देश अब भी बारुद के मुहाने पर बैठा है । जल्दी ही आम चुनावों की घोषणा हो जाएगी और पूरा देश लोकतंत्र के जश्न में डूब जाएगा । मंदी की मार के चलते नौकरी से हाथ धो बैठे कई युवाओं को काम मिल जाएगा और बचे खुचे लोग इस उत्सवी माहौल में अपना ग़म ग़लत करते नज़र आएँगे । ऎसे ही किसी शानदार मौके की राह तक रहे हैं -दहशतगर्द । जब पूरा देश चुनावी रंग में सराबोर होकर बेखबर होगा , तब आईएसआई के आतंकी रंग में भंग डालने का साज़ो सामान लेकर टूट पडे़गे कई ठिकानों पर ।
खुफ़िया एजेंसियों की रिपोर्ट कहती है कि आईएसअआई की शह पर भारत में अफ़रा-तफ़री फ़ैलाने की साज़िश को अंजाम देने की पूरी तैयारी है । हालाँकि पहले भी इस तरह की सूचनाएँ मिलती रही हैं ,लेकिन हर बार चेतावनियों को अनदेखा कर देने का खमियाज़ा आम नागरिक ने उठाया है । सरकार ने 26 / 11 के मुम्बई हमले पर अब तक "नौ दिन चले अढ़ाई कोस" का रवैया अपना रखा है । ऎसे में दहशतगर्दों के हौंसले बुलंद हों , तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी ।
इधर खबर ये भी है कि ओबामा का अमेरिका पाकिस्तान को तालिबानियों की गिरफ़्त में फ़ँसा "बेचारा" मानने की तैयारी कर चुका है । इस लाचारगी से बाहर लाने के लिए जल्दी ही करोंड़ों डॉलर की इमदाद भी पहुँचाई जाएगी , ताकि पाकिस्तान इस "मुसीबत" से उबर सके । "शरीफ़ पाक" ज़्यादा कुछ नहीं थोड़े आतंकी और थोड़ा रसद पानी खरीदेगा इस पैसे से और ज़ाहिर तौर पर इसका इस्तेमाल होगा भारत के भीतर घुसकर भारत के लोगों को गाजर - मूली की तरह काटने में ।
खुफिया एजेंसियों को अल कायदा के आतंकी अबू जार के फोन इंटरसेप्ट के ज़रिए साजिश का पता चला है। इस साजिश में अल कायदा, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा समेत कई आतंकी संगठन भागीदार हैं। इनका मकसद केवल भारत में धमाके करना ही नहीं है । वैसे तो भारत-पाक रिश्तों में अब पहले सी गर्मी नहीं रही लेकिन आतंकी रिश्तों के तनाव की चिन्गारी को भभकती लपटों की शक्ल देना चाहते हैं । संदेश को पकड़ने के बाद सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ गई है।
यह हमला कार बम के जरिए करने की बात कही गई है। देश की सभी गुप्तचर एजेंसियों ने एक ही संकेत दिया हैं कि आईएसआई के आतंकवादी भारत में कई सुरक्षित ठिकानों पर मौजूद हैं और किसी बड़े शहर पर किसी बड़े हादसे के लिए सही वक्त की टोह ले रहे हैं। इनमें से कई के नाम पते और शिनाख्त भी खुफ़िया तंत्र के पास हैं। संदेश में अबू जार ने अपने साथियों से दिल्ली पर हमले करने के लिए तैयारियाँ शुरू करने को कहा है।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक अबू जार का मकसद कश्मीर घाटी समेत समूचे भारत में आतंकी वारदात करने का है। अल कायदा आतंकी अबू जार पर 2001 में जम्मू विधानसभा में बम विस्फोट, 6 सितंबर 2003 में जम्मू के एक इलाके में बम विस्फोट और 16 नवंबर 2006 को जम्मू-कश्मीर के एक बैंक में बम विस्फोट कर कई लोगों की जान लेने का आरोप है।
कश्मीर के कांजीकोला इलाके में सक्रिय अबू जार कार बम के इस्तेमाल में माहिर माना जाता है। वह कश्मीर के आतंकियों के छोटे -छोटे गुटों को इकट्ठा कर देश में हमले कराने की फिराक में है। अल-कायदा आतंकी का मकसद दोनों देशों में युद्ध जैसे हालात पैदा करने का है।
पाकिस्तान की भारत के प्रति खुन्नस किसी से छिपी नहीं है । दरअसल वह हज़ार घावों से लहूलुहान हिन्दुस्तान देखना चाहता है , लेकिन अमेरिका की ख्वाहिश भी कुछ अलग नहीं । पूरा देश बराक ओबामा के चुने जाने पर बौरा रहा था लेकिन जिस तरह से आउट सोर्सिंग पर रोक लगाने का फ़रमान सामने आया है , मालूम होता है भारत का दुनिया में बढता रसूख अमेरिका की आँख की किरकिरी बन गया है । मंदी ने पूरी दुनिया में ज़लज़ला ला दिया है । इसमें तीस लाख से ज़्यादा भारतीय रोज़गार गवाँ बैठे हैं , लेकिन नेता ’ओम शांति, शांति ,शांति......... जपते हुए चुनावी रणभेरी फ़ूँकने की कवायद में मशगूल हैं ।
( चुनाव पूर्व चेतावनी - नीम बेहोशी से जागो । अब भी नहीं तो कभी नहीं । मोमबत्तियाँ जलाने वालों , गुलाबी चड्डियों के गिफ़्ट बाँटने वालों ,बेवजह सड़क पर दौड़ लगाने वालों ,हवा में मुक्के लहराने वालों , हस्ताक्षर के ज़रिए व्यवस्था बदलने का दावा करने वालों कोई तो रास्ता सोचो । छोटे - बड़े अपराधी में से चुनाव की भूल मत दोहराओ । देश बचाओ ,लोकतंत्र बचाओ )
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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
सोमवार, 26 जनवरी 2009
अभावों को समृद्धि में बदलना सीखें इज़राइल से
गाज़ा पट्टी पर कब्ज़े को लेकर इज़राइल और हमास के बीच चले आ रहे संघर्ष को लेकर दो तरह की बातें सुनने मिलती हैं । कुछ लोग इज़राइल की सैन्य कार्रवाई को बर्बर और गैरज़रुरी बताते हुए मानवता की दुहाई देते हैं । वहीं एक बडा तबका ऎसा भी है जो हमास को नेस्तनाबूद करने के इज़राइली संकल्प को आतंकवाद के खिलाफ़ जंग से जोड कर देखता है ।
चिंतक और विश्लेषक घनश्याम सक्सेना ने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान इज़राइली विद्वान नेटेनल लार्च से हुई बातचीत का हवाला देते हुए हाल ही में मुझे इज़राइलियों के संघर्षशील स्वभाव के बारे में बताया । लार्च के मुताबिक इज़राइल की हर मोर्चे पर सफ़लता का एकमात्र सूत्र वाक्य है - विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष का जज़्बा कायम रखना और बेहतर के लिए सतत प्रयासरत रहना । इज़राइली किसी भी काम को छोटा - बडा समझने की बजाय उसे अपना कर्तव्य मानकर निभाते हैं ।
