मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

हिन्दी ब्लॉगिंग पर टिड्डी दल का हमला

सावधान ब्लॉगर बंधुओं .....। हिन्दी के विकास के लिए काम करने वाले मठाधीशों के टिड्डी दल हमले की तैयारी में है । राजभाषा हिन्दी के उद्धारकों की निगाह हिन्दी ब्लॉगिंग पर पड गई है और जल्दी ही ये खेमा पूरे लाव लश्कर के साथ धावा करने वाला है । लार्वा और प्यूपा तो काफ़ी समय से नज़र आ रहे थे , लेकिन टिड्डी दल का आक्रमण हम जैसे तमाम छोटे - छोटे नौसीखिए ब्लॉगरों की नई उगती फ़सल को मिनटों में सफ़ाचट कर देगा । हिन्दी पर कृपादृष्टि बरसाने वाले पतित पावनों को अब ब्लॉग जगत के उद्धार [बंटाढार] की फ़िक्र सताने लगी है ।

कविता , व्यंग्य , निबंध और कहानी पाठ के माध्यम से हिन्दी को लोकप्रिय बनाने के हथकंडे आज़मा रहे ’चुके हुए लोग” अब हिन्दी ब्लॉग पाठ के प्रयोग को सफ़ल बनाने पर उतारु हैं । इस कवायद से हिन्दी का कितना भला हो सकेगा ये तो वक्त ही बताएगा । लेकिन इस नई पहल से हिन्दी के मठाधीशों का भला होना तय है ।

मेरा मानना है कि सरकारी अनुदान और प्रश्रय पाकर हिन्दी की चिन्दी ही हुई है । अंग्रेज़ीदां हिन्दी प्रेमियों ने हिन्दी को किताबी भाषा बनाकर रख दिया है । गोष्ठियों , चर्चाओं तक सिमट कर रह गई राजभाषा की इस दुर्दशा के लिए हिन्दी के ही स्वनामधन्य विद्वान ज़िम्मेदार हैं । "किसी देश की स्मृति ,संस्कृति और राष्ट्रीयता को भाषा ही प्रतिबिम्बित करती है ।" शैलेश मटियानी के इस कथन को यदि थोडा और विस्तार दिया जाए तो कहा जा सकता है - किसी देश की स्मृति ,संस्कृति और राष्ट्रीयता को भाषा ही संरक्षित भी रखती है ।

जिस तरह स्मृति ,संस्कृति और राष्ट्रीयता के प्रश्न किसी जाति की अस्मिता से जुडे होते हैं , उसी तरह भाषा का प्रश्न भी हमारी अस्मिता और हमारे अस्तित्व से जुडा है । लेकिन आज मुश्किल ये है कि ये सवाल चंद मुट्ठी भर लोगों के चिंतन का विषय बनकर रह गया है । इस जमात में भी कई लोग ऎसे हैं , जो खुद भी अपने कहे और सोचे पर अमल करने में नाकाम हैं । बाकी बचे वे लोग जो कुछ करने की स्थिति में हैं ,मगर निहित स्वार्थों के वशीभूत आँखें मूंद रखी हैं और देश को उसके हाल पर छोड दिया है , जबकि इस जनतंत्र में जन की तो अभी ठीक से आँखें भी पूरी तरह नहीं खुलीं हैं । मूंदने या सच को देखने या फ़िर अनदेखा करने की तो बात ही कौन कहे ...?

बहरहाल मुख्य मुद्दा ये है कि ब्लॉग पाठ के ज़रिए हिन्दी को जनप्रिय बनाने की कोशिश कितनी कारगर साबित होगी । आप मुझे कुएं का मेंढक करार दे सकते हैं ,लेकिन मैं तो भोपाल को केन्द्र में रखकर ही चीज़ों को देखने समझने की आदी हो चुकी हूं । वैसे भी जिस तरह इंदौर को मुम्बई बच्चा कहा जाता है ,उसी तरह दिल्ली और भोपाल के मिजाज़ भी कमोबेश एक से हैं । सरकारी ढर्रा दोनों राजधानियों की तस्वीर को हमजोली बना देता है । ये और बात है कि दिल्ली का इतिहास काफ़ी लम्बा है और भोपाल महज़ डेढ - दो सौ सालों की यादें अपने में समेटे है ।

