आतंकवाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आतंकवाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

पाकिस्तान ने फ़िर तरेरी आँखें


पाकिस्तान ने आज सारी दुनिया के सामने खुद को पाक साफ़ बताते हुए युद्ध की संभावनाओं से इंकार किया है । बेनज़ीर की मज़ार पर पाक प्रधानमंत्री युसूफ़ रज़ा गिलानी ने भारत के साथ रिश्ते सामान्य होने की बात कही । साथ ही कहा कि उनका मुल्क जंग नहीं चाहता । गिलानी ने उल्टे भारत पर तोहमत जड दी कि भारतीय प्रधानमंत्री पर युद्ध का भारी दबाव है । यानी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ...।

एक तरफ़ तो मीडिया के सामने शांति का राग अलापा जा रहा है । वहीं दूसरी ओर राजस्थान से सटी सीमा पर भारी तादाद में सेना का जमावडा किया जा रहा है । शांति की बात हाथ में बंदूक लेकर तो नहीं की जाती ...? पाकिस्तान से इसी तरह के दोगलेपन की उम्मीद है ।

गिलानी इतने पर ही नहीं रुके । उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि करांची धमाके में मुम्बई हमले की बनिस्बत कहीं ज़्यादा लोग मारे गये थे । ये भी खूब रही । पाक हर चाल बडी ही चतुराई से चल रहा है और फ़ौरी तौर पर तो यही लग रहा है कि वो कामयाब भी हो रहा है । हर रोज़ नए दांव चलकर पाकिस्तान शातिराना तरीके से भारत को पीछे ठेल रहा है । मज़े की बात तो ये है कि पाकिस्तान ने आज भारत पर आर्थिक पाबंदी लगाने की धमकी तक दे डाली । लीजिए साहब, चूहे ने हाथी की चड्डी भी चुरा ली । लेकिन हाथी तो हाथी है । उसकी सहनशीलता तो देखो वो ऎसी छोटी मोटी बातों पर कुछ नहीं कहता .....।

दांव पेंच में माहिर पाकिस्तान ने एक और शिगूफ़ा छोडा है ,बल्कि यूं कहें कि नई चाल चली है । कसाब के मुद्दे पर घिरते पाकिस्तान ने नहले पर दहला जड कर दुनिया को चौंका दिया है ।
पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसियों ने बुधवार की देर रात एक आदमी को पकड़ा । सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर नाम के इस शख्स के बारे में कहा गया कि वह लाहौर में हुए बड़े बम धमाके का अभियुक्त है। पाक सरकार के अनुसार कोलकाता का मूल निवासी सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर पहले लंदन में भारतीय उच्चायोग में काम कर चुका है। ये अधिकारी दावा करते हैं कि शुक्ला उर्फ मुनीर वास्तव में रॉ का अधिकारी है और जल्दी ही भारत को उसकी पूरी शिनाख्त बता दी जाएगी। साथ ही उसके साथियों की भी सरगर्मी से बहावलपुर में तलाश करने की कवायद की जा रही है , ताकि दावे को पुख्ता किया जा सके । चारों ओर से घिरता दिखाई दे रहा पाकिस्तान आंखें तरेरने से बाज़ नहीं आ रहा ।

लगातार बढ़ते जा रहे तनाव को देखते हुए पाकिस्तान का ताज़ातरीन इल्ज़ाम स्तब्ध कर देने वाला है। पाकिस्तान बहुत पहले से आरोप लगाता रहा है कि भारत की प्रति गुप्तचर एजेंसी रॉ लगातार पाकिस्तान को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है और दुनिया के देश इस मामले में सिर्फ पाकिस्तान को ही दोषी ठहरा रहे हैं।

पाकिस्तान मुम्बई हमले के बाद से लगातार पैंतरेबाज़ी कर भारत को उलझा रहा है । हर रोज़ नए - नए दावे ..। नए नए खुलासे ..। कभी हमलों में हिन्दू आतंकियों का हाथ होने की बात कह कर । कभी कसाब को नेपाल का कैदी बताकर । कसाब लगातार पाकिस्तान से मदद की गुहार लगा रहा है । मगर पाक सरकार उससे पल्ला झाड रही है । उसने पाक उच्चायोग को पत्र भेजा है। खत में पाक नागरिक होने के नाते उसे कानूनी मदद देने की अपील की है । उधर पाक प्रधानमंत्री के आंतरिक सुरक्षा सलाहकार रहमान मलिक ने कहा है कि जब तक कसाब का पाकिस्तानी नागरिक होना साबित नहीं हो जाता तब तक उसे कानूनी सहायता देने का सवाल ही नहीं उठता।

कल तक कसाब के पाक नागरिक होने में नवाज़ शरीफ़ को कोई संदेह नहीं था ,लेकिन अब उनके सुर भी बदल गये हैं । दूसरी तरफ़ हमारे देश के नेता अब तक ये ही तय नहीं कर पा रहे कि आखिर वे चाहते क्या हैं ....? वोट की राजनीति ने देश को गृह युद्ध की ओर धकेलने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड रखी है ।

कालिदास को भी अक्ल आ गई थी कि जिस शाख पर बैठे हों उसे नहीं काटा जाता , मगर इन बजरबट्टुओं को तो सामने आ पडी मुसीबत भी एकजुट नहीं कर पा रही ।
हालात ऎसे ही रहे तो हो सकता है आने वाले दिनों में पाकिस्तान भारत की दादागीरी का शिकार बनकर दुनिया की नज़रों में बेचारा बन जाए और भारत को आतंकी देश घोषित कराने के लिए ज़बरदस्त लाबिंग में कामयाब रहें । सही मायनों में देखा जाए तो फ़िलहाल पाकिस्तान हर मामले में भारी पड रहा है भारत पर ...।