अरब देशों ने जब जार्डन नदी पर बांध बनाकर इज़राइल को पानी मिलने की सभी संभावनाओं पर रोक लगा दी , तो संघर्षों में रास्ता तलाशने वालों ने समुद्र के खारे पानी को अपनी तासीर बदलने पर मजबूर कर दिया । आज इज़राइल की ड्रिप इरीगेशन तकनीक खेती के लिए मिसाल बन चुकी है । वे रेगिस्तान में भी रसीली नारंगी का भरपूर उत्पादन लेते हैं । हम पानी को खेतों में बेतहाशा बहा कर उर्वरा भूमि को बंजर में तब्दील कर देते हैं । "टपक विधि" अपनाकर भरपूर पैदावार लेने वाले इज़राइली सबक हैं भारतीय किसानों के लिए ।
नेपाल में रहने वाले मेरे पारिवारिक मित्र "पानी की खेती" की तकनीक का प्रशिक्षण लेने के लिए इज़राइल गये थे । वे इज़राइलियों की तकनीकी सूझबूझ से चमत्कृत थे । उन्होंने बताया कि किस तरह महज़ दो- चार फ़ीसदी बरसात के पानी का वे खूबसूरती से इस्तेमाल करते हैं । वहां घरों में तीन तरह के नलों से पानी पहुंचाया जाता है और हरेक पानी का उपयोग भी तयशुदा होता है । दूसरी तरफ़ हम हैं । प्रकृति ने हमें सैकडों नदियों का वरदान दिया । हज़ारों तालाबों की दौलत से नवाज़ा और अनगिनत कुएं- बावडियों की सौगात भी बख्शी । बादलों की मेहरबानी भी जमकर बरसती है , लेकिन हमने कुदरत की इस बख्शीश की कीमत ही नहीं जानी । नतीजतन आज देश में पानी के लिए त्राहि - त्राहि मची है ।
लार्च ने हिब्रू भाषा में लिखी अपनी किताब ’मेज़ेल टोव’ यानी ’गुड लक” का हवाला देते हुए बताया कि जिस ब्रिटिश कूटनीति के फ़लस्वरुप 15 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का बंटवारा हुआ उसी वजह से अरब देशों के बीच शत्रुता के माहौल में 14 मई 1948 को इज़राइल का जन्म हुआ । आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद जिस तरह कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों ने हमला किया था ,उसी तरह इज़राइल पर सात अरब देशों ने हमला बोल दिया ।
आतंकवाद से निपटने के मामले में भारत और इज़राइल के सामर्थ्य की चर्चा के दौरान लार्च ने श्री सक्सेना को कई असमानताएं गिनाईं । लार्च मानते हैं "हमें अभावों का वरदान मिला है ,जबकि भारत को समृद्धि का अभिशाप । इसलिए इज़राइल ने अभावों को समृद्धि में बदलने का हुनर सीखा । दूसरी ओर समृद्ध भारत ’सब चलता है’ के नज़रिए के साथ आगे बढा ।"
इज़राइली विद्वान लार्च भारत को शॉक एब्ज़ार्वर करार देते हुए कहते हैं कि " हम एक आतंकी हमला चुपचाप सह लें तो खत्म हो जाएंगे । हम शत्रु राष्ट्रों को धमकी नहीं देते ,बल्कि सीधे वार करते हैं । इधर भारत लगातार चेतावनी तो देता है मगर कार्रवाही कुछ नहीं करता । इज़राइल आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देता है ।"
मेरे परिचितों की ज़ुबानी इन वृतांतों को सुनने के बाद से मेरा मन सवाल कर रहा है कि क्या भारत अपने हमउम्र साथी राष्ट्र से कभी कोई सबक सीख पाएगा ? क्या कुदरत की नियामतों को सहेजने की सलाहियत हम लोगों में कभी आ पाएगी ..? क्या ऎसा भी कोई दिन आएगा जब कोई दुश्मन आंख उठाकर देखने की हिमाकत करे तो हम उसकी आंखें निकाल लें ...? कब मेरे देश का हर खेत हरियाली से लहलहाएगा और हर शख्स भरपेट भोजन कर चैन की नींद सो सकेगा अपनी छत के नीचे ...? मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि आज भी हम सब हालात बदलने की ताकत रखते हैं । अपनी हिकमत और हिम्मत से हर तूफ़ान का रुख बदल सकते हैं ।
हम बचाएंगे , सजायेंगे, संवारेंगे तुझे
हर मिटे नक्श को चमका के उभारेंगे तुझे
अपनी शह - रग का लहू दे के निखारेंगे तुझे
दार पे चढ के फ़िर इक बार पुकारेंगे तुझे
राह इमदाद की देखें ये भले तौर नहीं
हम भगत सिंह के साथी हैं कोई और नहीं
चिंतक और विश्लेषक घनश्याम सक्सेना ने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान इज़राइली विद्वान नेटेनल लार्च से हुई बातचीत का हवाला देते हुए हाल ही में मुझे इज़राइलियों के संघर्षशील स्वभाव के बारे में बताया । लार्च के मुताबिक इज़राइल की हर मोर्चे पर सफ़लता का एकमात्र सूत्र वाक्य है - विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष का जज़्बा कायम रखना और बेहतर के लिए सतत प्रयासरत रहना । इज़राइली किसी भी काम को छोटा - बडा समझने की बजाय उसे अपना कर्तव्य मानकर निभाते हैं ।
अरब देशों ने जब जार्डन नदी पर बांध बनाकर इज़राइल को पानी मिलने की सभी संभावनाओं पर रोक लगा दी , तो संघर्षों में रास्ता तलाशने वालों ने समुद्र के खारे पानी को अपनी तासीर बदलने पर मजबूर कर दिया । आज इज़राइल की ड्रिप इरीगेशन तकनीक खेती के लिए मिसाल बन चुकी है । वे रेगिस्तान में भी रसीली नारंगी का भरपूर उत्पादन लेते हैं । हम पानी को खेतों में बेतहाशा बहा कर उर्वरा भूमि को बंजर में तब्दील कर देते हैं । "टपक विधि" अपनाकर भरपूर पैदावार लेने वाले इज़राइली सबक हैं भारतीय किसानों के लिए ।
नेपाल में रहने वाले मेरे पारिवारिक मित्र "पानी की खेती" की तकनीक का प्रशिक्षण लेने के लिए इज़राइल गये थे । वे इज़राइलियों की तकनीकी सूझबूझ से चमत्कृत थे । उन्होंने बताया कि किस तरह महज़ दो- चार फ़ीसदी बरसात के पानी का वे खूबसूरती से इस्तेमाल करते हैं । वहां घरों में तीन तरह के नलों से पानी पहुंचाया जाता है और हरेक पानी का उपयोग भी तयशुदा होता है । दूसरी तरफ़ हम हैं । प्रकृति ने हमें सैकडों नदियों का वरदान दिया । हज़ारों तालाबों की दौलत से नवाज़ा और अनगिनत कुएं- बावडियों की सौगात भी बख्शी । बादलों की मेहरबानी भी जमकर बरसती है , लेकिन हमने कुदरत की इस बख्शीश की कीमत ही नहीं जानी । नतीजतन आज देश में पानी के लिए त्राहि - त्राहि मची है ।
लार्च ने हिब्रू भाषा में लिखी अपनी किताब ’मेज़ेल टोव’ यानी ’गुड लक” का हवाला देते हुए बताया कि जिस ब्रिटिश कूटनीति के फ़लस्वरुप 15 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का बंटवारा हुआ उसी वजह से अरब देशों के बीच शत्रुता के माहौल में 14 मई 1948 को इज़राइल का जन्म हुआ । आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद जिस तरह कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों ने हमला किया था ,उसी तरह इज़राइल पर सात अरब देशों ने हमला बोल दिया ।
