जनता की सेवकायी के लिए प्रदेश के धन कुबेर चुनावी मैदान में उतरे हैं । नामांकन दाखिल करते वक्त संपत्ति का ब्यौरा देने की मजबूरी ने जनसेवकों की माली हालत की जो तस्वीर पेश की है वह आंखें चुंधियाने के लिए काफ़ी है । ज़्यादातर नेता करोडपति हैं । कुछ तो ऎसे हैं , जो महज़ ५ - ७ साल पहले रोडपति थे अब करोडपति हैं । बचपन से सुनते आए हैं "सेवा करो , तो मेवा मिलेगा ।” शायद जनता की सेवकाई के वरदान स्वरुप ही नेताओं की माली हालत में रातों रात चमत्कारिक बदलाव आ जाता है ।
संपत्ति के खुलासे ने लोगों को चौंकाया है । कई नौजवान मुनाफ़े के इस व्यवसाय की ओर खिंचे चले आ रहे हैं । जनसेवा से मुनाफ़े की एक बानगी -
मुरियाखेडी में तेंदूपत्ता इकट्ठा करने वाला एक मजदूर महज़ दो साल में इतना पैसा कमा लेता है कि वह भोपाल में करोडों की जायदाद का मालिक बन जाता है । राजधानी की नरेला विधानसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार की चुनाव आयोग को दी गई संपत्ति की जानकारी और उनके राजनीतिक सफ़र को मिलाकर देखने पर कुछ ऎसी ही सच्चाई नज़र आती है ।
अखबारों में छपे हर्फ़ों पर यकीन करें तो नामांकन पत्र के साथ अपनी सम्पत्ति की जानकारी देते हुए ’ गरीब बीडी मजदूर’ विश्वास सारंग ने जो शपथ-पत्र प्रस्तुत किया उसके अनुसार वे करोड़ों के कारोबार के स्वामी हैं । भोपाल, सीहोर व रायसेन में लाखों की जमीन है । भोपाल की निशात कालोनी में लगभग दो करोड़ साठ लाख की कीमत के आवासीय व व्यावसायिक भवन , अरण्यावली गृह निर्माण सहकारी समिति में ३२ लाख रुपए की जमीन, तीन गाँवों में सवा छह लाख की कृषि भूमि, मण्डीदीप स्थित विशाल पैकवेल इण्डस्ट्रीज में भागीदारी, कामदार काम्पलेक्स, दिल्ली के गोयला खुर्द में जमीन एग्रीमण्ट भी श्री सारंग के ही नाम पर है। नामांकन पत्र के साथ इन्होंने भोपाल नगरीय क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीबध्द होने के प्रमाण भी पेश किए हैं ।
अब मामले का दूसरा पहलू - विश्वास सारंग इन दिनों मध्य्प्रदेश लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष हैं । इस पद तक पहुंचने की पहली शर्त है - किसी प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति का नियमित सदस्य होना । इस समिति का सदस्य बनने के लिए दो शर्तें हैं । पहली - वह व्यक्ति उस सहकारी समिति के भौगोलिक क्षेत्राधिकार का स्थायी और नियमित निवासी हो । दूसरी - उस व्यक्ति के जीविकोपार्जन का आधार लघु वनोपज संग्रहण हो ।
श्री सारंग ने अध्यक्ष पद हासिल करने के लिए क्या - क्या पापड नहीं बेले । ‘प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति, मुरियाखेड़ी’ के भौगोलिक क्षेत्राधिकार वाले ग्राम और फड़ साँकल के निवासी श्री सारंग ने वन - वन भटक कर तेंदूपत्ता इकट्ठा किया । उन्होंने वर्ष २००७ में तेंदू पत्ता की ६०० और वर्ष २००८ में १२०५ गड्डियाँ संग्रहित कर २४ हज़ार तथा ४८ हज़ार २०० रुपये कमाए ।
