शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

सेना पर तोहमत से पहले , मीडिया झांके अपनी गिरेबां

मुम्बई हमले के बाद सरकार गाइड लाइन बनाकर खबरिया चैनलों पर लगाम कसने की तैयारी में जुट गई है । सूचना और प्रसारण मंत्रालय की एडवायज़री को न्यूज़ चैनलों के संपादकों की संस्था ’ न्यूज़ ब्राडकास्टर्स अथारिटी ’ ने सिरे से खारिज कर दिया है । उलटा तोहमत जड दी है कि सरकार के नाकारापन और नेताओं की बददिमागी को जनता के सामने लाने से बौखला कर यह कदम उठाया जा रहा है । लेकिन बेलगाम और बेकाबू हो चुके खबरिया चैनलों का आरोप क्या सही है ?

ज़ी न्यूज़ पर नौसेना और कोस्ट गार्ड को निशाना बना कर एक ही खबर लगातार हर घंटे दिखाई जा रही है । धीर गंभीर नज़र आने वाले इन पत्रकारों में अचानक अपने पेशे के प्रति इतनी ईमानदारी कहां से पैदा हो गई ? सेना के खिलाफ़ मोर्चा खोलने का यही मौका मिला इन्हें ..? वैसे इन्हें देश की सुरक्षा एजेंसियों पर सरे आम कीचड उछालने का हक किसने दिया ? रक्षा संबधी दस्तावेज़ों को जगज़ाहिर कर महामना पुण्य प्रसून वाजपेयी पत्रकारिता के कौन से मानदंड स्थापित कर रहे है । ये तथ्य तो सभी ने मान लिया है कि केन्द्र सरकार के नाकारापन ने देश को ये दिन दिखाया है ,लेकिन चैनल देश की सेना का मनोबल तोड कर कौन से झंडे गाड रहे हैं ?

दाउद इब्राहीम ,अबू सलेम ,बबलू श्रीवास्तव जैसे लोगों की ’वीर गाथाए” गाने वालों को कोई हक नहीं बनता देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ खिलवाड करने का ..। राखी सावंत , मोनिका बेदी और ऎश्वर्या के प्रेम के चर्चे कर अपने खर्चे निकालने वाले बकबकिया चैनलों की देश को "घूस की तरह पोला " करने में खासी भूमिका रही है । प्रो. मटुकनाथ को ’ लव गुरु” के खिताब से नवाज़ कर सामाजिक दुराचार को प्रतिष्ठित करने वाले किस हक से सामाजिक सरोकारों का सवाल उठाते हैं ?

इलेक्ट्रानिक मीडिया को भाट - चारण भी नहीं कहा जा सकता । इन्हें मजमा लगाने वाला कहना भी ठीक नहीं होगा ,क्योंकि डुगडुगी बजा कर भीड जुटाने वाला मदारी भी तमाशबीनों के मनोरंजन के साथ - साथ बीच - बीच में सामाजिक सरोकारों से जुडी तीखी बात चुटीले अंदाज़ में कहने से नहीं चूकता । सदी के महानायक के इकलौते बेटे के विवाह समारोह में सार्वजनिक रुप से लतियाए जाने के बाद कुंईं -कुंई ..... करते हुए एक बार फ़िर उसी चौखट पर दुम हिलाने वाले ये लोग क्या वाकई देश के दुख में दुबले हो रहे हैं .........?

