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शनिवार, 25 अप्रैल 2009

"अधिकार" पर झन्नाटेदार चाँटे

सत्ता,पैसा और मदिरा का नशा सिर चढ़कर बोलता है । मध्यप्रदेश में भी सत्ता के मद में चूर भाजपा के नेताओं का हाल कुछ ऎसा ही हो चला है । कल तक जूते-चप्पल मीडिया की सुर्खियाँ बटोर रहे थे,लेकिन अब चाँटों की झन्नाहट से लोग भौचक हैं ।

आडवाणी पर खड़ाऊ फ़ेंकने वाले पार्टी कार्यकर्ता को तो सलाखों के पीछे भेजने में ज़रा भी वक्त नहीं लगाया गया ।
ये और बात है मुँह छिपाने के लिये बीजेपी ने आरोपी पावस अग्रवाल को मानसिक रोगी करार देने में कोई देर नहीं की । सवाल सिर्फ़ इतना कि अगर पावस मनोरोगी है तो उसे हवालात की बजाय अस्पताल क्यों नहीं भेजा गया ? बहरहाल कार्यकर्ताओं को गलती पर सज़ा और आम जनता के सवालों पर आपा खोते नेताओं को ईनाम ...?

पिछले हफ़्ते महिला और बाल विकास मंत्री रंजना बघेल ने सवाल पूछने की ग़लती करने वाली महिला के गाल पर तमाचा जड़ दिया । उसका कसूर सिर्फ़ इतना था कि "आम" होने के बावजूद उसने "खास" से सरेआम सवाल पूछ डाला । वह जानना चाहती थी कि विधानसभा चुनाव के दौरान किया गया कर्ज़ माफ़ी का वायदा कब पूरा होगा ? इस पर मैडम इतनी उत्तेजित हो गईं कि उन्होंने आव देखा ना ताव महिला को दो तमाचे जड़ दिये । लेकिन मंत्री के खिलाफ़ कोई कार्रवाई होना तो दूर बीजेपी नेतृत्व खुलकर उनके पक्ष में आ खड़ा हुआ ।

उसी का नतीजा है कि विदिशा ज़िले के नवागाँव में बीजेपी नेता देवेन्द्र वर्मा ने चुनाव ड्यूटी में तैनात पीठासीन अधिकारी को झापड़ दे मारा । राज्यमंत्री का दर्ज़ा पाने वाले वर्मा को ग़ुस्सा महज़ इसलिये आ गया क्योंकि पीठासीन अधिकारी ने मतदान के लिये ज़रुरी दस्तावेज़ माँगने की नाकाबिले बर्दाश्त ग़ुस्ताखी की थी ।

ये दोनों घटनाएँ सामान्य नहीं हैं । मध्यप्रदेश के लोकतांत्रिक इतिहास की संभवतः ये अपने आप में अलग किस्म की घटनाएँ हैं । एक मामला सीधे आम जन और सरकार से जुड़ा हुआ है और दूसरा लोकतंत्र के महापर्व यानी चुनाव की व्यवस्था में जुटे निर्वाचन आयोग और मदमस्त नेता के बीच का । सवाल पूछना जनता का अधिकार है और ये अधिकार उसे संविधान ने दिया है । जवाब देना जनप्रतिनिधियों का दायित्व है । वे इसके लिये बाध्य हैं । क्षेत्र,समाज और देश के विकास का दायित्व सौंपने के लिये मतदाता उन्हें चुनता है । इसलिये वह सवाल-जवाब का हकदार भी है । वास्तव में चुना हुआ नेता जनसेवक होता है ।

दरअसल मंत्री महोदया का ये तमाचा लोकतंत्र के मुँह पर है । क्या जनप्रतिनिधि होने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि वोट मैनेजमेंट के ज़रिये सत्ता हासिल की जाये और कुर्सी हाथिया ली जाये । बरसों से आम नागरिकों के हित में कोई काम तो किसी भी दल या नेता ने किया नहीं,अब सवाल पूछने का हक भी छीन लेने पर आमादा हैं । महिला के गाल पर चाँटा रसीद कर शायद यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने का हक किसी को नहीं ।

"चोरी और सीनाज़ोरी" का आलम ये कि महिला विकास मंत्री श्रीमती बघेल ने उलटे महिला के ही खिलाफ़ रिपोर्ट लिखा दी । बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर का तर्क है कि महिला काँग्रेस से जुड़ी है और वह बार-बार सवाल पूछ कर परेशान कर रही थी । लेकिन क्या लोकतंत्र में किसी अन्य दल से जुड़े व्यक्ति को सवाल पूछने का हक नहीं है ?

