tag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post8285026661837358842..comments2023-09-16T05:51:18.539-07:00Comments on नुक्ताचीनी: परायी खुशियों पर थिरकते कदमsarita argareyhttp://www.blogger.com/profile/02602819243543324233noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-92087386181632442322009-03-19T14:44:00.000-07:002009-03-19T14:44:00.000-07:00बहुत ही मार्मिक और कारुणिक प्रस्तुति है। लज्जाजन...बहुत ही मार्मिक और कारुणिक प्रस्तुति है। लज्जाजनक विसंगतियों को सहजता से जीने के लिए भगवान का उपयोग किस तरह कर लेते हैं हम लोग।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-10997406753132247762009-03-18T11:13:00.000-07:002009-03-18T11:13:00.000-07:00"परायी खुशियों पर थिरकते कदम" पढ़ कर एक सुखद अनुभ...<B> "परायी खुशियों पर थिरकते कदम" पढ़ कर एक सुखद अनुभूति हुई सरिता जी .<BR/>आलेख में करीला मेले के माध्यम से आपने बुन्देली संस्कृति, राई नृत्य, क्षेत्रीय परिवेश और परंपरा तथा रूढ़वादिता पर जो प्रश्न उठाये हैं और जो जानकारी प्रस्तुत की है, बेहद सराहनीय है. आँखों से तो हर चीज देखी जा सकती है लेकिन आप अपनी लेखनी के माध्यम से जो कार्य कर रहीं हैं इससे भी हमारी संस्कृति और परम्पराओं को संबल और स्थायित्व प्राप्त होता है.<BR/> आपके सद्प्रयासों को मेरा नमन<BR/>- विजय <BR/> </B>विजय तिवारी " किसलय "https://www.blogger.com/profile/14892334297524350346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-19947108233105371562009-03-18T09:40:00.000-07:002009-03-18T09:40:00.000-07:00बहुत पुराने समय से ही नृत्य पुरुष प्रधान समाज में ...बहुत पुराने समय से ही नृत्य पुरुष प्रधान समाज में उनके मनोरंजन के लिए ही होता रहा है. कुछ अपवाद हो सकते हैं जहाँ नृत्य किसी देवी/देवता की उपासना के लिए ही प्रयुक्त हुआ हो. बेडनियों को क्या उनके सांस्कृतिक परंपरा से विमुख किया जा सकता है. ऐसा नहीं की उनके पास विकल्प नहीं है. आपके सुन्दर लेख ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. आभार.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-89874057299906480832009-03-18T08:42:00.000-07:002009-03-18T08:42:00.000-07:00लेख का अंतिम पद बेहद दुखद ,किन्तु यह भी एक समाज है...लेख का अंतिम पद बेहद दुखद ,किन्तु यह भी एक समाज है ,एक आस्था है ,एक रिवाज़ है ,तकरीवन लाखौं लोग एकत्रित होते है ,शासकीय स्तर पर व्यवस्था होती है /राई एक लोक नृत्य है ,करीला में बडे पैमाने पर होता है परन्तु बुंदेलखंड में रजवाडों में होली के दूसरे दिन अथवा तीसरे दिन एक कार्यक्रम होता है जिसे हल्ला कहा जाता है और दिन भर और रातभर नाच इनका हुआ करता था / अंतिम पद में जो तथ्य लिखे है वैसा होता नहीं है अपवाद स्वरूप का तो नहीं कहा जा सकता /,यह नृत्य केवल नृत्य तक ही सीमित है /,अब ऐसे तो दुनिया जहान है न जाने कहाँ कहाँ क्या क्या होता रहता है /वाकी यह पूर्ण रूपेण आस्तिक कार्यक्रम है ,इसमें आलोचना की कोई बात वैसे तो है नहीं ,और कोई आलोचना करना चाहे तो बंधन भी नहीं हैBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-77187305080850039662009-03-18T07:27:00.000-07:002009-03-18T07:27:00.000-07:00sareethaa jee,shubh abhivaadan, aapkee lekhanee ne...sareethaa jee,<BR/>shubh abhivaadan, aapkee lekhanee ne hameshaa kee tarah aaj bhee prabavit kiya.likhtee rahein.अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1051165835151252409.post-13212937747598066162009-03-18T06:59:00.000-07:002009-03-18T06:59:00.000-07:00बढ़िया आलेख प्रस्तुति . आभार.बढ़िया आलेख प्रस्तुति . आभार.समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.com