लोकतांत्रिक देश में कदम कदम पर राजनीति का बोलबाला है । घर की चहारदीवारी में राजनीति का घालमेल.....। चौखट से बाहर कदम रखते ही सियासी दांवपेंच । दफ़्तर में उठापटक.......। सत्ता के गलियारों में राजनीति की दंड - पेल तो लाज़मी है लेकिन अब तो खेल के मैदानों में भी उठाने गिराने का खेल रफ़्तार पकड चुका है । साहित्य जगत की राजनीति से तो सभी वाकिफ़ हैं । कला संसार भी इस रोग से अछूता नहीं रहा । फ़िल्मी दुनिया में एक दूसरे को पटखनी देने की ज़ोर आज़माइश का नतीजा है , जो संसद की सीटों पर अब घिसे हुए नेताओं से ज़्यादा चमकते अभिनेता नज़र आते हैं ।
देश के शीर्ष सम्मानों को लेकर कभी कभार नाराज़गी और कभी असंतोष के स्वर सुनाई पडते रहे हैं । मगर इन सम्मानों पर भी एक दिन सियासत का रंग चढ जाएगा ये किसी ने सोचा नहीं था । गणतंत्र दिवस के मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए मशहूर हस्तियों को पद्म सम्मानों से नवाज़ने की परंपरा रही है । इस बार फ़िल्म जगत के जिन पांच कलाकारों को पद्मश्री दिया गया है , उनमें ऐश्वर्या राय बच्चन, अक्षय कुमार, उदित नारायण, कुमार सानू और हेलेन शामिल हैं । बहू को सम्मान मिलने से बच्चन परिवार काफी खुश है।
कजरारे - कजरारे की "धूम" मचाकर इश्क को कमीना बताने वाली ऐश्वर्या ने अभिनय के क्षेत्र में कौन से झंडे गाडे हैं ये समझ से परे है ? आखिर विश्व सुंदरी का खिताब जीतने वाली ऐश्वर्या ने अभिनय के ऎसे कौन से प्रतिमान स्थापित किये हैं ? पिछले कुछ सालों में तन उघाडू फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त के अलावा एक ही बडी बात उनके खाते में है - बच्चन परिवार के चश्मे चिराग अभिषेक से विवाह । नर्गिस , अमिताभ ,जया , दिलीप कुमार जैसे कलाकारों को जब पद्म पुरस्कार दिया गया तो सम्मान हासिल करने वाले के साथ उस सम्मान की गरिमा भी बढी । खबरों का बाज़ार गर्म है कि अमिताभ बच्चन के पारिवारिक सदस्य माने जाने वाले अमर सिंह ने अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय दोनों के लिए पद्म पुरस्कार की चाहा था । लेकिन सोनिया गांधी के दखल के बाद सौदा ऐश्वर्या को पद्मश्री पर पटा ।
उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर सपा से तकरार के बावजूद कांग्रेस दोस्ती बरकरार रखने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। ऐश्वर्या राय बच्चन को पद्मश्री से सम्मानित करने का केन्द्र सरकार का फ़ैसला इसी से जोडकर देखा जा रहा है।
आज कल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच तनातनी का ही सही लेकिन तालमेल का रिश्ता चल रहा है। पद्म सम्मान के तौर पर सियासत की दलाली करने वाले अमरसिंह ने एक बार फ़िर कांग्रेस को दोस्ती की कीमत चुकाने का फ़रमान जारी कर डाला । वैसे भी सरकार बचाने के इनायतनामे के तौर पर कांग्रेस लगातार राजनीतिक अडीबाज़ अमरसिंह की ब्लैकमेलिंग का शिकार होती आ रही है । सरकार बचाने की इतनी भारी कीमत अदा करना होगी ये तो मैडम ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा ।
उत्तरप्रदेश में मायावती से खौफ़ज़दा कांग्रेस लोकसभा चुनावों के लिए साथी की तलाश में है । अमर सिंह इसी मजबूरी का जमकर फ़ायदा लेने में जुटे हैं । समाजवादी पार्टी अपनी ओर से इस रिश्ते को अपनी शर्तों पर निभाने की पहल में लगी है जबकि कांग्रेस कुछ भी कर के यह तालमेल बनाए रखने के लिए प्रतिबद्व है।
