ताल - तलैयों के शहर के तौर पर मशहूर भोपाल की पहचान खतरे में है । यहां की बडी झील शायद पूरे भारत की एकमात्र मानव निर्मित विशालकाय जल संरचना होगी । मुझे याद है वो दिन जब हम गर्मी की छुट्टियां बिताने इंदौर जाया करते थे और अप्रैल - मई की तपते दिनों में भी भोपाल से ४० किलोमीटर दूर सीहोर से कुछ किलोमीटर पहले तक बडा तालाब हमें बिदाई देने आया करता था । हिलोरें लेता तालाब बालमन में अथाह समुद्र की छबि साकार कर देता ।
बूंद - बूंद पानी के लिए जद्दोजहद करते इंदौरियों के बीच " हमारा बडा तालाब " हमें अजीब सी ठसक और फ़्ख्र से भर देता । लेकिन हमारा वही गुमान अब अंतिम सांसे गिन रहा है । तालाब दम तोड रहा है । लेकिन झील की मौत पर सोगवार होने वाले लोग ढूंढे से नहीं मिल रहे । हां ,जगह - जगह चील गिद्ध मृतयुभोज की तैयारियों में मसरुफ़ हैं । लोगों ने पोस्टर बैनर झाड - पोंछकर तैयार कर लिए हैं । मंहगा पेट्रोल फ़ूंक कर सडकों पर गाडियां दौडाते हुए पानी बचाने की सीख दी जा रही है ।
इस बीच एक बडे समूह को भी पानी की कीमत का एहसास हो ही गया । सो ’ जल है ,तो कल है ’ के नारे के साथ शहर में जल सैनिक बनाने की मुहिम छेड दी गई है । जल सत्याग्रह की ये कोशिश कितनी ईमानदार है , इसका खुलासा तो वक्त ही करेगा । भोज वेटलैंड परियोजना के नाम पर विदेशी मदद के अरबों रुपए पानी में बह गये ,मगर बडी झील का पानी नहीं बचाया जा सका ।
बेशर्मी का आलम ये है कि सूखी झील पर फ़सलें लहलहाने लगीं , तब कहीं प्रशासन को होश आया । यूं तो बडा तालाब ३१ वर्ग किलोमीटर में फ़ैला था लेकिन इस साल बारिश की कमी के कारण अब सिर्फ़ १० वर्ग किलोमीटर दायरे में सिमट कर रह गया है । भू माफ़िया ने १५० एकड से ज़्यादा हिस्से में खेती शुरु कर दी । बहरहाल देर से ही सही प्रशासन को होश तो आया । फ़िलहाल ज़मीन का बेज़ा कब्ज़ा हटा दिया गया है । आगे भगवान मालिक ........।
झील की लाश पर मौज उडाने वाले ये भूल बैठे हैं कि पानी कारखानों में बनने वाला प्राडक्ट नहीं है । कुदरत की इस नायाब नियामत की नाकद्री मंहगी पडेगी हमें भी और आने वाली नस्लों को भी । लोग पैसा बचा रहे हैं और पानी बहा रहे हैं । नल की टोंटी खोलते ही आसानी से मिल जाने वाला पानी आने वाले वक्त में इस लापरवाही की क्या कीमत वसूलेगा । इसके महज़ एहसास से रुह कांप उठती है ।
राजधानी के पुराने इलाके में नवाबी दौर की करीब २५० बावडियां और कुएं बदहाली के शिकार हैं । किसी ज़माने में ये पारंपरिक जल स्त्रोत लोगों की प्यास बुझाते थे । साथ ही उनके रोज़मर्रा के कामों के लिए भी भरपूर पानी मुहैया कराते थे । हैरानी है कि भारी उपेक्षा के बावजूद १०० से ज़्यादा बावडियों का वजूद अब भी कायम है । हम सभी को समझना होगा कि जल है तो जीवन है या जल है तो कल है जैसे लोक लुभावन नारों के उदघोष से काम नहीं बनने वाला । पानी की मित्तव्ययिता का संस्कार पैदा करना होगा । एक बार फ़िर लौटना होगा अपनी परंपराओं की ओर जो हमें प्रकृति से लेना ही नहीं वापस लौटाना और संरक्षण की सीख भी देती हैं । पानी की अहमियत को समझाने के लिए ये दोहा है -
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ,
पानी गये ना उबरे मोती , मानस , चून ।
4 टिप्पणियां:
एकदम सामयिक. बड़े तालाब की यह स्थिति कुछ वर्षों पूर्व भी निर्मित हुई थी. आपने दो समस्याओं की ओर ध्यान आकृष किया है. भू गर्भीय जल स्त्रोतो का निरंकुश दोहन और दूसरा झील का सिकुड़ना. इन दोनो के लिए समय रहते सार्थक उपाय ना किए जाएँ तो अनर्थ हो जवेगा. जन आंदोलन की आवश्यकता है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
बहुत ही ज़रूरी सवाल उठाया है - प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हम सब की ही बराबर की जिम्मेदारी बनती है - मगर प्रशासन का जागरूक होना बहुत ज़रूरी है.
बहुत उम्दा आलेख,विचारणीय.
Mai pichale saal hi Bhopal chodkar Indore aya hun. Bhopal ki jab bhi yaad ati hai to Upper Lake ka Darshya sabase pahale akho ke samane atta hai. Badhi jhil ki vedna ko aapane bahut prabhavi dhang se udhya hai. Behtar hoga ki Bhopal ke sabhi nagarik eksath milkar Badhi jheel ko bachane ke liye kuch karen. - Amitsingh Kushwah, Indore. M. 9300939758 e-mail : amitsk6@yahoo.com
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