आतंकवाद से निपटने के मामले में भारत और इज़राइल के सामर्थ्य की चर्चा के दौरान लार्च ने श्री सक्सेना को कई असमानताएं गिनाईं । लार्च मानते हैं "हमें अभावों का वरदान मिला है ,जबकि भारत को समृद्धि का अभिशाप । इसलिए इज़राइल ने अभावों को समृद्धि में बदलने का हुनर सीखा । दूसरी ओर समृद्ध भारत ’सब चलता है’ के नज़रिए के साथ आगे बढा ।"
इज़राइली विद्वान लार्च भारत को शॉक एब्ज़ार्वर करार देते हुए कहते हैं कि " हम एक आतंकी हमला चुपचाप सह लें तो खत्म हो जाएंगे । हम शत्रु राष्ट्रों को धमकी नहीं देते ,बल्कि सीधे वार करते हैं । इधर भारत लगातार चेतावनी तो देता है मगर कार्रवाही कुछ नहीं करता । इज़राइल आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देता है ।"
मेरे परिचितों की ज़ुबानी इन वृतांतों को सुनने के बाद से मेरा मन सवाल कर रहा है कि क्या भारत अपने हमउम्र साथी राष्ट्र से कभी कोई सबक सीख पाएगा ? क्या कुदरत की नियामतों को सहेजने की सलाहियत हम लोगों में कभी आ पाएगी ..? क्या ऎसा भी कोई दिन आएगा जब कोई दुश्मन आंख उठाकर देखने की हिमाकत करे तो हम उसकी आंखें निकाल लें ...? कब मेरे देश का हर खेत हरियाली से लहलहाएगा और हर शख्स भरपेट भोजन कर चैन की नींद सो सकेगा अपनी छत के नीचे ...? मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि आज भी हम सब हालात बदलने की ताकत रखते हैं । अपनी हिकमत और हिम्मत से हर तूफ़ान का रुख बदल सकते हैं ।
हम बचाएंगे , सजायेंगे, संवारेंगे तुझे
हर मिटे नक्श को चमका के उभारेंगे तुझे
अपनी शह - रग का लहू दे के निखारेंगे तुझे
दार पे चढ के फ़िर इक बार पुकारेंगे तुझे
राह इमदाद की देखें ये भले तौर नहीं
हम भगत सिंह के साथी हैं कोई और नहीं
गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
पाकिस्तान ने फ़िर तरेरी आँखें
पाकिस्तान ने आज सारी दुनिया के सामने खुद को पाक साफ़ बताते हुए युद्ध की संभावनाओं से इंकार किया है । बेनज़ीर की मज़ार पर पाक प्रधानमंत्री युसूफ़ रज़ा गिलानी ने भारत के साथ रिश्ते सामान्य होने की बात कही । साथ ही कहा कि उनका मुल्क जंग नहीं चाहता । गिलानी ने उल्टे भारत पर तोहमत जड दी कि भारतीय प्रधानमंत्री पर युद्ध का भारी दबाव है । यानी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ...।
एक तरफ़ तो मीडिया के सामने शांति का राग अलापा जा रहा है । वहीं दूसरी ओर राजस्थान से सटी सीमा पर भारी तादाद में सेना का जमावडा किया जा रहा है । शांति की बात हाथ में बंदूक लेकर तो नहीं की जाती ...? पाकिस्तान से इसी तरह के दोगलेपन की उम्मीद है ।
गिलानी इतने पर ही नहीं रुके । उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि करांची धमाके में मुम्बई हमले की बनिस्बत कहीं ज़्यादा लोग मारे गये थे । ये भी खूब रही । पाक हर चाल बडी ही चतुराई से चल रहा है और फ़ौरी तौर पर तो यही लग रहा है कि वो कामयाब भी हो रहा है । हर रोज़ नए दांव चलकर पाकिस्तान शातिराना तरीके से भारत को पीछे ठेल रहा है । मज़े की बात तो ये है कि पाकिस्तान ने आज भारत पर आर्थिक पाबंदी लगाने की धमकी तक दे डाली । लीजिए साहब, चूहे ने हाथी की चड्डी भी चुरा ली । लेकिन हाथी तो हाथी है । उसकी सहनशीलता तो देखो वो ऎसी छोटी मोटी बातों पर कुछ नहीं कहता .....।
दांव पेंच में माहिर पाकिस्तान ने एक और शिगूफ़ा छोडा है ,बल्कि यूं कहें कि नई चाल चली है । कसाब के मुद्दे पर घिरते पाकिस्तान ने नहले पर दहला जड कर दुनिया को चौंका दिया है ।
पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसियों ने बुधवार की देर रात एक आदमी को पकड़ा । सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर नाम के इस शख्स के बारे में कहा गया कि वह लाहौर में हुए बड़े बम धमाके का अभियुक्त है। पाक सरकार के अनुसार कोलकाता का मूल निवासी सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर पहले लंदन में भारतीय उच्चायोग में काम कर चुका है। ये अधिकारी दावा करते हैं कि शुक्ला उर्फ मुनीर वास्तव में रॉ का अधिकारी है और जल्दी ही भारत को उसकी पूरी शिनाख्त बता दी जाएगी। साथ ही उसके साथियों की भी सरगर्मी से बहावलपुर में तलाश करने की कवायद की जा रही है , ताकि दावे को पुख्ता किया जा सके । चारों ओर से घिरता दिखाई दे रहा पाकिस्तान आंखें तरेरने से बाज़ नहीं आ रहा ।
लगातार बढ़ते जा रहे तनाव को देखते हुए पाकिस्तान का ताज़ातरीन इल्ज़ाम स्तब्ध कर देने वाला है। पाकिस्तान बहुत पहले से आरोप लगाता रहा है कि भारत की प्रति गुप्तचर एजेंसी रॉ लगातार पाकिस्तान को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है और दुनिया के देश इस मामले में सिर्फ पाकिस्तान को ही दोषी ठहरा रहे हैं।
पाकिस्तान मुम्बई हमले के बाद से लगातार पैंतरेबाज़ी कर भारत को उलझा रहा है । हर रोज़ नए - नए दावे ..। नए नए खुलासे ..। कभी हमलों में हिन्दू आतंकियों का हाथ होने की बात कह कर । कभी कसाब को नेपाल का कैदी बताकर । कसाब लगातार पाकिस्तान से मदद की गुहार लगा रहा है । मगर पाक सरकार उससे पल्ला झाड रही है । उसने पाक उच्चायोग को पत्र भेजा है। खत में पाक नागरिक होने के नाते उसे कानूनी मदद देने की अपील की है । उधर पाक प्रधानमंत्री के आंतरिक सुरक्षा सलाहकार रहमान मलिक ने कहा है कि जब तक कसाब का पाकिस्तानी नागरिक होना साबित नहीं हो जाता तब तक उसे कानूनी सहायता देने का सवाल ही नहीं उठता।
कल तक कसाब के पाक नागरिक होने में नवाज़ शरीफ़ को कोई संदेह नहीं था ,लेकिन अब उनके सुर भी बदल गये हैं । दूसरी तरफ़ हमारे देश के नेता अब तक ये ही तय नहीं कर पा रहे कि आखिर वे चाहते क्या हैं ....? वोट की राजनीति ने देश को गृह युद्ध की ओर धकेलने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड रखी है ।