भोपाल में एक हिन्दी भवन है । जूते ,चप्पल ,कपडों की महासेल और विवाह समारोह के शोर शराबे के बीच यहां हिन्दी की सेवा कितनी हो पाती है भगवान ही जाने ...। यही हाल हिन्दी साहित्य सम्मेलन का भी है । इसी तरह की कुछ और भी हिन्दी सेवी संस्थाएं हैं , जो 14 सितम्बर [हिन्दी दिवस]के आसपास सुसुप्तावस्था से बाहर आती हैं और फ़िर ’हाइबरनेश’ में चला जाता है । हिन्दी का सारा ज्ञान ’सरकारी अनुदान’ हासिल करने की लिखत - पढत में ही काम आता है ।

कहावत है -" जहं - जहं पैर पडे संतन के , तहं - तहं बंटाढार ।" उसी तरह जिस जगह सरकार की कृपावर्षा हुई , उसका तो खुदा हाफ़िज़ ...। संगीत , नाटक , ललित कला , हस्तकला और लोक कलाओं के संरक्षण के लिए चिंतातुर बडे - बडे सरकारी संस्थान ’ सफ़ेद हाथी’ बन चुके हैं और कलाएं धीरे - धीरे दम तोड रही हैं । हाल ही में राजधानी में एक लोककला समारोह हुआ था , जिसका आमंत्रण पत्र किसी धनाढ्य के बेटे की शादी की पत्रिका से किसी भी मायने में कमतर नहीं था । उस कार्ड की कीमत सुन कर तो मेरे होश ही फ़ाख्ता हो गये । चार सौ रुपए कीमत के आमंत्रण पत्र वाले आयोजन पर सरकार ने कितना खर्च किया होगा , इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है , लेकिन इससे लोक कलाकारों की ज़िन्दगी में क्या बदलाव आया ..?लोक कलाकारों के लिए ये आयोजन -’चार दिन की चांदनी , फ़िर अंधियारी रात।’

इसलिए एक बार फ़िर आपको आगाह किए देते हैं कि बचा सको तो , बचा लो हिन्दी ब्लॉगिंग को ...। हिन्दी के मठाधीशों के जैविक हमले से बचने के उपाय सोचो , वरना हिन्दी ब्लॉगिंग की ’भ्रूण हत्या’ की पूरी आशंका है । जिस भी विधा में आम को ठेल कर खास लोग आते हैं , वह संग्रहालय में प्रदर्शन की वस्तु बनकर रह जाती है । जागो ब्लॉगर जागो ............

25 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

sareetha

aap ne sahii kehaa haen
saahity aur blogging alag alag rahey to hii achcha haen

मुंहफट ने कहा…

जी
ये भी तो बता देंतीं की हमला कौन कर रहा है. हमले से डरते वे हैं, जो टिड्डियों के पंख नोचना नहीं जानते. टिड्डी माने पिद्दी.
जी तो हमलावर कौन हैं? बताइएगा जी.

Vinay ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

अजय कुमार झा ने कहा…

sareetha jee,
mujhe to lagtaa hai ki hamein ya aapko darne kee jaroorat nahin hain ek to isliye ki apne yahan blogging mein aise aise aanaam aur badnaam tippnnikaar maujood hain ki unkaa ek hee vaar saahityakaar ko swarg sidhaar degaa, rahee baat hindi ke thekedaaron kee to jab ve itne dino tak desh mein hindi kaa bhala nahin kar paaye to hamaaraa bura kya aur kitnaa kar lenge.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपका सोचना सही लगता है ! पर जैसा झा जी ने कहा यहां ब्लागिन्ग मे एक से एक धुरंधर लोग हैं ! उनके सामने इनकी कुछ चल पायेगी, ये तो वक्त ही बतायेगा !

वैसे हमारे पास भी अपना लठ्ठ और भैन्स है सो थोडे बहुत को तो हम ही निपट लेंगे ! बकिया को हमरे उस्ताद लोग निपटा देंगे !

वैसे चिन्ता आपकी जायज लगती है ! क्योंकि जहां भी िनके पैर पडे हैं वहां सब गडबड ही हुआ है !

