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रविवार, 20 सितंबर 2009

जैसे कलावती के दिन फ़िरे...............

विदर्भ की कलावती के दिन जल्दी ही फ़िरने वाले हैं । इस बात का एहसास तो उसी दिन हो गया था , जब सत्यनारायण के कलयुगी अवतार यानी राहुल बाबा ने गरीब महिला के द्वार पर दस्तक दी थी । सुना है भगवान कोई भी रुप धर कर आ सकते हैं । कथा पुराण और पुजारियों से सुना है कि भक्तवत्सल नारायण हरि रुखी-सूखी खाकर धन-धान्य के भंडार भरने का आशीर्वाद दे जाते हैं । हमने लीलावती-कलावती की सत्यनारायण व्रत कथा भी हज़ारों मर्तबा सुनी है । कथा में भी सत्यनारायण की महिमा बखानने के लिये लीलावती-कलावती की दुर्दशा के वृतांत का सहारा लिया गया है ।

दैवीय दंड से दुखी भक्त आर्तभाव से भगवान को पुकारता है । धूमधाम से उद्यापन का आश्वासन पाते ही दोनों हाथों से वरदान लुटाकर सत्यनारायणदेव अंतर्ध्यान हो जाते हैं । सांसारिक चक्करों में उलझे भक्त भगवान को भुला बैठते हैं और नाव में भरा अनमोल खज़ाना लता-पत्र में तब्दील हो जाता है । एक बार फ़िर भक्त की पुकार पर दयानिधान प्रकट होते हैं और भक्त को उसकी गलती का एहसास कराने के लिये उठाये गये कड़े कदम वापस ले लेते हैं । इस तरह भगवान की महिमा बनी रहती है और भक्त भी कभी ना खत्म होने वाली इच्छाओं का पिटारा खोले ही रहता है । यानी "इस हाथ ले उस हाथ दे" का सिलसिला अनवरत चलता रहता है ।

विदर्भ की कलावती के घर राहुल का पदार्पण शबरी के घर करुणानिधान भगवान के आगमन से कम नहीं । तभी तो कल तक गुमनामी की ज़िन्दगी जी रही कलावती का ज़िक्र संसद में गूँजा । कलावती और उस जैसे करोड़ों लोगों को बेहतर ज़िन्दगी का भरोसा दिलाकर राहुल ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खूब वाहवाही बटोरी ।

जनतंत्र में राजतंत्र तलाशने के आदी लोगों के कलेजे को भी ठंडक मिल गई कि सोनिया के बाद काँग्रेस लावारिस नहीं रहेगी । राजकुमार ने गद्दी सम्हालने के गुर सीखना शुरु कर दिया है। गरीबी,भुखमरी और बेरोज़गारी की लाइलाज बीमारी ने देश की राजनीति में काँग्रेस को एक बार फ़िर जीवनदान दे दिया । सत्ता में कद बढ़ने के साथ ही अब लोग राहुल में भावी प्रधानमंत्री तलाशने लगे हैं ।

लगता है सतयुग की सत्यनारायण कथा ने मौजूदा दौर में नया ट्विस्ट ले लिया है । अब विदर्भ की कलावती श्रीहरि के किरदार में है और काँग्रेस लीलावती-कलावती , जो दरिद्रनारायण को प्रसन्न करने के लिये हर चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करती है । जीत मिलने के बाद अपने वादों को भूल जाती है , बिल्कुल सत्यनारायण व्रतकथा की ही तरह । इस रोज़-रोज़ की खींचतान से आज़िज़ आकर लगता है अब की बार नारायण ने खुद ही मोर्चा सम्हालने की ठानी है ।

कलावती किसानों के लिये काम करने वाले संगठन विदर्भ जनआंदोलन समिति के टिकट पर यवतमाल के वणी से विधान सभा चुनाव लड़ेगी । वैसे भारतीय राजनीति का अब तक इतिहास गवाह है कि जिसने भी संसद,विधानसभा,नगर निगम चुनाव तो क्या ग्राम पंचायत का चुनाव भी जीता है उसका लखपति-करोड़पति होना तय है, फ़िर चाहे वो किसी भी तबके से क्यों ना आता हो । इस तरह राहुल बाबा के चरणरज ने कलावती के दिन फ़ेर ही दिये। हम तो यही कहेंगे कि जैसे भगवान कलावती पर प्रसन्न हुए ऎसे हर पाँच साल में हर गरीब पर अपनी कृपादृष्टि बरसायें,ताकि आने वाले सालों में देश की गरीबी समूल मिट जाए ।

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

"अधिकार" पर झन्नाटेदार चाँटे

सत्ता,पैसा और मदिरा का नशा सिर चढ़कर बोलता है । मध्यप्रदेश में भी सत्ता के मद में चूर भाजपा के नेताओं का हाल कुछ ऎसा ही हो चला है । कल तक जूते-चप्पल मीडिया की सुर्खियाँ बटोर रहे थे,लेकिन अब चाँटों की झन्नाहट से लोग भौचक हैं ।