कालिदास को भी अक्ल आ गई थी कि जिस शाख पर बैठे हों उसे नहीं काटा जाता , मगर इन बजरबट्टुओं को तो सामने आ पडी मुसीबत भी एकजुट नहीं कर पा रही ।
हालात ऎसे ही रहे तो हो सकता है आने वाले दिनों में पाकिस्तान भारत की दादागीरी का शिकार बनकर दुनिया की नज़रों में बेचारा बन जाए और भारत को आतंकी देश घोषित कराने के लिए ज़बरदस्त लाबिंग में कामयाब रहें । सही मायनों में देखा जाए तो फ़िलहाल पाकिस्तान हर मामले में भारी पड रहा है भारत पर ...।
एक तरफ़ तो मीडिया के सामने शांति का राग अलापा जा रहा है । वहीं दूसरी ओर राजस्थान से सटी सीमा पर भारी तादाद में सेना का जमावडा किया जा रहा है । शांति की बात हाथ में बंदूक लेकर तो नहीं की जाती ...? पाकिस्तान से इसी तरह के दोगलेपन की उम्मीद है ।
गिलानी इतने पर ही नहीं रुके । उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि करांची धमाके में मुम्बई हमले की बनिस्बत कहीं ज़्यादा लोग मारे गये थे । ये भी खूब रही । पाक हर चाल बडी ही चतुराई से चल रहा है और फ़ौरी तौर पर तो यही लग रहा है कि वो कामयाब भी हो रहा है । हर रोज़ नए दांव चलकर पाकिस्तान शातिराना तरीके से भारत को पीछे ठेल रहा है । मज़े की बात तो ये है कि पाकिस्तान ने आज भारत पर आर्थिक पाबंदी लगाने की धमकी तक दे डाली । लीजिए साहब, चूहे ने हाथी की चड्डी भी चुरा ली । लेकिन हाथी तो हाथी है । उसकी सहनशीलता तो देखो वो ऎसी छोटी मोटी बातों पर कुछ नहीं कहता .....।
दांव पेंच में माहिर पाकिस्तान ने एक और शिगूफ़ा छोडा है ,बल्कि यूं कहें कि नई चाल चली है । कसाब के मुद्दे पर घिरते पाकिस्तान ने नहले पर दहला जड कर दुनिया को चौंका दिया है ।
पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसियों ने बुधवार की देर रात एक आदमी को पकड़ा । सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर नाम के इस शख्स के बारे में कहा गया कि वह लाहौर में हुए बड़े बम धमाके का अभियुक्त है। पाक सरकार के अनुसार कोलकाता का मूल निवासी सतीश आनंद शुक्ला उर्फ मुनीर पहले लंदन में भारतीय उच्चायोग में काम कर चुका है। ये अधिकारी दावा करते हैं कि शुक्ला उर्फ मुनीर वास्तव में रॉ का अधिकारी है और जल्दी ही भारत को उसकी पूरी शिनाख्त बता दी जाएगी। साथ ही उसके साथियों की भी सरगर्मी से बहावलपुर में तलाश करने की कवायद की जा रही है , ताकि दावे को पुख्ता किया जा सके । चारों ओर से घिरता दिखाई दे रहा पाकिस्तान आंखें तरेरने से बाज़ नहीं आ रहा ।
लगातार बढ़ते जा रहे तनाव को देखते हुए पाकिस्तान का ताज़ातरीन इल्ज़ाम स्तब्ध कर देने वाला है। पाकिस्तान बहुत पहले से आरोप लगाता रहा है कि भारत की प्रति गुप्तचर एजेंसी रॉ लगातार पाकिस्तान को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है और दुनिया के देश इस मामले में सिर्फ पाकिस्तान को ही दोषी ठहरा रहे हैं।
पाकिस्तान मुम्बई हमले के बाद से लगातार पैंतरेबाज़ी कर भारत को उलझा रहा है । हर रोज़ नए - नए दावे ..। नए नए खुलासे ..। कभी हमलों में हिन्दू आतंकियों का हाथ होने की बात कह कर । कभी कसाब को नेपाल का कैदी बताकर । कसाब लगातार पाकिस्तान से मदद की गुहार लगा रहा है । मगर पाक सरकार उससे पल्ला झाड रही है । उसने पाक उच्चायोग को पत्र भेजा है। खत में पाक नागरिक होने के नाते उसे कानूनी मदद देने की अपील की है । उधर पाक प्रधानमंत्री के आंतरिक सुरक्षा सलाहकार रहमान मलिक ने कहा है कि जब तक कसाब का पाकिस्तानी नागरिक होना साबित नहीं हो जाता तब तक उसे कानूनी सहायता देने का सवाल ही नहीं उठता।
कल तक कसाब के पाक नागरिक होने में नवाज़ शरीफ़ को कोई संदेह नहीं था ,लेकिन अब उनके सुर भी बदल गये हैं । दूसरी तरफ़ हमारे देश के नेता अब तक ये ही तय नहीं कर पा रहे कि आखिर वे चाहते क्या हैं ....? वोट की राजनीति ने देश को गृह युद्ध की ओर धकेलने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड रखी है ।
कालिदास को भी अक्ल आ गई थी कि जिस शाख पर बैठे हों उसे नहीं काटा जाता , मगर इन बजरबट्टुओं को तो सामने आ पडी मुसीबत भी एकजुट नहीं कर पा रही ।
हालात ऎसे ही रहे तो हो सकता है आने वाले दिनों में पाकिस्तान भारत की दादागीरी का शिकार बनकर दुनिया की नज़रों में बेचारा बन जाए और भारत को आतंकी देश घोषित कराने के लिए ज़बरदस्त लाबिंग में कामयाब रहें । सही मायनों में देखा जाए तो फ़िलहाल पाकिस्तान हर मामले में भारी पड रहा है भारत पर ...।
मंगलवार, 23 दिसंबर 2008
ब्रेकिंग न्यूज़ - कसाब होगा दुनिया से रुबरु
देश के सीधे साधे प्रधानमंत्री और शेयर बाज़ार के उतार चढाव को भी काबू ने ना कर पाने वाले चिदाम्बरम साहब गृहमंत्री बनकर भी कुछ खास नहीं कर पा रहे पाकिस्तान के खिलाफ़ । अब लगता है सरकार के नाकारापन से थक हार चुके खुफ़िया अधिकारियों ने ही पाकिस्तान को घेरने के लिए कमर कस ली है । इंतज़ार है सिर्फ़ केंद्र से हरी झंडी मिलने का ।
योजना को मंज़ूरी मिली तो कसाब टीवी पर लाइव प्रसारण के ज़रिए आतंक के आकाओं को बेपर्दा करेगा । वह खुद बताएगा सारी दुनिया को मुम्बई हमले का मकसद । पाकिस्तान का हाथ होने के सारे सबूत कसाब की मुंह ज़बानी सुनने के बाद देखना होगा कि बीच के बंदर की भूमिका निभा रहा अमेरिका क्या रुख अपनाता है ।
कहीं ऎसा ना हो कि दो बिल्लियों की लडाई में बंदर पूरी रोटी हज़म कर जाए और चालाक बिल्ली [पाकिस्तान ] बंदर को अलग ले जाकर इस तमाशे की कीमत वसूल ले और मूर्ख बिल्ली [भारत ] इसे किस्मत का खेल मानकर सब कुछ भगवान के भरोसे छोडकर अगले आतंकी हमले का इंतज़ार करे । वैसे भी पाकिस्तान की बीन पर हिंदुस्तान नाच रहा है । सबूत पर सबूत ,सबूत पर सबूत ..... ,मगर नतीजा सिफ़र ...?