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

ब्रेकिंग न्यूज़ - कसाब होगा दुनिया से रुबरु

देश के सीधे साधे प्रधानमंत्री और शेयर बाज़ार के उतार चढाव को भी काबू ने ना कर पाने वाले चिदाम्बरम साहब गृहमंत्री बनकर भी कुछ खास नहीं कर पा रहे पाकिस्तान के खिलाफ़ । अब लगता है सरकार के नाकारापन से थक हार चुके खुफ़िया अधिकारियों ने ही पाकिस्तान को घेरने के लिए कमर कस ली है । इंतज़ार है सिर्फ़ केंद्र से हरी झंडी मिलने का ।

योजना को मंज़ूरी मिली तो कसाब टीवी पर लाइव प्रसारण के ज़रिए आतंक के आकाओं को बेपर्दा करेगा । वह खुद बताएगा सारी दुनिया को मुम्बई हमले का मकसद । पाकिस्तान का हाथ होने के सारे सबूत कसाब की मुंह ज़बानी सुनने के बाद देखना होगा कि बीच के बंदर की भूमिका निभा रहा अमेरिका क्या रुख अपनाता है ।

कहीं ऎसा ना हो कि दो बिल्लियों की लडाई में बंदर पूरी रोटी हज़म कर जाए और चालाक बिल्ली [पाकिस्तान ] बंदर को अलग ले जाकर इस तमाशे की कीमत वसूल ले और मूर्ख बिल्ली [भारत ] इसे किस्मत का खेल मानकर सब कुछ भगवान के भरोसे छोडकर अगले आतंकी हमले का इंतज़ार करे । वैसे भी पाकिस्तान की बीन पर हिंदुस्तान नाच रहा है । सबूत पर सबूत ,सबूत पर सबूत ..... ,मगर नतीजा सिफ़र ...?

वैसे भी इंटरपोल चीफ़ रोनाल्ड के. नोबल भारत में तफ़्तीश का नाटक करते रहे । पाकिस्तान पहुंचते ही जांच में पाकिस्तान के खिलाफ़ कोई सबूत ना मिलने की बात कह कर सब को चौंका दिया । आखिर क्या है पाकिस्तान की सरज़मीं में ,जो वहां कदम रखते ही सभी के सुर बदल जाते हैं । कहीं कोई ब्लैक मैजिक तो नहीं .....?

रविवार, 30 नवंबर 2008

हमलों पर उर्दू अखबारों का नज़रिया

मुम्बई के आतंकी हमले पर एक नज़रिया ये भी ........। देश को सावधान और एकजुट रहने की सख्त ज़रुरत है ।



हमलों पर क्या कहते हैं उर्दू अख़बार?

अविनाश दत्त बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
उर्दू अख़बारों ने हमलों से उठ रहे कुछ अनसुलझे सवालों पर टिप्पणियाँ की हैं
भारत के हिंदी और अंग्रेज़ी अख़बारों की तरह उर्दू के तमाम दैनिक अख़बार भी केवल मुंबई में हुए हमलों की ख़बर से भरे हैं.
दिल्ली से छपने वाले राष्ट्रीय सहारा उर्दू में पहले पन्ने पर दिल्ली चुनावों के विज्ञापनों के अतिरिक्त केवल एक ही ख़बर है.. " मुंबई पर आग और खून की बारिश"
हैदराबाद से छपने वाले दैनिक अखबार 'मुंसिफ़' की पहली सुर्खी रही," मुंबई में दहशतगर्दों के साथ कमांडो की खूनी जंग जारी. "
इसी शहर से निकलने वाले उर्दू के दूसरे अख़बार 'सियासत' की पहली हेड लाइन है मुंबई के दो होटलों पर आतंकवादियों का कब्जा बरक़रार.'
इस ख़बर के साथ एक कथित चरमपंथी की तस्वीर छपी है जिस पर उसके एक हाथ पर बंधे लाल धागों पर गोला लगाया गया है, ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली से छपने वाले अंग्रेज़ी के अख़बार मेल टुडे ने एक दिन पहले लगाया था.
'मुल्क़ भर में हाहाकार'
मुंबई से प्रकाशित अख़बार 'इंकलाब' की हेडलाइन है, 'ताज होटल के हमलावर ढेर ऑबराय होटल में ऑपरेशन जारी , मुल्क भर में हाहाकार."
अगर संपादकीयों पर नज़र डालें तो मुंसिफ़ ने इस घटना से सख्ती से निपटने की ज़रूरत पर बल दिया है.
इस तरह की घटना के पीछे जिस डेकन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है वो शंका पैदा करने वाला है. अगर इस तरह की घटना मोसाद, सीआईए या आईएसआई द्वारा अंज़ाम दी गई होती तो सोचा जा सकता था. पर जिस संस्था का नाम किसी ने सुना नहीं वो कैसे इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में सफल हुई

