सोमवार, 1 दिसंबर 2008

सरकार को मैडम सोनिया की फ़टकार

मुम्बई में दहशतगर्दी पर केन्द्र और राज्य सरकार की नाकामी ने मैडम सोनिया की पेशानी पर बल ला दिए है । प्रियंका राबर्ट वाड्रा के तल्ख तेवरों के बाद सीपीसी की मीटिंग में राहुल बाबा के भडकने ने देश के राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी बढा दी । कांग्रेस के भावी कर्णधारों के कडे तेवरों के आगे कई दिग्गज नेताओं की घिग्गी बंध गई लगती है ।

सोनिया ने भी बच्चों की ज़िद के आगे घुटने टेक दिए और गुस्से में ऎसे कठोर अल्फ़ाज़ कह डाले , जो यूपीए सरकार के अब तक के कार्यकाल पर ही सवालिया निशान लगाते हैं । बैठक में सरकार को दी गई हिदायतों पर गौर किया जाए , तो उसका लब्बो लुआब कुछ ऎसा ही निकलता है । चैनलों पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज़ की एक बानगी -

- आतंकवाद पर सोनिया सख्त

- सोनिया का सरकार को दो टूक संदेश

- द्रढ इच्छा शक्ति वाले नेतृत्व की ज़रुरत

- निर्णायक कार्रवाई की ज़रुरत

- लोगों को लगे कि सरकार है

- सोच विचार का समय गया

मोहतरमा सोनिया के
इस बदले रुख पर बस यही कहा जा सकता है - बडी देर कर दी मेहरबां आते आते........... ।

इन सभी बातों को पलट कर देखें या यूं कहें कि गूढ अर्थ ढूंढें , तो लगता है कि अब तक केंद्र सरकार जनता के पैसों पर , जनता की मर्ज़ी से , जनता के लिए मसखरी कर रही थी । हर मोर्चे पर नाकामी की ऎसी ईमानदार स्वीकारोक्ति के बाद तो पूरी सरकार को ही अलविदा कह देना चाहिए ।

इस्तीफ़ों की नौटंकी " डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ ’ से ज़्यादा कुछ नहीं । लगातार अपनी चमडी बचाने में लगे नेताओं को ऊपर से फ़टकार पडी , तो बेशर्मी ने नैतिकता का लबादा ओढ लिया ....! खैर इन बेचारों को दोष देने का कोई मतलब नहीं । बात की तह में जाएं , तो पाएंगे कि असली गुनहगार हम हैं । और अपनी बेवकूफ़ियों की ठीकरा नेताओं पर फ़ोडकर असलियत से मुंह छिपाने की पुरज़ोर कोशिश से बाज़ नहीं आ रहे ।

जनसेवक ना जाने कब जन प्रतिनिधि बन बैठे । जिन्हें जनता की सेवा दायित्व निभाना था , सत्ता के मालिक बन बैठे । यानी प्रजातंत्र की असली सूत्रधार जनता अपने अधिकारों को आज तक समझ ही नहीं सकी है । गलत लोग चुनें भी हमने हैं ,तो फ़िर शिकवा - शिकायत कैसी ? अच्छे लोगों को आगे लाने की मुहिम चलाना होगी ,जनता को मानसिकता बदलना पडेगी , सही - गलत का फ़र्क समझना होगा और देशहित में निज हितों को दरकिनार करना होगा । चांदी के चंद टुकडों के लिए ईमान की तिजारत बंद करके ही देश को बचाया जा सकता है ...।

नयी दुनिया की पड रही है नींव
खैर उजडी तो उजडी आबादी
फ़ैसला हो गया सरे मैदां
ज़िंदगी है गरां कि आज़ादी

8 टिप्‍पणियां:

Anil Pusadkar ने कहा…

बहुत ज़ल्दी होश आ गया खानदानी नेताओ को.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

कद्दावर नेता की जरूरत है। मुश्किल है कि नहीं हैं।

सतीश पंचम ने कहा…

अब तो कुछ कहने का मन भी नहीं हो रहा है, बस खीझ और गुस्से के सिवा।

संगीता-जीवन सफ़र ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने|वास्तव में सब लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाये तो देश के लिये ये एक नई पहल होगी|

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

अच्छा िलखा है आपने । शब्दों में यथाथॆ की अिभव्यिक्त है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है । समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें -
http://www.ashokvichar.blogspot.com

विष्णु बैरागी ने कहा…

आक्रोश में ही सही, आपने ठीक कहा कि वास्‍तविक दोषी तो हम ही हैं । हम अपने नेताओं की सारी अनुचित हरकतें चुपचाप देखते रहते हैं । उन्‍हें कभी नहीं टोकते । फलस्‍वरूप वे अपनी प्रत्‍येक हरकत को सही ही मानते हैं ।
हम अपने आप को नागरिक नहीं, अभी भी जनता ही मान कर चल रहे हैं, जी रहे हैं ।
जैसे लोग, वैसे नेता । जैसा कच्‍चा माल वैसा ही फिनिश्‍ड प्राडक्‍ट ।

Arun Arora ने कहा…

राहुल बाबा तो इत्ते गुस्से मे थे कि नेताओ को ब्लडी बास्टर्ड कह कर सीधे पार्टी मे चले गये सुबह पांच बजे तक बेचारे पीते और नाचते रहे . तब जाकर ठंडे हुये. अब महरानी अपना जन्म दिन ना मनाकर देश को संदेश दे रही है कि उन्हे दुख है ताज की हालत का . वाकई कतई कमीने आतंकवादी थे क्या जाता सालो का ? अगर रेलवे स्टेशन ही ही ऊडा देते पर ताज ना जाते . महारानी और राजकुमार तो गमगीन ना होते

Unknown ने कहा…

अपनी ही कठपुतली सरकार को गाली देना शर्म की बात है. क्या अब तक यह सरकार जो करती रही है वह किसी और की इजाजत से हो रहा था? शिवराज पाटिल किस की वजह से कुर्सी पर बैठा था? पाटिल ही क्या, सब इन की बफदारी से वहां थे, अब जब जनता भड़क उठी तो इसे निकाल दो, उसे निकाल दो, यह करो, वह करो, बेशर्मी की भी हद होती है.