वक्त के साथ ही साथ भगवान के मुंह का ज़ायका भी बदल रहा है । हाल ही में एक भक्त ने मंदिर में आरती के बाद मेरे हाथ पर पारले जी बिस्किट और पेठे का प्रसाद रखा । आज कल देवी - देवताओं को भी तरह - तरह के भोग का चस्का लग गया है । चना - चिरौंजी और मुरमुरे अब गुज़रे ज़माने की बात हो गई है । कुछ साल पहले जोबट के पास एक आश्रम में जाने का मौका मिला था ,वहां चाय का प्रसाद पाया । उज्जैन के भैरु बाबा मदिरा पान करके ही प्रसन्न होते हैं और आराधक की मुराद भी पूरी करते हैं । भोले भंडारी महादेव भी जम कर घोंटी गई हरी हरी भांग का भोग लगाकर ही प्रसन्न होते हैं
दुनिया के सबसे अमीर या यूं कहें कि अमीरों के भगवान तिरुपति बालाजी के लड्डू तो जग प्रसिद्ध हैं । उनके प्रसाद की पब्लिक डिमांड भी खूब रहती है । वहीं माता वैष्णो देवी भक्ति भाव से अर्पित सूखॆ सेब और अखरोट भी स्वीकारती हैं । कहते हैं ना कि भगवान भक्त की भावना देखते हैं चढावे के भाव [दाम] नहीं .....। इसी लिए कई जगह तो भक्त सेव - चूडा जैसे नमकीन भी भगवान को समर्पित करते देखे जाते हैं ।
बच्चों से लेकर बूढॊं तक में समान रुप से लोकप्रिय नटखट कन्हैया रुप चाहे जितने धरें ,पसंद वही करते हैं ,जो दुनियादारी के चलन में है । अरे अब तक आप नहीं समझे ...? वही माखन मिश्री ...। आप किसी को भी नर्म नर्म मक्खन लगाकर तो देखिए उसकी चिकनाहट आपका काम ना बना दे तो कहिए ....। कान्हा तो भाव के भूखॆ हैं । वे अपनी पसंद के ज़रिए हमें सीख देते हैं मक्खन सी स्निग्धता और मिश्री की मिठास व्यवहार में लाओ । और फ़िर भी नाकामी ही हाथ लगे , तो मक्खन का इस्तेमाल दूसरे तरीके से भी किया जा सकता है यानी मक्खन पालिश । और ये रामबाण नुस्खा अचूक ही नही सौ फ़ीसदी कारगर भी है ।
कल ही एक खबर पढी । आखिर एक भक्त ने पता लगा ही लिया कि सांईं बाबा को कौन सा फ़ल सबसे ज़्यादा पसंद था । गहन शोध के बाद पता चला है कि अमरुद सांईं बाबा का मनपसंद फ़ल था । सांईं संस्थान के अध्यक्ष जयंत ससाने का कहना है कि शिर्डी और आसपास के इलाके में अमरुद के भारी उत्पादन को देखते हुए श्रद्धालुओं को दिए जाने वाले प्रसाद में अमरुद की बर्फ़ी को भी शामिल किया जाएगा । प्रसाद के लिए अमरुद की बर्फ़ी संस्थान में ही तैयार की जाएगी । इसके लिए प्रसिद्ध मिठाई निर्माता हल्दीराम और पुणे के चितले भंडार से बातचीत चल रही है । माना जा रहा है कि इससे करीब पाँच सौ लोगों को रोज़गार मिलेगा और अमरुद उत्पादक जमकर लाभ कमायेंगे ।
ऎसा ही एक और वाकया है । हमारे घर पूजा कराने दक्षिण भारतीय पुजारी आते हैं । पूजा के दौरान फ़लों का पैकेट तलाशना शुरु किया गया ,तो पता चला कि सेब का पैकेट नदारद ...। लेकिन पुजारी जी ने हमारी परेशानी को दूर करते हुए कहा कि कोई बात नहीं पूजा में सेब वैसे भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए । मन की जिज्ञासा का समाधान करते हुए उन्होंने बताया कि सेब विदेशी फ़ल है ,इसीलिए भगवान को पसंद नहीं ...!