नेताओं को नहीं भूलना चाहिये कि अब जनता जागरुक हो रही है । आज एक महिला ने सवाल पूछा है,कल ये तादाद कई गुना हो सकती है । किस - किस को चाँटे मारकर चुप करा सकेंगे । मुँह पर ताले जड़ भी जायें , मगर वोट की ताकत कौन छीन सकेगा ? मतदाता के तमाचे की झन्नाहट नेताओं को बहुत भारी पड़ सकती है । जो वोट उन्हें हाथ उठाने का ताकत देता है,वही वोट उनके बाज़ू काट भी सकता है । प्रदेश के सत्ताधारी नेताओं से बस इतनी गुज़ारिश है - वक्त है अब भी सम्हल जाओ, मदहोश ज़रा होश में आओ.......।

मंगलवार, 24 मार्च 2009

भाजपा से हर मोर्चे पर पिछड़ी काँग्रेस

मध्यप्रदेश में भाजपा ने धुआँधार बल्लेबाज़ी करते हुए बढ़त हासिल कर ली है । उम्मीदवारों के चयन का मामला हो या चुनाव प्रचार में मुद्दे खड़े कर उन्हें भुनाने की कोशिश ... बीजेपी हर मोर्चे पर काँग्रेस से चार हाथ आगे ही है । बीजेपी अपने खिलाफ़ जाते माहौल को पक्ष में करने के लिये पूरे प्रदेश में न्याय यात्राएँ निकाल रही है । हर उम्मीदवार के साथ एक आईटी एक्सपर्ट तैनात कर दिया है । महिला मोर्चा , श्रमिक प्रकोष्ठ और किसान मोर्चा भी रणनीति बनाने में जुट गया है , जबकि काँग्रेस मुख्यालय में सुई पटक सन्नाटा पसरा है । कार्यालय म्रें नेता नदारद हैं , तो कार्यकर्ताओं का भी भला क्या काम ...?


काँग्रेस की चुनाव समिति ने मध्यप्रदेश के तीन और उम्मीदवारों के नामों पर मुहर लगा दी है । शनिवार को जारी तीसरी सूची में मंडला से दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे बसोरी सिंह मरकाम और बैतूल से ओझाराम इवने के नाम शामिल हैं । विदिशा से राजकुमार पटेल भाजपा की दिग्गज सुषमा स्वराज के खिलाफ़ चुनाव मैदान में उतरे हैं । श्री पटेल और श्री ओझाराम के नाम पहले ही घोषित कर दिये गये थे लेकिन उन्हें पुनर्विचार के लिए रोक लिया गया था ।

इस तरह काँग्रेस ने 29 में से 22 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तय कर दिये हैं ,जबकि भाजपा 26 संसदीय क्षेत्रों के लिये नामों की घोषणा कर चुकी है । भोपाल, इंदौर, देवास, होशंगाबाद, सीधी, सतना और राजगढ़ का मामला अभी भी अटका हुआ है। ये सभी सीटें कांग्रेस के दिग्गजों के प्रभाव क्षेत्र की हैं।

होशंगाबाद से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी को चुनाव मैदान में उतारने का फ़ैसला हाईकमान को करना है । पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह दस साल तक चुनाव नहीं लड़ने की प्रतिज्ञा लिये बैठे हैं , जबकि राजगढ़ में दिग्गी राजा के समर्थक किसी और नाम पर समझौते के लिये राज़ी नहीं हैं । इसी तरह सीधी से अर्जुन सिंह के बेटे और सतना से उनकी बेटी को टिकट देने का मामला भी उलझा है ।

भोपाल से मुस्लिम उम्मीदवार को उतारने की माँग भी ज़ोर पकड़ रही है । इसके अलावा भोपाल में कायस्थ मतदाताओं की भारी तादाद के मद्देनज़र कायस्थ प्रत्याशी के रुप में प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री का नाम भी चर्चा में है । यहाँ करीब पौने तीन लाख कायस्थ मतदाता हैं । वर्ष 1989 से लगातार भाजपा भोपाल सीट पर काबिज़ है । प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर भोपाल सीट काँग्रेस के हाथों से छीनी थी । वे लगातार चार मर्तबा सांसद चुने गये । वर्मा से पहले काँग्रेस के के.एन.प्रधान ने दो बार संसद में भोपाल का प्रतिनिधित्व किया । ये दोनों ही नेता कायस्थ समाज से ताल्लुक रखते थे ।

विदिशा सीट पर जानकार मुकाबला एकतरफ़ा मान रहे हैं , जबकि कांग्रेस काँटे की टक्कर का दावा कर रही है । एक तरफ़ सुषमा राष्ट्रीय नेता हैं , ये और बात है कि वे अब तक कोई भी संसदीय चुनाव नहीं जीत सकी हैं । ऎसे में वे भी विदिशा जैसी सुरक्षित सीट से जीत कर अपना इतिहास बदलना चाहेंगी । दूसरी ओर काँग्रेस भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने का प्रयास कर निष्प्राण हो चुके संगठन में जोश भरने की कोशिश ज़रुर करेगी ।

विदिशा के लिये काँग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल बुधनी से एक बार विधायक रहे हैं । उन्होंने विधानसभा का एक चुनाव भोजपुर और एक चुनाव बुधनी से हारा है । वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा । वे एक मर्तबा बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस में माना जा रहा है कि पटेल इस संसदीय क्षेत्र में श्रीमती स्वराज को कड़ी टक्कर देंगे । स्थानीय नेता का मुद्दा कितना ज़ोर लगा पायेगा यह कह पाना मुश्किल है ।

विदिशा भाजपा का अजेय दुर्ग माना जाता है । इस संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पाँच बार संसद के गलियारों में दाखिल होने का मौका दिया । काँग्रेस विदिशा और भोपाल सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न मान कर चल रही है । इसीलिए अंतिम वक्त तक जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश में मगजपच्ची की जा रही है ।