सबसे तेज़ होने का दम भरने वाले खबरची चैनल में काम कर चुके मेरे एक मित्र ने बताया था कि उन्हें सख्त हिदायत थी कि समाज के निचले तबके यानी रुख्रे - सूखे चेहरों से जुडे मुद्दों के लिए समाचार बुलेटिन में कोई जगह नहीं है । ये और बात है कि चैनल को नाग - नागिन के जोडे के प्रणय प्रसंग या फ़िर नाग के मानव अवतार से बातचीत का चौबीस घंटे का लाइव कवरेज दिखाने से गुरेज़ नहीं ।

क्या ये चैनल देश को भूत - प्रेत , तंत्र मंत्र , ज्योतिष , वास्तु की अफ़ीम चटाने के गुनहगार नहीं हैं ? इतना ही नहीं क्राइम और इस तरह की खबरों से परहेज़ का दावा करने वाले एक चैनल ने मानव अधिकारों और धर्म निरपेक्षता के नाम पर जहर फ़ैलाने के सिवाय कुछ नहीं किया । अमीरों और गरीबों के बीच की लकीर को गहरा करने का श्रेय भी काफ़ी हद तक इन्हीं को जाता है । इसी चैनल ने चमक - दमक भरे आधुनिक वातानुकूलित बाज़ारों में बिकने वाली चीज़ों का बखान कर मध्यम वर्ग को ललचाया । पहुंच से बाहर की चीज़ों को येन केन प्रकारेण हासिल करने की चाहत के नतीजे सबके सामने हैं । देश में ज़मीर की कीमत इतनी कम पहले कभी नहीं थी । तब भी नहीं जब लोगों के पास ना दो वक्त की रोटी थी और ना तन ढकने को कपडा ...। देश में फ़िलहाल सब कुछ बिकाऊ है ... सब कुछ .....जी हां सभी कुछ ..........।

इसका मतलब कतई ये नहीं कि सेना में अनियमितताएं नहीं हो रही । लेकिन मीडिया को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास करना ही होगा , क्योंकि इस समय एकजुट होकर सबसे बडी समस्या का मुकाबला करने की दरकार है । मीडिया इतनी ही गंभीर है , तो ये बातें पहले क्यों नहीं उठाई या देश हित में कुछ दिन रुकने का संयम और सब्र क्यों नहीं रखा ? पहले जनता को रासरंग में डुबो कर गाफ़िल बनाया , फ़िर मुम्बई हमले के लाइव कवरेज और गैर ज़िम्मेदाराना बातों से देश की स्थिति को अंतरराष्ट्रीय स्तर कमज़ोर करने का पाप किया , इस कुकर्म को छिपाने के लिए नेताओं के खिलाफ़ बन रहे माहौल भुनाने में कोर कसर नहीं छोडी और अब किसी भी तरह के नियंत्रण से इंकार की सीनाज़ोरी ......।

बडा कनफ़्यूज़न है । चैनल देश के लिए वाकई चिंतित हैं या कमाई के लिए देश के दुश्मनों के हाथ का खिलौना बन चुके हैं कह पाना बडा ही मुश्किल है । हे भगवान [ अगर वाकई तू है तो ...] इन शाख पर बैठे उल्लुओं को सदबुद्धि दे । इन्हें बता कि देश हित में ही इनका हित है । देश में हालात माकूल होंगे तभी इनका तमाशा चमकेगा । अफ़रा तफ़री के माहौल में तो बोरिया बिस्तर सिमटते देर नहीं लगेगी । सेना देश का आत्म सम्मान और गौरव है । उसके खिलाफ़ संदेह के बीज बो कर जाने - अनजाने दुश्मनों के हाथ मज़बूत करना राष्ट्रद्रोह है........

आते - आते आएगा उनको खयाल
जाते - जाते बेखयाली जाएगी ।


चित्र - बीबीसी हिन्दी डाट काम से साभार

14 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

हकीकत को आईना दिखाती आपकी यह रचना अच्छी लगी। सचमुच चौथे खम्भे की मानसिकता व्यापारिक हो गयी है।

जब कार सर से गुजर जाये तो सरकार कहते हैं।
विज्ञापन के बाद के जगह को अखबार कहते हैं।।

