शनिवार, 19 सितंबर 2009

पितरों के "मोक्ष" में निवालों की तलाश

सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के साथ ही पितरों को याद करने के पर्व का समापन हो गया । धार्मिक ग्रंथों में पितृ पक्ष को लेकर कई आख्यान हैं,जिनमें कहा गया है कि इन सोलह दिनों में पितरों का द्वार खुला रहता है या यूं कहें कि पितर बंधनों से मुक्त होकर पृथ्वी लोक में स्वजनों के पास आते हैं । पूर्णिमा से अमावस्या तक पितर स्वजनों के आसपास सूक्ष्म रूप से विद्यमान रहते हैं । शास्त्रों में पितृ तर्पण की तमाम विधियाँ भी बताई गई हैं । भौतिकवादी समाज में बाज़ारवाद का बोलबाला है । घर - परिवार में बिखराव का दौर जारी है । बूढ़े माँ बाप अपने ही बच्चों की दरिंदगी का शिकार हो रहे हैं । हैरानी की बात है कि जिस देश में मृत आत्माओं को तृप्त करने की परंपरा हो,वहाँ बुज़ुर्गों के सिर पर छत कायम रखने के लिये सरकार को कानून बनाना पड़ा । अब तो वृद्ध आश्रम खोलने के लिये सरकारी कोशिशों के साथ ही निजी क्षेत्र भी दिलचस्पी ले रहा है ।

बाज़ार और मीडिया की कोशिश से ज्योतिष और धर्म का कारोबार भी खूब फ़लफ़ूल रहा है । तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में हर छोटी-बड़ी नाकामी के लिये पितृ दोष का हाथ बताने वाले भविष्यवक्ताओं की बाढ़ आ गई है। यही वजह है कि
नासिक,गया,कुरुक्षेत्र,उज्जैन, इलाहाबाद,हरिद्वार जैसे धार्मिक स्थल पर अपने पूर्वजों को तृप्त करने आने वालों का सैलाब उमड़ने लगा है । बिहार के गया में तो इस बार ऑनलाइन यानी ई-तर्पण की सुविधा उपलब्ध कराई गई । कितनी अजीब बात है कि कई ऎसे बुज़ुर्ग जिन्हें जीते जी भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हुआ, मगर उनके श्राद्ध में परिजन पूरी-पकवान बनाये जाते हैं,पंडों-पुजारियों को मनुहार कर खिलाने के बाद भरपूर दान-दक्षिणा भी देते है । उनकी इस कोशिश में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं,बल्कि अपने कामों में आ रही रुकावटों से पिंड छुड़ाने की जल्दी रहती है ।

सुनकर कुछ अजीब लग सकता है लेकिन एक खबर ने झकझोर कर रख दिया । गरीबी की मार झेल रहे कई लोग मृत आत्मा की शांति के लिये बनाये जाने वाले पिंडों से अपना पेट भरने को मजबूर हैं । बिहार के गया जिले में कई गरीब परिवार पितरों को अर्पित पिंड से गायों को खाने के लिए दिया जाने वाला भोजन खा कर अपनी और अपने परिवार के पेट की आग बुझा रहे हैं। भगवान विष्णु की तपोस्थली और भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली बिहार के गया जिले में पितृ पक्ष के दौरान मेला लगता है । पंद्रह दिन तक चलने वाले इस मेले में देश-विदेश से आए लाखों लोग अपने पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं। पिंडदान के बाद पितरों को अर्पित पिंड का कुछ भाग गाय को खिलाया जाता है। यह पिंड जौ अथवा चावल के आटे के बने होते हैं। मोक्षस्थली गयाधाम स्थित विष्णुपद मंदिर के देवघाट पर पिंडदान करने वाले तीर्थयात्री पितरों को अर्पित पिंड गाय नहीं मिलने पर अक्सर फल्गू नदी में प्रवाहित कर देते हैं।

नदी में बहते इन पिंडों को गरीब लोग घर ले जाते हैं। धूप में सुखाने के बाद पीसकर रोटी बनाई जाती है। पिंडदान के बाद पितरों को अर्पित पिंड किसे दिया जाए , इस बारे में शास्त्रों में विधान है । जगत गुरुस्वामी राघवाचार्य के मुताबिक हेमाद्री ऋषि के ग्रंथ चतुरवर्ग चिंतमणि में वर्णित श्राद्धकल्प के एक सूत्र में ‘विप्राजगावा’ का प्रावधान है। इसमें पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के बाद पान के पत्ते पर पिंड रख कर बकरी को तथा पितरों को अर्पित पिंड गाय को देने की बात कही गई है । गाय नहीं मिलने की सूरत में पिंड नदी में प्रवाहित करने का उल्लेख है । पिंडदान,तर्पण और श्राद्ध के दौरान उपयोग में लाई गई अन्य वस्तुओं पर ब्राह्मण का अधिकार होता है।

देवघाट पर पितरों को अर्पित पिंड को इकट्ठा करने वाली बुज़ुर्ग महिला जगियाभूनि का कहना है कि गरीबी और भूख से विवश हो कर गाय के हिस्से के पिंड खाना पडता है। विष्णुपद मंदिर के देवघाट पर पिंड इकट्ठा करने के काम में कई परिवार सुबह से जुट जाते हैं । ये लोग बरसों से यही काम करते आ रहे हैं। उनके पिता और दादा भी पिंड एकत्र कर परिवार का भरण पोषण करते थे। इन लोगों का कहना है कि न तो उसके परिवार का नाम बीपीएल सूची में शामिल है और न ही जिला प्रशासन उन्हें सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों दी जाने वाली सहायता देता है। गया में करीब 25 परिवार ऐसे हैं जो लंबे समय से इन पिंडों को जमा कर उनकी रोटी बनाकर अपने पेट की आग बुझाने को विवश हैं।

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

विस्तृत जानकारी मिली. आभार.

प्रमोद ताम्बट ने कहा…

विचारोत्तेजक लेख......., कब इस देश को फालतू के ढकोसलों से मुक्ति मिलेगी ?

प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बाज़ार और मीडिया की कोशिश से ज्योतिष और धर्म का कारोबार भी खूब फ़लफ़ूल रहा है । भविष्यवक्ताओं की बाढ़ आ गई है।

bilkul sahi likha hai aapne..... INDIA TV iska example hai.....

aur bahut hi vistrit jaankaari pradaan ki hai aapne.........



aur main aapko dhanyawaad deta hoon...... jee main OK, bye bye pe bhi kaam kar raha hoon..... aur aap jab dekhenge.... to us research pe bhi daaton tale ungle dabaa lenge....

Thanx once again.......

RDS ने कहा…

हमेशा की तरह एक बार फिर से झकझोर दिया आपने ! आपकी लुकाठी की प्रशंसा तो अनेक ब्लागू जन करते मिल जायेंगे लेकिन कबीर की जमात में उठ खडे होने वाले लोग कहां हैं ?

सब भयभीत हैं ! तथाकथित पंडितों से, अपने पापकर्मों से उत्पन्न शंका से, धन बटोरू चैनेलों के ओझे - जोशियों से ..

अभी तक जितना अहित ब्राहमणों और उनके गपोडों ने नही किया देश और धर्म का उससे अधिक सत्यानाश आधुनिक मीडिया ने कर दिया है । बडे नामी गिरामी नेता अभिनेता तक इस कुबुद्धि का शिकार हैं और प्रचार में भागीदार हैं । नाम किस किस का लें ; और नाम लेना ज़रूरी भी तो नहीं !

शुभ हो !!