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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

मध्यप्रदेश के नौनिहाल भूख से बेहाल

बेस्ट ई-गवर्नेंस का प्रतिष्ठापूर्ण अवार्ड हासिल कर पूरे देश में नाम कमाने वाले मध्यप्रदेश के नौनिहाल भूख से मर रहे हैं । हाल ही में दिल्ली से आई बाल संरक्षण अधिकार आयोग की टीम ने सतना ज़िले के मझगवां जनपद में किरहाई पोखरी गांव में कुपोषण के जो हालत देखे , उससे लगता है कि पिछले साल प्रदेश के कई ज़िलों में कुपोषण से हुई मौतों के बावजूद राज्य सरकार ने कोई सबक नहीं लिया ।

टीम के सदस्यों के मुताबिक गांव के हालात ’दयनीय’ शब्द को भी लजाते हैं । अपनी माताओं की छाती से चिपके ज़्यादातर मासूम क्षेत्र मे कुपोषण के फ़ैलते आतंक की कहानी बयान करते हैं । बच्चों के शरीर महज़ "हड्डियों के ढांचे" हैं । आलम ये है कि इन मासूमों की उम्र का अंदाज़ा लगा पाना भी मुश्किल है । गांव में दो से तीन साल तक के कई बच्चे हैं जो अब तक अपने पैरों पर चल भी नहीं पाते । गली - मोहल्ले में किलकारियां भरकर खेलने की उम्र के ये बच्चे अपनी मांओं के सीने से चिपके बेवजह रोते रहते हैं । टीम को गांव में ढूंढे से एक भी स्वस्थ बच्चा नहीं मिला । गांव के हालात देखकर ऎसा लगता था मानो यहां की महिलाएं कुपोषित बच्चे पैदा करने के लिए अभिशप्त हैं ।

आयोग की चाइल्ड स्पेशलिस्ट इलाके के सत्तर फ़ीसदी बच्चों को कुपोषित बताती हैं । वे हैरान हैं कि मुख्य मार्ग के नज़दीक बसे गांव में हर दूसरा बच्चा कुपोषण की पहली और दूसरी श्रेणी का कैसे हो सकता है ...? सरकारी दावे चाहे जो हों हकीकत से मीलों दूर हैं । वास्तविकता भयावह है और सरकारी आंकडों में दर्ज़ योजनाओं की सफ़लता की पोल - पट्टी खोल कर रख देती है । आंगनबाडी कार्यकर्ता , प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र , स्वयंसेवी संगठन ,यूनीसेफ़ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रयासों का कच्चा चिट्ठा हैं ये नौनिहाल ....।

प्रदेश में छह महीने पहले कुपोषण से मौतों का मामला गरमाया था । मीडिया में खबरें , विधान सभा में हंगामा , आरोप - प्रत्यारोप और कई जांच कमेटियां ....। इस सारी कवायद का नतीजा निकला शून्य । पुराना सब छोड भी दें पिछले छह महीनों में ही ईमानदारी दिखाई होती , तो हो सकता है जांच टीम को क्षेत्र का हर बच्चा हंसता -मुस्कराता तंदुरुस्त नज़र आता ।लेकिन हमारी रग - रग में बेईमानी समा चुकी है । एक राजा ने अपने राज्य में ईमानदारी की स्थिति का पता लगाने के लिए मुनादी करा दी कि सूखे तालाब में अमावस्या की रात सभी लोगों को अनिवार्य रुप से एक - एक लोटा दूध डालना होगा । अगले दिन सूरज उगने पर तालाब में पानी के सिवाय कुछ नहीं था । रात के अंधेरे में ईमान भी सो जाता है ।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक समिति ने वर्ष 2006 कहा था कि बच्चों की मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश के श्योपुर ज़िले की तुलना अफ़्रीका के सबसे ग़रीब और पिछड़े इलाकों से की जा सकती है । जाँच समिति ने पाया कि भुखमरी प्रभावित सबसे अधिक बच्चे सहरिया जनजाति के हैं । इलाके के हर 100 बच्चों में से 93 कुपोषण का शिकार हैं।

वर्ष 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चेताया था कि भारत में बच्चों के कुपोषण की दर दुनिया में सबसे अधिक है । मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में मनमोहन सिंह ने कहा कि पोषण कार्यक्रम का 'क्रियान्वयन बेहद ख़राब तरीके' से किया जा रहा है। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र बालकोष यानि यूनिसेफ़ की रिपोर्ट दक्षिण एशिया के बच्चों में कुपोषण की समस्या को रेखांकित करती है । रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है ।