जरूरत है देश को बचाने की और उसके लिए अब पाँचवे खम्भे (साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी की एकजुटता) के निर्माण की।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

bijnior district ने कहा…

आपकी बात बिल्कुल सही है। आंतकवादी हमले की रिर्पोटिंग के नाम से आंतकवादियों को इन तजेतर्रार चेनल ने लाभ ही पंहुचाया। उन्हे सेना की लोकेशान बताते रहे । यह दिखाते रहे कि कहां कितने कमांडों उतर रहे है। एसठीएफ आपरेशान शुरू हो रहा है, कमांडों कारवाई हो चुकी है कि बार बार बात कह कर आंतकवादियों को उकसाया ही कि वे होटल में बंद व्यक्तियों का कतले आम करें।
कौन त्याग पत्र दे रहा है, कौन नही इससे देश के हालात पर असर होने वाला नही है।
हमे तो यह जानकारी जाहिए कि भविष्य में इस प्रकार की घटना रोकने की क्या योजना है। अब कह रहे है कि आकाश से हमले हो सकते हैं। हवाई अड्डों पर फोस की तैनाती की लोकेशान बता रहे हैं। आंतकवादियों केा सचेत कर रहे है कि यह तैयारी है इनका प्रबंध्ा करके आना

विष्णु बैरागी ने कहा…

ठीक लिखा आपने ।
शरद जोशी जीवित होते तो अपना लिखा वाक्‍य दुहराते - हे ईश्‍वर, इन्‍हें क्षमा मत करना क्‍यों कि ये जानते हैं कि ये क्‍या कर रहे हैं ।

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

कान खींचते हुये शब्द, खाल उधेड़ते हुये विचार
ना नेता बचे ना मीडिया ना सरकार.

तीखी और तल्ख टिप्पणी के लिये धन्यवाद.

मुकेश कुमार तिवारी

बेनामी ने कहा…

60 घंटे तक टीवी स्क्रीन से चिपके रहे लोग अब मीडिया को गाली दें, ये कुछ जमता नहीं है। सच बताइये कि क्या आप लोग उस समय वो सब नहीं देखना चाहते थे जो टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा था। कल जो टीआरपी के आंकड़े आये हैं उनसे पता चलता है कि मुंबई पर हमले और उसके बाद के कुछ दिनों में न्यूज़ चैनल देखने वालों की संख्या 3 गुना तक बढ़ गई। ये सब लोग खबर देखने आये थे ना। जो आ रहा था वो ना देखते और हल्ला मचाते तो उसी वक्त सब बंद हो जाता, आखिर जनता से बड़ा कौन है इस देश में। मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंबा है। पहले तीन खंबे मीडिया से ऊपर हैं, उनको उस वक्त अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिये थी। मीडिया पर लगाम लगाते। बाद मे मीडिया पर लगाम लगाई भी गईं, लाइव से मना किया गया, रात के समय लाइट ना जलाने के लिये कहा गया, आदि-आदि, क्या मीडिया ने हुक्म अदूली की? मीडिया में हमारे और आपके जैसे ही लोग तो हैं। मीडिया कोई धर्मशाला तो है नहीं तिज़ारत है, जो बिकने लगता है बेचते हैं, नहीं बिकता तो नहीं बेचते। सहज इंसानी प्रवृति है, वक्त पर काम उमेठ दिये जायें तो समझ जाते हैं। नेताओं की या सेना की पोल खोल रहे हैं तो इसमें गलत क्या है। सेना में क्या हाल है सब जानते हैं, देशभक्ति के नाम पर और भावनाओं में बहकर कब तक नाकामियों पर्दा डालते रहेंगे। मीडिया के लिये आचार संहिता बनाई जानी चाहिये, लेकिन फिर उसका पालन हर समय होना चाहिये, वक्त के हिसाब से उसमें ढील भी नहीं दी जानी चाहिये। तभी फायदा है।

डॉ० दिलीप गर्ग ने कहा…

निश्चित ही दृश्य मीडिया को अपनी जवाबदारी सुनिश्चित करनी होगी, राष्ट्र के प्रति और समाज के प्रति.
रोजाना टी.वी.चेनल्स का दर्शक वर्ग बढता जा रहा है, जिससे इनकी भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है.
ये चेनल्स सच्चा दिखाएँ और सटीक दिखाएँ.

mala ने कहा…

आपके विचार बहुत सुंदर है , आप हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से समाज को एक नयी दिशा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं ....आपको साधुवाद !
मैं भी आपके इस ब्लॉग जगत में अपनी नयी उपस्थिति दर्ज करा रही हूँ, आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है मेरे ब्लॉग पर ...!