रामराम !

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत बढ़िया पोस्ट पढ़कर अच्छी लगी. धन्यवाद. नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल्कामानाओ के साथ .
महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

२००९ के आगामी नव वर्ष मेँ सुख शाँति मिले ये शुभ कामना है
- लावण्या

डा. अमर कुमार ने कहा…


कोई बात नहीं जी, आख़िर ख़तरा किस बिन्दु से दिख रहा है ! यह तो भाषा की मंडी है.. जिनको हल्का-फ़ुल्का पढ़ना होगा.. और जिनको गूढ़ गम्भीर विषय पसंद हैं, दोनों के विकल्प खुल जायेंगे !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जब तक हिंदी के लिखने पढने वाले हैं, तब तक साहित्य या ब्लाग कोई नहीं लूट सकता। आप जिस लूट की बात कर रही है वो सरकारी पैसे की हो सकती है जो ये संस्थाने हिंदी के नाम पर रेवडियों की तरह बांट रही है अपने ही लोगों में। पर, इससे हिन्दी का तो कोई अहित नहीं हुआ। आप जैसे हिन्दी प्रेमी बिना किसी धन की आशा के काम कर रहे हैं तो इस भाषा का अहित कैसा।!!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

थोड़ा लिंक विंक मिल जाते तो
टिड्डियों के आगमन की दिशा का पता
मिल जाता
अच्छा आलेख सधी जुबान में
सात्विक भड़ास
बधाइयां जी

नीरज गोस्वामी ने कहा…

नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

बहुत अच्छा िलखा है नए साल में यह सफर और तेज होगा, एेसी उम्मीद है ।

नए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Dr Parveen Chopra ने कहा…

आप की प्रोफाइल के साथ ये वाक्य लिखा देख कर तो मज़ा ही आ गया ---
जो चाहते हो देखना मेरी उड़ान को,
थोड़ा ऊचा और करो आसमान को !!

जिस तरह से मुझे यह पढ़ कर प्रेरणा मिली, उसी तरह से बहुत से लोगों को इसे आगे सुना कर खुश करूंगा। धन्यवाद।
नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनायें।

संजय बेंगाणी ने कहा…

यह मुक्त जगह है, सबका यहाँ स्वागत है. न कोई पहरेदारी न कोई ठेकेदारी. अतः जम कर लिखते रहें... बस.

ऐसा पहले भी हुआ था कि लोग आये और कहने लगे हम ही हैं और हमसे ही हैं. अब सब शांत है, ब्लॉगिंग में रम गए है. ऐसा होता रहेगा.

Unknown ने कहा…

टिड्डी दल आये या और किसी का दल-दल, ओरिजनल ब्लॉगर को डटे रहना है, पहले भी बड़े-बड़ों ने कोशिश की, लेकिन ठहर नहीं पाये, आगे भी नहीं ठहर पायेंगे, जो लोग नई तकनीक की ओर पीठ करके खड़े होंगे उन्हें यह तूफ़ान उड़ा ले जायेगा… बचेगा वही जो ठोस जमीन पर खड़ा रहेगा…

L.Goswami ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

drdhabhai ने कहा…

हम ब्लोगर है...पहले कौन सा हम बङी बङी पत्रिकाओं मैं छपे थे जो अब हमें डर है कि हमारा क्या होगा..हम यहीं डटे रहेंगे चाहे आंधी आये या तुफान....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

आपकी पोस्ट पढी तो बहुत अच्छी लगी.चिन्ता मत कीजिए,आगे देखिए नववर्ष बाहें पसारे खडा है
पहने सपनों की विजय माल
हो बहुत मुबारक नया साल

नए साल की नई किरन
सब गान मधुर पावन सुमिरन

सब नृत्य सजे सुर और ताल
हो बहुत मुबारक नया साल

फिर से उम्मीद के नए रंग
भर लाएँ मन में नित उमंग

खुशियाँ ही खुशियाँ बेमिसाल
हो बहुत मुबारक नया साल

उपहार पुष्प मादक गुलाब
मीठी सुगंध उत्सव शबाब

शुभ गीत नृत्य और मधुर ताल
हो बहुत मुबारक नया साल

Sachin ने कहा…

acha likha he sarita ji....aur haan, meri taraf se bhi nav-varsha ki badhai swikar karen.

