पिछले कुछ महीनों से शेयर बाज़ार की रोलर कोस्टर राइड ने सब के होश उडा दिए हैं । खबरिया चैनलों को वक्त गुज़ारने का अच्छा बहाना मिल गया है । हर नए दिन के साथ बाज़ार गिरावट के नए रिकार्ड बनाता है और अगले ही दिन ये , धूल चाटता नज़र आता है । लेकिन निवेशकों की तबाही का मंज़र खबरची चैनलों के लिए किसी लाटरी से कम नहीं होता । १० अक्टूबर का दिन एक मर्तबा फ़िर ब्लैक फ़्राइडे के तौर पर दर्ज हो गया । गिरावट और घबराहट के सैलाब में आंकडों के सभी बांध ढह गये वहीं एक एंकर लुट पिट चुके लोगों से सवाल कर रहा था कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं ....? दुनिया भर के शेयर दलालों का दुलारा बुल एक झटके में सबसे बडा विलेन बन गया है । बाज़ार को उछाल मारता देखकर बुल को पूजने वालों में मुम्बई स्टाक एक्सचेंज के बाहर खडे सांड को जी भर कर कोसने वालों की भी अब कमी नहीं । ।
शेयर बाज़ार पर अर्थशास्त्रियों की राय शुमारी तो न जाने कब से खत्म हो चुकी है । लेकिन अब तो लगता है मार्केट एक्सपर्टस के दिन भी लद गए । लोगों को अंधविश्वास की गर्त में धकेलने वाले खबरिया चैनल ज्योतिषियों ओर वास्तुशास्त्रियों से मश्विरा करते नज़र आते हैं कि आने वाले दिनों में बाज़ार का रुख क्या रहेगा ? क्या यह आतंकवाद का एक नया चेहरा है ...? क्या आपको ऎसा नहीं लगता कि अनियंत्रित रफ़्तार से भाग रहे बाज़ार के ज़रिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर अमीर बन जाने का ख्वाब दिखाकर करोडों लोगों को जीतेजी मारने की साज़िश रची जा रही है । बम विस्फ़ोट में तो कुछ ही लोग मारे जाते हैं लेकिन आतंकवाद क यह हथियार दोहरी मार कर सकता है देश पर। सेंसेक्स को अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर समझने वाले ये नेता क्या इस खतरे से अंजान है ......?
हाल के दिनों में देश में ऎसे कई मामले सामने आए हैं ,जहां स्टाक मार्केट में हाथ जला चुके लोगों ने परिवार के साथ खुदकुशी का रास्ता अखतियार कर लिया । कल ही एक चैनल पर इसी मुद्दे पर मनोचिकित्सक की राय ली जा रही थी । इसी प्रोग्राम के दौरान ये बात भी निकल कर आई कि बाज़ार की गिरावट ने कई जानें ही नहीं लीं ,बल्कि हज़ारों परिवारों को जीतेजी मार डाला है । गाढी कमाई पल भर में गवां बैठे कई लोग आने वाले कल की चिंता में सीज़ोफ़्रेनीया, डिप्रेशन आदि मनोरोगों के शिकार बन रहे हैं ।
अमेरिका की हिचकोले खाती इकानामी दुनिया भर के बाज़ारों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है । कल तक सेंसेक्स को परवाज़ के पंख लगाकर आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने वाले अब सब कुछ बेच कर बाज़ार से बाहर आने की सलाह देते नज़र आते हैं । लेकिन एक सवाल जो मेरे ज़ेहन में बार बार आता है कि कंपनियों का बाज़ार मूल्य आखिर किस आधार पर तय किया गया ..? साधारण परिस्थिति में इस तरह की बातें ठगी की श्रेणी में मानी जाती हैं । सेबी और छोटे निवेशकों के हितों के लिए काम करने वाली संस्थाएं इस मुद्दे पर खामोश क्यों रह्ती हैं ? किसी भी कंपनी के मूल्यांकन का आधार आखिर क्या है ? निवेशकों की मेहनत की कमाई क्या इसी तरह कुछ शातिर दिमाग लोग सरे आम लूटते रहेंगे । आफ़र डाक्यूमेंट में आसानी से ना पडे जा सकने वाले बेहद बारीक शब्दों में कुछ जरुरी बातों को छाप कर कानून के शिकंजे से बच निकलने वाले इन धनपतियों पर आखिर किस तरह लगाम कसी जा सकेगी ।
कब नज़र में आएगी , बेदाग सब्ज़े बहार
खून के धब्बे धुलेंगे ,कितनी बरसातों के बाद ।
3 टिप्पणियां:
पूंजीवाद की माला जपने वाले और कम्युनिज्म को कोसने वाले इन हालात का विश्लेषण किस प्रकार करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल तो पूंजीवाद तो हार ही रहा है।
वाह,काफी अच्छा लिखा। सरल शब्दों में आम आदमी की प्रस्तुति। आतंकवाद के जिस नए चेहरे की बात कही जा रही है, वह सही नहीं है। तेजी और मंदी एक सिक्के के दो पहलू हैं। तेजी के बाद मंदी और मंदी के बाद तेजी तय है। यह हो नहीं सकता कि तेजी ही हमेशा कायम रहे। जो लोग इसे आतंकवाद का नया चेहरा बता रहे हैं, वे अज्ञानी है और यह बकवास बंद कर दें तो ही अच्छा है। दूसरा यह पूंजीवाद की हार भी नहीं है। तेजी के बाद मंदी आ जाए तो पूंजीवाद की हार और कम्युनिजम की जीत, क्या थोथी बातें की जा रही हैं। यदि ऐसा है तो अब फिर से रुस, सोवियत संघ बन जाएगा और समूची दुनिया में कम्युनिजम लहराएगा। वैसे में एक बात की पक्की गारंटी दे सकता हूं कि भारत में अगले 50 साल तक वामपंथी अपने दम पर दिल्ली में सत्ता में नहीं आ सकते। कोई भी वामपंथी प्रधानमंत्री इतने साल तो लाल किले की प्राचीर से तिरंगा नहीं फहरा सकता।
sareethaji,
आपने बहुत अच्छा िलखा है । अापकी प्रितिक्र्या को मैने अपने ब्लाग पर िलखे नए लेख में शािमल िकया है । आप चाहें तो उसे पढकर अपनी प्रितिक्रया देकर बहस को आगे बढा सकते हैं ।
http://www.ashokvichar.blogspot.comं
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