डॉ .अनुराग ने कहा…

मीडिया से जुड़े हुए ही लोग जो शायद कही न कही लोकतंत्र के इस चौथे खंभे की गरिमा में विश्वास करते है ...उन्हें ही मिलकर एक आचार संहिता का प्रारूप तैयार करना पड़ेगा ..क्यूंकि मीडिया अभी शैशव काल में है ये ढोल अब बजाना छोड़ कही न कही अपनी जवाबदेही ओर जिम्मेदारी तय करनी होगी ..दोनों ही बातें ठीक है मुंबई काण्ड में उन्होंने भले ही अपनी टी आर पी बढ़ाने में ख़बर दिखायी .पर हम आपको वाही से सूचना मिली ,देश में गुस्सा ,शोक ,प्रतिरोध वही से फैला ...पर जोश में कभी कभी कुछ सूचनाओं की सवेदान्शीलता का भी ध्यान रखना चाहिए जो नाजुक समय में अपना एक ख़ास महत्त्व रखती है

Unknown ने कहा…

चैनलों के सम्पादकों की मीटिंग में यह तय किया गया कि सरकार द्वारा दिये गये संयम के सुझावों पर वे फ़िलहाल(?) अमल नहीं करेंगे, जिन्हें दूसरों के घरों में झाँकने की आदत पड़ चुकी है, वे अपनी गिरेबान में भी झाँकने को तैयार नहीं हैं… हद है पाखण्ड की

सुप्रतिम बनर्जी ने कहा…

आपने कई गंभीर सवाल उठाए हैं। जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। लेकिन बुंदेला जी की बातों में भी सच्चाई है। दरअसल, चक्कर हमारी कथनी और करनी का है। हम गालियां भी देते हैं और गले भी लगाते हैं। जब कथनी और करनी एक होगी, तब सबकुछ ठीक होगा।

बेनामी ने कहा…

mana ke media ne dikahaya live,magar agar aapne us waqt wo sab dekha to tabhi aawaz uthate,agar aap log bhi 60 ghante tv se chipke honge to media par ungli uthane ka hak kisi ko nahi.hame waqt nahi milta news channel ya tv dekhne ke liye,jo milta hai serial dekhna pasand hai kabhi kabhi.magar us waqt hum bhi news dekh rahe thay,jigyasa thi kya ho raha hai.ka aapko nahi huyi thi? haa kuch batein live nahi dikhani thi mante hai commando operation,magar jab manai hui nahi dikhaya,hu koi media ke deewane nahi magar sirf kadavi sachhai keh rahe hai ke yaha pe jo bhi aaya hai media par tohmate lagane pehle ye soche ke aapne nahi dekha live ? jisne nahi dekha ya jisko tab jo chal raha tha uske bich ye sujha ke media galat dikha rahi hai bas wahi media par ungli kase,dekhne ke bad kehna bahut asan hota hai.shayad agarkoi tv reporter chahe kisi bhi channel ka ho waha nahi jata to yehi sare chilate,itani badi ghatana ki sahi khabar tak nahi dete nikaame news chaanels? jo bhi ho hame sujhav baad mein kyun sjhute hai tab kyun nahi?

बेनामी ने कहा…

सच कहा है आपने|देश सबसे पहले है फ़िर सारा तंत्र|

Girish Kumar Billore ने कहा…

देश की सेनाओं का मनोबल गिराने वाला देश द्रोही ही कहा जाएगा

Anil Pusadkar ने कहा…

मीडिया के लिये सच मे चिँतन और मनन का समय्.