शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

सियासी मैदान में ज़मीन तलाशती औरतें


आधी आबादी की भागीदारी में इज़ाफ़े के दावों - वादों के बीच सच्चाई मुंह बाये खडी है । हाशिए पर ढकेल दिया गया महिला वर्ग अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए आज भी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहा है ।

भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढाने को लेकर लंबे चौडे भाषण दिये जाते हैं । सियासत में महिलाओं की नुमाइंदगी बढाने को लेकर गंभीर विचार विमर्श के दौर भी खूब चलते हैं । इस मसले पर मंचों से चिंता ज़ाहिर कर वाहवाही बटोरने वाले नेताओं की भी कोई कमी नहीं । लेकिन चुनावी मौसम में टिकिट बांटने के विभिन्न दलों के आंकडों पर नज़र डालें , तो महिलाओं को राजनीति में तवज्जोह मिलना दूर की कौडी लगता है । किसी भी राजनीतिक दल ने टिकट बाँटने में महिलाओं को प्राथमिकता सूची में नहीं रखा है ।

दो प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा हमेशा से महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करते आए हैं लेकिन उम्मीदवारों की सूची में उनकी यह इच्छा ज़ाहिर नहीं होती ।
राजनीति में महिलाओं को ३३ प्रतिशत आरक्षण देने की ज़ोरदार वकालत करने वाले राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मध्यप्रदेश में २७ नवंबर को होने वाले चुनाव के टिकट वितरण में इसे भूल गए ।

मध्यप्रदेश में हुए टिकिट वितरण पर निगाह डालें , तो यही तस्वीर सामने आती है कि बीजेपी, कांग्रेस ,बसपा से लेकर प्रांतीय दलों की कसौटी पर भी महिलाएं खरी नहीं उतर सकी हैं ।किसी भी दल ने १३ फ़ीसदी से ज़्यादा महिला उम्मीदवारों में भरोसा नहीं जताया है । यह हालत तब है जब तीन प्रमुख दलों की अगुवाई महिलाएं कर रही हैं ।

भारतीय जनता पार्टी ने महिला प्रत्याशियों को मौका देने में कंजूसी बरती है । पार्टी ने १० फ़ीसदी यानी २३ प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है , जबकि प्रदेश संगठन का दावा था कि ३३ प्रतिशत टिकिट नहीं दे पाने की हालत में कम से कम हर ज़िले में एक सीट महिलाओं को दी जाएगी । लेकिन आंकडे बीजेपी के दावे को खोखला करार देते हैं ।

कांग्रेस ने इस मामले में कुछ दरियादिली दिखाई है ,मगर यहां भी गिनती २९ पर आकर खत्म हो जाती है । कुछ कद्दावर नेताओं के विरोध के बावजूद पार्टी ने १२.६० प्रतिशत महिला नेताओं पर जीत का दांव खेला है ।

मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी की महिलाओं के प्रति बेरुखी साफ़ दिखती है । २३० सीटों में से महज़ १३ यानी ५,२२ फ़ीसदी को ही बसपा ने अपना नुमाइंदा बनाया है । हालांकि सोशल इंजीनियरिंग के नए फ़ार्मूले के साथ राजनीति का रुख बदलने में जुटी मायावती से महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढाने को लेकर काफ़ी उम्मीदें थीं ।

उमा भारती की भारतीय जनशक्ति में भी पुरुषों का ही बोलबाला है । तंगदिली का आलम ये है कि २१६ सीटों में से १८ पर ही महिला उम्मीदवारों को मौ्का दिया गया है । समाजवादी पार्टी का हाल तो और भी बुरा है । सपा ने २२५ प्रत्याशी खडॆ किए हैं , जिनमें सिर्फ़ १६ महिलाएं हैं । इस तरह कुल तीन हज़ार एक सौ उन्यासी उम्मीदवारों में से केवल दो सौ बीस महिलाएं हैं ।

हालांकि पिछले चुनाव में १९ महिलाओं को विधानसभा में दाखिल होने का अवसर मिला था । इनमें से १५ बीजेपी की नुमाइंदगी कर रही थीं । ताज्जुब की बात यह थी कि ८ को मुख्यमंत्री और मंत्री पद से नवाज़ा गया । ये अलग बात है कि चार महिलाओं को अलग - अलग कारणों से मुख्यमंत्री और मंत्री पद गंवाना पडा । ये हैं - उमा भारती , अर्चना चिटनीस , अलका जैन और विधायक से सांसद बनीं यशोधरा राजे ।

दरअसल राजनीतिक दलों को लगता है कि महिला उम्मीदवारों के जीतने की संभावना कम होती है , लेकिन एक सर्वेक्षण के बाद सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ने कहा है कि यह धारणा सही नहीं है. । सेंटर का कहना है कि १९७२ के बाद के आंकड़े बताते हैं कि महिला उम्मीदवारों के जीतने का औसत पुरुषों की तुलना में बहुत अच्छा रहा है ।

इस मुद्दे पर राजनीतिक दल सिर्फ़ ज़बानी जमा खर्च करते हैं । हकीकतन महिलाओं के साथ सत्ता में भागीदारी की उनकी कोई इच्छा नहीं है । महिलाओं की भागीदारी भले ही सीमित संख्या में बढ़ रही है लेकिन जो महिलाएँ राजनीति में आ रही हैं , उन्होंने महिला राजनीतिज्ञों के प्रति लोगों की राय बदलने का महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । गौर तलब है कि अब जो महिलाएँ चुनाव लड़ रही हैं उनमें से कम ही किसी राजनीतिज्ञ की पत्नी, बेटी या बहू हैं ।

भारत में आम तौर पर राजनीति शुरू से पुरुषों का क्षेत्र माना गया है और आज भी पुरुषों का वर्चस्व कायम है शायद कहीं न कहीं पुरुष राजनेता नहीं चाहते कि वो अपनी जगह छोड़ दें , लेकिन धीरे - धीरे ही सही वक्त करवट ले रहा है ।

व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि महिलाओं को आगे बढने के लिए किसी सहारे की ज़रुरत नहीं । महिलाओं में आगे बढने का जज़्बा भी है और हौसला भी । योग्यता बढाने के लिए अनुकूल माहौल की दरकार है । पर्याप्त मौके मिलते ही इन परवाज़ों को पंख मिल जाएंगे ऊंचे आसमान में लंबी उडान भरने के लिए ....। औरत किसी के रहमोकरम की मोहताज कतई नहीं ...। जिस भी दिन औरत ने अपने हिस्से का ज़मीन और आसमान हासिल करने का ठान लिया उस दिन राजनीति का नज़ारा कुछ और ही होगा ।

कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं
तुझमें शोले भी हैं ,बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू ह्कीकत भी है , दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख का उनवान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे ।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सटीक बातें की है आपने।

Sarita Chaturvedi ने कहा…

SHABDO ME TAKAT JAROOR HOTI HAI...PAR KAISE KAHA JAYE..KI ...PRARMBH SE HI MAHILAWO ME KAHI N KAHI AIK NETRITWA KO DHUDHA HAI....JISKA KHAMIYAJA YE HAI KI AAJ BHI WO KISI KI UNGLAI PAKARKAR HI AAGE BADHNA CHAHTEI HAI...!