आडवाणी पर खड़ाऊ फ़ेंकने वाले पार्टी कार्यकर्ता को तो सलाखों के पीछे भेजने में ज़रा भी वक्त नहीं लगाया गया ।
ये और बात है मुँह छिपाने के लिये बीजेपी ने आरोपी पावस अग्रवाल को मानसिक रोगी करार देने में कोई देर नहीं की । सवाल सिर्फ़ इतना कि अगर पावस मनोरोगी है तो उसे हवालात की बजाय अस्पताल क्यों नहीं भेजा गया ? बहरहाल कार्यकर्ताओं को गलती पर सज़ा और आम जनता के सवालों पर आपा खोते नेताओं को ईनाम ...?

पिछले हफ़्ते महिला और बाल विकास मंत्री रंजना बघेल ने सवाल पूछने की ग़लती करने वाली महिला के गाल पर तमाचा जड़ दिया । उसका कसूर सिर्फ़ इतना था कि "आम" होने के बावजूद उसने "खास" से सरेआम सवाल पूछ डाला । वह जानना चाहती थी कि विधानसभा चुनाव के दौरान किया गया कर्ज़ माफ़ी का वायदा कब पूरा होगा ? इस पर मैडम इतनी उत्तेजित हो गईं कि उन्होंने आव देखा ना ताव महिला को दो तमाचे जड़ दिये । लेकिन मंत्री के खिलाफ़ कोई कार्रवाई होना तो दूर बीजेपी नेतृत्व खुलकर उनके पक्ष में आ खड़ा हुआ ।

उसी का नतीजा है कि विदिशा ज़िले के नवागाँव में बीजेपी नेता देवेन्द्र वर्मा ने चुनाव ड्यूटी में तैनात पीठासीन अधिकारी को झापड़ दे मारा । राज्यमंत्री का दर्ज़ा पाने वाले वर्मा को ग़ुस्सा महज़ इसलिये आ गया क्योंकि पीठासीन अधिकारी ने मतदान के लिये ज़रुरी दस्तावेज़ माँगने की नाकाबिले बर्दाश्त ग़ुस्ताखी की थी ।

ये दोनों घटनाएँ सामान्य नहीं हैं । मध्यप्रदेश के लोकतांत्रिक इतिहास की संभवतः ये अपने आप में अलग किस्म की घटनाएँ हैं । एक मामला सीधे आम जन और सरकार से जुड़ा हुआ है और दूसरा लोकतंत्र के महापर्व यानी चुनाव की व्यवस्था में जुटे निर्वाचन आयोग और मदमस्त नेता के बीच का । सवाल पूछना जनता का अधिकार है और ये अधिकार उसे संविधान ने दिया है । जवाब देना जनप्रतिनिधियों का दायित्व है । वे इसके लिये बाध्य हैं । क्षेत्र,समाज और देश के विकास का दायित्व सौंपने के लिये मतदाता उन्हें चुनता है । इसलिये वह सवाल-जवाब का हकदार भी है । वास्तव में चुना हुआ नेता जनसेवक होता है ।

दरअसल मंत्री महोदया का ये तमाचा लोकतंत्र के मुँह पर है । क्या जनप्रतिनिधि होने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि वोट मैनेजमेंट के ज़रिये सत्ता हासिल की जाये और कुर्सी हाथिया ली जाये । बरसों से आम नागरिकों के हित में कोई काम तो किसी भी दल या नेता ने किया नहीं,अब सवाल पूछने का हक भी छीन लेने पर आमादा हैं । महिला के गाल पर चाँटा रसीद कर शायद यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने का हक किसी को नहीं ।

"चोरी और सीनाज़ोरी" का आलम ये कि महिला विकास मंत्री श्रीमती बघेल ने उलटे महिला के ही खिलाफ़ रिपोर्ट लिखा दी । बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर का तर्क है कि महिला काँग्रेस से जुड़ी है और वह बार-बार सवाल पूछ कर परेशान कर रही थी । लेकिन क्या लोकतंत्र में किसी अन्य दल से जुड़े व्यक्ति को सवाल पूछने का हक नहीं है ?

नेताओं को नहीं भूलना चाहिये कि अब जनता जागरुक हो रही है । आज एक महिला ने सवाल पूछा है,कल ये तादाद कई गुना हो सकती है । किस - किस को चाँटे मारकर चुप करा सकेंगे । मुँह पर ताले जड़ भी जायें , मगर वोट की ताकत कौन छीन सकेगा ? मतदाता के तमाचे की झन्नाहट नेताओं को बहुत भारी पड़ सकती है । जो वोट उन्हें हाथ उठाने का ताकत देता है,वही वोट उनके बाज़ू काट भी सकता है । प्रदेश के सत्ताधारी नेताओं से बस इतनी गुज़ारिश है - वक्त है अब भी सम्हल जाओ, मदहोश ज़रा होश में आओ.......।