लगभग सभी नेताओं की कहानी कमोबेश इसी तरह की है । सामान्य परिवारों के इन होनहार खद्दरधारी नेताओं का राजनीतिक सफ़र ज़्यादा लंबा भी नहीं है और ना ही किसी बडे पद पर कभी आसीन रहे । ऎसे में सवाल उठता है कि आखिर इस छ्प्पर फ़ाड ऎश्वर्य का राज़ क्या है ? राजनीति के सिवाय देश का कोई भी हुनर या पेशा इस रफ़्तार से दौलत कमाने की गारंटी नहीं दे सकता ।
देश के मतदाताओं अपने नेताओं की दिन दोगुनी रात चौगुनी बढती आर्थिक हैसियत का राज़ जानने के लिए ही सही , अब तो नींद से जागो । देखो किसे वोट दे रहे हो ....। तुम्हारा वोट किन - किन नाकाराओं को नोट गिनने और तिजोरियां भरने की चाबी थमा रहा है । मेरी राय में यदि कोई भी प्रत्याशी चुनाव के लायक ना हो ,तो वोट को बेकार कर दो , मगर वोट ज़रुर दो ।
लहू में खौलन , ज़बीं पर पसीना
धडकती हैं नब्ज़ें , सुलगता है सीना
गरज ऎ बगावत कि तैयार हूं मैं ।
[ यह पोस्ट माननीय विष्णु बैरागी जी के ब्लाग ’एकोsहम’ के आलेख से प्रेरित होकर लिखी गयी है । कुछ तथ्य उनकी पोस्ट ’ समाचार ना छपने का समाचार ’ से लिए गये हैं । ]
8 टिप्पणियां:
यही असली तस्वीर है हमारे नेताओं की। जनता के साथ विडंबना ये है कि उनके पास ऐसा कोई पाक-साफ़ विकल्प ही नहीं है कि वो जिस पर भरोसा कर सके। लिहाज़ा, झक मार कर वो ऐसे ही नेताओं को चुनते हैं।
आपकी पोस्ट पढकर मुझे ठीक वैसी ही खुशी हो रही है जैसे किसी अपनी वंश वृध्दि पर होती है । आपने मेरा और मेरे लिखे का सम्मान बढाया है । अन्तर्मन से आभार ।
सक्रिय दुर्जन हमारे समय का संकट नहीं हैं । हमारा संकट है - निष्क्रिय सज्जन । अपनी सज्जनता के आत्म गौरव में तमाम सज्जन अपने-अपने घरों में कैद बैठे रहते हैं । यदि तमाम सज्जन लोग नियमित सम्पर्क, सम्वाद करने लगें तो कई संकटों से मुक्ति मिल सकती है ।
आपको साधुवाद और पुन: धन्यवाद, आभार ।
netawo ki asaliyat janana gambhir hai main to kahata hun ke namumkin hia ....
kahunga sabhi ek dusare ke purak hai.
haan aaj tv news channel par report dekhi thi--
in ko neta banaNe mein janta ka hi haath hai----shayad koi vikalp bhi nahin hai-
अच्छा िलखा है आपने ।
बहुत बढ़िया बेबाक लेखन. प्रशंसनीय!!
यही सीखा था, यही आता है
जो सेवा करता है, मेवा खाता है
मेवे के साथ डायब्टिज का खतरा भी उठाते है
पत्ते कोई और बिनता है नाम हमारा चलाते है
आप इसे हुनर कहो या पेशा
हम ऐसे ही थे और रहेंगे हमेशा
सरिता जी,
एक अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
यही सीखा था यही निभाते हैं
सेवा करते है तो मेवा खाते है
मेवे के साथ डायब्टिज के खतरा उठाते है
पत्ते कोई और बिनता है हमारा नाम चलाते है
इसे हुनर कहो, चमत्कार या पेशा
यही करते रहें है, यही करेंगे हमेशा
सरिता जी,
अच्छी और तथ्यपरक खोजबीन के लिये बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
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