इस अख़बार के संपादकीय की हेडलाइन है " मुंबई में दहशतगर्दी का नज़ारा". नीचे विस्तार से पूरी घटना के बारे में बताने के साथ ही बीते दिनों में "हिंदू दहशतगर्दों" के पकड़े जाने की बात पर पलट कर देखा है.
अख़बार ने ध्यान दिलाया है की मारे गए सभी अफसर ऐटीएस के थे.
अख़बार कहता है कि मालेगाँव बम धमाकों के सिलसिले में यह भी पता चला था की लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के अलावा कुछ और पूर्व फौजी अफसरों ने 'हिंदू चरमपंथियों' को ख़ास ट्रेनिंग दी थी.
फ़िर आरएसएस, शिव सेना और अन्य हिंदूवादी संगठनों द्वारा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बचने के लिए एकजुट होने की बात है.
अख़बार का कहना है की ऐसे कुछ तत्व मुंबई के हमलों के पीछे हो सकते हैं और अख़बार इस पक्ष पर गौर करने को भी कहता है.
ख़ुफ़िया विफलता
अख़बार ये भी कहता है की इंटेलिजेंस एजेंसियों की विफलता पर ध्यान दिया जाना चाहिए और अगर इन हमलों के पीछे अगर बाहरी हाथ है तो उससे सख्ती से निपटना चाहिए.
दिल्ली से छपने वाले उर्दू के बड़े अखबार राष्ट्रीय सहारा उर्दू के संपादक अज़ीज़ बरनी ने लिखा है, "इस तरह की घटना के पीछे जिस डेकन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है वो शंका पैदा करने वाला है. अगर इस तरह की घटना मोसाद, सीआईए या आईएसआई द्वारा अंज़ाम दी गई होती तो सोचा जा सकता था. पर जिस संस्था का नाम किसी ने सुना नहीं वो कैसे इतना बड़ा आतंकवादी हमला करने में सफल हुई".
संपादक इस आलेख में ये भी कह रहे हैं की कोई मुसलमान ऐटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे को क्यों मारेगा.
वो कहते हैं, "सोचना होगा की इस आतंकवादी घटना से किसको लाभ होगा और अगर ऐटीएस की जाँच में कोई रुकावट पैदा होती है, जिसकी संभावनाए पैदा हो गई हैं तो किसको क्षति होगी".
हैदराबाद के एक और बड़े अख़बार सियासत ने अपने संपादकीय ने एक संघीय गुप्तचर एजेंसी कायम करने की ज़रूरत पर बल दिया है.
बीबीसी डाट्काम से साभार

इस्तीफ़ों से नाकाम सरकार बचाने की कोशिश

मुम्बई में हुए युद्ध ने देश के लोगों को हिला कर रख दिया है । बरसों से दबे कुचले लोगों का खून एकाएक उबाल मारने लगा । ऎसा मोबाइल एसएमएस और समाचार चैनलों का कहना है । श्मशान वैराग्य की तरह जागे इस सतही जोश की सूचना ने सरकार चला रहे कांग्रेसी खॆमे में खलबली मचा दी है ।

सता से उखाड फ़ेंकने की निरीह जनता की गीदड भभकी ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को परेशान कर दिया है । सो सरकार ने आनन फ़ानन में अंगुली कटा कर शहीद होने का फ़ार्मूला तलाश ही लिया । साढे चार साल से ज़्यादा वक्त तक देश को आतंक की भट्टी में झोंकने का दुष्कर्म करने के बाद शिवराज पाटिल से इस्तीफ़ा लिखवा लिया गया । चोरी और सीनाज़ोरी का आलम ये कि अपनी कारगुज़ारियों पर शर्मिंदा होने की बजाय नेता बेहूदा बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे ।

आर आर पाटिल की मानें तो बडे-बडे शहरों में ऎसे छॊटॆ- छोटे हादसे तो होते ही रहते हैं । राजीव शुक्ला साहब अपनी गिरेबान में झांकने की बजाय संकट के इस दौर में भी बीजेपी की गल्तियां ढूंढने में वक्त ज़ाया कर रहे हैं । असलियत तो ये है कि इस्तीफ़ा देकर ये कोई मिसाल कायम नहीं कर रहे बल्कि इस्तीफ़े की राजनीति का घिनौना खेल खेलकर देश की जनता को मूर्ख बनाना चाहते हैं ।

जब केन्द्र सरकार की कुल जमा उम्र ही गिनती की बची हो ,तब इस्तीफ़े के इस नाटक का औचित्य क्या है ...? वैसे भी सरकार का ये गुनाह काबिले माफ़ी कतई नहीं । राजनेताओं की आपसी खींचतान और ढुलमुल रवैए से जनता आज़िज़ आ चुकी है ।

लोगों के सडकों पर आने की सुगबुगाह्ट से नेताओं के हाथ पांव फ़ूल रहे हैं और वे अपनी मक्कारी भरी चालों से जनता को बरगलाने ,बहलाने फ़ुसलाने की कोशिश में लग गये हैं । लेकिन अब देश की अवाम किसी झांसे में ना आने पाए , इसके पुख्ता इंतज़ाम की ज़रुरत है ।

एक कहावत है - ’पीसन वाली पीस गई ,सकेलन वाली जस ले गई ।’ सेना , आरएएफ़ और एनएसजी के संयुक्त प्रयासों की बदौलत मिली कामयाबी का सेहरा महाराष्ट्र सरकार खुद अपने सिर बांध लेना चाहती है । बात होती है आतंकवाद से लडने की और नवाज़े जाते हैं बेइमान ,भ्रष्टाचारी और देश के गद्दार । और तो और आमने सामने की लडाई में शहीद हुए जांबाज़ों की बजाय हादसे के शिकार अफ़सरान को मीडिया की मदद से अभियान का हीरो बना कर पेश किया जा रहा है । ऎसा लगता है बचे खुचे देशभक्तों के मनोबल को तोडकर देश को खोखला करने की कोई गहरी साज़िश रची जा रही है । देश मे ऎसे ही हालात रहे , तो कौन लडेगा भारत मां की हिफ़ाज़त की लडाई ।

इक बात और , हाल के दिनों के घटनाक्रम ने मेरा सामान्य ज्ञान गडबडा दिया है । सब कुछ गड्डमड्ड सा लगता है । आप सभी महानुभाव मेरी मदद करें । मैं शहादत की परिभाषा जानना चाहती हूं । भारत में शहीदों की पहचान का मापदंड क्या है और क्या होना चाहिए ?

