तेज़ी से सफ़लता की पायदान लांघने का दावा
करने वाला भोपाल का एक अखबार यूं तो हमेशा ही चर्चा में बना रहता है ,लेकिन इन दिनों एक खास तरह की खबर के लिए बहस का सबब बना हुआ है । भारतीय परंपराओं और शास्त्रों की नई व्याख्या के ज़रिए लोगों को बाज़ार की राह पकडने के लिए उकसाने के लिए अखबार ने पत्रकारिता के सभी मानदंडों को ताक पर ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7wwUP3QOS28b1-q05BdBmusmDYgE8m8xUuA5WUBqzlutHIKlt_J3De54r_anLQZEl239ovVPrLc15DbnRYu75EODAyrmrnMdvVAMyXNm8EMaDP_l4Ytw8nfWzCQnMk9895TB_YoEtgqAi/s400/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%87%E0%A4%B0+%E0%A5%A7.JPG)
दिया । उपभोक्तावाद![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgILWl6BGaWsyBniTVLjHxCEn2hzuBGEzjS4MZyVNIwu-RsAqJXlVP0FTc4hyphenhyphenR5c_9bZ0Kkk_XyxRHHZZsYlltI60fUtwYlC8_xEr7lSnCIEDdDHw0_9ZfVGjliOLh-Nu50lnIxy4_XJWRP/s400/Picture.jpg)
रख
की तेज़ी से फ़ैलती पश्चिमी जीवन शैली को भारतीय जामा पहनाने के लिए अखबार ने पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों का भी जमकर मखौल उडाया है । देश में अखबार , रेडियो और विद्वानों के मत पर आज भी लोगों का पूरा भरोसा है । ऎसे लोगों की देश में कोई कमी नहीं है ,जो अखबार और ज्योतिष विद्वानों की कही बातों को ब्रह्म वाक्य से कम नहीं मानते हैं ।
कुछ दशक पहले तक बच्चे साइंस की किताब में पढते थे कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है लेकिन बदले दौर में ये जुमला उलट गया है । बाज़ार सामान से अटा पडा है और संचार माध्यमों ने उपभोक्ताओं को बाज़ार की ओर ठेलने का ज़िम्मा सम्हाल लिया है । सामाजिक सरोकारों से दूर हो चुकी पत्रकारिता बाज़ार के हाथॊ का खिलौना बन कर रह गई है । बाज़ार का अर्थशास्त्र लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी के हर फ़ैसले में घुसपैठ कर चुका है ।
खैर , बात हो रही थी भरोसे की । तो आज सामाजिक सरोकारों से जुडी एक संस्था " दृष्टि " ने भोपाल में विचार गोष्ठी का आयोजन किया जिसके केन्द्र में था वो खबरनुमा इश्तेहार जो श्राद्ध
पक्ष में खरीददारी को शास्त्र सम्मत बताते हुए १६ दिनों में हर रोज़ अलग -अलग सामान खरीदने के शुभ मुहूर्त की जानकारी से भरा था ।
मज़े की बात ये है कि समाचार में जिन ज्योतिषाचार्य का हवाला दिया गया था वो ही कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे और जो खुलासा उन्होंने किया वह काफ़ी चौंकाने वाला था । उन्होंने दावा किया कि अखबार में उनके हवाले से छापी गई जानकारी का कोई आधार ही नहीं है ,क्योंकि समाचार पत्र ने इस बारे में उनसे कोई बात ही नहीं की । उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वे पितृ पक्ष में खरीददारी के हिमायती कतई नहीं है ।
सवाल ये है कि समाचार पत्र अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहा वहां तक तो फ़िर भी माना जा सकता है कि व्यावसायिक मजबूरियां कई बार ऎसा करा देती हैं । पितृ पक्ष की परंपराओं को उचित ठहराना या उनको व्यवहार में लाना एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है , लेकिन किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम का इस्तेमाल कर समाज में भ्रामक प्रचार करना कहां तक जायज़ है ? चिंता इस बात की भी है कि बाज़ार का गुणा - भाग कहीं लोगों की ज़िंदगी का गणित ना बिगाड दे ...।
8 टिप्पणियां:
इसकी बनियागिरी से मेरा भी भेजा ओवरहीट होने लगा था, आज ही पेपरवाले से कह दिया की कल से राज एक्सप्रेस डालना. अगर इसने भी इस तरह की हरकतें की तो पेपर बंद (इंटरनेट है तो पेपर की कम ही ज़रूरत पड़ती है)
ऐसी भी क्या व्यावसायिक मजबूरियां ,जो लोगों को अपने लक्ष्य से दूर करने पर मजबूर कर दे........ खैर , गलत कदम चलने का अंजाम खुद अखबार को ही भुगतना पड़ेगा।
सही कहा-अखबार को ही भुगतना होगा.
ये ही ख़बर आज इलाहबाद के अखबारों में थी
वीनस केसरी
बहुत ही अच्छा लिखा आपने. हमने तो यह अख़बार बंद ही करा दी है.
मुझे लगता है कि अंततोगत्वा सभी अख़बार बंद करवाने पड़ेंगे.
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को, भूल गए अपना इतिहास.
आपने बेहतर लेखन और बेहतर प्रहार किया है। केवल सनसनी और मसाले के चक्कर में गलत खबर बगैर बात किए जो दी गई वह पत्रकारिता के प्राइमरी सिद्धांत के ही खिलाफ है। मेरे ख्याल से कंपनियों को अपने बिक्री लक्ष्य को पार पाना होगा इसलिए ऐसी खबर छपवाई गई है। यह मूल्य आधारित यानी हर खबर की कीमत वाली खबर है।
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