tag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post9196877911701611843..comments2023-09-16T05:51:18.539-07:00Comments on नुक्ताचीनी: औरत को दया नहीं अधिकार की दरकारsarita argareyhttp://www.blogger.com/profile/02602819243543324233noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-88652078190779266742009-03-24T00:29:00.000-07:002009-03-24T00:29:00.000-07:00शिक्षा आदि की आपने बात कही... महिलाओं को इनकी जरूर...शिक्षा आदि की आपने बात कही... महिलाओं को इनकी जरूरत है, पर खास जरूरत है आर्थिक स्वातंत्र्य की। महिलाओं पर जो अत्याचार होते हैं, चाहे वह घरेलू हिंसा हो या दहेज से जुड़ी हिंसा, इसलिए होते हैं, क्योंकि महिलाएं पुरुषों पर मुहताज रहती हैं जिंदगी भर। किसी ने कहा भी है, बचपन में पिता-भाई, प्रौढ़ावस्था में पति, और बुढ़ापे में पुत्र। <BR/><BR/>जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाएंगी, वे अपना निर्णय खुद ले पाएंगी और उनकी काफी समस्याएं सुलझ जाएंगी।<BR/><BR/>आर्थिक दृष्टि से स्वातंत्र्य से मेरा मतलब नौकरी करने से नहीं है। नौकरी करनेवाली महिलाओं को भी अपनी ही आय पर नियंत्रण नहीं होता, उनके पुरुष आका का ही उस पर अधिकार होता है, चाहे वे पिता हों, पति हों, भाई हों, या पुत्र।<BR/><BR/>जब महिलाएं सच्चे अर्थों में आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र हो जाएंगी, तब पुरुष और स्त्री का संबंधी बराबरी के स्तर पर हो सकेगा, और कोई भी किसी का शोषण नहीं कर पाएगा।<BR/><BR/>समाज ने स्त्री का पलड़ा पुरुष से हल्का इसलिए रखा है ताकि संतानोत्पत्ति का काम और बच्चों के लालन-पालन का काम ठीक रूप से हो। संतान पैदा करने का काम केवल महिलाएं कर सकती हैं, और यह काफी श्रमसाध्य और कष्टभारा काम होता है, जिसे कोई भी महिला शायद स्वेच्छा से करना नहीं चाहेगी, इसलिए समाज की दृष्टि से यहां कुछ जोर-जबर्दस्ति दरकार है।<BR/><BR/>जब पुरुष और स्त्री आर्थिक दृष्टि से बराबर हो जाएं, हालांकि यह कई प्रकाश वर्ष दूर की बात लगती है, तो संतानोत्पत्ति कैसे हो, और बच्चों का लालन-पालन कैसे हो, इस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा।<BR/><BR/>विदेशों में जहां महिलाएं आर्थिक दृष्टि से काफी स्वतंत्र हैं, बच्चे पर्याप्त संख्या में पैदा ही नहीं हो रहे हैं, और उनका समाज धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। वहां तो परुष पुरुष से और स्त्री स्त्री से संबंध स्थापित कर रहा है। ऐसे में समाज चले कैसे?<BR/><BR/>जब समाज के दीर्घकाल से चले आ रहे समीकरणों को बदलना हो, हमें हर पहलू पर विचार करना होगा। यह भी एक विचारणीय पहलू है। आपके किसी अगले लेख में इस पर आपकी राय पढ़ना चाहूंगा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-16844714413179378062009-03-07T03:33:00.000-08:002009-03-07T03:33:00.000-08:00सही बात है औरत को दया की नहीं अधिकार की दरकार है ....सही बात है औरत को दया की नहीं अधिकार की दरकार है ......क्योंकि पहले तो उसे जन्म लेने दिया जाय और फिर उसे इस काबिल होने दिया जाय की वो अपने अधिकारों की लडाई लड़ सके .....बहुत जरूरी है ......जो बहुत से परिवार के लोग होने नहीं देतेअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-47988890331121244052009-03-06T09:54:00.000-08:002009-03-06T09:54:00.000-08:00सहमत हूं आपसे .... औरत को दया नहीं अधिकार की जरूरत...सहमत हूं आपसे .... औरत को दया नहीं अधिकार की जरूरत है ... पर इसके लिए महिलाओं को स्वयं ही जागरूक होना होगा।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-47891394101055373612009-03-06T09:09:00.000-08:002009-03-06T09:09:00.000-08:00आपने बिलकुल ठीक कहा है। दुनिया की आधी आबादी के लिए...आपने बिलकुल ठीक कहा है। दुनिया की आधी आबादी के लिए केवल एक दिन! जिसने भी तय किया, अविवेकी रहा होगा।<BR/>स्त्री के बिना दुनिया अपूर्ण, नीरस और रंगविहीन।<BR/>हर दिन, स्त्री का दिन।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-77272783813618862832009-03-06T08:47:00.000-08:002009-03-06T08:47:00.000-08:00आपके विचारो से सहमत हूँ पर अभी भी हमारे देश में मह...आपके विचारो से सहमत हूँ पर अभी भी हमारे देश में महिलाओं को अधिकार प्राप्त करने के लिए शतप्रतिशत जागरुक होना जरुरी है .महेन्द्र मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/00466530125214639404noreply@blogger.com