क्यों हिंन्द का ज़िन्दा कांप रहा है , गूंज रही हैं तकबीरें
उकताए हैं शायद कुछ कैदी , और तोड रहे हैं जंज़ीरें

शनिवार, 29 नवंबर 2008

अमीरी - गरीबी के खांचे में बंटा आतंकवाद


समझ नहीं आ रहा कि इस वक्त ये कहना ठीक है या नहीं , लेकिन चुप रहकर अकेले घुटने से तो यही बेहतर है कि कह कर अपना मन हल्का कर लिया जाए । फ़िर भले ही लोग चाहे जितना गरिया लें । वैसे भी देश में सभी लोग सिर्फ़ अपने लिए ही तो जी रहे हैं । उनमें एक मैं भी शामिल हो जाऊं तो हर्ज़ ही क्या है ?
देश की सडकों पर बहने वाले खून की कीमत टेंकर के पानी से भी सस्ती है । लेकिन पहली मर्तबा अमीरों को भी एहसास हुआ है कि लहू का रंग सिर्फ़ लाल ही होता है फ़िर चाहे वो गरीबों का ही क्यों ना हो ।
इसमें कोई शक नहीं कि पांच सितारा होटलों में हुए आतंकी हमले बेहद वीभत्स थे । लेकिन क्या ऎसे धमाके देश में पहले कभी नहीं हुए । २६ नवंबर को ही ठीक उसी वक्त सीएसटी में भी लोगों ने अपने परिजनों को खोया ,लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था । मारे गये लोगों की लाश लेने के लिए भटकते परिजनों को सांत्वना देना तो दूर की बात मदद करने वाला तक कोई नहीं था ।
अमीरों की मौत पर स्यापा करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया के अंग्रेजीदां पत्रकार भी छातियां पीटने लगते हैं । मगर गरीब की मौत का कैसा मातम ......? वह तो पैदा ही मरने के लिए होता है । चाहे फ़िर वह मौत तिल तिल कर आए या धमाके की शक्ल में ।
हमें उम्मीद करना चाहिए कि जल्दी ही सरकार आतंकियों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएगी ,क्योंकि अब की बार अमेरिका ,ब्रिटेन सरीखे आकाओं के नागरिकों का जीवन भारत में खतरे में पडा है । सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की रातों की नींद में खलल पडने लगा है । रुपहले पर्दे पर गरीबों के मसीहा का किरदार निबाहने वाले इस महानायक ने बरसों लोगों की जेबें खाली कर अपनी तिजोरियां भरीं हैं । लेकिन इनकी आंखें आम आदमी के आतंक के शिकार होने पर कभी भी नम नहीं हुईं ।
दिल्ली के धमाकों में अपने बेटे के बच जाने {हालांकि वो घटना स्थल से मीलों दूर थे] पर खुशी का इज़हार करने वाले बिग बी को हादसे के शिकार लोगों की याद तक नहीं आई । धिक्कार है ऎसे स्वार्थी लोगों पर , जो देश के आम लोगों के जज़्बात से खेलते हैं और विदेशों में साम्राज्य खडा करते हैं ।
अमीरों की फ़िक्रमंद सरकारों को अपनी अहमियत का एहसास कराना कब सीखेगा भारत का आम आदमी ? वह सडकों पर रौंदा जाता है । अस्पतालों में कीडे - मकौडों सी ज़िल्लत झेलता है । धमाकों में कागज़ के पुर्ज़ों की मानिंद चीथडों में तब्दील हो जाता है । लेकिन कब वह जानेगा कि उसमें भी जान है , वह भी एक इंसान है ,खास ना सही आम ही सही ....।
बिठा रखे हैं पहरे बेकसी ने
खज़ानों के फ़टे जाते हैं सीने
ज़मीं दहली , उभर आये दफ़ीने
दफ़ीनों को हवा ठुकरा रही है
उठो , देखो वो आंधी आ रही है ।

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

नाकारा रहनुमाओं ने देश को किया शर्मसार

कभी ना थमने वाली मुम्बई की रफ़्तार पर २६ नवंबर की रात से लगा ब्रेक राष्ट्रीय शर्म का प्रतीक है । मुम्बई के आतंकी हमलों ने देश के सुरक्षा इंतज़ामात और खुफ़िया तंत्र के कामकाज की पोल खोलकर रख दी है । हर आतंकी हमले के बाद अगली मर्तबा कडा रुख अपनाने का रटा रटाया जुमला फ़ेंकने के बाद केंन्द्र भी फ़ारिग हो गया ।

आतंक से लडने की बजाय नेता फ़िर एक दूसरे पर कीचड उछालने में मसरुफ़ हो गये हैं । प्रधानमंत्री देश को मुश्किल घडी में एकजुट करने और जोश - जज़्बे से भरने की बजाय भविष्य की योजनाओं का पुलिंदा खोल कर क्या साबित करना चाहते थे । पोची बातों को सुनते - सुनते देश ने पिछले आठ महीनों में पैंसठ से ज़्यादा हमले अपने सीने पर झेले हैं ।