Unknown ने कहा…

आपको और आपके सहपरिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये!!!
न्य साल आप सभी के जीवन में खूब खुशी,सुख,समृधि और उलास लेकर आए!
और साथ ही पुरे विश्व में सुख,शान्ति ,अमन चैन लेकर आए.
धन्यवाद!

Unknown ने कहा…

आप और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं. नव वर्ष आपके जीवन में सुख और शान्ति लाये.

sandeep sharma ने कहा…

नई उमंगों के साथ आए नया वर्ष....

आपको नववर्ष की शुभकामनायें....

बेनामी ने कहा…

सरिता जी मुझे नहीं लगता कि हिन्दी ब्लोगिंग या ब्लोगेर्स को किसी तरह का खतरा है. मैंने अभी तक के अपने संक्षिप्त ब्लॉग जीवन में जितने ब्लॉग देखे उनमें कुछ को गंभीर और सम्भावनायुक्त पाया (जिनमें एक आपका ब्लॉग भी है.) मेरे विचार में हिन्दी ब्लोगिंग का भविष्य उज्जवल है. ब्लॉग पाठ के ज़रिए 'हिन्दी को जनप्रिय बनाने की कोशिश' संबन्धी कार्यक्रम का सन्दर्भ मुझे मालूम नहीं है. लेकिन ऐसी कोशिश से हिन्दी ब्लोगेर्स को क्या नुक्सान होगा यह मैं स्पष्ट नहीं समझ पाया.
हिन्दी सेवी संस्थाओं में आपने भोपाल के हिन्दी भवन का जिक्र किया है. मैंने इस संस्था की गतिविधियों को पिछले अनेक वर्षों से थोडा बहुत देखा है. मैंने पाया कि जब से वहाँ जूते ,चप्पल ,कपडों की महासेल और विवाह समारोह होने लगे तब से वहाँ की गतिविधियों में तेजी आयी है. संभवतः ’सरकारी अनुदान’ पर निर्भरता कम होना इसका कारण होगा. हिन्दी भवन की 'पावस व्याख्यान माला' और 'अक्षरा' के प्रकाशन का मैं प्रशंसक हूँ. वैसे संभवतः स्वर्गीय यशवंत अरगरे भी हिन्दी भवन के शुभ चिंतकों में थे.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

खतरा तो हर जगह होता है और जो अपने है ,विद्वान् है बे खतरों से आगाह भी करेंगे और बचने का मार्ग भी सुझायेंगे /आपने आगाह किया बहुत धन्यवाद

विष्णु बैरागी ने कहा…

सब तरह के लोग सब जगह होते हैं। 'यश-लिप्‍सा' से अछूता कोई नहीं। इसलिए,आपकी सूचनानुसार यदि कुछ चिट्ठाकार 'सरकारी सम्‍मान' से नवाज दिए जाएं तो आश्‍चर्य नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोग अपने लेटर हेड पर भले ही 'फलां-फलां सरकार (अथवा सम्‍मान से)से सम्‍मानित ब्‍लागर' जैसे जुमले छपवा कर आत्‍म-तुष्‍ट हो जाएं, 'चिट्ठा जगत' में वे हेय और अस्‍पृश्‍य से कम या ज्‍यादा और कुछ नहीं बन पाएंगे। चूंकि 'चिट्ठा जगत' अभी बहुत ही छोटा है, सो ऐसे लोग तत्‍काल ही पहचान लिए जाएंगे। आपकी चिन्‍ता यद्यपि वाजिब है किन्‍तु मुझे खतरा उतना बडा और गम्‍भीर नहीं दिखता जितना आपने सोच लिया है। यहां ऐसे-ऐसे धुरन्‍धर विराजित है कि 'टिड्डों' को आक्रमण से पहले अपनी जान की खैर मनानी पडेगी।
प्रसंगवश यह जिज्ञासा बनी हुई है कि ये 'टिड्डे' किस शैली में आक्रमण करने वाले हैं। इस जानकारी के लिए आप अलग से एक पोस्‍ट लिख दें।