शनिवार, 20 सितंबर 2008

शायद कोई मंज़र बदले




आतंकवादियों के साथ दिलेरी से मुकाबला करते हुए शहीद हुए मोहनचंद्र शर्मा का पार्थिव शरीर आज पंचतत्व में विलीन हो गया दिल्ली पुलिस के इस जांबाज़ की चिता की आग तो एक - दो दिन में शांत हो जाएगी लेकिन ये शहादत अपने पीछे कई सुलगते सवालात भी छोड गई है मीडिया में आज दिन भर श्री शर्मा की बहादुरी की खूब चर्चा रही ,लेकिन इस घटना ने मन में अजीब सी चुभन भी भर दी कि आखिर ये कुर्बानियां किसके लिए .....? क्यों दी जाएं ...?और आखिर कब तक ....?

मेरे एक मित्र इस मौके पर सेना में शामिल होकर दॆश के लिए अपनी सेवाएं नहीं दे पाने का अफ़सोस ज़ाहिर कर रहे थे देश के प्रति कुछ कर गुज़रने का ये जज़्बा काबिले तारीफ़ तो है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि उद्योगपतियों और अधिकारियों की मदद से देश के खज़ाने को लूटकर अपनी तिजोरियां भरने वाले मदहोश नेताओं की स्वार्थ पूर्ति के लिए जान देने के क्या मायने ...?

देश में वोट बैंक को कब्ज़ाने की राजनीति इस हद तक पहुंच चुकी है कि लालू -मुलायम -पासवान जैसे नेता अल्पसंख्यकों को बरगला कर देश की सुरक्शा को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे देश के लगभग सभी हिस्सों में आज आम जनता का खून सड्कों पर पानी की तरह बह रहा है और सभी राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को मज़बूत करने के गुणा भाग में लगे हैं

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पदक लेने पहुंची सेना के एक शहीद अधिकारी की पत्नी का करुण विलाप ह्र्दय को छलनी कर गया देश के लिए जान देने वाले बहादुर जवानों के परिजनों पर क्या गुज़रती होगी , जब वे उन्के परिवर के सदस्यों की कुर्बानी को यूं ही ज़ाया होते देखते होंगे

सीमापार से रहे आतंकवाद का नाम ले- लेकर पाकिस्तान को कोसने वाले नेताओं का देश की आंतरिक सुरक्शा पर हो रहे सीधे हमलों की तरफ़ से आंखें मूंद लेना खौफ़ज़दा करता है आंकडे बताते हैं कि सीमा की हिफ़ाज़त के लिए अब तक जितने जवान शाहीद हुए हैं ,उससे कई गुना ज़्यादा देश के भीतर हो रहे आतंकवादी हमलों में आम लोग और सेना तथा पुलिस के जवानों की जानें गई हैं

देश के मौजूदा हालात ऎसे हो चुके हैं कि आपस में लड रहे इन नेताओं से किसी तरह की उम्मीद लगाने से बेहतर है कि प्रजातत्र के सूत्रधार यानी आम जनता को आगे आना होगा

दो चार कदम हर रस्ता,पहले मुश्किल लगता है ,
शायद कोई मंज़र बदले , कुछ दूर तो चल कर देखें

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

aapney bahut achchi baat kahi hai. jab tak janata atankwad key mukabley ko aage nahi aayegi tab tak yeh samsya khatm nahin hogi.

Vivek Gupta ने कहा…

जो नेता अपनी सुरक्षा के लिए सदैव ब्लैक कमांडो से घिरे रहते हों वो जनता को कैसे सुरक्षा देगें | मेरा मतलव है जो नेता स्वयम असहाय हो वो दूसरों को सुरक्षा नहीं दे सकता |

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक हालात हैं!!

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.


डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!