गृह मंत्री का तो कहना ही क्या । अपनी पोषाकों के प्रति सजग रहने वाले पाटिल साहब देश की सुरक्षा को लेकर भी इतने ही संजीदा होते ,तो शायद आज हालात कुछ और ही होते । गृह राज्य मंत्रियों को संकट की घडी में भी राजनीति करने की सूझ रही है । बयानबाज़ी के तीर एक दूसरे पर छोडने वाले नेताओं के लिए ये हमला वोटों के खज़ाने से ज़्यादा कुछ नहीं ।

सेना के तीनों अंगों ने नेशनल सिक्योरिटी गार्ड और रैपिड एक्शन फ़ोर्स की मदद से पूरे आपरेशन को अंजाम दिया और बयानबाज़ी करके वाहवाही लूट रहे हैं आर आर पाटिल । महाराष्ट्र पुलिस के मुखिया ए. एन राय तो इस मीडिया को ब्रीफ़ करते रहे , मानो सारा अभियान पुलिस ने ही सफ़लता से अंजाम दिया हो ।

सुना था कि मुसीबत के वक्त ही अपने पराए की पहचान होती है । लेकिन भारत मां को तो निश्चित ही अपने लाडले सपूतों [ नेताओं ] की करतूत पर शर्मिंदा ही होना पडा होगा । आतंकियों के गोला बारुद ने जितने ज़ख्म नहीं दिए उससे ज़्यादा तो इन कमज़र्फ़ों की कारगुज़ारियों ने सीना छलनी कर दिया ।

रही सही कसर कुछ छद्म देशप्रेमी पत्रकार और उनके भोंपू [चैनल] पूरी कर रहे हैं । सरकार से मिले सम्मानों का कर्ज़ उतारने के लिए खबरची किसी का कद और स्तर नापने की कोशिश में खुद किस हद तक गिर जाते हैं , उन्हें शायद खुद भी पता नहीं होता । दूसरे को बेनकाब कर वाहवाही लूटने की फ़िराक में ये खबरची अपने घिनौने चेहरे से लोगों को रुबरु करा बैठते हैं । इन्हें भी नेताओं की ही तरह देश की कोई फ़िक्र नहीं है । इन्हें बस चिंता है अपने रुतबे और रसूख की ।

प्रजातंत्र के नाम पर देश को खोखला कर रहे इन ढोंगियों को अब लोग बखुबी पहचान चुके हैं । इस हमले ने रहे सहे मुगालते भी दूर कर दिए हैं । नेताओं की असलियत भी खुलकर सामने आ चुकी है और सेना की मुस्तैदी को भी सारी दुनिया ने देखा है ।

ऎसा लगता है देश के सड गल चुके सिस्टम को बदलने के लिए अब लोगों को सडकों पर आना ही होगा । रक्त पिपासु नेताओं के चंगुल से भारत मां को आज़ाद कराने के लिए अब ठोस कार्रवाई का वक्त आ चुका है । इनके हाथ से सत्ता छीन कर नया रहनुमा तलाशना होगा , नई राह चुनना होगी , नई व्यवस्था लाना होगी । इस संकल्प के साथ हम सभी को एक साथ आगे बढना होगा ।

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है
आज की रात ना फ़ुटपाथ पे नींद आएगी
सब उठो , मैं भी उठूं , तुम भी उठो ,तुम भी उठो
कोई खिडकी इसी दीवार में खुल जाएगी ।

शनिवार, 22 नवंबर 2008

शास्त्रार्थ करते जेहादी ,मगर हम चुप रहेंगे.......!



इंसान और इंसानियत की मौत पर मुझे बहुत कुछ कहना है , मगर मैं चुप रहूंगी ........।




गुरुवार, 13 नवंबर 2008

देशप्रेम ही है हिन्दू आतंकवाद की जड



हिन्दुओं को राष्ट्र भक्ति का पाठ पढाने वालों खबरदार ....। मैडम सोनिया की रहनुमाई में देश में हिन्दू लफ़्ज़ आतंकवाद का पर्याय बन गया है । कल तक आर एस एस ,बजरंग दल , शिव सेना जैसे संगठनों को तिरछी निगाह से देखा जाता था । अब ये दायरा बढ चुका है ।

खबरिया चैनल चिल्ला - चिल्ला कर बता रहे हैं भगवे की हकीकत । खबरों के हथौडों से ठोक - ठोक कर दिमाग में ठूंसा जा रहा है हिन्दू आतंकवाद का जुमला । मोह माया त्याग जोगिया ओढने वाले संन्यासी देश को तोडने की साज़िश रचने वाले मास्टर माइंड बन गये हैं । ये लोग एकाएक ही साधु से शैतान बन गये हैं ।

देश की विडंबना भी देखिए , लुटेरे , फ़रेबी , बलात्कारी नामी गिरामी संत बन बैठे हैं । दूसरों का माल हज़म करने वाले ये संत टी वी के ज़रिए लोगों को सब कुछ त्याग देने की राह दिखाते हैं । दूसरी ओर राष्ट्र उत्थान का आह्वान करने वाले देशभक्त संन्यासी अतिवादी बताए जा रहे हैं ।

जूनापीठाधीश स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ऎसे संन्यासी हैं , जिन्होंने राम कथा ,श्रीमद भागवत कथा और दुर्गा सप्तशती के माध्यम से केवल धर्म की नहीं राष्ट्र् के विकास की बात भी की है । वे हमेशा सकारात्मक सोच के साथ समाज और देश को दुनिया का सिरमौर बनाने की बात कहते हैं । साध्वी प्रज्ञा को दीक्षा देने मात्र को लेकर स्वामीजी का नाम इस पूरे पचडे में जिस तरीके से घसीटा गया , वह संगीन अपराध से कमतर नहीं ।