आज अमरसिंह अपना तिरेपनवां जन्मदिन मना भी रहे हैं और नहीं भी । उनके फ़ैन क्लब तिरेपन किलो का केक काट कर उन्हें मुकुट पहना जोश दिखा रहा है ,लेकिन बर्थ डे ब्वाय {मैन} रोष दिखा रहे हैं । वे मुंह फ़ुलाये बैठे हैं । उनकी शिकायत है कि सोनिया ,प्रियंका या राहुल में से किसी ने अब तक उन्हें ’"विश” नहीं किया । शुभकामना संदेश नहीं भेजने का यूपीए को ना जाने क्या खमियाज़ा उठाना पडेगा ये तो भगवान ही जानें या फ़िर अमरसिंह ...। वैसे कोई सोनिया को संदेश भिजवाओ कि वे देशहित में तुरंत देश के कर्णधार की नाराज़गी दूर करें । अमरसिंह के मिजाज़ को समझ पाना बडा ही मुश्किल है । सोनिया का संदेशा ना आने से "कुपित " अमर बाबू को अपने पुराने साथी और अब कांग्रेसी राज बब्बर के भेजे फ़ूलों में भी कांटों की चुभन का एहसास हो रहा है । "अमर चरित्रम यूपीए भाग्यम , देवो ना जानापि कुतो मनुष्यम "
एक अदना सा व्यक्ति मजबूरी की राजनीति में एकाएक कितना ताकतवर हो सकता है , इसका ’क्लासिक’ उदाहरण है अमरसिंह । मुलायम और अमर सिंह के खिलाफ़ सीबीआई जांच खत्म करने का मामला हो या संजय - प्रिया दत्त से जुडा विवाद , अमर सिंह ने कांग्रेस की हालत उस तरह कर दी है , जो सज़ा के तौर पर सौ जूतों या सौ प्याज़ में से किसी एक को आसान विकल्प के रुप में चुनने के चक्कर में सौ जूते भी खा रही है और सौ प्याज़ भी ....।
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मंगलवार, 27 जनवरी 2009
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
सरकार को मैडम सोनिया की फ़टकार
मुम्बई में दहशतगर्दी पर केन्द्र और राज्य सरकार की नाकामी ने मैडम सोनिया की पेशानी पर बल ला दिए है । प्रियंका राबर्ट वाड्रा के तल्ख तेवरों के बाद सीपीसी की मीटिंग में राहुल बाबा के भडकने ने देश के राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी बढा दी । कांग्रेस के भावी कर्णधारों के कडे तेवरों के आगे कई दिग्गज नेताओं की घिग्गी बंध गई लगती है ।
सोनिया ने भी बच्चों की ज़िद के आगे घुटने टेक दिए और गुस्से में ऎसे कठोर अल्फ़ाज़ कह डाले , जो यूपीए सरकार के अब तक के कार्यकाल पर ही सवालिया निशान लगाते हैं । बैठक में सरकार को दी गई हिदायतों पर गौर किया जाए , तो उसका लब्बो लुआब कुछ ऎसा ही निकलता है । चैनलों पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज़ की एक बानगी -
- आतंकवाद पर सोनिया सख्त
- सोनिया का सरकार को दो टूक संदेश
- द्रढ इच्छा शक्ति वाले नेतृत्व की ज़रुरत
- निर्णायक कार्रवाई की ज़रुरत
- लोगों को लगे कि सरकार है
- सोच विचार का समय गया
मोहतरमा सोनिया के इस बदले रुख पर बस यही कहा जा सकता है - बडी देर कर दी मेहरबां आते आते........... ।
इन सभी बातों को पलट कर देखें या यूं कहें कि गूढ अर्थ ढूंढें , तो लगता है कि अब तक केंद्र सरकार जनता के पैसों पर , जनता की मर्ज़ी से , जनता के लिए मसखरी कर रही थी । हर मोर्चे पर नाकामी की ऎसी ईमानदार स्वीकारोक्ति के बाद तो पूरी सरकार को ही अलविदा कह देना चाहिए ।
