की आबादी ८ करोड़ २८ लाख ७८ हजार ।
३. मोटे तौर बिहार के साढ़े तीन फीसदी लोग अकेले दिल्ली में आ बसे ।
४. अनुमान के मुताबिक हर साल बिहार से दो से तीन लाख लोग बिहार से बाहर जाते हैं
५। फ़िलहाल कम से कम एक करोड़ बिहारी बिहार से बाहर हैं ।
जिस बात का खतरा , सोचो कि वो कल होगी
ज़रखेज़ ज़मीनों में बीमार फ़सल होगी
स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो
गर खून से बनाओ , तो तस्वीर असल होगी ।
6 टिप्पणियां:
बहुत सही आंकडे रख कर सही बात लिखी है आपने. वाकई अब अति हो गई है.
आज अभी दिल्ली से बिहार जाने वाली ८ ट्रेन्स रद्द कर दी गई हैं क्यूंकि बिहार में छात्रों ने विरोध प्रारम्भ किया है. जरा सोचिये दिवाली के समय जिन्होंने मुश्किल से घर जाने के रिजर्वेशन्स करवाए हुए थे आज सभी को वापिस आना पड़ा. कुछ लोगों की लगाई हुई आग कहाँ कहाँ के तिनके जलाती है ये केवल समय ही बताता है...
sareetha jee,
aapne hamesha ki tarah bilkul sachchi baat kahee hai kamaal hai ki ab bhee bahut se aise log hain jo is poore prakran ko sahee maante hain.
bahut hi sateek abhivyakti . bahut badhiya samayik post.
आज आपने सही आकलन करने की कोशिशि की है। बिहार की दुर्दशा के लिये कोई जिम्मेदार है तो वह है आजादी से लेकर अबतक के बिहार के राजनीतिज्ञ। कोई एक नहीं। सभी जिम्मदार है। लालू तो 1990 में सत्ता में आये उससे पहले ही बिहार का बुरा हाल हो चुका था।
आपने सही लिखा है बिहार की दुर्दशा के लिए वहां के सभी नेता जिम्मेदार है |आज लालू जी मेनेजमेंट के लेक्चर देते घुम रहे है रेलवे की तरक्की की वाहवाही लुटते नही थक रहे लेकिन बिहार ने इन्होने सबसे ज्यादा राज किया तब इनका मेनेजमेंट नोलेज कहाँ गया था |
बिहार को कुदरत ने प्राकृतिक संपदा के मामले में सबसे अमीर बनाया और वहां के नेताओं ने इसे सर्वाधिक गरीब एवं दयनीय राज्य। रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतिश कुमार, सुशील कुमार मोदी सहित कौनसा दिवंगत नेता और मौजूदा नेता वहां गरीब है। इनसे हिसाब पूछना चाहिए कि यह पैसा उनके पास आया कहां से..कौनसा बिजनैस या नौकरी करते हैं। वहां की जनता जो आज ट्रेनों पर गुस्सा उतार रही है उसे इन नेताओं पर गुस्सा उतारना चाहिए और इन्हें दौड़ा दौड़ाकर मारना चाहिए। अब जनता को ही इन अमीर और गुंडे नेताओं को खुद ठीक करना होगा। पहले भाषण देने या कोई उदघाटन के लिए प्यार से बुलाओ और फिर ठोक दो इन नेताओं को। भीड़ का सामूहिक हमला....फलां नेता नहीं रहे...।
एक टिप्पणी भेजें