सवाल ज़ेहन में उठता है कि महज़ साध्वी प्रज्ञा को दीक्षा देने से या उन्हें एक - दो बार मिलने से स्वामीजी पर संदेह किया जा सकता है , तो फ़िर एटीएस को जांच का दायरा फ़ौरन से पेशतर बढा देना चाहिए । मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह और उनके पुत्र अजय सिंह से भी कडी पूछ्ताछ की जाना चाहिए । इसी बिना पर कई मंत्री , नेता , अधिकारी और उद्योगपतियों को हिन्दू अतिवाद का हिमायती ठहराया जा सकता है । इतना ही नहीं स्वामीजी के लाखों शिष्यों , उनमें मैं खुद भी शामिल हूं , हम सभी का नार्को और अन्य साइंटिफ़िक टेस्ट कराए जाना चाहिए ।

वक्त की चाल बदल गई है । देश हित की चिंता करना देशद्रोह और राष्ट्र् को बेज़ा लूटना - खसोटना देशप्रेम । देश के लोगों को जगाने की कोशिश - जुर्म , लेकिन हिन्दुस्तान का खंड - खंड विखंडन करने की साज़िश रचने वाले महापुरुष । देश को बेचने , गिरवी रखने के लिए इसका कमज़ोर होना ज़रुरी है । इसी के इंतज़ाम में जुटा है बिका हुआ मीडिया , मौकापरस्त नेता और ज़मीर बेच चुके आला अफ़सरान ।
मेरा मशविरा है , सभी राष्ट्रवादियों कर दो खुद को एटीएस के हवाले । जत्थे बनाकर महाराष्ट्र के लिए कूच करो । कहो कि प्रस्तुत हैं हम सब बार -बार नार्को टेस्ट के लिए । आखिर हम अपराधी हैं , अपराध अपने देश से प्रेम करने का ............।
ऎसी ललकार कि तलवार भी पानी मांगे
ऎसी रफ़्तार कि दरिया भी रवानी मांगे ।

[ कार्तिक पूर्णिमा का पर्व गुरुदेव का अवतरण दिवस भी है । स्वामीजी का राष्ट्र उत्थान का संकल्प हम सभी अनुयायियों को प्रेरित करता रहे ,यही कामना है ।]

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

सियासी दांव पेंचों में गुम अवाम की आवाज़

साध्वी प्रज्ञा सिंह की गिरफ़्तारी को लेकर उठ रहे सवालों की फ़ेहरिस्त हर गुज़रते दिन के साथ लंबी होती जा रही है । आज कैलाश सोलंकी ने इंदौर में मीडिया के सामने आकर बयान दिया कि उसने कोर्ट में कोई हलफ़नामा नहीं दिया है । उसने मामले के मोस्ट वांटेड आरोपी रामजी को जानने की बात त्तो मानी लेकिन साध्वी से जान पहचान की बात को सिरे से नकार दिया । कैलाश के मुताबिक प्रज्ञा सिंह और रामजी के बीच फ़ोन पर हुई बातचीत के बारे में उससे कुछ पूछा ही नहीं गया और ना ही वो इस बारे में कुछ जानता है ।

दूसरी तरफ़ मालेगांव धमाकों को लेकर एटीएस द्वारा हिरासत में लिए गए शिवनारायण और फ़रार रामजी के पिता गोपाल सिंह ने इंदैर में पत्रकारों के सामने अपने गायब होने की खबरों की हकीकत बयान कर एटीएस के दावों की हवा निकाल दी । उनका दावा है कि उनका परिवार अब भी शाजापुर ज़िले के गोपीपुर गांव में ही रहता है । ऎसे में पूरे मामले पर सवाल उठना लाज़मी है । पुलिस के आला अफ़सरान भी मानते हैं कि साध्वी प्रज्ञा सिंह के खिलाफ़ फ़िलहाल कोई ठोस सबूत नहीं । यही वजह है कि आरोप को पुख्ता बनाने के लिए नार्को टेस्ट का सहारा लेना पड रहा है ।

इस पूरे वाकये को कई दिन से टीवी चैनलों पर देखने के बाद एक बात जो मुझे लगातार परेशान कर रही है , वो है साध्वी के चेहरे का नकाब । हालांकि मेरे इस सवाल से की लोग इत्तेफ़ाक नहीं रखते हों । मगर मुझे लगता है कि प्रज्ञा सिंह बेकसूर हैं , तो चेहरा छुपाने की ज़रुरत उन्हें तो कतई नहीं । और अगर उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण इस घटना को वाकई अंजाम दिया है , तब भी यह मुंह छिपाने की नहीं गर्वोन्नत होने का मौका है । उनका इस तरह लोगों के बीच चेहरा ढंक कर आना क्या संकेत देता है , फ़िलहाल कह पाना बडा ही मुश्किल है ।