खैर , भगवान तो भगवान ही हैं उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं ...। ये तो वो जानें या उनका पी ए यानी पुजारी .......। लेकिन अब इस घट - घट के वासी अंतर्यामी के मन की बात बिज़नेस मैनेजमेंट वाले भी बखूबी समझने लगे हैं ।
अब तो सभी भगवान की लोकप्रियता का ग्राफ़ बढाने का जिम्मा भी मैनेजमेंट गुरुओं के हवाले है। जितना क्वालिफ़ाइड गुरु संस्थान की प्रसिद्धि की गुंजाइश भी उतनी ज़्यादा । अब तक अमरुद गरीबों का सेब था लेकिन जल्दी ही ये भी उनकी पहुंच से बाहर होने जा रहा है ।
8 टिप्पणियां:
आदमी ने भगवान की कल्पना की तो उसे आदमी के रूप में ही देखा . तो क्या भगवान पशु पक्षियों का नहीं . या उनका अलग है ?
यह तो श्रद्धा का मामला है . जिसको जो अच्छा लगे उन्हें खिलाए . भगवान तो सबके निजी हैं .
उनका सबसे व्यक्तिगत सम्बन्ध है .
आपका व्यंगात्मक लेख अच्छा लगा. ओरछा में भक्तों को प्रसाद के रूप में पान की गिलोरी दी जाती है. वहीं कन्नूर (केरल) में मुथाप्पन (शिव का ही रूप) भगवान शराब ग्रहण करते हैं. भक्तों को उबले चने और एक कप चाय दी जाती है.
सरिता जी,
जायके में, क्या तो भगवान का और क्या भक्त का ! असली पारखी तो हैं पुजारी जी | वो ही भगवान के एजेंट और भक्त - भगवान के बीच के सेतु ! जैसे कुत्तों के ट्रेनर होते हैं वैसा ही रोल पुरोहित का भी ! इन्टरप्रेटर ! पुरोहित न हों तो हम जान ही न सकें कि भगवान ने क्या बोला | असल पुरोहित तो वो जो भगवान् के सोच को भी बता दे | जो पुरोहित ने सोचा वो ब्रह्म वाक्य ! जो सोचा सो बोला | जो बोला सो पाया ! प्रसाद वही जो पुरोहित मन भाये !
वरना भगवान् की अकेले क्या मजाल कि कहीं मदिरा पिए तो कहीं आने भी न दे ! कहीं बलि ले तो कही शुद्ध वैष्णवी दूध की मिठाई में भी झूंठे - सकरे का संकोच !
दतिया में बगुलामुखी माता को समोसे भजिये बहुत पसंद है | अगर आप मथुरा के सूखे पेडे ले आये हैं तो दूसरी देवी को चढाइये | दतिया की माता सभी पार्टियों के बड़े नेताओं की ईष्ट है | हो सकता है मधुमेह से ग्रस्त नेताओं की सुगमता के लिए माँ भजिये पसंद करने लगी हों | कलकाता की काली माँ ताजे बकरे का भोग लेती हैं | सब जीवों का भला करने वाली देवी उन दिवंगत बकरों का भी भला करे !! सुना है उज्जैन के भैरों बाबा आजकल अंग्रेजी पीने लगे हैं |
पुरोहितों की तो चांदी है | आपका जैसा टेस्ट हो वैसे देव चुन लें !
कहा तो यही जाता है कि वे पत्र पुष्प से ही प्रसन्न हो जाते हैं, परन्तु चढ़ाने के बाद प्रसाद तो हमें भी खाना होता है सो जो पसन्द हो वही चढ़ा दीजिए।
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया व्यंग्य . भगवान से हम हम से भगवान . प्रसाद भगवान का और अपना . चढाने वाले अपुन और खाने वाले भी अपुन . आनंद आ गया .
सच्ची बात तो यही है कि भगवान को वही भोग और पूजा सबसे ज्यादा पसंद है जो मन के सुंदर भाव से की जाती है । बाकी हमारे जैसे भक्त हैं जो अपनी जबरदस्तियां भगवान पर भी थोप देते हैं और कभी पंडितों को तो कभी भक्तों को कोसने का एक बहाना थमा देते हैं ।
हमेशा की तरह साफगोई से परिपूर्ण यथार्थ को उकेरता आपका आलेख साधुवाद
रचना पसन्द आयी । धन्यवाद
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