यूनिसेफ़ की रिपोर्ट कहती है कि पांच साल से कम के 25 प्रतिशत बच्चों के पास खाने को पर्याप्त भोजन नहीं है और दुखद तथ्य ये है कि ऐसे बच्चों में से 50 प्रतिशत बच्चे सिर्फ़ तीन देशों भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहते है । रिपोर्ट में भारत और चीन की तुलना की गई थी । इसमें कहा गया था कि बच्चों को पर्याप्त भोजन मुहैया कराने की दिशा में पिछले 15 वर्षों में चीन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है जबकि भारत का प्रदर्शन अत्यंत ख़राब रहा है । रिपोर्ट में भारत में पांच साल से कम के आधे से अधिक बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने पर भी चिंता जताई गई है ।

शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

देश के हालात पर वक्त का फ़रमान

लगता है दुनिया भर में बुरी खबरों का दौर चल पडा है । अमेरिकी मंदी के ज़लज़ले ने विश्व के तमाम छोटे - बडे देशों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है । कल तक सुनहरे भविष्य के ख्वाब संजोने वाले युवाओं के सामने रोज़ी - रोटी का संकट खडा हो गया है । स्टाक मार्केट की धोबी पछाड ने अच्छे - अच्छे धुरंधरों की चूलें हिला कर रख दी हैं । इस अफ़रा - तफ़री के माहौल में फ़ंडामेंटल और टेक्निकल एक्सपर्टस की सुनने वाला कोई नहीं बचा । बाज़ार की दुर्दशा से बेज़ार लोगों को हाल में आया एक सर्वे बेहाल करने पर आमादा है ।
खबरों पर यकीन करें तो भारत भीषण खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है । इसमें भी सबसे चिंताजनक हालात मध्य प्रदेश में बताए जा रहे हैं । अंतर्राष्ट्रीय खाद्यान्न नीति अनुसंधान संस्थान की ओर से पहली मर्तबा जारी रिपोर्ट में बारह राज्यों को अति गंभीर श्रेणी में शामिल किया है । संस्थान ने हाल के विश्व व्यापी खाद्यान्न सर्वे की ८८ विकासशील देशों की सूची में भारत को ६६ ववें पायदान पर रखा है ।
महानगरों की चकाचौंध के पीछे के भारत की स्याह हकीकत तरक्की और विकास के तमाम दावों की पोल खोलते नज़र आते हैं । विका़स के बावजूद भारत पच्चीस अफ़्रीकी देशों और बांगलादेश को छोड तमाम साउथ एशियाई देशों से नीचे है । शिशु म्रत्यु दर और कुपोषण के मामले में देश के हालात बांगलादेश से भी बदतर बताए गए हैं ।व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए मायूसी की बात ये है कि मध्य प्रदेश का हाल बेहाल है । लेकिन सरकार इस सबसे बेखबर बनी हुई है । समस्या का निदान तो तब हो ना जब ह्म उसे मानें या समझें । मगर की मद मस्ती का आलम ये है कि उसे सूबे में दूर - दूर तक कोई समस्या दिखाई ही नहीं देती । पूरे राज्य में सुख -शांति और अमन चैन की बयार बह रही है ,क्या हुआ जो चार -पांच सौ नौनिहालों की असमय ही मौत हो गई ।
कुदरत अपने साथ हुई नाइंसाफ़ी का बदला अपने ही अंदाज़ में ले रही है । कहीं बूंद -बूंद पानी को तरसते लोग , तो कहीं सैलाब से तबाही । खेती को घाटे का सौदा मान कर शहरों का रुख करने वाले ग्रामीणों की तादाद दिनोदिन रफ़्तार पकड रही है । आबादी के बढते दबाव ने शहरॊं का विस्तार किया है और इस फ़ैलाव की कीमत चुकाई है उपजाऊ ज़मीन ने । शहरों के आसपास की ज़मीनें अब अनाज नहीं कांक्रीट के जंगल पैदा कर रही हैं ।
खाद्यान्न और पानी के बढते संकट की भयावह्ता को समझ कर अभी से कोई ठोस कदम नहीं उठाए , तो ज़मीनें और भोग विलासिता के ज़रिए तिजोरियां भरने वालों को सोना - चांदी चबाकर ही पेट भरना होगा । वक्त तो अपना फ़रमान सुना चुका है ,और अब बारी हमारी ............
इक कहानी वक्त
लिखेगा नए मज़मून की
जिसकी सुर्खी को ज़रुरत है
तुम्हारे खून की
वक्त का फ़रमान
अपना रुख बदल सकता नहीं
मौत टल सकती है ,
अब फ़रमान टल सकता नहीं ।