बहरहाल सवाल घूम फ़िर कर वही ? कहीं आतंकवाद का मुद्दा खत्म करने की रणनीति तो नहीं ? लेकिन क्या इसके नतीजों पर भी गौर किया गया है ? हिन्दुओं और मुसलमानों में खाई बढा देगी ये साज़िश । और अगर यह सच नहीं तो क्या सचमुच हिन्दुओं के सब्र का पैमाना छलकने लगा है ? क्या सीमा की हिफ़ाज़त के लिए कुर्बानी की कसम से बंधे जांबाज़ फ़ौजी सचमुच आतंकवादियों के प्रति सरकार के नरम रवैए से हताश हैं ? सेना से रिटायर अधिकारी क्या किसी नौसीखिए कथित राष्ट्र्वादी का साथ दे सकते हैं ? अगर पुलिस की थ्योरी में वाकई दम है तो ये साफ़ संकेत है देश के हुक्मरानों के लिए कि जनता का शासकों पर भ्ररोसा दिन ब दिन कम होता जा रहा है । सियासी दांव - पेंचों में अवाम की आवाज़ और दर्द कहीं पीछे छूटता जा रहा है

लेकिन अकेले सरकार को ही कसूरवार ठहराना काफ़ी नहीं । दरअसल आतंकवाद को मज़हबी चश्मे से देखना भी आतंकवाद से कम खतरनाक नहीं है । बल्कि एक तरह से दहशतगर्दी को खाद - पानी देने जैसा है । आतंकवाद संवेदनशील मुद्दा है । ये देश की इस दौर की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है । इस संजीदा मसले को फ़िरकापरस्ती का रंग देकर हल्का करना देश पर भारी पड सकता है । मज़हबी नज़रिए से जहां ये मुद्दा पेचीदा होता जा रहा है , वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे मध्यमार्गी दलों की तुष्टिकरण की नीति के चलते बेहद खतरनाक मोड पर आ पहुंचा है । इसे कानून व्यवस्था, शांति और सुरक्षा की समस्या मानकर ईमानदारी से हल करने की कोशिश होना चाहिए , क्योंकि आंतरिक सुरक्षा का मसला देश के विकास से सीधे तौर पर जुडा है ।

मेरे कांधे पे बैठा कोई
पढता रहता है इंजीलो-कुरानो-वेद
मक्खियां कान में भनभनाती हैं
ज़ख्मी हैं कान
अपनी आवाज़ कैसे सुनूं ।

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

हिन्दू अतिवाद की सियासत में सेना बनी मोहरा

’ ये तेरा सच ,ये मेरा सच , किसी को देखना है गर
तो पहले आकर मांग ले मेरी नज़र ,तेरी नज़र । ’
देश में इन दिनों हालात कुछ ऎसे ही हैं । हर शख्स हरेक घटना को अपने नज़रिए से देखने का आदी हो चुका है । हिन्दू आतंकवाद के नए चेहरे के खुलासे के बाद से तथाकथित सेक्युलर दलों की बांछें खिलीं हुईं हैं । फ़िज़ा में चारों तरफ़ हिन्दू कट्टरवाद के दिल दहला देने सच के बेनकाब होने की किस्सागोई फ़ैली हुई है । समाचार चैनलों ने साध्वी प्रज्ञा सिंह और सेना के पूर्व अधिकारियों को जिस अंदाज़ में पेश किया है , लगता है मानो पूरा देश इनकी ही बदौलत बारुद के ढेर पर बैठा हो ।

राजनीतिक नफ़े नुकसान को ध्यान में रखकर गढी गई शाब्दिक परिभाषाओं का सच अब खुद- ब-खुद सामने आने लगा है । बहुसंख्यकों की बात करने वाले को शक की निगाह से देखा जाता है । अब अल्पसंख्यकों की चिंता में घडियाली आंसू बहाना धर्म निरपेक्श्ता और बहुसंख्यकों के बुनियादी मसलों की चर्चा सांप्रदायिकता है । हालात इतने बिगड चुके हैं कि ८० करोड लोगों के बारे में बोलना कट्टरवादी या सांप्रदायिक होने का लेबल लगाने का पर्याप्त आधार बन गया है ।

महाराष्ट्र एटीएस जांच के बहाने मीडिया ने प्रज्ञा सिंह को रातों रात हिन्दू अतिवादी बना दिया है । इसमें साज़िश की बू आती है । मालेगांव और मोडासा बम धमाकों का आरोप मढने के पीछे मकसद देश की बडी समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाना है । ज्वलंत समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए रची गई इस राजनीतिक साज़िश के नतीजे खतरनाक होने वाले हैं । ओछी राजनीति ने देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्शा को भी दांव पर लगा दिया है ।

बटला हाउस एनकाउंटर पर मचे बवाल ने पुलिस का मनोबल तोडा है । ज़बानी युद्ध लडने वाले नेताओं ने जांबाज़ अफ़सर की कुर्बानी पर सवाल खडॆ कर सियासी फ़ायदा भले ही ले लिया हो ,लेकिन देश की आंतरिक हिफ़ाज़त में जुटे तबके को निराशा से भर दिया है । लगता है इन घर फ़ूंक तमाशबीनों की तबियत इससे भी नहीं भरी । अब ये सैन्य अधिकारियों को आतंकी साज़िश का हिस्सा बताने पर तुले हैं । सेना के पूर्व अधिकारियों के साथ सेवारत अफ़सरों को भी लपेटे में लिया जा रहा है । हिन्दू अतिवादियों का मददगार बता कर सेना के खिलाफ़ मीडिया पर दिन - दिन भर चलाई जा रही खबरों का असर कहां - कहां तक और कितना गंभीर होगा ,इस पर सोचा है किसी ने ?

