शनिवार, 3 जनवरी 2009

क्या काँधे पर बैठा बेताल बनने देगा " बी पॉज़ीटिव "

दीवार पर टंगा कैलेंडर बदलने को ही यदि बदलाव माना जाए , तो वाकई तब्दीली आ चुकी है । दिसम्बर खत्म होने पर जनवरी माह का आना तय है । उत्सवधर्मिता के चलते इसे नया मान लिया जाए , तो यकीनन सब कुछ नया - नया है । मेरी निगाह में हर दिन नया दिन , हर शाम नई शाम ...।

इसके लिए किसी खास दिन को नया दिन ; नया साल मान लेना ही काफ़ी नहीं । बहरहाल जहां बहुमत , वहां जनमत .....। सो चाहें ना चाहें मानें ना मानें । शामिल हों या चुपचाप दूर बैठे तमाशा देखें....... । मगर सब कह रहे हैं तो सुन [ मानते नहीं} लेते हैं कि नया साल आ गया । सुना है नए साल पर रिज़ोल्यूशन "संकल्प" लेने की परंपरा भी है । साल नया सो संकल्प भी नया । सब लेते हैं तो हम भी ले लेते हैं ।

अक्सर लोग मुझे "बी पॉज़ीटिव " रहने की सलाह देते हैं । मगर मैं समझ नहीं पाती कि "ओ नेगेटिव" भला किस साइंटिफ़िक तरीके से बी पॉज़ीटिव हो सकता है । नैसर्गिक रुप से मिली कुछ चीज़ें शायद ज़िन्दगी में कभी बदली नहीं जा सकती । हां कोई "स्टेम सेल" इसे बदल सके ,तो बात और है । वैज्ञानिक जब तकनीक ईजाद करेंगे ,तब करेंगे ,लोगों के संतोष के लिए ही सही मुझे कुछ तो बदलना ही होगा ।

खैर ..., सवाल संकल्प का । इसलिए मेरा संकल्प है कि अब से दुनिया में चारों तरफ़ खुशहाली , हरियाली देखी जाएगी । बदहाली ,तंगहाली ,फ़टेहाली जैसे मुद्दों की ओर से पूरी तरह आंखें मूंद लेने पर ही तो चारों तरफ़ उजियारा नज़र आ सकेगा ....।

लेकिन एक बात और भी है जो मेरे लिए परेशानी का सबब बना हुआ है । मेरे काँधे पर बैठा बेताल ....। जब तक ये मौन रहेगा तब तक मैं भी चुप ..। मगर इसने सवालात की झडी लगाई , कब , कहां ,क्यों ,कैसे पूछने का , कान में फ़ुसफ़ुसाने का सिलसिला जारी रखा ,तो मजबूरन मुझे इसके यक्ष प्रश्नों का उत्तर देने के लिए मुंह खोलना ही पडेगा । देखें ये बेताल कितने दिन यूं ही चुपचाप काँधे पर सवार रहकर सफ़र तय करता है......। ये बोला, मैंने मुंह खोला और संकल्प ......????????

निराली जस्त {छलांग] करना है , नए रस्ते पे चलना है
नए शोलों में तपना है , नए सांचे में ढलना है
यही दो चार सांसें , जो अभी मुझको सम्हाले हैं
इन्हीं दो चार सांसों , में ज़माने को बदलना है ।

4 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

ye do chaar saansayn jo----- bahut hi achha sankalp hai

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

आपका बेताल तो काँधे पे संकल्प लादकर चल रहा है . अपने बहुत अच्छा लिखा है . बढ़िया कलम..... बधाई .

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर.......अच्छा लगा पढ़ कर.....

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सरीता जी
नमस्कार
आपने एकदम सही कहा है कि किसी खास दिन को नया दिन ; नया साल मान लेना ही काफ़ी नहीं होता , हमें सार्थक कदम और आवाज भी उठानी होगी, तभी विकास सम्भव है, फ़ुसफ़ुसाने का सिलसिला जारी रखा ,तो मजबूरन मुझे इसके यक्ष प्रश्नों का उत्तर देने के लिए मुंह खोलना ही पडेगा ।,, आप के भाव का मैं समर्थक हूँ
आपका
- विजय