शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

चुनावी मौसम में तांत्रिकों की पौ बारह

चुनावी साल में तांत्रिकों की पूछ - परख एकाएक बढ गई है । नवरात्रि में इस मर्तबा मध्य प्रदेश के कई नामी गिरामी तांत्रिकों से लेकर छोटे -मोटे गुनिया -ओझा तक सभी ने खूब चांदी काटी । प्रदेश में नवम्बर -दिसम्बर के दौरान होने वाले चुनावों के मद्देनज़र मतदाताओं को रिझाने से पहले नेता तांत्रिक क्रियाओं के ज़रिए चाक चौबंद हो जाना चाहते हैं । कोई शव साधना कर विरोधी को पटखनी देने की जुगत लगा रहा है ,तो कुछ नेता मां बगुलामुखी की आराधना में लीन होकर अपनी कुर्सी बचाना चाहते हैं ।

मतदाताओं के दिमाग फ़ेरने का ठेका तंत्र साधकों को सौंपकर नेता निश्चिंत हो गये हैं । लगता है सारा देश चंद ओझा मिलकर चला लेंगे । केन्द्र की सरकार बचाने से लेकर सरकार बनाने और सत्ता सुख हासिल करने के लिए तंत्र का इस्तेमाल इतने बडे पैमाने पर करने के बारे में पहले कभी पढा - सुना नहीं गया । उमा भारती जैसी धुरंधर नेता को कुछ वक्त पहले एक न्यूज़ चैनल पर कहते सुना कि उन्हें रास्ते से हटाने के लिए तंत्र की मदद ली जा रही है । हाल ही में जेल से चुनाव जीत कर पार्टी को बगावती तेवर दिखाने वाले एक नवोदित नेता की सूबे का मुखिया बनने की ख्वाहिश ने ऎसा ज़ोर मारा कि उन्हें भी कम समय में ज़्यादा पाने की चाहत ने इंस्टेंट मैगी नूडल फ़ार्मूला यानी तंत्र साधना की शरण में जाने के लिए मजबूर कर ही दिया ।

हम तो डूबेंगे सनम तुम को भी ले डूबेंगे की तर्ज़ पर राजनीतिक अखाडे के कई पहलवान अपने विरोधियों के तंबू उखाड फ़ेंकने पर आमादा हैं । कई महानुभाव तो ऎसे हैं जो खुद की जीत से ज़्यादा प्रतिद्वंद्वी की हार के लिए महाकाल और पीताम्बरा शक्तिपीठों में अपनी अर्ज़ी लगा चुके हैं । हालात यही रहे तो वो दिन भी दूर नहीं जब पर्यटन के नज़रिए से पिछडे माने जाने वाले इस प्रदेश को तंत्र पर्यटन केलिए देश विदेश में पहचाना जाए ।

महाकाल की नगरी उज्जैन ,दतिया का पीताम्बरा शक्तिपीठ ,नलखॆडा का द्वापर कालीन बगुलामुखी मंदिर ,मैहर का शारदापीठ आदि को पर्यटन मानचित्र पर नई पहचान दिलाकर पर्यटन विकास निगम को घाटे से उबारने की कवायद में भी कोई बुराई नहीं है । मेरी राय में राजस्थान राजे रजवाडों , केरल आयुर्वेदिक चिकित्सा और गोवा अपनी पुर्तगी पहचान के कारण सैलानियों को लुभा सकता है तो पराभौतिक विद्या के ज़रिए पर्यटकों को खींचने की कोशिश तो की ही जा सकती है ।

किरन है खाइफ़ [भयभीत ]

सियाही गालिब [शक्तिशाली ]

न जाने कब तीरगी कटेगी [अंधकार ]

न जाने कब रोशनी मिलेगी ।

1 टिप्पणी:

चलते चलते ने कहा…

इस देश को अभी अनेक समाज सुधारकों की जरुरत है। जिस देश के राजनेता ही तांत्रिक साधकों की शरण में है उस देश का क्‍या विकास होगा। तांत्रिकों को तभी पूजनीय माना जाए जब वे अपने चमत्‍कार से नेताओं की चुनाव जीताने की बजाय देश की सड़कों को एक झटके में ठीक कर दें। लोगों की गरीबी दूर कर दें। अशिक्षा दूर कर दें। सभी को रोजाना भोजन मिलें। लेकिन तांत्रिक ढोंगी होते हैं और बेवकूफ बनाने के अलावा उन्‍हें कुछ नहीं आता।