इस्तीफ़ों की नौटंकी " डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ ’ से ज़्यादा कुछ नहीं । लगातार अपनी चमडी बचाने में लगे नेताओं को ऊपर से फ़टकार पडी , तो बेशर्मी ने नैतिकता का लबादा ओढ लिया ....! खैर इन बेचारों को दोष देने का कोई मतलब नहीं । बात की तह में जाएं , तो पाएंगे कि असली गुनहगार हम हैं । और अपनी बेवकूफ़ियों की ठीकरा नेताओं पर फ़ोडकर असलियत से मुंह छिपाने की पुरज़ोर कोशिश से बाज़ नहीं आ रहे ।
जनसेवक ना जाने कब जन प्रतिनिधि बन बैठे । जिन्हें जनता की सेवा दायित्व निभाना था , सत्ता के मालिक बन बैठे । यानी प्रजातंत्र की असली सूत्रधार जनता अपने अधिकारों को आज तक समझ ही नहीं सकी है । गलत लोग चुनें भी हमने हैं ,तो फ़िर शिकवा - शिकायत कैसी ? अच्छे लोगों को आगे लाने की मुहिम चलाना होगी ,जनता को मानसिकता बदलना पडेगी , सही - गलत का फ़र्क समझना होगा और देशहित में निज हितों को दरकिनार करना होगा । चांदी के चंद टुकडों के लिए ईमान की तिजारत बंद करके ही देश को बचाया जा सकता है ...।
नयी दुनिया की पड रही है नींव
खैर उजडी तो उजडी आबादी
फ़ैसला हो गया सरे मैदां
ज़िंदगी है गरां कि आज़ादी
सोनिया ने भी बच्चों की ज़िद के आगे घुटने टेक दिए और गुस्से में ऎसे कठोर अल्फ़ाज़ कह डाले , जो यूपीए सरकार के अब तक के कार्यकाल पर ही सवालिया निशान लगाते हैं । बैठक में सरकार को दी गई हिदायतों पर गौर किया जाए , तो उसका लब्बो लुआब कुछ ऎसा ही निकलता है । चैनलों पर प्रसारित ब्रेकिंग न्यूज़ की एक बानगी -
- आतंकवाद पर सोनिया सख्त
- सोनिया का सरकार को दो टूक संदेश
- द्रढ इच्छा शक्ति वाले नेतृत्व की ज़रुरत
- निर्णायक कार्रवाई की ज़रुरत
- लोगों को लगे कि सरकार है
- सोच विचार का समय गया
मोहतरमा सोनिया के इस बदले रुख पर बस यही कहा जा सकता है - बडी देर कर दी मेहरबां आते आते........... ।
इन सभी बातों को पलट कर देखें या यूं कहें कि गूढ अर्थ ढूंढें , तो लगता है कि अब तक केंद्र सरकार जनता के पैसों पर , जनता की मर्ज़ी से , जनता के लिए मसखरी कर रही थी । हर मोर्चे पर नाकामी की ऎसी ईमानदार स्वीकारोक्ति के बाद तो पूरी सरकार को ही अलविदा कह देना चाहिए ।
इस्तीफ़ों की नौटंकी " डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ ’ से ज़्यादा कुछ नहीं । लगातार अपनी चमडी बचाने में लगे नेताओं को ऊपर से फ़टकार पडी , तो बेशर्मी ने नैतिकता का लबादा ओढ लिया ....! खैर इन बेचारों को दोष देने का कोई मतलब नहीं । बात की तह में जाएं , तो पाएंगे कि असली गुनहगार हम हैं । और अपनी बेवकूफ़ियों की ठीकरा नेताओं पर फ़ोडकर असलियत से मुंह छिपाने की पुरज़ोर कोशिश से बाज़ नहीं आ रहे ।
जनसेवक ना जाने कब जन प्रतिनिधि बन बैठे । जिन्हें जनता की सेवा दायित्व निभाना था , सत्ता के मालिक बन बैठे । यानी प्रजातंत्र की असली सूत्रधार जनता अपने अधिकारों को आज तक समझ ही नहीं सकी है । गलत लोग चुनें भी हमने हैं ,तो फ़िर शिकवा - शिकायत कैसी ? अच्छे लोगों को आगे लाने की मुहिम चलाना होगी ,जनता को मानसिकता बदलना पडेगी , सही - गलत का फ़र्क समझना होगा और देशहित में निज हितों को दरकिनार करना होगा । चांदी के चंद टुकडों के लिए ईमान की तिजारत बंद करके ही देश को बचाया जा सकता है ...।
नयी दुनिया की पड रही है नींव
खैर उजडी तो उजडी आबादी
फ़ैसला हो गया सरे मैदां
ज़िंदगी है गरां कि आज़ादी
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