मध्यप्रदेश के नरसिंह्गढ का परमारकालीन किला जो कभी हमारी धरोहर थी ,विरासत मानी जाती थी , उसे अब निजी हाथों के हवाले कर दिया गया है । मालवा के कश्मीर के नाम से शोहरत हासिल करने वाले नरसिंह्गढ के किले को सजाने -संवारने का जिम्मा डेनमार्क की कंपनी को सौंपा गया है । देश -विदेश के सैलानियों की खातिरदारी के लिए विदेशी कंपनी को साझॆदार बनाया गया है । कंपनी ने किले को १४ करोड रुपए में खरीद लिया है और यहां जल्दी ही हेरिटेज होटल शुरु करने जा रही है । इस किले को १७ शताब्दी में परमार शासकों ने बनवाया था । फ़िलहाल यह राजपरिवार के पास था । लेकिन हेरिटेज योजना के तहत प्रदेश की जर्जर हो चुकी ऎतिहासिक इमारतों को नए रुप और नए कलेवर के साथ सैलानियों के सामने पेश करने की पर्यटन निगम की अनूठी पहल ने नरसिंहगढ के किले के दिन फ़ेर दिए हैं । किले के आसपास का इलाका पर्यटन निगम संवारेगा और कंपनी पांच सौ करोड रुपए की लागत से होटल बनाएगी । किले के आसपास करीब ५२ एकड में यह प्रोजेक्ट आकार लेगा । पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक को उम्मीद है कि अगले साल तक नरसिंहगढ पर्यटकों के बेहतरीन ठिकाने के तौर पर तैयार होगा । चारों तरफ़ फ़ैले जंगलों के कारण यह इलाका प्रक्रति प्रेमियों को भी खूब लुभाता है ।
गुरुवार, 18 सितंबर 2008
शनिवार, 13 सितंबर 2008
गणपति बप्पा मोरिया
गणपति बप्पा मोरिया , अगले बरस तू जल्दी आ।
गणेश विसर्जन का वक्त आ चला है । दस दिन हमारे घरों में मेहमान रहने के बाद अब अगले वर्ष आने के वायदे के साथ गणनायक अब बिदाई ले लेंगे । लेकिन क्या विघ्नहर्ता श्रीगणेश इस भरोसे के साथ बिदा हो सकेगे कि वे इस वसुंधरा और समूची मानव जाति को जिस हाल में फ़िलहाल छोडकर जा रहे हैं क्या वे धरती को अगले साल भी उसी रुप में देख सकेंगे । पूरी दुनिया आतंकवाद के साये तले डर -डर कर जीने के लिऎ मजबूर है । विश्व को ग्लोबल विलेज कहने वाले लोग बाज़ारवाद की गिरफ़्त में आकर पूजा पंडालों को हाईटेक बनाने , स्पांसर तलाश कर भगवान की भक्ति के नाम पर ज़्यादा से ज़्यादा धन कमाने मॆं लग गये हैं । क्या भक्ति के बाज़ारीकरण को रोकने और ईश्वर के सही मायने तलाश्ने के लिए श्रीगणेश हम सभी को सदबुद्धि का वरदान देकर जायेंगे या फ़िर ............
गणपति बप्पा मोरिया , होने दे जो हो रिया ।
गणेश विसर्जन का वक्त आ चला है । दस दिन हमारे घरों में मेहमान रहने के बाद अब अगले वर्ष आने के वायदे के साथ गणनायक अब बिदाई ले लेंगे । लेकिन क्या विघ्नहर्ता श्रीगणेश इस भरोसे के साथ बिदा हो सकेगे कि वे इस वसुंधरा और समूची मानव जाति को जिस हाल में फ़िलहाल छोडकर जा रहे हैं क्या वे धरती को अगले साल भी उसी रुप में देख सकेंगे । पूरी दुनिया आतंकवाद के साये तले डर -डर कर जीने के लिऎ मजबूर है । विश्व को ग्लोबल विलेज कहने वाले लोग बाज़ारवाद की गिरफ़्त में आकर पूजा पंडालों को हाईटेक बनाने , स्पांसर तलाश कर भगवान की भक्ति के नाम पर ज़्यादा से ज़्यादा धन कमाने मॆं लग गये हैं । क्या भक्ति के बाज़ारीकरण को रोकने और ईश्वर के सही मायने तलाश्ने के लिए श्रीगणेश हम सभी को सदबुद्धि का वरदान देकर जायेंगे या फ़िर ............
गणपति बप्पा मोरिया , होने दे जो हो रिया ।
मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
गर्मी के मौसम ने अपनी तूफ़ानी आमद दर्ज़ करा दी है। इसी के साथ लोगों के चेहरों का नूर भी फ़ीका पड्ने लगा है । बरसात और सर्दी के खुशगवार दिनों को याद कर लोग सूरज की तपिश पर आग बबूला होते नज़र आ जाएंगे ,लेकिन कोई भी इन हालात के पीछे के कारणों को न तो जानने की कॊशिश करना चाहता है और ना ही इनसे निपटने के लिए कोई ठोस रणनीति तैयार करने में कोई दिलचस्पी नज़र आती है । हाल ही में एक खबर सुनने को मिली कि मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले के जंगल में पानी के लिए भालू और इंसानों के बीच जमकर संघर्ष हुआ । उपजाऊ ज़मीनों पर कांक्रीट का जंगल खडा कर अपनी तरक्की पसंद सोच पर इतराने वाले इस दो पैर वाले जानवर ने दिनॊंदिन सिकुड़ते जंगलॊं पर फ़िर से अतिक्रमण शुरू कर दिया है । आधुनिकता के पर्याय बन चुके उपकरणों ने भलॆ ही हमें तात्कालिक सुख मुहैया करा दिया हो ,लेकिन हमारा आत्मिक आनंद छीन लिया है । विकास की इस आत्मघाती दौड़ में कहीं हम मानव सभ्यता को ही तो खतरे में नहीं डाल रहे ?
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