वैसे भी इंटरपोल चीफ़ रोनाल्ड के. नोबल भारत में तफ़्तीश का नाटक करते रहे । पाकिस्तान पहुंचते ही जांच में पाकिस्तान के खिलाफ़ कोई सबूत ना मिलने की बात कह कर सब को चौंका दिया । आखिर क्या है पाकिस्तान की सरज़मीं में ,जो वहां कदम रखते ही सभी के सुर बदल जाते हैं । कहीं कोई ब्लैक मैजिक तो नहीं .....?
योजना को मंज़ूरी मिली तो कसाब टीवी पर लाइव प्रसारण के ज़रिए आतंक के आकाओं को बेपर्दा करेगा । वह खुद बताएगा सारी दुनिया को मुम्बई हमले का मकसद । पाकिस्तान का हाथ होने के सारे सबूत कसाब की मुंह ज़बानी सुनने के बाद देखना होगा कि बीच के बंदर की भूमिका निभा रहा अमेरिका क्या रुख अपनाता है ।
कहीं ऎसा ना हो कि दो बिल्लियों की लडाई में बंदर पूरी रोटी हज़म कर जाए और चालाक बिल्ली [पाकिस्तान ] बंदर को अलग ले जाकर इस तमाशे की कीमत वसूल ले और मूर्ख बिल्ली [भारत ] इसे किस्मत का खेल मानकर सब कुछ भगवान के भरोसे छोडकर अगले आतंकी हमले का इंतज़ार करे । वैसे भी पाकिस्तान की बीन पर हिंदुस्तान नाच रहा है । सबूत पर सबूत ,सबूत पर सबूत ..... ,मगर नतीजा सिफ़र ...?
वैसे भी इंटरपोल चीफ़ रोनाल्ड के. नोबल भारत में तफ़्तीश का नाटक करते रहे । पाकिस्तान पहुंचते ही जांच में पाकिस्तान के खिलाफ़ कोई सबूत ना मिलने की बात कह कर सब को चौंका दिया । आखिर क्या है पाकिस्तान की सरज़मीं में ,जो वहां कदम रखते ही सभी के सुर बदल जाते हैं । कहीं कोई ब्लैक मैजिक तो नहीं .....?
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
दो लोगों ने लिख दी दो मुल्कों की तकदीर ......
लम्हों ने खता की थी , सदियों ने सज़ा पाई ।
यह शेर भारत के मौजूदा हालात के मद्देनज़र बिल्कुल मौजूं है । चंद सियासतदानों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की कीमत लाखॊं जानों ने तब चुकाई और आने वाली कई पीढियां ना जाने कब तक इस फ़ैसले से उपजे वैमनस्य का विषपान करती रहेंगी ।
जिस तरह आज भारत के ज़ाती मामलों के फ़ैसले अमेरिका और ब्रिटेन ले रहे हैं , उसी तरह देश छोड कर जाते वक्त भी मुल्क के बँटवारे का फ़ैसला अंग्रज़ों ने ही अपने तईं ले लिया । हिंदुस्तान को अपनी मिल्कियत समझ अपना हक मांगने की चाहत में नेहरु - जिन्ना ने अखंड भारत के बाज़ू काटने में अंग्रेज़ हुकूमत की भरपूर मदद की । आज हालात बताते हैं कि
ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम
ना इधर के रहे , ना उधर के हम ।
हाल ही में कुछ ऎसे दस्तावेज़ों का खुलासा हुआ है ,जो भारत-पाकिस्तान बँटवारे की त्रासदी पर नई रोशनी डालते हैं । मुल्क के बँटवारे के गवाह रहे एक ब्रिटिश नौकरशाह के अप्रकाशित दस्तावेजों के मुताबिक़ सिर्फ़ दो लोगों ने भारत के बँटवारे और दो मुल्कों की तक़दीर को तय किया था
नौकरशाह क्रिस्टोफ़र बोमांट 1947 में ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिरिल रेडक्लिफ़ के निजी सचिव थे रेडक्लिफ़ भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा निर्धारण आयोग के अध्यक्ष थे सचिव होने के नाते बोमांट इस विभाजन का अहम हिस्सा रहे क्रिस्टोफ़र के पुत्र राबर्ट बोमांट ने इन दस्तावेजों के आधार पर दावा किया कि लार्ड माउंटबेटन के निजी सचिव सर जार्ज एबेल की 1989 में मृत्यु के बाद अब सिर्फ़ वह ही दोनों देशों के विभाजन का सच जानते हैं । क्रिस्टोफ़र बोमांट की मृत्यु 2002 में हो गई थी ।
दस्तावेज़ों के मुताबिक़ हिन्दुस्तान के तत्कालीन वायरसराय लार्ड माउंटबेटेन और रेडक्लिफ़ ने ही मिलकर दोनों देशों के बंटवारे का खाक़ा खीच दिया था । ब्रिटिश जज रैडक्लिफ़ को दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करने का दायित्व सौंपा गया था ।
रैडक्लिफ़ न तो इससे पहले भारत आए थे और न ही इसके बाद कभी आए । इसके बावजूद उन्होंने दोनों देशों के बीच जो सीमारेखा खींची उससे करोड़ों लोगों अंसतुष्ट हो गए ।
जल्दबाज़ी में किए गए इस विभाजन ने 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया । धार्मिक आधार पर हुए इस बँटवारे में चालीस करोड़ लोगों की तक़दीर तय की गई । इन दस्तावेज़ों में " ब्रिटिश भारत " के आख़िरी दिनों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है । इसमें कहा गया कि बँटवारे के काम को बेहद जल्दबाज़ी में अंज़ाम दिया गया था ।
बोमांट ने दस्तावेज़ों में लिखा है कि वायसराय माउंटबेटन को पंजाब में हुए भीषण नरसंहार का ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए , जिसमें महिलाओँ, बच्चों समेत लगभग पाँच लाख लोग मारे गए थे. एक अनुमान के अनुसार बँटवारे में दोनों ओर से लगभग 1 करोड 45 लाख लोग पलायन को मज़बूर हुए थे ।
आज़ादी के दो दिन बाद ही जब यह घोषणा हो गई कि सीमाएं कहाँ होंगी , तो पंजाब हिंसा की आग में जल उठा । ट्रेनों में सीमा पार कर रहे लोगों की लाशें भेजी जाने लगीं और कई बार तो उनके अंग भी क्षत-विक्षत होते थे. दोनो तरफ ही महिलाएं हिंसा और बलात्कार की शिकार हुईं ।
भारत की आबादी पाकिस्तान की तीन गुनी थी और ज़्यादातर लोग हिंदू थे । करोड़ों मुस्लिम सीमा के एक तरफ़ और हिंदू-सिख दूसरी तरफ पहुँच गए । भारी संख्या में दोनों तरफ़ के लोगों को सीमा के पार जाना पड़ा । तनाव बढ़ा और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू हो गए. इसमे कितने लोग मारे गए इसका सही आँकड़ा कोई नहीं बता सका । इतिहासकार मानते हैं कि पाँच लाख से अधिक लोग मारे गए । 10 हज़ार महिलाओं के साथ या तो बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया । एक करोड़ से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिसका असर आज भी दक्षिण एशिया की राजनीति और कूटनीति पर दिखता है ।
''एक बड़े क्षेत्र के बहुसंख्यकों को उनकी इच्छा के विपरीत एक ऐसी सरकार के शासन में रहने के लिए बाध्य नहीं किया सकता जिसमें दूसरे समुदाय के लोगों का बहुमत हो और इसका एकमात्र विकल्प है विभाजन ।''
