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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

देश को ’राम’ नहीं रोटी चाहिए.......

लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर राम मुद्दे को हवा दी है नागपुर में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनाने का शिगूफ़ा छोड कर मतदाताओं की नब्ज़ टटोलने की कोशिश की है । " कोई माँ का लाल भगवान राम में हमारी आस्था और निष्ठा को डिगा नहीं सकता "
राजनाथ सिंह ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार पर निशाना साधा कि पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि विवाद सुलझाने के लिए पाँच मिनट का समय भी नहीं दिया । राजनाथ सिंह ने बडी ही चतुराई भरी चाल चली है । शब्दों पर गौर करें तो लगेगा कि उन्होंने काफ़ी सफ़ाई से मतदाताओं को भरमाने की कोशिश की है । बकौल राजनाथ "जिस दिन भाजपा को अपने बलबूते बहुमत मिलेगा, पार्टी इस मुद्दे पर एक क़ानून लाएगी ।" यानी ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी ।

मंदी की मार से बेहाल लोगों को रोज़गार के लाले पडे हैं और बीजेपी को कुर्सी की चाहत में राम याद आने लगे हैं । लोगों के मुंह से निवाले छिन रहे हैं और देश की दूसरी सबसे बडी पार्टी भव्य राम मंदिर बनाने का सपना जनता की आंखों में भर रही है । गरीब की दो वक्त की रोटी का जुगाड नहीं है और धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं को अपनी झोली में समेटने की जुगत भिडाई जा रही है । सही मायनों में इस देश को राम की नहीं रोज़ी की दरकार है ,रोटी की ज़रुरत है -"भूखे भजन ना होवे गोपाला , ये ले तेरी कंठी - माला ।" भूखे पेट राम नहीं रोटी याद आती है । गरीब के लिए ’राम’ रोटी में बसते हैं । अगर लोगों को रोटी देने का प्रबंध कर दिया जाए , तो भी बीजेपी को ’राम’ मिल ही जाएंगे ।

गौरतलब है कि 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने जब केंद्र में अन्य पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाई थी, उस समय उसने अयोध्या, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और समान आचार संहिता जैसे विवादित मुद्दों को दरकिनार कर दिया था । लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने एक बार फिर राम मुद्दे पर बयान देना शुरू किया है । राम मंदिर के निर्माण का मामला विवादास्पद रहा है और हर बार चुनावों के समय विवाद गहरा जाता है । दिलचस्प बात है कि अयोध्या के ज़्यादातर मतदाताओं की नज़र में चुनाव का मुख्य मुद्दा 'विकास' है, न कि 'मंदिर निर्माण' । राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दरअसल अयोध्या का आम आदमी मंदिर मुद्दे से कभी जुड़ ही नहीं पाया ।

अयोध्या के साधु-संतों ने भी भाजपा नेताओं को जमकर लताडा है । वे मानते हैं कि चुनाव के वक्त भाजपा को राम मंदिर याद आने लगता है । लेकिन सत्ता में आने के बाद मंदिर तो दूर राम भी याद नहीं रहते । हनुमान गढ़ी के महंत भवनाथ दास ने तो नागपुर में राम मंदिर की बात करने वालों को "वोटों का सौंदागर" तक करार दे डाला । गुस्साये महंत कहते हैं कि वोटों के लिए अब ये भगवान श्रीराम का भी सौदा करने निकले हैं। अब चुनाव आते ही भगवान राम के नाम पर राजनैतिक सौदेबाजी में जुट गए हैं। इन्हीं लोगों के कारण मंदिर निर्माण का मुद्दा हाशिए पर चला गया। सत्ता में थे तो अयोध्या झांकने तक नहीं आए। अब सत्ता की चाहत में मंदिर के नाम पर ठगने आ रहे हैं।

राम लहर पर सवार होकर केन्द्र की सत्ता में आ चुकी भारतीय जनता पार्टी को रह-रहकर सत्ता सुंदरी की याद सताने लगाती है । ऎसे में रह - रह कर याद आते हैं भगवान श्रीराम और उनका भव्य मंदिर । उत्तर प्रदेश में सबसे बुरी स्थिति में भाजपा ही है। जिसे देखते हुए संभवत: पार्टी ने एक बार फिर मंदिर का मुद्दा उठाया है। पर यह मुद्दा न राजनैतिक दलों को रास आ रहा है , न ही साधु-संतों और आम जनता को । राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा-यह तो राजनैतिक बयान है। अयोध्या में राम का मंदिर तो है ही और पूजा भी हो रही है। भव्य राम मंदिर बनने की बात का अब कोई महत्व नहीं रह गया है। जब हिन्दू मानस जगेगा तो भव्य राम मंदिर का निर्माण हो ही जाएगा।

सरयू कुंज मंदिर के महंत युगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा-राजनाथ सिंह का यह बयान भ्रमित करने वाला और धोखा देने वाला है। यह अदालत की अवमानना भी है। पार्टी असली मुद्दों बेरोजगारी, गरीबी और किसानों की उपजाऊ जमीन के अधिग्रहण को लेकर कभी आगे नहीं आती।

दूसरी ओर अयोध्या की हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञान दास भावुक हो कर कहते हैं कि उन्हें ख़ून से सना नहीं , बल्कि दूध से बना मंदिर चाहिए । मंदिर आम राय से बने तभी उचित होगा । मुसलिम समुदाय की सहमति से निर्माण हो तभी भव्य मंदिर बन पाएगा। किसी को भी दुखी करके बनाए गए पूजा स्थल में ईश्वर का वास नहीं हो सकता ।

भाकपा बीजेपी के इस बयान में वोटों की सियासत देखती है । उसका कहना है कि इस पार्टी के पास देश के विकास का कोई माडल नहीं है । ये लोग अपने फ़ायदे के लिए राम का नाम बदनाम करने में जुटे हैं।

देश इस समय एक साथ कई तरह के संकटों से दो - चार हो रहा है । ऎसे वक्त में नई और व्यापक सोच की आवश्यकता है , जो ना केवल देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके ,बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में वैमनस्य की खाई को पाट सके । प्रजातंत्र की नींव को मज़बूत करने के लिए भ्रष्टाचार जैसी लाइलाज बीमारी का इलाज ढूंढना ज़रुरी है ।

लोगों का भरोसा न्यायपालिका ,कार्यपालिका और विधायिका से जिस तेज़ी से उठ रहा है ,ये भी बेहद चिंता का विषय है । इस विश्वास को दोबारा कायम करना चुनौती भरा और दुरुह काम है । राजनीतिक दलों की पहली चिंता देश हित होना चाहिए । देश के नागरिकों की खुशहाली , सुशासन और ईमानदार समाज पार्टियों का एजेंडा होना चाहिए । नेताओं को ये याद रखना होगा कि देश है तभी तक उनकी सियासत है ।