रविवार, 30 नवंबर 2008

इस्तीफ़ों से नाकाम सरकार बचाने की कोशिश

मुम्बई में हुए युद्ध ने देश के लोगों को हिला कर रख दिया है । बरसों से दबे कुचले लोगों का खून एकाएक उबाल मारने लगा । ऎसा मोबाइल एसएमएस और समाचार चैनलों का कहना है । श्मशान वैराग्य की तरह जागे इस सतही जोश की सूचना ने सरकार चला रहे कांग्रेसी खॆमे में खलबली मचा दी है ।

सता से उखाड फ़ेंकने की निरीह जनता की गीदड भभकी ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को परेशान कर दिया है । सो सरकार ने आनन फ़ानन में अंगुली कटा कर शहीद होने का फ़ार्मूला तलाश ही लिया । साढे चार साल से ज़्यादा वक्त तक देश को आतंक की भट्टी में झोंकने का दुष्कर्म करने के बाद शिवराज पाटिल से इस्तीफ़ा लिखवा लिया गया । चोरी और सीनाज़ोरी का आलम ये कि अपनी कारगुज़ारियों पर शर्मिंदा होने की बजाय नेता बेहूदा बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे ।

आर आर पाटिल की मानें तो बडे-बडे शहरों में ऎसे छॊटॆ- छोटे हादसे तो होते ही रहते हैं । राजीव शुक्ला साहब अपनी गिरेबान में झांकने की बजाय संकट के इस दौर में भी बीजेपी की गल्तियां ढूंढने में वक्त ज़ाया कर रहे हैं । असलियत तो ये है कि इस्तीफ़ा देकर ये कोई मिसाल कायम नहीं कर रहे बल्कि इस्तीफ़े की राजनीति का घिनौना खेल खेलकर देश की जनता को मूर्ख बनाना चाहते हैं ।

जब केन्द्र सरकार की कुल जमा उम्र ही गिनती की बची हो ,तब इस्तीफ़े के इस नाटक का औचित्य क्या है ...? वैसे भी सरकार का ये गुनाह काबिले माफ़ी कतई नहीं । राजनेताओं की आपसी खींचतान और ढुलमुल रवैए से जनता आज़िज़ आ चुकी है ।

लोगों के सडकों पर आने की सुगबुगाह्ट से नेताओं के हाथ पांव फ़ूल रहे हैं और वे अपनी मक्कारी भरी चालों से जनता को बरगलाने ,बहलाने फ़ुसलाने की कोशिश में लग गये हैं । लेकिन अब देश की अवाम किसी झांसे में ना आने पाए , इसके पुख्ता इंतज़ाम की ज़रुरत है ।

एक कहावत है - ’पीसन वाली पीस गई ,सकेलन वाली जस ले गई ।’ सेना , आरएएफ़ और एनएसजी के संयुक्त प्रयासों की बदौलत मिली कामयाबी का सेहरा महाराष्ट्र सरकार खुद अपने सिर बांध लेना चाहती है । बात होती है आतंकवाद से लडने की और नवाज़े जाते हैं बेइमान ,भ्रष्टाचारी और देश के गद्दार । और तो और आमने सामने की लडाई में शहीद हुए जांबाज़ों की बजाय हादसे के शिकार अफ़सरान को मीडिया की मदद से अभियान का हीरो बना कर पेश किया जा रहा है । ऎसा लगता है बचे खुचे देशभक्तों के मनोबल को तोडकर देश को खोखला करने की कोई गहरी साज़िश रची जा रही है । देश मे ऎसे ही हालात रहे , तो कौन लडेगा भारत मां की हिफ़ाज़त की लडाई ।

इक बात और , हाल के दिनों के घटनाक्रम ने मेरा सामान्य ज्ञान गडबडा दिया है । सब कुछ गड्डमड्ड सा लगता है । आप सभी महानुभाव मेरी मदद करें । मैं शहादत की परिभाषा जानना चाहती हूं । भारत में शहीदों की पहचान का मापदंड क्या है और क्या होना चाहिए ?

क्यों हिंन्द का ज़िन्दा कांप रहा है , गूंज रही हैं तकबीरें
उकताए हैं शायद कुछ कैदी , और तोड रहे हैं जंज़ीरें

4 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

शुक्र मनाइये, कि कभी तो हमारी सरकार और मंत्री को शर्म आई- इस्तफे के लिए २०० लाशॊं की कीमत चुकानी पडी!!!!!!!

Satyendra PS ने कहा…

जो आदमी आर्थिक नीतियां बनाते समय अमेरिका के मुंह देखता था, वह गृहमंत्री हो गया? अब वह जाकर अमेरिका के सामने रोएगा, कोई नीति बताओ मेरे आका- जिसे हम लागू करें और आतंक से मुक्ति पाएं। एक असफल वित्तमंत्री को गृहमंत्री बना देने से दोनो विभागों की आलोचना से छुटकारा पाना चाहते हैं मनमोहन, लेकिन क्या यह संभव है?

सागर नाहर ने कहा…

लेकिन अब देश की अवाम किसी झांसे में ना आने पाए , इसके पुख्ता इंतज़ाम की ज़रुरत है ।
सरिता जी यह इस्रायल नहीं है, यह भारत है हम भारतीयों की याददाश्त बहुत कम है और सहनशीलता बहुत बड़ी!
आप देख लीजियेगा दो दिन बाद हम किसी चलताउ कविता पोस्ट पर झूठ मूठ ही वाह वाह करते नजर आयेंगे या किसी सामान्य सी पोस्ट पर टिप्पणीयों की लाइन लगाते नजर आयेंगे। ( हमें भी टिप्पणियां जो लेनी होंगी उनसे)
फिर कल से सबसे तेज(?@#$%^&*) चैनल लाफ्टर चैलेन्ज के फुटेज दिखाने लगेंगे। बीच बीच में शहीदों के नाम श्रद्धान्जली वाले सन्देश मंगा कर कमाई करने लगेंगे।
कुछ नहीं होने वाला, कोई नहीं सुधरने वाला है ना नेता, ना प्र्शासन, ना पुलिस और ना हम

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाजिब और समयानुकूल आक्रोश है इस पोस्ट में।