इन शब्दों के साथ ही भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा की कि ब्रिटेन एक देश को नहीं बल्कि दो देश को स्वतंत्रता देने जा रहा है । तब भारत की एकता बनाए रखने के साथ ही मुसलमानों के हितों को सुरक्षित रखने के ब्रिटेन के सभी संवैधानिक फॉर्मूले विफ़ल हो चुके थे ।
माउंटबेटन ने अपना यह बयान 3 जून 1947 को दिया था और उसके 10 सप्ताह बाद ही उन्होंने दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग भी लिया । 14 अगस्त को कराची में वे स्पष्ट मुस्लिम पहचान के साथ गठित राष्ट्र के गवाह बने और इसके अगले दिन दिल्ली में भारत के पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा ले रहे थे ।
भारत पिछली शताब्दी से ही स्वशासन की माँग कर रहा था और वर्ष 1920 से लेकर 1930 के बीच में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में इसने ज़ोर पकड़ा । भारत के मुस्लिम समुदाय में से कई लोगों की राय में हिंदू बहुल देश में रहना फ़ायदेमंद नहीं था । मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने इस माँग को काफ़ी मज़बूती से उठाया । मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए अलग देश की माँग करने लगी थी. विश्व युद्ध के बाद राज्यों में हुए चुनावों में मुस्लिम लीग के मज़बूत प्रदर्शन के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अलग पाकिस्तान की माँग ज़्यादा दिनों तक नज़र अंदाज़ नहीं की जा सकती है ।
इसके बाद से यह बहस का विषय बना हुआ है कि विभाजन सही था या ग़लत, इससे बचा जा सकता था या नहीं । लेकिन दक्षिण एशिया के इतिहासकार मानते हैं कि अगर ब्रिटेन ने विभाजन के लिए इतनी जल्दबाज़ी नहीं दिखाई होती और इसे थोड़ी तैयारी के साथ अंजाम दिया जाता तो काफ़ी हद तक कत्लेआम को टाला जा सकता था ।
जम्मू-कश्मीर मसले की वजह से दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ा. यह राज्य भारत और पाकिस्तान की सीमा पर मुस्लिम बहुल राज्य था लेकिन यह किस देश के साथ जुड़े ये फ़ैसला जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक को करना था । आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध शुरू हो गया लेकिन इस विवाद का अब तक कोई हल नहीं निकल पाया ।
यह शेर भारत के मौजूदा हालात के मद्देनज़र बिल्कुल मौजूं है । चंद सियासतदानों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की कीमत लाखॊं जानों ने तब चुकाई और आने वाली कई पीढियां ना जाने कब तक इस फ़ैसले से उपजे वैमनस्य का विषपान करती रहेंगी ।
जिस तरह आज भारत के ज़ाती मामलों के फ़ैसले अमेरिका और ब्रिटेन ले रहे हैं , उसी तरह देश छोड कर जाते वक्त भी मुल्क के बँटवारे का फ़ैसला अंग्रज़ों ने ही अपने तईं ले लिया । हिंदुस्तान को अपनी मिल्कियत समझ अपना हक मांगने की चाहत में नेहरु - जिन्ना ने अखंड भारत के बाज़ू काटने में अंग्रेज़ हुकूमत की भरपूर मदद की । आज हालात बताते हैं कि
ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम
ना इधर के रहे , ना उधर के हम ।
हाल ही में कुछ ऎसे दस्तावेज़ों का खुलासा हुआ है ,जो भारत-पाकिस्तान बँटवारे की त्रासदी पर नई रोशनी डालते हैं । मुल्क के बँटवारे के गवाह रहे एक ब्रिटिश नौकरशाह के अप्रकाशित दस्तावेजों के मुताबिक़ सिर्फ़ दो लोगों ने भारत के बँटवारे और दो मुल्कों की तक़दीर को तय किया था
नौकरशाह क्रिस्टोफ़र बोमांट 1947 में ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिरिल रेडक्लिफ़ के निजी सचिव थे रेडक्लिफ़ भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा निर्धारण आयोग के अध्यक्ष थे सचिव होने के नाते बोमांट इस विभाजन का अहम हिस्सा रहे क्रिस्टोफ़र के पुत्र राबर्ट बोमांट ने इन दस्तावेजों के आधार पर दावा किया कि लार्ड माउंटबेटन के निजी सचिव सर जार्ज एबेल की 1989 में मृत्यु के बाद अब सिर्फ़ वह ही दोनों देशों के विभाजन का सच जानते हैं । क्रिस्टोफ़र बोमांट की मृत्यु 2002 में हो गई थी ।
दस्तावेज़ों के मुताबिक़ हिन्दुस्तान के तत्कालीन वायरसराय लार्ड माउंटबेटेन और रेडक्लिफ़ ने ही मिलकर दोनों देशों के बंटवारे का खाक़ा खीच दिया था । ब्रिटिश जज रैडक्लिफ़ को दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करने का दायित्व सौंपा गया था ।
रैडक्लिफ़ न तो इससे पहले भारत आए थे और न ही इसके बाद कभी आए । इसके बावजूद उन्होंने दोनों देशों के बीच जो सीमारेखा खींची उससे करोड़ों लोगों अंसतुष्ट हो गए ।
जल्दबाज़ी में किए गए इस विभाजन ने 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया । धार्मिक आधार पर हुए इस बँटवारे में चालीस करोड़ लोगों की तक़दीर तय की गई । इन दस्तावेज़ों में " ब्रिटिश भारत " के आख़िरी दिनों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है । इसमें कहा गया कि बँटवारे के काम को बेहद जल्दबाज़ी में अंज़ाम दिया गया था ।
बोमांट ने दस्तावेज़ों में लिखा है कि वायसराय माउंटबेटन को पंजाब में हुए भीषण नरसंहार का ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए , जिसमें महिलाओँ, बच्चों समेत लगभग पाँच लाख लोग मारे गए थे. एक अनुमान के अनुसार बँटवारे में दोनों ओर से लगभग 1 करोड 45 लाख लोग पलायन को मज़बूर हुए थे ।
आज़ादी के दो दिन बाद ही जब यह घोषणा हो गई कि सीमाएं कहाँ होंगी , तो पंजाब हिंसा की आग में जल उठा । ट्रेनों में सीमा पार कर रहे लोगों की लाशें भेजी जाने लगीं और कई बार तो उनके अंग भी क्षत-विक्षत होते थे. दोनो तरफ ही महिलाएं हिंसा और बलात्कार की शिकार हुईं ।