देश की सीमाओं की हिफ़ाज़त करने वाले जांबाज़ों की ओर उठने वाली शक भारी निगाहें क्या गुल खिलाएंगी । इसकी कल्पना मात्र से मन चिंता और डर से भर जाता है । अब तो सेना में मज़हब आधारित सर्वे का शिगूफ़ा भी इसी साज़िश का हिस्सा नज़र आता है । जब केंद्र में कमज़ोर शासक होता है , सूबे के सियासतदान अपने फ़ौरी फ़ायदों के लिए सिर उठाने लगते हैं । मज़हब , प्रांत , भाषा की लडाइयां इसी का नतीजा हैं । देश में लंबे समय से वैसे ही आपसी संघर्ष के हालात हैं । ऎसे में इस नई चुनौती का सामना करने की कुव्वत क्या देश में बाकी है ?

हादिसा कितना कडा है कि सरे - मंज़िले - शौक
काफ़िला चंद गिरोहों में बंटा जाता है
एक पत्थर से तराशी थी जो तुमने दीवार
इक खतरनाक शिगाफ़ उसमें नज़र आता है

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

बाज़ार की गिरावट - निवेशकों की फ़जीहत

पिछले कुछ महीनों से शेयर बाज़ार की रोलर कोस्टर राइड ने सब के होश उडा दिए हैं । खबरिया चैनलों को वक्त गुज़ारने का अच्छा बहाना मिल गया है । हर नए दिन के साथ बाज़ार गिरावट के नए रिकार्ड बनाता है और अगले ही दिन ये , धूल चाटता नज़र आता है । लेकिन निवेशकों की तबाही का मंज़र खबरची चैनलों के लिए किसी लाटरी से कम नहीं होता । १० अक्टूबर का दिन एक मर्तबा फ़िर ब्लैक फ़्राइडे के तौर पर दर्ज हो गया । गिरावट और घबराहट के सैलाब में आंकडों के सभी बांध ढह गये वहीं एक एंकर लुट पिट चुके लोगों से सवाल कर रहा था कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं ....? दुनिया भर के शेयर दलालों का दुलारा बुल एक झटके में सबसे बडा विलेन बन गया है । बाज़ार को उछाल मारता देखकर बुल को पूजने वालों में मुम्बई स्टाक एक्सचेंज के बाहर खडे सांड को जी भर कर कोसने वालों की भी अब कमी नहीं । ।
शेयर बाज़ार पर अर्थशास्त्रियों की राय शुमारी तो न जाने कब से खत्म हो चुकी है । लेकिन अब तो लगता है मार्केट एक्सपर्टस के दिन भी लद गए । लोगों को अंधविश्वास की गर्त में धकेलने वाले खबरिया चैनल ज्योतिषियों ओर वास्तुशास्त्रियों से मश्विरा करते नज़र आते हैं कि आने वाले दिनों में बाज़ार का रुख क्या रहेगा ? क्या यह आतंकवाद का एक नया चेहरा है ...? क्या आपको ऎसा नहीं लगता कि अनियंत्रित रफ़्तार से भाग रहे बाज़ार के ज़रिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर अमीर बन जाने का ख्वाब दिखाकर करोडों लोगों को जीतेजी मारने की साज़िश रची जा रही है । बम विस्फ़ोट में तो कुछ ही लोग मारे जाते हैं लेकिन आतंकवाद क यह हथियार दोहरी मार कर सकता है देश पर। सेंसेक्स को अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर समझने वाले ये नेता क्या इस खतरे से अंजान है ......?
हाल के दिनों में देश में ऎसे कई मामले सामने आए हैं ,जहां स्टाक मार्केट में हाथ जला चुके लोगों ने परिवार के साथ खुदकुशी का रास्ता अखतियार कर लिया । कल ही एक चैनल पर इसी मुद्दे पर मनोचिकित्सक की राय ली जा रही थी । इसी प्रोग्राम के दौरान ये बात भी निकल कर आई कि बाज़ार की गिरावट ने कई जानें ही नहीं लीं ,बल्कि हज़ारों परिवारों को जीतेजी मार डाला है । गाढी कमाई पल भर में गवां बैठे कई लोग आने वाले कल की चिंता में सीज़ोफ़्रेनीया, डिप्रेशन आदि मनोरोगों के शिकार बन रहे हैं ।
अमेरिका की हिचकोले खाती इकानामी दुनिया भर के बाज़ारों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है । कल तक सेंसेक्स को परवाज़ के पंख लगाकर आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने वाले अब सब कुछ बेच कर बाज़ार से बाहर आने की सलाह देते नज़र आते हैं । लेकिन एक सवाल जो मेरे ज़ेहन में बार बार आता है कि कंपनियों का बाज़ार मूल्य आखिर किस आधार पर तय किया गया ..? साधारण परिस्थिति में इस तरह की बातें ठगी की श्रेणी में मानी जाती हैं । सेबी और छोटे निवेशकों के हितों के लिए काम करने वाली संस्थाएं इस मुद्दे पर खामोश क्यों रह्ती हैं ? किसी भी कंपनी के मूल्यांकन का आधार आखिर क्या है ? निवेशकों की मेहनत की कमाई क्या इसी तरह कुछ शातिर दिमाग लोग सरे आम लूटते रहेंगे । आफ़र डाक्यूमेंट में आसानी से ना पडे जा सकने वाले बेहद बारीक शब्दों में कुछ जरुरी बातों को छाप कर कानून के शिकंजे से बच निकलने वाले इन धनपतियों पर आखिर किस तरह लगाम कसी जा सकेगी ।
कब नज़र में आएगी , बेदाग सब्ज़े बहार
खून के धब्बे धुलेंगे ,कितनी बरसातों के बाद ।