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सोमवार, 26 जनवरी 2009

अभावों को समृद्धि में बदलना सीखें इज़राइल से

गाज़ा पट्टी पर कब्ज़े को लेकर इज़राइल और हमास के बीच चले आ रहे संघर्ष को लेकर दो तरह की बातें सुनने मिलती हैं । कुछ लोग इज़राइल की सैन्य कार्रवाई को बर्बर और गैरज़रुरी बताते हुए मानवता की दुहाई देते हैं । वहीं एक बडा तबका ऎसा भी है जो हमास को नेस्तनाबूद करने के इज़राइली संकल्प को आतंकवाद के खिलाफ़ जंग से जोड कर देखता है ।

चिंतक और विश्लेषक घनश्याम सक्सेना ने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान इज़राइली विद्वान नेटेनल लार्च से हुई बातचीत का हवाला देते हुए हाल ही में मुझे इज़राइलियों के संघर्षशील स्वभाव के बारे में बताया । लार्च के मुताबिक इज़राइल की हर मोर्चे पर सफ़लता का एकमात्र सूत्र वाक्य है - विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष का जज़्बा कायम रखना और बेहतर के लिए सतत प्रयासरत रहना । इज़राइली किसी भी काम को छोटा - बडा समझने की बजाय उसे अपना कर्तव्य मानकर निभाते हैं ।

अरब देशों ने जब जार्डन नदी पर बांध बनाकर इज़राइल को पानी मिलने की सभी संभावनाओं पर रोक लगा दी , तो संघर्षों में रास्ता तलाशने वालों ने समुद्र के खारे पानी को अपनी तासीर बदलने पर मजबूर कर दिया । आज इज़राइल की ड्रिप इरीगेशन तकनीक खेती के लिए मिसाल बन चुकी है । वे रेगिस्तान में भी रसीली नारंगी का भरपूर उत्पादन लेते हैं । हम पानी को खेतों में बेतहाशा बहा कर उर्वरा भूमि को बंजर में तब्दील कर देते हैं । "टपक विधि" अपनाकर भरपूर पैदावार लेने वाले इज़राइली सबक हैं भारतीय किसानों के लिए ।

नेपाल में रहने वाले मेरे पारिवारिक मित्र "पानी की खेती" की तकनीक का प्रशिक्षण लेने के लिए इज़राइल गये थे । वे इज़राइलियों की तकनीकी सूझबूझ से चमत्कृत थे । उन्होंने बताया कि किस तरह महज़ दो- चार फ़ीसदी बरसात के पानी का वे खूबसूरती से इस्तेमाल करते हैं । वहां घरों में तीन तरह के नलों से पानी पहुंचाया जाता है और हरेक पानी का उपयोग भी तयशुदा होता है । दूसरी तरफ़ हम हैं । प्रकृति ने हमें सैकडों नदियों का वरदान दिया । हज़ारों तालाबों की दौलत से नवाज़ा और अनगिनत कुएं- बावडियों की सौगात भी बख्शी । बादलों की मेहरबानी भी जमकर बरसती है , लेकिन हमने कुदरत की इस बख्शीश की कीमत ही नहीं जानी । नतीजतन आज देश में पानी के लिए त्राहि - त्राहि मची है ।

लार्च ने हिब्रू भाषा में लिखी अपनी किताब ’मेज़ेल टोव’ यानी ’गुड लक” का हवाला देते हुए बताया कि जिस ब्रिटिश कूटनीति के फ़लस्वरुप 15 अगस्त 1947 को भारतीय उपमहाद्वीप का बंटवारा हुआ उसी वजह से अरब देशों के बीच शत्रुता के माहौल में 14 मई 1948 को इज़राइल का जन्म हुआ । आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद जिस तरह कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों ने हमला किया था ,उसी तरह इज़राइल पर सात अरब देशों ने हमला बोल दिया ।

आतंकवाद से निपटने के मामले में भारत और इज़राइल के सामर्थ्य की चर्चा के दौरान लार्च ने श्री सक्सेना को कई असमानताएं गिनाईं । लार्च मानते हैं "हमें अभावों का वरदान मिला है ,जबकि भारत को समृद्धि का अभिशाप । इसलिए इज़राइल ने अभावों को समृद्धि में बदलने का हुनर सीखा । दूसरी ओर समृद्ध भारत ’सब चलता है’ के नज़रिए के साथ आगे बढा ।"

इज़राइली विद्वान लार्च भारत को शॉक एब्ज़ार्वर करार देते हुए कहते हैं कि " हम एक आतंकी हमला चुपचाप सह लें तो खत्म हो जाएंगे । हम शत्रु राष्ट्रों को धमकी नहीं देते ,बल्कि सीधे वार करते हैं । इधर भारत लगातार चेतावनी तो देता है मगर कार्रवाही कुछ नहीं करता । इज़राइल आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देता है ।"

मेरे परिचितों की ज़ुबानी इन वृतांतों को सुनने के बाद से मेरा मन सवाल कर रहा है कि क्या भारत अपने हमउम्र साथी राष्ट्र से कभी कोई सबक सीख पाएगा ? क्या कुदरत की नियामतों को सहेजने की सलाहियत हम लोगों में कभी आ पाएगी ..? क्या ऎसा भी कोई दिन आएगा जब कोई दुश्मन आंख उठाकर देखने की हिमाकत करे तो हम उसकी आंखें निकाल लें ...? कब मेरे देश का हर खेत हरियाली से लहलहाएगा और हर शख्स भरपेट भोजन कर चैन की नींद सो सकेगा अपनी छत के नीचे ...? मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि आज भी हम सब हालात बदलने की ताकत रखते हैं । अपनी हिकमत और हिम्मत से हर तूफ़ान का रुख बदल सकते हैं ।
हम बचाएंगे , सजायेंगे, संवारेंगे तुझे
हर मिटे नक्श को चमका के उभारेंगे तुझे
अपनी शह - रग का लहू दे के निखारेंगे तुझे
दार पे चढ के फ़िर इक बार पुकारेंगे तुझे
राह इमदाद की देखें ये भले तौर नहीं
हम भगत सिंह के साथी हैं कोई और नहीं