भारत की आबादी पाकिस्तान की तीन गुनी थी और ज़्यादातर लोग हिंदू थे । करोड़ों मुस्लिम सीमा के एक तरफ़ और हिंदू-सिख दूसरी तरफ पहुँच गए । भारी संख्या में दोनों तरफ़ के लोगों को सीमा के पार जाना पड़ा । तनाव बढ़ा और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू हो गए. इसमे कितने लोग मारे गए इसका सही आँकड़ा कोई नहीं बता सका । इतिहासकार मानते हैं कि पाँच लाख से अधिक लोग मारे गए । 10 हज़ार महिलाओं के साथ या तो बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया । एक करोड़ से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिसका असर आज भी दक्षिण एशिया की राजनीति और कूटनीति पर दिखता है ।
''एक बड़े क्षेत्र के बहुसंख्यकों को उनकी इच्छा के विपरीत एक ऐसी सरकार के शासन में रहने के लिए बाध्य नहीं किया सकता जिसमें दूसरे समुदाय के लोगों का बहुमत हो और इसका एकमात्र विकल्प है विभाजन ।''
इन शब्दों के साथ ही भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा की कि ब्रिटेन एक देश को नहीं बल्कि दो देश को स्वतंत्रता देने जा रहा है । तब भारत की एकता बनाए रखने के साथ ही मुसलमानों के हितों को सुरक्षित रखने के ब्रिटेन के सभी संवैधानिक फॉर्मूले विफ़ल हो चुके थे ।
माउंटबेटन ने अपना यह बयान 3 जून 1947 को दिया था और उसके 10 सप्ताह बाद ही उन्होंने दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग भी लिया । 14 अगस्त को कराची में वे स्पष्ट मुस्लिम पहचान के साथ गठित राष्ट्र के गवाह बने और इसके अगले दिन दिल्ली में भारत के पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा ले रहे थे ।
भारत पिछली शताब्दी से ही स्वशासन की माँग कर रहा था और वर्ष 1920 से लेकर 1930 के बीच में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में इसने ज़ोर पकड़ा । भारत के मुस्लिम समुदाय में से कई लोगों की राय में हिंदू बहुल देश में रहना फ़ायदेमंद नहीं था । मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने इस माँग को काफ़ी मज़बूती से उठाया । मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए अलग देश की माँग करने लगी थी. विश्व युद्ध के बाद राज्यों में हुए चुनावों में मुस्लिम लीग के मज़बूत प्रदर्शन के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अलग पाकिस्तान की माँग ज़्यादा दिनों तक नज़र अंदाज़ नहीं की जा सकती है ।
इसके बाद से यह बहस का विषय बना हुआ है कि विभाजन सही था या ग़लत, इससे बचा जा सकता था या नहीं । लेकिन दक्षिण एशिया के इतिहासकार मानते हैं कि अगर ब्रिटेन ने विभाजन के लिए इतनी जल्दबाज़ी नहीं दिखाई होती और इसे थोड़ी तैयारी के साथ अंजाम दिया जाता तो काफ़ी हद तक कत्लेआम को टाला जा सकता था ।
जम्मू-कश्मीर मसले की वजह से दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ा. यह राज्य भारत और पाकिस्तान की सीमा पर मुस्लिम बहुल राज्य था लेकिन यह किस देश के साथ जुड़े ये फ़ैसला जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक को करना था । आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध शुरू हो गया लेकिन इस विवाद का अब तक कोई हल नहीं निकल पाया ।
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008
मंगलवार, 25 नवंबर 2008
हिंदू आतंकवाद के दांव पर सियासत जीती देश हारा
मालेगांव धमाके की गूंज थमने का नाम ही नहीं ले रही । मामला जितना खुलता है , उतना ही उलझता जा रहा है । हर उगते सूरज के साथ नई कहानी । कभी आरोपी खेमे का पलडा भारी होता है ,तो कभी एटीएस के बहाने कांग्रेस ,लालू और मुलायम खेमे की बांछें खिल जाती हैं ।
जितने मुंह उतनी बातें । खोजी पत्रकार बंधुओं ने अब साध्वी के गांव की खाक छानना शुरु कर दी है । सुनने में आया है कि तेज़तर्रार साध्वी के छात्र जीवन को खंगालकर मालेगांव धमाके के सूत्र तलाशे जा रहे हैं ।
एटीएस तो अच्छी स्क्रिप्ट बनाने में फ़िलहाल नाकाम रही ,लेकिन अपने खबरिया चैनलों ने ज़रुर टेक्निशियन की हडताल के चलते बेरोज़गार घूम रहे स्क्रिप्ट राइटरों को काम पर लगा दिया है । डमी साध्वी बेहतरीन संवाद अदायगी से लोगों तक ’ आधी हकीकत आधा फ़साना ’ पहुंचा रही है ।
खैर खबरें हैं , तो चैनल हैं ,चैनल हैं तो दर्शक हैं , और दर्शक फ़ुरस्तिया हैं , तो चैनलों पर बकवास भी है । यानी सब एक दूसरे के पूरक , पोषक और ग्राहक । बहरहाल मेरे लिए ये कोई मुद्दा नहीं है । मुझे तो चिंता है इस पूरे मसले में सिर्फ़ दो ही बातों की ........। पहली तो ये कि मालेगांव मामले में एटीएस के बयानों ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने का मौका पाकिस्तान को बैठे बिठाए दे दिया है । दूसरी - ज़मींदोज़ हो चुके पीयूसीएल और तीस्ता सीतलवाड सरीखे मानव अधिकारवादियों की ।
सुनने में आया है कि एटीएस के धमाकेदार खुलासों ने भारत सरकार की बेचैनी बढा दी है । विदेश और ग्रह मंत्रालय भी एटीएस द्वारा जुटाए गए तथाकथित बयानों और सबूतों को लेकर पसोपेश में है । उनकी चिंता ये है कि अब एटीएस के इन्हीं सबूतों की बिना पर पाकिस्तान सरकार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ़ माहौल तैयार करेगी ।
सेना और आईबी में भी एटीएस की जांच को लेकर चिंता है । विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्शा सलाहकार तक अपनी चिंता पहुंचा दी है । साथ ही हिंदू आतंकवाद के जुमले से परहेज़ बरतते हुए इसे एक नए रुप में देखने का मशविरा भी दिया है । विदेश मंत्रालय और खुफ़िया एजेंसियां भी मान रही हैं कि भले ही घरेलू राजनीति में इस मामले ने बीजेपी के आतंकवाद के मुद्दे की हवा निकाल दी हो , लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंन्दू आतंकवाद के इस नए चेहरे से देश की छबि को बट्टा लगा है ।
