शनिवार, 13 दिसंबर 2008

’राम राज्य’ की आस में शिव को सौंपा ताज

शिवराजसिंह चौहान की ताजपोशी के साथ बीजेपी सरकार की नई पारी की शुरुआत हो गई है । भोपाल के जम्बूरी मैदान पर उमडे अथाह जनसैलाब ने भाजपा को स्पष्ट संकेत दे दिये हैं कि छप्पर फ़ाड कर वोट देने के बाद जनता सरकार से जमकर काम लेने के लिए कमर कस चुकी है ।

प्रदेश की जनता ने जिस निष्ठा और विश्वास के साथ शिवराजसिंह चौहान पर भरोसा जताया है , उसकी कसौटी पर खरा उतरने के लिए मुख्यमंत्री को सूबे की कमान संभालते ही काम में जुट होगा । भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को दरकिनार कर राज्य की बागडोर भाजपा को सौंपने के पीछे सिर्फ़ एक ही कारण नज़र आता है कि मतदाताओं को शिवराज की कोशिशों में ईमानदारी दिखाई दी । लोगों ने ना पार्टी और ना ही स्थानीय नेता को चुना , बल्कि उन्होंने तो शिवराज के विकास के नारे पर अपने भरोसे की मोहर लगाई है ।

इस चुनाव में मतदाता ने स्पष्ट कर दिया है कि ना तो उसे बीजेपी से कोई खास लगाव है और ना ही कांग्रेस से कोई बैर । उसे मतलब है सिर्फ़ काम से । अच्छा काम करने की बात और विकास का वायदा तो लगभग सभी पार्टियों ने किया लेकिन मतदाताओं ने वायदा करने वालों की विश्वसनीयता को जांचा - परखा । यही वजह रही कि एक दूसरे को नीचा दिखाने में मशगूल कांग्रेस नेताओं के प्रति जनता ने बेरुखी अख्तियार कर ली । लोगों को लगा कि जब तक कांग्रेस अपना घर व्यवस्थित नहीं कर लेती , उसे प्रदेश का ज़िम्मा सौंपना ठीक नहीं होगा ।

दूसरी अहम बात रही शिवराज की विनम्र और ज़मीन से जुडे व्यक्ति की छबि । उन्होंने अपनी कमियाँ स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई । शायद इसीलिए तमाम खामियों के बावजूद शिवराज का जननायक के रुप में ’कायान्तरण” संभव हो सका । लेकिन अभी यह सफ़र का महज़ आगाज़ है । आगे का रास्ता काफ़ी कंटीला और दुर्गम है और यहीं से शुरु होगा जननायक की असली परीक्षा का दौर ...?

मध्यप्रदेश चुनावों की कुछ विशिष्टताओं पर विचार ज़रुरी है । हालांकि भाजपा के कई धडॆ इसे मानने को तैयार नहीं लेकिन हकीकतन आम जनता पर ’शिवराज फ़ेक्टर” हद दर्ज़े तक हावी रहा । गुजरात का ’मोदी माडल’ अपनी जगह है , मगर समाज के सभी वर्गों तक पहुंचने के लिए वायदों की बरसात के ’ शिवराज फ़ार्मूला’ का कामयाब होना आगामी चुनावों की रणनीति पर सभी दलों को फ़िर से काम करने के लिए बाध्य करेगा । इस माडल की खामियां और खूबियां तो अगले पांच साल ही बता सकेंगे , लेकिन फ़िलहाल यह माडल मोदी माडल की तुलना में ज़्यादा कारगर साबित हुआ है ।

जनता ने ज़्यादातर शिवराज को वोट दिया है फ़िर चाहे उम्मीदवार कोई भी रहा हो । अममून देखा गया है कि लोकप्रियता का बढता ग्राफ़ संकट का स्रोत भी बन जाता है । जनता जहाँ असीमित आशाएँ- अपेक्षाएँ पाल लेती है , वहीं पार्टी के भीतर भी ईर्ष्या और द्वेष के नाग फ़न फ़ैलाने लगते हैं । ऎसे में उन्हें खुद के बनाए माडल से भी सावधान और चौक्कना रहना होगा ।

शिवराज सरकार के सामने कडी चुनौती होगी चुनावी घोषणा पत्र में किए गये वायदों को पूरा करने की । बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र ’जन संकल्प पत्र’ में जो वायदे किए हैं यदि वे सारे के सारे आने वाले पाँच साल में पूरे कर दिए जाते हैं तो मध्यप्रदेश हकीकत में स्वर्ग बन जाएगा ।

पिछले कार्यकाल में शिवराज ने राजधानी में किस्म - किस्म की महापंचायतें आयोजित कर ज़बानी जमा खर्च की तमाम रेवडियाँ बाँटी । प्रदेश का एक बडा हिस्सा उन घोषणाओं को लेकर तरह तरह के सपने बुन कर बैठा है । वायदों को हकीकत में बदलने के लिए सरकार को आर्थिक मोर्चे पर विशेष कोशिशें करना होंगी । योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए आय के नए स्रोत तलाशने के साथ ही वित्तीय स्थिति में मज़बूती के लिए मितव्ययिता अपनाना होगी । लेकिन सूबे के मुखिया के ’राजतिलक” पर दिल खॊलकर किए गए खर्च को देखते हुए फ़िलहाल वित्तीय अनुशासन की बात कहना बेमानी लगता है ।

बहरहाल शिवराज एकछत्र नेता के रुप में उभरे हैं । उन्हें सकारात्मक समर्थन मिला है ,लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या वे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर सकारात्मक राजनीति और रचनात्मक सुशासन का माडल तैयार कर सकेंगे.....?

झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं अकसर सच्चा माल
शक्लें देख के सौदा करना काम है इन बंजारों का ।

6 टिप्‍पणियां:

विवेक सिंह ने कहा…

अच्छी समीक्षा हो गई . आभार !

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपके निष्‍कर्ष सटीक हैं । किन्‍तु राजनीतिक का वर्तमान रूवरूप भयभीत कर देता है । 'शिवराज' का कद पार्टी से (और हाई कमान से भी) ऊंचा निकलता देख कइयों के पेट में मरोडें उठने लगेंगी । तब, डर है कि कहीं इसी कारण 'शिवराज' को 'राजविहीन शिव' न कर दिया जाए ।

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

िविवध िस्थितयों को सुंदरता से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

राम राज्य ? कौन से राम और कौन सा राज्य . ईश्वर करे शिव राज बेचारे कल्याण सिंह न बने . अपने बूते सरकार बनाना भाजपा मे अच्छा नहीं माना जाता

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अब जनता जानने लगी है कि ज़मीन से जुडा नेता ही उनका सच्चा हमदर्द होता है। रही बात रेवडियां बांटने की, तो वो हर सरकार का काम है लेकिन देखना यह है कि ये अंधे की रेवडियां न हो। जैसा कि अपने शे‘र मे कहा है कि आंख खुली रखनी ही चाहिए।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

yaa to wqt badal hee jayegaa athwa wqt ke anusaar hamaree adat badal jayegee