बुधवार, 22 अप्रैल 2009

एक लाख मतदाता जागे , अब हमारी बारी

इन आम चुनाव में नेता अपने फ़ायदे के लिये असली मुद्दों से ध्यान हटाने में जुटे हैं । पब्लिक को भरमाने के लिये खूब चटखारेदार भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि लोग बुनियादी मुद्दों को भुलाकर इस मसालेदार तू-तू,मैं-मैं में उलझे रहें और उन्हें मतदाताओं की नाराज़गी नहीं झेलना पडे़ । सवाल पूछते मतदाताओं से मुँह छिपाते घूम रहे सत्ता के मद में चूर नेताओं को शायद यह मुग़ालता हो चला है कि जनता बेबस है - चुनना हम में से ही किसी एक को पड़ेगा । लेकिन ग़ाफ़िल नेताओं को शायद मालूम नहीं की धीरे-धीरे ही सही " हवा का रुख़" बदल रहा है । ऎसी ही मिसाल है- गाज़ियाबाद ज़िले का मोदीनगर इलाका ।

इस क्षेत्र के करीब चालीस गाँवों के एक लाख से ज़्यादा मतदाताओं ने चुनाव में किसी को भी वोट नहीं देने का अहम फ़ैसला ले लिया है । लेकिन नेताओं से नाराज़ ये लोग मतदान के दिन घर पर नहीं बैठेंगे, बल्कि सभी लोग पोलिंग बूथ पर जाकर सभी उम्मीदवारों को नकार देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करेंगे ।

भारतीय लोकतंत्र में एक साथ इतनी बड़ी तादाद में राइट टु नो वोट का उपयोग करने का संभवतः यह पहला मामला होगा । मोदीनगर इलाके के करीब चालीस गाँवों में से छब्बीस बागपत संसदीय सीट और बाकी गाज़ियाबाद लोकसभा क्षेत्र में आते हैं । इन गाँवों से गुज़रने वाली सड़क की बदहाली से बेज़ार लोगों ने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया है । अपने अधिकारों को जान चुके लोगों ने नेताओं से जवाब तलब शुरु कर दिया है । इतना ही नहीं इन लोगों ने अब तक किसी भी सियासी पार्टी के नुमाइंदे को इलाके में घुसने नहीं दिया है ।

यूथ फ़ॉर इक्वेलिटी की पहल पर निवाड़ी गाँव में चालीस गाँवों के सरपंच इकट्ठा हुए और उन्होंने नेताओं को सबक सिखाने का फ़ैसला लिया । ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अब अपने अधिकारों को जानने समझने लगे हैं । ऎसे में शहरी इलाकों के पढ़े-लिखे मतदाताओं की चुप्पी अखरने वाली है । उम्मीद है हम सब भी लोकतंत्र के इस महापर्व में अधिकार समझकर या फ़िर कर्तव्य मानकर अपने जागरुक होने का परिचय ज़रुर देंगे । पोलिंग बूथ ज़रुर जाएँ, उम्मीदवार पसंद नहीं तो धारा 49(o) के तहत नकार कर आएँ । फ़िर अगले चुनाव तक चैन की बाँसुरी बजायें, किसने रोका है ?

4 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

यह लोकतंत्र ऐसे ही सुधरेगा.

P.N. Subramanian ने कहा…

आपने सही कहा है. जनतंत्र में यही एक अधिकार तो हमारे पास है और हम उसी का प्रयोग न करें तो हम अपने अधिकारों तो तिलांजलि दे ही रहे होंगे साथ ही एक नागरिक के कर्तव्यों की भी अनदेखी करेंगे.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

एक अच्छी शुरूआत है।

संगीता पुरी ने कहा…

वाह !! शहरी क्षेत्र से अधिक जागरूक तो ग्रामीण क्षेत्र की जनता है।