शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

मैं टल्ली हो गई ...


और अब इंसानों के बाद मयखाने की राह पकडी है तितलियॊं ने , चंडीगढ की अमीर घरों की शहज़ादियों से सबक लेकर अब भोपाल की रंगबिरंगी तितलियों ने भी टल्ली होने की ठान ली है । और उनके इस शौक को पूरा करने का ज़िम्मा सम्हाला है वन विभाग ने ।
वन विहार में इन दिनों तितलियों को रिझाने के लिए शराब का सहारा लिया जा रहा है । तितलियों की तादाद बढाने के लिये किए जा रहे इस प्रयोग में रम के साथ केले और शहद का भी इस्तेमाल किया जा रहा है । प्रबंधन का कहना है कि प्रयोग के उत्साह्जनक नतीजे आने की उम्मीद है ।
लेकिन तितलियों की ब्रीडिंग्के लिए अपनाई जा रही इस अप्राक्रतिक तरीके ने कुछ बातों पर एक बार फ़िर से गौर करने की ओर इशारा भी किया है । नेचर के साथ खिलवाड के कारण पैदा हुई समस्याओं का समाधान भी अगर हम इसी तरह तात्कालिक तौर पर ही ढूंढ्ते रहे , तो ये छोटी समस्याएं एक दिन विकराल रुप लेकर हमारे सामने खडी होंगी ।
विश्व भर में पशु- पख्हियों की प्रजातियां बडी तेज़ी से खत्म होती जा रही हैं । बर्ड लाइफ़ इंटरनेशनल के मुताबिक पक्शियों की प्रजातियों का १२ प्रतिशात हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा ,यानी करीब १२१२ प्रजातियॊं के सर पर खतरा मंडरा रहा है । धरती पर जीवन को कायम रखने में योगदान देने वाले जीव -जंन्तुओं की सारी प्रजातियां जीवन चक्र की महत्वपूर्ण कडियां हैं । इस जंज़ीर की कोई एक कडी भी बीच से टूट जाए तो एक तरह से पूरी चेन बेकार हो जाती है । एक प्रजाति के विलुप्त होने से बहुत सी दूसरी प्रजातियां सीधे तौर पर प्रभावित होती हैं ।
विश्व में कई जगहों पर खास किस्म के पक्शियों के विलुप्त होने से बागवानी पर असर पडा है । पेडों और जंगल के सफ़ाए से चिडियां ,कीट - पतंगों और मधुमक्खियों का अस्तित्व ही खतरे में पड गया है ।
वर्ष १९९७ में भारत में गिद्धों की जनसंख्या में भारी कमी हो गई ,जिससे मरे हुए जानवरों को खा कर सफ़ाई करने के काम में हो रही देरी का फ़ायदा आवारा कुत्तों ने जम कर उठाया । नतीजतन कुत्तों और चूहों की तादाद बेतहाशा बढने लगी । पर्यावरण पर काम कर रही वाशिंगटन की संस्था वर्ल्ड वाच के अनुसार भारत में बौराए कुत्तों के शिकार लोगों की संख्या तेज़ी से बढ रही है ।
ये चेतावनी है ,हम सबके लिए कि प्रक्र्ति से छेड्छाड किसी भी कीमत पर जायज़ नहीं । वरना सडकों पर झूमती तितलियां गाती नज़र आयेंगी ....मैं टल्ली हो गई ।

11 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

bahut badhiya janakari di hai dhanyawad.

shivraj gujar ने कहा…

aapki chinta vajib hai mame. insaan bahut swarthi hota ja raha hai. use sirf apani chinta hai. apne aage wah kisi ki nahi sochata. aap ki chinta sayad in titaliyon ko na bacha sake lekin ye kya kam hai ki aapne inke baare main socha.
shivraj

vineeta ने कहा…

bahut hi badhiya lekh...jaankari ki lie thanks....carry on

infinity ने कहा…

काफी अच्छा लगा जानकर की संवेदना शून्य होते आज के माहौल में कोई है जिसे पर्यावरण और उसकी अनमोल कृतियों की चिंता सता रही है..नहीं तो आज हर कोई पर्यावरण के मान्य भूलता जा रहा है..ऐसे में इन अनमोल कृतियों की सुरक्षा की बात करना तो शायद आज बेमानी सा हो गया है..क्योंकि हर कोई डूबा बस अपनी चिंताओं में..आपने काफी अच्छा लिखा है..कभी वक्त मिले तो मेरे ब्लॉग jhakjhor.blogspot.com पर से गुजरिएगा..शायद आपकी और मेरी संवेदनाएं एक दूसरे को सहारा दे सकें..
प्रकृति के लिए चंद शब्द उकेरने का आपको धन्यवाद

नीरज उपाध्याय "पहाड़ी"

कुश ने कहा…

badhiya janakari

Unknown ने कहा…

saritaji namaskar.blog par dekh khushi hui.BADHAI.

बेनामी ने कहा…

अच्‍छी जानकारी। बेहतर विचार।

चलते चलते ने कहा…

ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है। पेशे से पत्रकार होने के कारण उम्‍मीद है हम जैसे पाठकों को हर समय बेहतर रिपोर्ट पढ़ने को मिलेगी। आपने जो जानकारी अपने ब्‍लॉग के माध्‍यम से दी है वह प्रशासन और पर्यावरण प्रेमियों के लिए अहम है। उम्‍मीद है आंखें खुलेंगी सभी की और तितलियों के जीवन में इस तरह के बदलाव को रोका जाएगा।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

इस चेतावनी से सीख लेने की जरूरत है।

Udan Tashtari ने कहा…

मन करता है तितली बन जाऊँ.

वैसे सजगता की आवश्यक्ता है.

राजीव जैन ने कहा…

bahut hi badia jaankari


shukriya