आतंकवाद से निपटने के साझा प्रयास की सहमति बनने के बाद भारत और पाकिस्तान ने अक्टूबर २००६ में एंटी टेरेरिज़्म मैकेनिज़्म [एटीएम] तैयार किया था । हाल ही में इस्लामाबाद में हुई एटीएम की बैठक मे पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की जांच की मांग उठाकर न केवल दबाव बढाया , बल्कि अपने इरादों का संकेत भी दे दिया ।
हिंदू आतंकवाद के तार जिस तरह समझौता एक्सप्रेस मामले से जुडते बताए जा रहे हैं , उनसे पाकिस्तान बेहद उत्साहित है । गौर तलब है कि ब्लास्ट में मरने वाले ज़्यादातर लोग पाकिस्तानी थे । अब तक भारत में होने वाली आतंकवादी वारदातों के लिए पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई को ही ज़िम्मेदार ठहराकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को घेरा जाता रहा है । ये पहला मौका है जब भारत को उसी के देश की एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से घेरने का सुनहरा मौका पाकिस्तान को चलते फ़िरते मिल गया ।
दुनिया छोड चुकी महिलाओं के हितों की लडाई लडने वाला राष्ट्रीय महिला आयोग ज़िंदा औरत की ओर अपने फ़र्ज़ शायद भूल चुका है । मानव अधिकार भी लगता है कुछ खास किस्म के लोगों के ही होते हैं । उन खास लोगों की फ़िक्रमंदी में ही सारे एनजीओ अपनी ऊर्जा ज़ाया करके ही परमार्थ सेवा का पुण्य लाभ अर्जित करते हैं ।
सामान्य से नज़र आने वाले मामले ने बातों ही बातों में देश को मुश्किल मोड पर ला खडा किया है । अब भी देर नहीं हुई है , ओछी राजनीति के लिए देश की साख को दांव पर लगाने की कोशिशों को नाकाम किया जा सकता है संजीदगी और मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते ।
इक तरफ़ ज़ोर है ,हुकूमत है माल है, मुल्क है , सियासत है ।
इक तरफ़ वलवले हैं मेहनत है शोर है , जोश है , बगावत है ।
जितने मुंह उतनी बातें । खोजी पत्रकार बंधुओं ने अब साध्वी के गांव की खाक छानना शुरु कर दी है । सुनने में आया है कि तेज़तर्रार साध्वी के छात्र जीवन को खंगालकर मालेगांव धमाके के सूत्र तलाशे जा रहे हैं ।
एटीएस तो अच्छी स्क्रिप्ट बनाने में फ़िलहाल नाकाम रही ,लेकिन अपने खबरिया चैनलों ने ज़रुर टेक्निशियन की हडताल के चलते बेरोज़गार घूम रहे स्क्रिप्ट राइटरों को काम पर लगा दिया है । डमी साध्वी बेहतरीन संवाद अदायगी से लोगों तक ’ आधी हकीकत आधा फ़साना ’ पहुंचा रही है ।
खैर खबरें हैं , तो चैनल हैं ,चैनल हैं तो दर्शक हैं , और दर्शक फ़ुरस्तिया हैं , तो चैनलों पर बकवास भी है । यानी सब एक दूसरे के पूरक , पोषक और ग्राहक । बहरहाल मेरे लिए ये कोई मुद्दा नहीं है । मुझे तो चिंता है इस पूरे मसले में सिर्फ़ दो ही बातों की ........। पहली तो ये कि मालेगांव मामले में एटीएस के बयानों ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने का मौका पाकिस्तान को बैठे बिठाए दे दिया है । दूसरी - ज़मींदोज़ हो चुके पीयूसीएल और तीस्ता सीतलवाड सरीखे मानव अधिकारवादियों की ।
सुनने में आया है कि एटीएस के धमाकेदार खुलासों ने भारत सरकार की बेचैनी बढा दी है । विदेश और ग्रह मंत्रालय भी एटीएस द्वारा जुटाए गए तथाकथित बयानों और सबूतों को लेकर पसोपेश में है । उनकी चिंता ये है कि अब एटीएस के इन्हीं सबूतों की बिना पर पाकिस्तान सरकार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ़ माहौल तैयार करेगी ।
सेना और आईबी में भी एटीएस की जांच को लेकर चिंता है । विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्शा सलाहकार तक अपनी चिंता पहुंचा दी है । साथ ही हिंदू आतंकवाद के जुमले से परहेज़ बरतते हुए इसे एक नए रुप में देखने का मशविरा भी दिया है । विदेश मंत्रालय और खुफ़िया एजेंसियां भी मान रही हैं कि भले ही घरेलू राजनीति में इस मामले ने बीजेपी के आतंकवाद के मुद्दे की हवा निकाल दी हो , लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंन्दू आतंकवाद के इस नए चेहरे से देश की छबि को बट्टा लगा है ।
आतंकवाद से निपटने के साझा प्रयास की सहमति बनने के बाद भारत और पाकिस्तान ने अक्टूबर २००६ में एंटी टेरेरिज़्म मैकेनिज़्म [एटीएम] तैयार किया था । हाल ही में इस्लामाबाद में हुई एटीएम की बैठक मे पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की जांच की मांग उठाकर न केवल दबाव बढाया , बल्कि अपने इरादों का संकेत भी दे दिया ।
हिंदू आतंकवाद के तार जिस तरह समझौता एक्सप्रेस मामले से जुडते बताए जा रहे हैं , उनसे पाकिस्तान बेहद उत्साहित है । गौर तलब है कि ब्लास्ट में मरने वाले ज़्यादातर लोग पाकिस्तानी थे । अब तक भारत में होने वाली आतंकवादी वारदातों के लिए पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई को ही ज़िम्मेदार ठहराकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को घेरा जाता रहा है । ये पहला मौका है जब भारत को उसी के देश की एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से घेरने का सुनहरा मौका पाकिस्तान को चलते फ़िरते मिल गया ।
दुनिया छोड चुकी महिलाओं के हितों की लडाई लडने वाला राष्ट्रीय महिला आयोग ज़िंदा औरत की ओर अपने फ़र्ज़ शायद भूल चुका है । मानव अधिकार भी लगता है कुछ खास किस्म के लोगों के ही होते हैं । उन खास लोगों की फ़िक्रमंदी में ही सारे एनजीओ अपनी ऊर्जा ज़ाया करके ही परमार्थ सेवा का पुण्य लाभ अर्जित करते हैं ।
सामान्य से नज़र आने वाले मामले ने बातों ही बातों में देश को मुश्किल मोड पर ला खडा किया है । अब भी देर नहीं हुई है , ओछी राजनीति के लिए देश की साख को दांव पर लगाने की कोशिशों को नाकाम किया जा सकता है संजीदगी और मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते ।
इक तरफ़ ज़ोर है ,हुकूमत है माल है, मुल्क है , सियासत है ।
इक तरफ़ वलवले हैं मेहनत है शोर है , जोश है , बगावत है ।
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