खींचों ना तलवार ना कमान निकालो
जब तोप हो मुकाबिल तो अखबार निकालो ।
संभवतः ऎसा ही कोई शेर है ,जो पत्रकारों को नैतिकता के साथ व्यवस्था के गुण दोष सामने लाने का हौंसला और जज़्बा देता है । पत्रकारिता आज़ादी के पहले तक , बल्कि आज़ादी के कुछ साल बाद तक
मिशन हुआ करती थी । अब पत्रकारिता मशीन बन गई है , उगाही करने की मशीन ....। सबसे ज़्यादा चिंता की बात ये है कि अब मालिक ही अखबार के फ़ैसले लेते हैं और हर खबर को अपने नफ़े नुकसान के मुताबिक ना सिर्फ़ तोडते मरोडते हैं , बल्कि छापने या ना छापने का गणित भी लगाते हैं ।भोपाल से निकलने वाले एक अखबार ने नए साल में पत्रकारिता के नए मानदंड स्थापित किए हैं । अपनी तरह का शायद ये पहला और शर्मनाक
मामला होगा । अपने आपको समाज का हित चिंतक बताने वाले इस अखबार ने दो जनवरी को एक समाचार दिया और फ़िर चार जनवरी को इसी समाचार पर U टर्न मार लिया । संभव है कि आने वाले सालों में पत्रकारिता जगत में आने वाले छात्र इसे कोर्स की किताबों में भी पाएं। कहानी पूरी फ़िल्मी है । आप ही तय करें ये सच है या वो सच था .........
दो जनवरी को प्रकाशित
चार जनवरी को
प्रकाशित